रोहित वेमुला, बुरहान वानी, हार्दिक पटेल व कन्हैया भारत की राजनीति को एक नया मोड़ देते दिखते हैं. पहले 2 ने मर कर और दूसरे 2 ने जीवित रहते हुए लगभग अकेले प्रशासन को चुनौती दी है और बहुत सी राजनीति अब इन के इर्दगिर्द घूम रही है. कश्मीर के पढे़लिखे घरों के किशोर और युवा आर्मी की गोलियों, पैलेट गन के छर्रों से डरे बिना बुरहान वानी के सहीगलत सपने को पूरा कर रहे हैं. रोहित वेमुला मर कर देशभर के दलितों का भीमराव अंबेडकर जैसा आदर्श बन गया है.
कन्हैया और हार्दिक पटेल अपना अलग एजेंडा रखते हैं, पर यह जरूर है कि बिना पुरानी पार्टियों पर कब्जा किए वे अलग रास्ता तय कर रहे हैं और लाखों युवा उन के पीछे झंडा लिए नहीं चल रहे तो भी साथ हैं. यह बदलाव भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस ही नहीं सभी पार्टियों के लिए खतरा बन रहा है, क्योंकि इन युवा नेताओं की इच्छा सत्ता पर कब्जा करने की नहीं, सत्ता के तौरतरीके में बदलाव की है, आजादी की है.
यह आजादी हर वर्ग के लिए अलग है. कश्मीर में वे भारत सरकार के चंगुल से आजादी मांग रहे हैं. रोहित वेमुला को दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों से आजादी की चाह थी. कन्हैया गरीबी, भेदभाव, सरकारी आतंक के खिलाफ है, हार्दिक पटेल पिछड़े गुजरातियों को सवर्णों की तानाशाही से आजादी चाहता है. इन युवाओं के रास्ते, कारण, समर्थक अलग हैं पर यह पक्का है कि छोटेबड़े सभी इन युवा उभरती शक्तियों के प्रभाव से असमंजस में हैं. युवा इन में आका देख रहे हैं तो प्रशासन इन में खतरा देख रहा है और इन को कुचलना चाहता है, जड़मूल से.
दुनियाभर के युवा आज चौराहे पर खड़े हैं. उन के हाथ में टैक्नोलौजी है और वे अपनी बात कह सकते हैं. उन्हें अब अनसुना नहीं किया जा सकता. पर वे रास्ता कौन सा चुनें, उन्हें समझ नहीं आता. इन पक्के बने रास्तों में उन की रुचि नहीं, क्योंकि उन की मिल्कीयत पर बूढ़ी पीढ़ी का कब्जा है जो उन्हें रास्ता तो देती है, पर जमने की जगह नहीं.
कश्मीर और पश्चिम एशिया में इस विरोध ने विद्रोह का रूप ले लिया है. बहुत सी जगह युवा नशे में खोने लगे हैं. बंधेबंधाए तौरतरीके छूट रहे हैं और समलैंगिक विवाह होने लगे हैं, लिव इन पौपुलर हो रहा है. ये सब उसी युवा विद्रोह का प्रतीक हैं जिस के आगे बुरहान वानी, रोहित वेमुला, कन्हैया कुमार और हार्दिक पटेल हैं.
बदलाव अच्छा होगा या बुरा, पता नहीं. यह बुलबुला है जो युवापन खोते ही समाप्त हो जाएगा या फिर इन युवा नेताओं की जगह नए युवा नेता तैयार हो कर आ जाएंगे मशाल थामने, कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना पक्का है कि भारत हो या कहीं और एक नया समाज बनने को कुलबुला रहा है. इस का अगला पड़ाव क्या है, अभी पता नहीं.