सामान्यतः सासबहु के रिश्तो की बात आते ही एक टकरार वाले रिश्ते का तस्वीर सामने आता हैलेकिन दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश के कई परिवारों से की गई बातचीत के नतीजे बताते हैं कि अब इस रिश्ते के स्थिति में काफी बदलाव आया है. समाजिक बदलाव और आधुनिक विचारधारा ने इस पवित्र रिश्तो कों नया स्वरूप प्रदान किया है.आज भी कई परिवारों में कई मामलों पर सास-बहु एक दूसरे के सामने आ जाती है, लेकिन कुछ बाते ऐसी भी होती है, इनके बीच दिल का रिश्ता स्थापित करती है. 

सास बहु का रिश्ता  तू-तू मै-मैं से भरा होता है. सदियों से इस रिश्ते कों लेकर कई बातें कही जाते आ रही है.  कोई इसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ रिश्ता मनाता है, तों कोई इसे नटखट और टकरार का रिश्ता मनाता है. तों कोई इस रिश्ते कों एक मजबूत पारिवारिक डोर मनाता है, जो पुरे परिवार कों एक सूत्र में बांध कर रखता है.  आधुनिक परिवेश में इस रिश्ते के ऊपर कई टीवी सीरियल बनाते आ रहे है . आज से तकरीबन डेढ़ दशक पहले  एकता कपूर ने अपने सीरियल कभी सास भी बहु थी  के द्वारा इस रिश्तो के मर्म कों समझने की शानदार कोशिश किया था, उसके बाद और उससे पहले भी छोटे पर्दे से  बड़े पर्दे पर इस रिश्ते  ने कई लोगो कों मनोरंजित किया तों कई संदेश कों समाज तक पहुचने का काम किया .

सास बहु के इस रिश्तो कों आधुनिक परिवेश में समझने और  आखिर इस रिश्तो पर आधुनिकता कितना हावी है? क्या पहले से इस रिश्ते में कुछ बदलाव आया है, या अब भी वही हल है ? सामजिक बदलावों का इस रिश्ते पर कितना असर हुआ है ?  जैसे कई सवालों का जवाब खोजने के लिए  दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहारके 100 परिवारों के सास बहु से अलग-अलग बात किया गया . बातचीत में सासू मां और बहु रानी से अलग अलग पांच-पांच प्रश्न पूछ गया. दोनों से बातचीत के दौरान गोपनीयता का पूरा ख्याल रखा गया ताकि मिलने वाला जवाब किसी दबाव में ना हो. गांव  के संयुक्त परिवार से लेकर शहर के हम दो हमारे दो के परिवार तक, छोटे शहर की सास-बहु से महानगर की सास-बहु तक बातचीत किया, साथ ही इस वार्तालाप में उन कुछ परिवारों कों भी शामिल किया गया, जो कस्बे और बस्ती में निवास करते है. हर परिवारों के बातचीत कों परखने-समझने के बाद अन्तः यही नतीजा निकला है, कि आज की सास अपनी बहु के और नजदीक आने के दिशा में प्रयासर्था है, तो बहु की आधुनिक सोच नए बदलाव का संदेश बयां कर रही है.

बातचीत के दौरान पाया गया कि कुछ सास के कुछ व्यवहार दुर्भावना है, सास का बात-बात पर ताना किसी बहु कों पसंद नही आता है. लेकिन सही समय पर सास का अनुभव बहु के मुश्किलों कों आसन करता है . कई बहु मानती है कि वह अपने घर अपनी मां की राय और उनके आदेश को ना मानती थी, जिनका पचतावा अब होता है, क्यों कि कई बार ना चाहते हुए भी सासू जी की बात मानना पड़ती है. सास बहु के रिश्तो पर बहु मानती है 49 फीसदी से अधिक बहु मानती है कि उन्होंने जैसे सास के बारे में सुना था, उस तरह की सास उन्हें नही मिलती है, कुल मिला-जुला कर वह अपने सासू मां से खुश नजर आती है . वही 35 फीसदी महिला मानती है कि उनकी सास थोड़ी  गर्म मिजाज की है , लेकिन हर काम में पूरा सह्रोग करती है,इनके सास कों अनुशासन और सही व्यवहार पसंद है . वही आज भी 16 फीसदी बहु अपने सास के ताने से तंग रहती है . इन सबके बीच अधिकांश बहु अपने सास के कई बातो से खुश दिखती है , जैसे उनकी सास उनके बच्चो का खास परवरिस के लिए हमेशा चिंतित रहती है . इस तरह कुछ मिला कर कहे तों बहुओ का एक बड़ा तबका अपने सास से खुश है , वही सास बदलाव के दौर कों समझते हुए बहु के और नजदीक जाने की कोशिश कर रही है.

