‘मैं ने तो उन्हें इनवाइट भी नहीं किया,’ रोहन ने सोचा.
पिछले साल की पार्टी की गड़बड़ रोहन को आज भी याद थी. पापा को नशा कुछ ज्यादा हो गया था. उन्होंने मम्मी के हाथ की सिगरेट छीनी तो रोहन का दिल धक से रह गया. ‘अब होगा झगड़ा,’ उस ने सोचा. लेकिन मम्मी मधु आंटी से बातें करती रही थीं. पर, पार्टी के बाद की वह जोरदार लड़ाई उफ…’
मां का सिगरेट पीना रोहन को भी असमंजस में डाल देता है.
वह सोचने लगता है, ‘विक्की की मम्मी तो सिगरेट नहीं पीतीं, रेनू की मां भी नहीं, शाहिद की अम्मी भी नहीं, फिर मम्मी ही क्यों. पापा मना करें तो लो, हो गया झगड़ा.’
‘आज तो मेरी बस निकल ही जाती, यह तो रेनू की मम्मी ने दूर से ही मुझे देख लिया और ड्राइवर को रोके रखा. आंटी कितनी अच्छी हैं, रोज रेनू का बैग उठा कर उसे बसस्टौप पर छोड़ने, फिर लेने भी आती हैं. कीर्ति के साथ उस के दादा आते हैं और निधि के साथ उस के पापा. लेकिन ये सब तो छोटे हैं. मैं, मैं तो कितना बड़ा हो गया हूं, फिर भी मम्मी मरिअम्मा को साथ भेज देती हैं.’
पहले तो रोहन का भी मन करता था कि मम्मी उस के साथ आएं बसस्टौप तक. बस, एक दिन के लिए ही सही. पर कहां? मम्मी को तो कितने काम होते हैं, कितनी सोशल सर्विस करनी पड़ती है. रेनू, छवि, पवन उन सब की मम्मियां तो सिर्फ हाउसवाइफ हैं, बस, घर का काम करो और आराम से रहो. सोशल क्लब जौइन करना पड़े तो पता चले. मम्मी ने ही सब समझाया था.
फिर भी रोहन सोचता, ‘काश, उस की मम्मी भी केवल हाउसवाइफ ही होतीं. या फिर उस के दादादादी ही उस के साथ रहते, जैसे कीर्ति और विक्की के रहते हैं. फिर तो मजा ही मजा होता. वे उस के साथ बाग में खेलते, बातें करते, बसस्टौप तक छोड़ने आते. पर दादादादी का आना मम्मी को जरा भी नहीं भाता. फिर वे हर समय गुस्से में रहती हैं. पापा से भी झगड़ती हैं, मुझे भी डांटती हैं.’
दादी तो उसे अपने साथ ही सुलाती थीं. सितारों और परियों की कहानियां भी सुनाती थीं, पर मम्मी कहती हैं, ‘बच्चों को अलग कमरे में सोना चाहिए. हर समय मां का आंचल पकड़े रहने वाले बच्चे कमजोर और दब्बू बन जाते हैं, जैसे तुम्हारे पापा हैं.’
रोहन को पापा का उदाहरण अखरता है, ‘पापा तो कितने स्मार्ट, कितने हैंडसम हैं, पर क्या वे सचमुच मम्मी से डरते हैं? क्या वे सच में दब्बू हैं?’
हर तरह की सोच से परे उस का मन फिर भी मचलता ही रहता है, मम्मीपापा के साथ उन के बीच सोने को. तकिया फेंकफेंक कर उन के साथ खेलने को, पर नहीं, अब तो वह कितना बड़ा हो गया है, पूरे 11 साल का. अब तो वह मम्मीपापा के साथ सोने की जिद भी नहीं करेगा, कभी नहीं.
रोहन स्कूल से लौटा तो लौन में शामियाना लग चुका था. पेड़पौधों पर बिजली के रंगबिरंगे छोटेछोटे बल्बों की कतारें झूल रही थीं. बरामदा और हौल रंगबिंरगे गुब्बारों व चमकतीदमकती झालरों से सजेधजे थे. रोहन ने दौड़ कर मम्मीपापा के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मरिअम्मा, पापा कहां हैं?’’
‘‘उन का फ्लाइट लेट है बाबा, अब वह तुम को सीधा पार्टी में ही मिलेगा,’’ मरिअम्मा ने कहा.
‘‘और मम्मी?’’ कहता हुआ रोहन रोने को हो उठा.
‘‘वह तो टेलर के पास गया है. वहां से फिर ब्यूटीपार्लर जाने का, देर से लौटेगा. अब तुम हाथमुंह धो कर खाना खाने का, फिर आराम कर के जल्दीजल्दी होमवर्क फिनिश करने का. फिर तुम्हारा हैप्पी बर्थडे होगा. बड़ाबड़ा केक कटेगा.’’
