जब पत्नी से प्यार न रह जाए और उस से छुटकारा पाना हो तो तलाक के अजीबोगरीब कारण भी अदालतों तक पहुंच जाते हैं. दिल्ली के एक मामले में पति ने तलाक की दुहाई देते हुए कहा कि पत्नी सुबहसुबह चाय की मांग करती है और जिद करती है वह उसे बिस्तर पर चाय ला कर दे. पति ने यह भी कहा कि गर्भावस्था के दौरान पत्नी ने उस से संबंध बनाने से इनकार कर दिया और ये दोनों बातें क्रूरता की श्रेणी में आती हैं, इसलिए उसे तलाक दिलाया जाए. न निचली अदालत ने और न ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पति को पत्नी से छुटकारा दिलाया क्योंकि अदालत की राय में ये दोनों बातें कू्ररता नहीं हैं. पति बेचारा विवाहित रह गया.

अदालती फैसले और समाचार से तो यह पता नहीं चलता कि वह अपनी पत्नी के पास लौट गया होगा पर इतना अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो पति छोटीछोटी बातों पर पत्नी पर मुकदमा करे वह पत्नी के साथ एक छत के नीचे नहीं रहेगा. कू्ररता असल में मामले को अदालत में ले तो जाती है पर भारतीय कानून कहता है कि तलाक गलती करने वाले को नहीं मिलेगा, दूसरे पक्ष को मिलेगा. पत्नी चाहती तो शायद वह मामले को अदालत में ले जाने पर तलाक मांग सकती थी हालांकि अब तक ऐसे फैसले न के बराबर हुए हैं. तलाक कानून भारत में ही नहीं और कई देशों में भी जटिल हो गया है. यदि विवाह बाद पतिपत्नी साथ नहीं रहना चाहें, चाहे जो गलत हो, तो कोई सामाजिक, धार्मिक, रस्मी या संसदीय कानून उन्हें फिर एक बिस्तर पर नहीं ले जा सकता. यदि मतभेद गहरे हो जाएं तो ही हार कर दोनों या दोनों में से एक अलग रह कर तलाक मांगता है. हालांकि दूसरा पक्ष अकसर तलाक का विरोध करता है क्योंकि उस के पास विवाहित होने का ठप्पा तो रहता ही है भले दोनों अलगअलग रह रहे हों.

इस तरह के मामलों में अदालतों को मुखर होना चाहिए और जब तक कानून सरल न हो जाए, तलाक की अनुमति देनी चाहिए. औरतों की सुरक्षा के लिए हो सकता है जरूरी हो कि पति को बंधन में बांधे रखा जाए पर यह बंधन बोझ ही रहता है. जब तलाक आसान हो जाएंगे तो तलाकशुदा के साथ विवाह किया जाना भी आम होने लगेगा. मुसलिम पृष्ठभूमि पर बनी ‘सौदागर’ फिल्म में अमिताभ बच्चन पद्मा खन्ना के लिए नूतन को तलाक दे देता है पर जल्द ही नूतन को नया पति मिल भी जाता है जो उस का अमिताभ से ज्यादा ही खयाल रखता है. यह घरघर में हो सकता है.

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