आज सनीचरी की तेरहवीं थी, मगर सुखदेव को ईंटभट्ठे पर मजदूरी के लिए जाना ही पड़ा. आज अगर वह कुछ रुपए नहीं लाया, तो सनीचरी की तेरहवीं नहीं हो पाएगी. अगर गुनेसर बाबा का गुस्सा बढ़ गया, तो सुखदेव भी मारा जाएगा. बाबा ने पहले ही चेता दिया था कि सनीचरी की तेरहवीं में पूजा कराना जरूरी है और अच्छी तरह भोग लगाना भी, नहीं तो सनीचरी की आत्मा प्रेत योनि में भटकती हुई तेरा जीना हराम कर देगी. सुखदेव छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नारायणपुर गांव में रहता था. ईंटभट्ठे की मजदूरी में जैसेतैसे 3 पेट पल रहे थे. घर में मवेशी पाल कर उस की बीवी सनीचरी भी कुछ इंतजाम कर ही लेती थी. छोटी सी झोंपड़ी और रातदिन के टुकड़ों में बंटी थी उन की पारिवारिक जिंदगी. बेटे को ले कर सनीचरी बड़े ख्वाब बुनती थी.
बेटा कार्तिक भी होशियार था. सालभर मीलों साइकिल दौड़ादौड़ा कर वह स्कूल जाता, अव्वल आता और इस साल गांव के स्कूल में उस की आखिरी पढ़ाई थी. अगले साल वह कसबे के हाईस्कूल में दाखिला लेगा. बहुत उमंग थी मांबेटे के दिल में. पर कुछ समय से सनीचरी की तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी. सनीचरी को रात में अचानक जब खून की उलटी हुई, तो कार्तिक पूरी रात सो न सका. सुबह जल्दी स्कूल पहुंचा, ताकि मास्टरनी से कुछ पूछ सके. विज्ञान की मास्टरनी बड़ी भली थीं. पढ़ाई में अच्छे बच्चों को कुछ ज्यादा ही लाड़ जताती थीं. फिर कार्तिक का प्रिय विषय विज्ञान ही था, सो मास्टरनी कार्तिक की बातों को ध्यान से सुनने लगीं.
सोचविचार कर उन्होंने कहा, ‘‘कार्तिक, तुम्हारी मां को कहीं कैंसर तो नहीं है? तुम अपने बापू से कहो कि उसे तुरंत अस्पताल ले जाएं.’’
कार्तिक छुट्टी मांग कर जल्दी घर आ गया था. बापू से कहा, तो बापू ने कहा, ‘‘हां, ले जाऊंगा.’’
रात को मां और बापू वापस आए, तो कार्तिक ने मां से पूछा, ‘‘क्या कहा डाक्टर ने?’’
‘‘तेरे बापू गुनेसर तांत्रिक बाबा के पास ले गए थे. वे कहते हैं कि उन के पास बहुत करामात हैं. वे मुझे जल्द ठीक कर देंगे.’’
यह सुनते ही कार्तिक उदास हो गया. वह बापू से हर रोज विनती करता कि वे उसे डाक्टर के पास ले जाएं, लेकिन बापू रोज यही कहता, ‘‘बाबा अंतर्यामी हैं. उन्हें अगर पता चल गया कि मैं इसे बाबा के पास न ले जा कर डाक्टर के पास ले जाता हूं, तो वे गुस्से में हम सब का नाश कर देंगे.’’
और इस तरह मुरगियां, बकरियां, रुपए, चांदी के जेवर सबकुछ लुटा कर सनीचरी इस लोक से चली गई, कार्तिक के सामने एक बड़ा सवाल छोड़ कर.
सुखदेव को ईंटभट्ठे के मालिक से आज उस की मजदूरी के सौ रुपए मिल गए थे, साथ ही जल्दी छुट्टी भी.
सुखदेव आज किराना की दुकान छोड़ कर सीधे घर आया. सनीचरी की तेरहवीं पूरी हो जाए, तो उस की भी जान छूटे. बाबा ने सुखदेव को डरा दिया था. सनीचरी की तेरहवीं में अगर काल भैरव खुश नहीं हुए, तो सनीचरी प्रेत योनि में चली जाएगी और फिर सुखदेव दूसरी औरत कभी नहीं ला पाएगा.