‘‘नहीं खाना मुझे खाना, नहीं करना होमवर्क,’’ मरिअम्मा को धकेलता रोहन धड़ाम से पलंग पर जा पड़ा. यह देख मरिअम्मा हैरान रह गई.
‘‘गुस्साता काहे रे. अरे, तू ने तो अपना गिफ्ट भी खोल कर नहीं देखा, खोलोखोलो. देखोदेखो, मम्मी रात तुम्हारे वास्ते क्या ले कर आया. अभी पापा भी अच्छाअच्छा खिलौना लाएगा,’’ मरिअम्मा ने राहुल को समझाया.
‘‘नहीं चाहिए मुझे खिलौने. मैं अब बड़ा हो गया हूं,’’ मरिअम्मा के हाथ से गिफ्टपैक छीन कर रोहन ने बाथरूम के दरवाजे पर दे मारा और सुबकने लगा.
डरी हुई मरिअम्मा पलभर तो शांत रही, फिर धीरेधीरे उस का सिर सहलाती उसे पुचकारनेमनाने लगी, ‘‘मेरा अच्छा बाबा. मेरा राजा बेटा. अब तो तू बड़ा हो गया रे, रोते नहीं. रोते नहीं बाबा. अपने जन्मदिन पर कोई रोता है क्या?’’ उसे समझातेमनाते मरिअम्मा की आवाज भी भर्रा गई, ‘‘उठ, उठ जा मुन्ना. मेरा अच्छा बच्चा, चल, खाना खाएं होमवर्क करें. देरी हुआ तो मेमसाब मेरे को गुस्सा करेगा कि हम तेरा ध्यान नहीं रखता.’’
रोहन का सुबकना थम गया. आंखें चुराता, मुंह छिपाता वह बाथरूम में चला गया.
एक मरिअम्मा ही है जो उसे प्यार करती है, उस का इतना ध्यान रखती है. फिर भी मम्मी उसे डांटती ही रहती हैं. पहले वाली वह रोजी, उफ, कितनी गंदी थी, चुपकेचुपके उसे चिकोटी काटती, उस का चौकलेट खा जाती. उस का दूध पी जाती और बसस्टौप पर रोज उस का बौयफ्रैंड भी उस से मिलने आता. मम्मी से शिकायत की, पापा को पता चला तो घर में कितना हंगामा हुआ था. पापा ने तो यहां तक कह दिया था, ‘तुम से एक बच्चा तो संभलता नहीं, करती हो समाजसेवा. रोहन को आज से तुम ही देखोगी, रोजी की छुट्टी है.’
मम्मी का क्लब, किटी आदि सब बंद हो गया. वे हर समय गुस्सातीझल्लाती रहतीं. घर में रोज लड़ाई होती. फिर एक दिन मरिअम्मा आ गईं.
मरिअम्मा सच में अच्छी हैं. उसे कहानियां सुनाती हैं, उस के साथ खेलती हैं, उसे प्यार भी करती हैं.
खाना खा कर रोहन लेटा तो जरूर, पर उस की सभी इंद्रियां मम्मीपापा के इंतजार में सचेत थीं.
‘पापा अभी तक नहीं आए. मम्मी अभी और कितनी देर लगाएंगी? मम्मीपापा हमेशा इतने बिजी क्यों रहते हैं?’
अचानक ही रोहन को बैग में रखी ‘जादू की पुडि़या’ की याद आई. उस दिन बस में 12वीं कक्षा के किशोर के दोस्तों की सभा जमी थी. झुरमुट में फुसफुसाते वे जोरजोर से ठहाके लगा रहे थे, ‘अरे, जादू है जादू, जबान पर रख लो तो मन की सभी मुरादें पूरी.’
‘एक पुडि़या मुझे भी दो न,’ बस में चढ़ते रोहन ने फुसफुसाते हुए फरमाइश की.
‘तू क्या करेगा रे, अभी तू मुन्ना है, मुन्ना, थोड़ा बड़ा हो ले, फिर मौज मारना,’ कह कर किशोर के दोस्तों ने ठहाका लगाया था.
‘अरे, दे दे न मुन्ना को, अपना क्या जाता है,’ राकेश ने आंख दबा कर रोहन की सिफारिश करते हुए कहा था.
‘चल, निकाल 25 रुपए, औरों के लिए 50-100 से कम नहीं, पर तू
तो अभी बच्चा है न, बिलकुल नयानवेला, नन्हामुन्ना. बच्चू, मजा न आए तो कहना.’
लेकिन रोहन न ही इतना नन्हामुन्ना था और न ही पूरा बेवकूफ.