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सास-बहू का संबंध एक बेहद नाजुक और महीन धागे से बंधा हुआ होता है. जो उन्हें एक-दूसरे से जोड़ कर रखता है. परिवार में शांति और जीवन को सुखद बनाए रखने के लिए जरूरी है कि प्रेमपूर्वक रहा जाए . कोई भी लड़की सास के लिए अपना मायका छोड़कर नहीं आती है, वह तो अपने पति के साथ घर बसाने के लिए ससुराल आती है. इस रिश्ते में प्यार बरकरार रखने के लिए बहुत जरूरी है कि सास और बहू, दोनों में तालमेल पॉजिटिव हो.  अगर बहू के साथ बेटी जैसा व्यवहार करें तो उसकी गलतियों को माफ करना आसान हो जाता है. वहीं अगर महिलाएं भी अपने ससुराल वालों को अपने माता-पिता का दर्जा देती हैं, तो उन्हें कभी उनकी उपस्थिति बोझ नहीं लगेगी और अगर वह कुछ कहते भी हैं तो उनकी डांट में भी प्यार नजर आएगा.

 क्या  कहती है बहु – 

 सासू मां  याद आती है 

ऐतिहासिक शहर मेरठ की अर्चना  मानती है कि  मैं जब तक सासू मां के साथ गाँव  में रहती थी तब मैंने उन्हें समझने में काफी भूल किया था.  आज जब मै अपने पति के साथ शहर में रहती हूँ तों  यहां सारा काम अकेले करना पड़ता है . लंच बनाने से लेकर घर की देखभाल भी अकेले करना पड़ता है . ससुराल में सबके साथ रहने पर काम के नाम पर सिर्फ रात को सब्जी बनाना पड़ता था. अब कभी बीमार पड़ जाने पर भी कोई साथ नही होता, थकान और बीमारी में भी अपने कामो कों पूरी तरह करना पड़ता है. इन दिनों  सासू माँ की बहुत याद आती है . सयुक्त परिवार होने के कारण सासू माँ साल में एक दो महीने के लिए ही हमारे पास रहने आती है . इसी लिए अब मै हर छुट्टी पर अपने सास में मिलने जरुर जाती हूं .

सासबहु के बीच का शीत युद्ध

इलाहाबाद , सिविल लाईन की रीता सिंह का कहना है कि जब तक किसी भी घर परिवार में सास अपने बहु कों बेटी के नजर से देखना नहीं सीख जाती, तब तक घर में कुरुक्षेत्र चलता रहेगा. सास बहु के बीच का टकरार सदियों से चला आ रहा है और इतिहास के पन्नो में और घर परिवार के कहानियो  में सास-बहु के बीच का शीत युद्ध का तभी अंत होता है, जब दोनों तरफ से सकारात्मक पहल हो . क्यों कि कई दफा इस तरह के नोक झोक का अंत किसी भयंकर घटना से होता है .

सास और बहू के रिश्ते सिक्के के दो पहलू

नीतू  जो बनारस की रहने वाली है, उनका ममना है कि सास और बहू के रिश्ते सिक्के के दो पहलू की तरह होते हैं. आपको प्यार चाहिए तो आपको प्यार देना भी पड़ेगा. नीतू कहती है कि पहली बार जब उन्होंने सास को देखा था तो वह टिपिकल सास लगीं थी . लेकिन बाद में साथ रहने पर वैसी नहीं लगीं. मैं जब भी अपनी ससुराल जाती हूं या मेरी सास यहां आती हैं तो हम दोनों मिलकर सारे काम निपटाते हैं. उन्होंने कभी भी मुझे किसी चीज के लिए मना नहीं किया. यहां तक कि मेरे बेटे का जन्म ससुराल में ही हुआ. मेरी सास ने मेरी सेवा की और मैंने उन्हें मेवा दिया.

कभी तगड़ी नोक झोक नही हुई  

आगरा  की सरिता का कहना है कि  मेरी शादी आज से आठ साल पहले अरेंज मैरिज हुई , इन आठ सालो में मैंने जिंदगी के सफर में बहुत उतरा चढाव देखे  लेकिन आज तक सास से कभी तगड़ी नोक झोक नही हुई और ना ही ससुराल में बहुत कुछ अलग महसूस नहीं हुआ. मैंने मानती हूं कि आज भी कुछ सास पुराने विचारो से सोचती है, लेकिन कई सास ऐसी भी है, जो अपनी बहु कों बेटी कि तरह मानती है .