इधर नारायणपुर के जंगली इलाकों में डकैतों का भी बड़ा आतंक था. यह भी एक बड़ी वजह थी कि सुखदेव की तरह सारे गांव वाले तांत्रिक बाबा की छत्रछाया में रहना पसंद करते थे. गांव वालों को पूरा भरोसा था कि बाबा के डर से डकैत उन का नुकसान नहीं करते, वरना दूसरे गांव में तो आएदिन खूनखराबा और अपहरण होते रहते हैं.
गांव के लोग बाबा के खानेपीने और उन के आराम का इंतजाम करते रहते. अपनी फसल देते, भेंट में मुरगियां और बकरियां काल भैरव को बलि के नाम पर चढ़ाई जातीं.
बाबा बताते कि कैसे उन में करामाती जादुई ताकत है. इस ताकत की वजह से वे अंतर्यामी हैं. वे तुरंत खबर सुनाते, ‘‘टेकराम, तेरी बीवी कल झगड़ कर मायके गई थी. यह बात सच है न?’’
‘‘हां बाबा.’’
‘‘मनिराम, तेरी गाय अब ज्यादा दूध देने लगी है. इधर भी एक सेर ज्यादा पहुंचाना, नहीं तो दूध बंद करवा दूंगा. ऐसा मंतर पढ़ूंगा कि गाय दूध देना ही बंद कर देगी.’’
‘‘जोहार बाबा, पहुंचा दूंगा.’’
‘‘अब बता कि मैं कैसे समझ रहा हूं इधर मंदिर में बैठेबैठे?’’
‘‘जी बाबा, आप ध्यान में सब जान जाते हो.’’
भीड़ के बीच तांत्रिक का खबरी गुनेसर बोला, ‘‘गांव वालो, मेरी बात पर ध्यान दो. अनाज, गुड़, दूध, दाल, सब्जी, मुरगी, बकरी सब थोड़ाथोड़ा बढ़ा दो. काल भैरव अनाज की कमी से गुस्सा हो रहे हैं.’’
‘‘दूसरी बात यह कि सारंग की बेटी घर छोड़ कर धोबन के बेटे के साथ भाग गई है. ऐसा कुकर्म नहीं चलेगा. अब से सब के घर की बेटियों को इधर भेजना. मैं उन का चरित्र पूजन कर दूंगा. अपनी बहुओं को भी भेजना. उन का गर्भपूजन करूंगा, तभी वे भले मानस को जन्म देंगी,’’ गुनेसर ने कहा.
‘‘हां बाबा, आप तो यहां हमारे भले के लिए ही हो,’’ बाबा के किसी मुखबिर ने कहा.
सभी बाबा के कहे मुताबिक भजनकीर्तन में लग गए. इस तरह पूजाअर्चन का माहौल बना कर लोगों का विश्वास जीता जाता. दिनरात हर घर से खाना आता. खाना क्या था, पकवान. जीभ की लालसा से ले कर शरीर के हर अंग की प्यास बुझाने की तरकीब बाबा ने निकाल रखी थी इन मति के मारे गांव वालों के जरीए.
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पहले के जोड़े हुए 5 सौ रुपए और आज के सौ रुपए मिला कर सुखदेव बाबा के पास पहुंचा. बाबा ध्यान में बैठे थे यानी उसे आता देख वे ध्यान में बैठ गए थे.
10 मिनट तक बिना आंखें खोले वे कुछ बुदबुदाते रहे, फिर कह पड़े, ‘‘आ गया सुखदेव.’’
सुखदेव हैरान हो कर बोला, ‘‘जोहार माईबाप.’’
‘‘रख दे इस आसन पर, जो कुछ लाया है.’’
सुखदेव के 6 सौ रुपए रखते ही बाबा नाराज होते हुए बोले, ‘‘ये क्या है रे? इतने से तो तू क्या अपनी बीवी को नरक में जाने से रोक पाएगा? मुक्ति दिलाएगा बस इतने में?’’
‘‘बाबा, जो था, मैं सब ले आया.’’
‘‘झूठ.’’
‘‘बाबा, आप ही बताइए और क्या दूं?’’
‘‘क्यों, सनीचरी का मंगलसूत्र, उस की अंगूठी, चांदी के कड़े तेरे पास हैं न? उसे तो पहने हुए देखा था मैं ने. कितना दरिद्दर है रे तू? भोलेनाथ और काल भैरव तुझ पर प्रसन्न न होंगे.’’
