प्रकृति के पेड़-पौधों की पत्तियों में कई पत्तियों का हमारे सेहत के लिए में ऐसे गुण समाहित हैं जो अनेक बीमारियों को जादू की तरह दूर करने में सक्षम होते हैं. अगर हम प्रकृति प्रदत्त उपहारों का सहयोग लें तो अनेक बीमारियों को जड़ से उखाड़कर फेंका जा सकता है तथा अनेक बीमारियों से सुरक्षित भी रहा जा सकता है. हम अनेक पेड़ों की पत्तियों को अपने औषधीय प्रयोगों में किस प्रकार ला सकते हैं, आईये जानते हैं.

नीम की पत्तियां : नीम की पत्तियों में अनेक औषधीय गुण होते हैं. कड़वी नीम की पत्तियों को ही औषधीय कार्य में प्रयोग किया जाता है. नीम के पत्तों को आटे के साथ पलटिस बनाकर फोड़े पर बांधा जाये तो फोड़ा बैठ जाता है. इसके पत्तों को पीसकर घाव में लगाने से घाव जल्दी भर जात है. पत्ते के रस को एक चम्मच की मात्रा में एक सप्ताह तक बासी मुंह पीते रहने से पेट के कीड़ मर जाते हैं. इसके सेवन से प्राय: सभी प्रकार के चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं. रक्तशोधक के रूप में नीम प्रख्यात है.

चुकन्दर के पत्ते :  कान की पीड़ा बंद न हो रही हो तो चुकन्दर के पत्तों का रस गुनगुना करके दो-दो बूंदें दोनों कानों में डालिये. तीन-तीन घंटों में डालते रहने से कर्णशूल निश्चित ही दूर हो जाता है. चुकंदर के पत्तों को लेकर साबुत हल्दी के साथ पानी का छींटा देकर बारीक पीस लीजिए. सिर पर इसका लेप करते रहने से सिर का गंजापन मिट जाता है. इसे प्रात: सायं नियमित लगाइए. सर्दी लगकर अगर मासिक स्राव रूक गया हो तो दो चम्मच की मात्रा में चुकंदर के पत्तों का रस जरा-सा नमक डालकर दिन में तीन बार पीने से मासिक स्राव प्रारंभ हो जाता है. गर्भावस्था में इसका सेवन न करें.

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बबूल के पत्ते : अगर पुरानी खांसी हो या खांसने पर सीने में दर्द होता है या खांसने पर मुंह से खून का अंश आता हो तो बबूल के कोमल पत्तों को पानी में खौला कर दिन में तीन बार तक पीने से उक्त सभी परेशानियों दूर हो जाती हैं. इसी शीतोष्ण जल में प्रतिदिन सुबह-शाम उत्थित लिंग को दस मिनट तक डुबोये रखने से शीघ्रपतन की बीमारी नष्ट हो जाती है.

केले का पत्ता :  केले के पत्ते में अनेक चर्म रोगों को दूर करने की शक्ति होती है. केले के पत्तों को जलाकर उसकी बारीक राख में नारियल तेल को मिलाकर चर्म रोग वाले स्थान पर लगाते रहने से अविश्वसनीय लाभ मिलता है. इस प्रयोग से पुराने से पुराने घाव, दाद, एक्जिमा, खुजली, अपरस आदि में लाभ होता है. केले के पत्तों के रस में मेंहदी के पत्तों के रस को मिलाकर एक कप गर्म पानी में मिला दें. जब पानी सहने योग्य हो जाये तो इससे योनि के भीतरी भाग को धोने से योनिगत अनेक विकार ठीक होते हैं, साथ ही कमाशीलता की व्याधि भी नष्ट होती है.

बिल्वपत्र :  बेल का औषधि रूप में प्रयोग अति प्राचीन काल से ही किया जा रहा है. बेल के फल और पत्तों में अनेक रोगों की सफल चिकित्सा छिपी रहती है. गर्भवती स्त्री की उल्टियों में चार बिल्वपत्र लेकर उसका रस निकालकर उसे एक कप मांड के साथ मिलाकर उसमें जरा सी मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार पिला देने से भयंकर उल्टियां आनी बंद हो जाती हैं. बिल्वपत्र रस के एक चम्मच में नागकेसर और रसौंत की एक-एक चुटकी मिलाकर दिन में दो-तीन बार पिलाते रहने से ल्यूकोरिया के साथ ही रक्त प्रदर की शिकायतों में भी अप्रत्याशित लाभ होता है.

खजूर के पत्ते : खजूर के पत्तों को जलाकर बासी पानी के साथ खाली पेट सुबह पीने से सभी प्रकार की बवासीर (खूनी-वादी) से छुटकारा मिल जाता है. कुछ सप्ताह तक निरंतर प्रयोग करना चाहिये. खजूर के पत्तों को भस्म, मेहंदी के पत्तों की भस्म व अमरूद के पत्तों के भस्मो को समान भाग में बारीक लेकर जैतून के तेल में मिलाकर (छानने से पूर्व कुछ गरम कर लें) रख लें. इस तेल से स्तनों पर नित्य 15-20 मिनट तक मालिश करने से स्तन पुष्ट व विकसित होते हैं. इसी तेल से लिंग पर नित्य मालिश करने से उसकी मोटाई व स्तनम्भन की शक्ति में वृध्दि होती है.

बेर के पत्ते : बेर तथा नीम के पत्तों को समान-मात्रा में लेकर पानी में डालकर उबाल लें. इस पानी से बालों को धोने से बाल झड़ना निश्चित रूप से रुक जाता है. जब तक बालों का झड़ना न रुके, तब तक साबुन या शैम्पू का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये. बाल झड़ने की बीमारी यदि नयी है तो एक-डेढ़ सप्ताहों में ही बाल झड़ने बंद हो जाते हैं.

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संतरे का पत्ते :  संतरे के पत्ते के रस को मंद-मंद गर्म करके दो-दो चम्मच करके प्रतिदिन पिलाने से उल्टी, अपच, पेट व छाती की जलन दूर हो जाती है. इस रस के साथ कंधारी अनार के पत्तों का दो चम्मच रस नित्य पीते रहने से पुरानी खांसी, पायरिया, अपच, दुर्बलता, लिंग के उत्थान में बाधा, जिगर की गर्मी आदि कई बीमारियां दूर होती हैं.

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