किशोर उस के स्कूल का दादा था. उस ने किशोर और उस के साथियों को दरवाजे के पास खड़े आइसक्रीम वाले से बहुत सारी पुडि़याएं खरीदते देखा था. सफेद पाउडरभरी उन पुडि़याओं में कैसा जादू था, वह खूब जानता था. फिर भी उस ने वह पुडि़या खरीद ली. खरीदने के बाद लगा, वह उसे फेंक दे, पर नहीं फेंकी. संभाल कर बैग के अंदर वाली जिप में रख ली.
रोहन मम्मीपापा के बारे में सोच ही रहा था पर तभी उसे उस पुडि़या का ध्यान आया. उस ने उठ कर बैग खोल कर देखा. पुडि़या ज्यों की त्यों रखी थी. पुडि़या निकाल कर रोहन कुछ पल
उसे घूरता रहा, फिर उसे बैग में रख कर लेट गया.
‘‘बाबा, ओ बाबा, उठो. देखो शाम हो रही है,’’ मरिअम्मा ने रोहन को पुकारा.
रोहन ने आलस में आंखें खोलीं तो मरिअम्मा प्यार से मुसकरा उठी.
‘‘उठो बाबा, होमवर्क करना है. तैयार होना है. फिर मेहमान आना शुरू हो जाएगा.’’
रोहन तुरंत एक झटके में ही उठ बैठा और पूछा, ‘‘मम्मी आ गईं, मरिअम्मा?’’
‘‘आ गया, बाबा. वह तो सब से पहले तुम्हारे पास ही आया, पर तुम सोता था,’’ मरिअम्मा ने जवाब दिया.
रोहन ने दौड़ कर मां के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मम्मी तो नहीं हैं, मरिअम्मा.’’
‘‘वह नहाता होगा बाबा, पार्टी के लिए सजना है न. अब तुम भी जल्दी करो, देरी हुआ तो मेमसाब नाराज होगा.’’
होमवर्क खत्म कर रोहन फिर से मां के कमरे की ओर भागा, पर दरवाजा तो अंदर से बंद था. रोहन समझ गया मम्मी अब मेकअप कर रही होंगी और मेकअप करते समय कोई डिस्टर्ब करे, यह उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं. हारे कदमों से रोहन वापस आ गया.
‘‘अरे, रोहन बाबा, तुम अभी इधर ही बैठा है, चलोचलो, नहा लो, तैयार हो जाओ. देखो, तुम्हारा नया कपड़ा भी निकाल दिया,’’ मरिअम्मा ने कहा.
‘‘पापा अभी तक नहीं आए, मरिअम्मा?’’
‘‘आते ही होंगे बाबा,’’ मरिअम्मा ने बिलकुल सफेद रूमाल रोहन की जेब में रखते हुए कहा.
‘‘चलो बाबा, अब पार्टी का टाइम हो गया. मेमसाब वहीं मिलेगा.’’
‘‘तुम जाओ मरिअम्मा, मैं आ जाऊंगा.’’
‘‘देखो, देरी नहीं करना, जल्दी से पहुंच जाना,’’ जातेजाते मरिअम्मा ने एक बार फिर रोहन के बाल संवारे और उसे प्यारभरी नजरों से देखती बाहर चली गई.
शाम होते ही बंगला रंगारंग रोशनी में नहा उठा. रात गहराते ही रौनक बढ़
गई. मेहमान आने शुरू हो गए. चहकतेमहकते, मुसकराते, सजेधजे मेहमान, आंखों ही आंखों में एकदूसरे को आंकते मेहमान, बातों ही बातों में एकदूसरे को नापते मेहमान.
‘‘रवि आज भी नदारद है, निशा,’’ हरीश ने कहा.
‘‘उस के वही बिजनैस ट्रिप्स, फिर हमारी यह बेटाइम चलने वाली एअरलाइंस, बस, आता ही होगा,’’ मनमोहनी मुसकान के साथ निशा ने सफाई दी.
‘‘रोजरोज के ये बिजनैस ट्रिप्स. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं, निशा?’’ हरीश ने आंख दबा कर शिगूफा छोड़ा तो वातावरण में हंसी की फुलझडि़यां फूट गईं. निशा भी पूरी तरह मुसकरा उठी.
‘‘बर्थडे बौय कहां है भाई?’’ माला ने बड़ी नजाकत से हाथ में पकड़े उपहार के डब्बे को साथ वाली कुरसी पर रखते हुए कहा.
‘‘अब साहबजादे को भी बुलाइए जरा,’’ रमेश ने अपने हाथ में पकड़ा गिफ्टपैक राधिका को देते हुए कहा.
‘‘रोहन, रोहन, माई सन,’’ निशा की धीमी मीठी आवाज गूंज उठी.
‘‘रोहन, सनी?’’ निशा ने इधरउधर देखा, ‘‘रोहन कहां है मरिअम्मा?’’
‘‘इधर ही था मेमसाब, बाथरूम में होगा, अभी देखता,’’ कह कर वह उसे ढूंढ़ने लगी.