‘‘नहीं बाबा, आप आज्ञा दें, मैं अभी लाता हूं.’’
‘‘जा, जल्दी आना. किसी हेराफेरी में पड़ा, तो तेरे बेटे को ही चढ़ा दूंगा यज्ञ में.’’
‘‘मैं अभी आया,’’ हांफता सा सुखदेव घर पहुंचा और सनीचरी का टिन का बक्सा खोल कर कुछ ढूंढ़ने लगा.
बापू को परेशान देख कार्तिक पूछ बैठा, ‘‘क्या हो गया बापू? क्या ढूंढ़ रहे हो?’’
‘‘तेरी मां का सामान. वह लाल पोटली नहीं दिख रही.’’
‘‘यहीं अंदर होगी, जिस में मंगलसूत्र है?’’
‘‘हांहां.’’
कार्तिक ने पोटली ढूंढ़ कर बापू के हाथ में थमा दी.
‘‘क्या करोगे बापू तुम इस का?’’
‘‘अरे तू ज्यादा पूछ मत. तेरी मां की तेरहवीं ऐसे ही हो जाएगी? देवता को खुश तो करना पड़ेगा, वरना उसे प्रेत योनि से मुक्ति कैसे मिलेगी?’’
‘‘क्या बोल रहे हो बापू… हमारी विज्ञान मैडम कल ही बता रही थीं कि ऐसा कुछ नहीं होता. बेवकूफ बना रहा है बाबा तुम्हें. वह खुद सब चीजें हड़प जाएगा.’’
सुखदेव ने डर के मारे कार्तिक के गाल पर एक चांटा रसीद कर दिया.
‘‘क्या बकता है? अगर कोई सुन लेगा, तो गजब हो जाएगा. तू दरवाजा बंद कर के पढ़ाई कर. आने में रात हो जाएगी. भूख लगे तो दोपहर का चावल पड़ा है हांड़ी में, अचार के साथ खा लेना.’’
सुखदेव ने अपनी खाट के नीचे से देशी ठर्रे की बोतल निकाली, बैग में सारी चीजों को भरा और बाहर निकल गया.
मंदिर पहुंच कर सुखदेव इस डर से बाबा के चरणों में लेट गया कि फिर किसी बात की कोई कमी न रह जाए. आखिर उस के पास अब कुछ भी नहीं बचा था, यहां तक कि सनीचरी की मुक्ति के उपाय को ‘न’ कहने का रास्ता भी नहीं था, क्योंकि इस से न सिर्फ सनीचरी के भूत बन कर तंग करने का डर था, बल्कि बेटे के बलि चढ़ जाने का खतरा मंडरा रहा था.
बाबा को ये सारी चीजें जल्दी निबटाने की जरूरत रहती है, क्योंकि रात 11 बजे से उन का गर्भपूजन का कार्यक्रम चालू हो जाता है. हां, गर्भपूजन की हुई लड़की सुबह होने से पहले ही अपने घर उन के नुमाइंदे की देखरेख में पूरी हिदायत के साथ पहुंचा दी जाती है. भला हो बाबा का, जो वे मान गए.
‘‘चलचल, काल भैरव मान गए. जा, तू मंदिर के उस कोने में जा कर आंखें बंद कर के बैठ जा और भोलेनाथ को याद करते रहना.’’
‘‘जी बाबा,’’ सुखदेव बोला.
कार्तिक बड़ी दुविधा में था. मां जब तक जिंदा थीं, दोगुनी मेहनत करती थीं. मां की बीमारी ने उन का सत्यानाश कर दिया.
कार्तिक ने दरवाजे पर ताला लगाया, अपनी साइकिल उठाई और चल पड़ा. आज कुछ न कुछ करना ही है. घर में हर घड़ी खानेपीने के लाले पड़ते जा रहे हैं. छमाही के इम्तिहान के बाद स्कूल से भी उसे अल्टीमेटम दे दिया गया है कि वह कांपियां खरीद ले. किताबें तो फिर भी मिल जाती हैं स्कूल से, जो अब तक वह पढ़ाई जारी रखे हुए है. खाने का इंतजाम स्कूल के मिड डे मील में और ईंटभट्ठे के मालिक के बेटे के कपड़े भी कार्तिक को आ ही जाते हैं.