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जिन्दगी में सासू मां की अहम भूमिका 

दिल्ली , मयूर विहार की आराधना का कहना है कि अगर उनके जिन्दगी में सासू माँ की अहम भूमिका है. आराधना और उनके पति रोहित दोनों मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते है, काम के व्यस्तता के कारण वह शुरू से ही अपने बच्चो कों काम समय दे पाते है ,लेकिन आज भी उनके बच्चे पूर्ण संस्कारी और आज्ञाकारी है. आराधना बताती है कि मेरा बेटा अपनी दादी के पास रहकर ही बड़ा हुआ है. हम दोनों पति-पत्नी ऑफिस जाते हैं. ऐसे समय में बेटे को तो सासू माँ  ही संभालती थी. पुरे दिन का काम और रात में भी कई महत्वपूर्ण कामो कों सासू माँ मेरे आने से पहले ही कर देती है . यही नहीं वह मुझे अपने बेटी कि तरह मानती है, मै भी उन्हें अपने माँ से काम नही मानती.

अब मैं सासू मां से डरती नही 

साहिबाबाद की दीपिका  शादी के पहले की सासू माँ के बारे में सोच कर घबरा जाती थी लेकिन अब वह सासू माँ से डरती नही, बल्कि उन से सब कुछ शेयर करती है. दीपिका का कहना है कि शादी के पहले मैंने अपने आस पड़ोस में सास बहु के काफी नोक झोक सुना था, इसलिए मेरे दिल में डर बैठ गया था, लेकिन शदी के बाद मैंने अपने सास में अपनी माँ से कुछ अलग नही देखा, वह मेरे हर समस्या का समाधान हसते हुए कर देती है. शादी के एक साल बाद में समझ चुकी हूँ कि मेरे सास औरो से अलग है .

क्या  कहती है सासू मां

समय के साथ बदले है रिश्ते

काशी विश्वनाथ की नगरी की 55 वर्षीय  लीलावती देवी का मानना है कि उनके जमाने के सास- बहु के रिश्ते और अब के सास-बहु के रिश्ते में बहुत बदलाव आया है. लीलावती कहती है कि मै जब बहु बन कर आई थी तों उस समय मुझे अपनी सास से बहुत डर लगता था, उस ज़माने में इतना खुलापन और आधुनिकता नही था , रीति-रिवाजों के कारण हर समय यह ध्यान देना होता था कि मेरे किसी बात का गलत अर्थ सासू जी ना लगा ले. लेकिन भगवान के कृप्या से मेरी सास बहुत सम्मान जनक तरीके से मेरे साथ व्यवहार करती थी . आज मेरी भी तीन बहु है, मै उन्हें कभी यह महसूस नही होने देते कि वह पराये घर की बेटी है.

रिश्तो पर आधुनिकता हावी 

48 वर्षीय कमला देवी पिछले 25 सालो से मेरठ में रहती है, कमला कहती है कि आज के समय में हर काम में आधुनिकता आ गई है, हर रिश्ता आधुनिकता के चादर से ढकते जा रहा है, लेकिन इस दौर में भी सास बहु का रिश्ता सबसे अलग और अपने पुराने स्वरूप में ही नजर आता है, हाँ एक बात जरुर है कि इस दौर में सास-बहु के रिश्तो का अंदाज जरुर बदल गया है . इस दौर की बहुए बहुत जल्दी थक जाती है, काम का बोझ काम होने पर भी उन्हें हर समय तनाव बना रहता है. मेरी दो बहु है, दोनों अपने स्वभाव से मेरा दिल जीत लेती है, मै भी हर समय उनका तनाव कम करने और उन्हें खुश करने की कोशिश में लगी रहती हूं.

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नोकझोक का रिश्ता

दिल्ली, साकेत की शांति दत्त मानती है कि सास बहु का रिश्ता नोक- झोक का रिश्ता है . 54 वर्षीय दत्त कहती है कि आज वह सास है, कभी वह भी बहु थी इसलिए आज वह पूरी तरह समझती है कि जब एक लड़की अपने पिता के घर कों छोड़ अपने पति के घर आती है तों अपने साथ कई यादो कों लेकर आती है, वह हर याद उसके दिलो से जुडी होती है. पति के घर में यह हर एक पहलू से अनजान होती है. इस समय अगर कोई उसे समझने वाला नही होता तों गलतिया होना लाजमी होता है . मेरी एक बहु है मै उसके साथ पूरी तरह एक दोस्त के तरह व्यवहार करती हूँ . वह भी मुझे हर कुछ बताती है, और हर समय सलाह लेती रहती है .

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