मगर आज तो हद ही हो गई. मां के गहने उन की आखिरी निशानी भी चली गई. आएदिन उस का बापू गुनेसर बाबा की खातिरदारी में गांजाभांग पी कर खुद को बड़ा भक्त बनाता जा रहा है. ईंटभट्ठे से आते ही वह बाबा के पास निकल जाता, इधर घर पर गरीबी की मार, तिस पर मां का दुख.
कार्तिक की सोच की रफ्तार साइकिल के पेडल पर जोरजोर से पड़ रही थी. गोधूली बेला के डूबते सूरज की विपरीत दिशा में कार्तिक जा रहा था, नया सूरज उगाने को. मवेशी घर लौट रहे थे और वह अपना घर बचाने के लिए घर से दूर. मौसी राजेश्वरी के गांव पहुंचने तक कार्तिक को रात के 9 बज गए थे.
मौसी भी उस की ऐसीवैसी नहीं, इस गांव की दमदार औरत थी. बचपन से लगातार कुश्ती की वह चैंपियन रही थी और राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में बहुत पदक जीत चुकी थी. नानी के साथ मौसी अकेली रहती थी. एक मामा भी थे, जो मामी और बच्चों के साथ दूर शहर में रहते थे. मौसी ने शादी नहीं की, मगर उस की शादी के चर्चे खास रहे. अभी सालभर पहले ही कार्तिक को उस की मां ने बताया था.
एक लड़का बराती के साथ सजधज कर मौसी को ब्याहने पहुंचा. लड़के ने मौसी का फोटो देखा हुआ था, मगर जब सामने देखा, तो बात उठ गई कि लड़की काली है. पैसे ज्यादा चलेंगे, अगर ब्याहनी है तो…
कार्तिक की नानी राधा देवी पहले ही अपना खेत बेच कर दूल्हे को 15 हजार रुपए नकद, एक रंगीन टैलीविजन, एक मोपैड, एक सिलाई मशीन और एक पंखा दे चुकी थीं.
अब 10 हजार रुपए और…? दूल्हा मंडप में बैठा था.
मौसी बीच मंडप में आईं, सजीसंवरी दुलहन के वेश में. फिर उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘दूल्हे बाबू से मेरा निवेदन है कि वे अपने बरातियों के साथ वापस लौट जाएं. दूल्हा बाबू का कहना है कि मैं काली हूं, और मेरा भी कहना है कि दूल्हा बाबू नाटे हैं, मोटे हैं, उन का कोई धर्म नहीं, वे मांस के कारोबारी हैं, जिन को अपनी होने वाली बीवी की दुखतकलीफ का कोई खयाल नहीं.’’
यह सुन कर सब हैरान रह गए. ऐसी दुलहन को देख बराती दूल्हा ले कर उलटे पैर भागे. बस, तब से मौसी कुंआरी ही हैं. राजेश्वरी का सांवला गदराया बदन था. जवानी के बोझ से मदमस्त, लेकिन कोराअनछुआ. देखने में भोली, लेकिन चुस्त पैनी आंखें, सतर्कता रगरग में.
30 साल की राजेश्वरी खुद ही खेत संभालती, मवेशी पालती, फसल शहर जा कर बेच आती.
कुछ महीने पहले की बात है. पड़ोस की एक बहू रामवती पेट से थी. अचानक रात को उस की तबीयत बिगड़ी. पति ने ध्यान नहीं दिया. उस का बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मौसी, देख तो… मेरी मां को क्या हो गया है?’’
बस, चल पड़ी राजेश्वरी. रामवती को उठा कर पड़ोस के पंचू रिकशे वाले के घर गई. वह तो नशे में धुत्त पड़ा था.
राजेश्वरी ने आव देखा न ताव, उस का रिकशा निकाला, रामवती को उस में किसी तरह लिटाया और 7 किलोमीटर दूर ले चली सरकारी अस्पताल.
अब ऐसी मौसी पर कार्तिक को भरोसा क्यों न हो. मौसी के एक ही धोबी पछाड़ पर गुनेसर दुम दबा कर भागेगा.
कार्तिक की इस सोच ने उस के होंठों पर मुसकान ला दी.
‘‘क्या सोच कर हंसे जा रहा रे तू? तू कब आया? जीजा ठीक हैं न?’’ मौसी ने पूछा.
(क्रमश:)
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