सीरियल किसर के रूप में मशहूर रहे अभिनेता इमरान हाशमी ने धीरे धीरे खुद को एक बेहतरीन अदाकार के रूप में स्थापित करने में सफल रहे हैं. मगर उन्हें सफलता के साथ असफलता का भी दंश झेलना पड़ा. कुछ समय पहले इमरान हाशमी ने फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ का निर्माण करने के साथ साथ इसमें अभिनय भी किया था. इस फिल्म से उन्हें काफी उम्मीदें थीं. मगर इसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था. इसके बाद इमरान हाशमी ने ‘टाइगर’ और ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ वेब सीरीज में अभिनय कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक नई पहचान बनायी. इन दिनों वह फिल्म ‘‘द बौडी’ को लेकर चर्चा में हैं.
प्रस्तुत है इमरान हाशमी से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के खास अंश…
आप अपने 16 साल के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट क्या मानते हैं ?
करियर की पहली फिल्म ‘‘फुटपाथ’’ जाहिर सी बात है कि करियर की शुरूआत पहली फिल्म की वजह से ही होती है. उसके बाद फिल्म ‘‘मर्डर’ एक बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म से मेरी एक ऐसी छवि बन गई थी, जिसे मैंने तोड़ने की बहुत कोशिश की. मुझे लगता है बौलीवुड का यह ढर्रा है कि आप अपनी ईमेज बदलने की जितनी कोशिश करेंगे, इंडस्ट्री आपको उसी तरह के बौक्स में बांधना चाहेगी. अब तक तो दर्शक भी कलाकर को उसी ईमेज में देखना चाहते थे. पर मुझे दर्शकों ने दूसरे किरदारों में भी पसंद किया. इसके बाद फिल्म ‘‘शंघाई’’ एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म को लोगों ने बहुत पसंद किया था. पर दूसरा बहुत बड़ा टर्निंग प्वौइंट ‘जन्नत’ था. फिल्म ‘जन्नत’,‘मर्डर’ से अलग तरह की फिल्म थी, लेकिन लोगों ने बहुत पसंद किया. इसकी प्रेम कहानी लोगों को पसंद आयी. फिर ‘वंस अपौन ए टाइम इन मुंबई’ और ‘गैंगस्टर’ भी टर्निंग प्वाइंट रहे.मुझे लगता है कि वेब सीरीज ‘बार्ड आफ ब्लड’ भी एक टर्निंग प्वौइंट हो सकता है. क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की है. सोशल मीडिया से भी मुझे इसके चलते बहुत ज्यादा प्यार मिल रहा है.
वैसे ‘डर्टी पिक्चर’ भी टर्निंग प्वौइंट थी. इसमें अलग किस्म का किरदार किया, जिसे लोगों ने पसंद किया. मेरी एक बेहतरीन फिल्म ‘आवारापन’ रही. हालांकि यह फिल्म बाक्स औफिस पर लुढ़क गयी थी. पर यह अलग किस्म की फिल्म थी. मुझे लगता है कि यह गलत समय पर आई थी. इसकी मार्केटिंग भी नहीं की गई थी.यही वजह है कि उस वक्त जिन लोगों ने फिल्म ‘आवारापन’ को थिएटर में नहीं देखा उन्होंने बाद में इस फिल्म को खोजा. उनकी समझ में आया कि यह अच्छी फिल्म थी, इसे थिएटर में देखना चाहिए था. आज तेरह साल बाद भी लोग ट्वीटर और सोशल मीडिया पर इसकी एनिवर्सरी मनाते हैं.
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आपकी एक वेब सीरीज ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ का क्या रिस्पौन्स मिला?
बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली.हमारी कोशिश थी कि हम एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रोजेक्ट बनाएं, जिसमें हमें सफलता मिली. इसे भारतीय दर्शकों के साथ साथ 190 देशों के दर्शकों ने काफी पसंद किया. हमारी इच्छा भी यही थी. जिस तरह का रिस्पांस मुझे मिला है, उससे मुझे खुशी है. मैं बहुत खुश हूं कि हम सभी ने बहुत अच्छा काम किया. एक किताब के सिनेमाईकरण@एडौप्शन से लेकर एपीसोड लिखना, 100 दिन की शूटिंग करना, पोस्ट प्रोडक्शन में रीयल फैक्ट्स और अंत में जिस तरह से इसे माउंटेन किया गया,वह सब लोगों को पसंद आया.
फिल्म की रिलीज के साथ ही दर्शकों के रिस्पौन्स मिलने लगते हैं. पर वेब सीरीज में रिस्पांस धीरे धीरे मिलता है. इस अंतर को बतौर कलाकार आप कैसा महसूस करते हैं. कलाकार के तौर पर आपको ज्यादा मजा कहां आता है ?
जब हम घर से बाहर निकलते हैं, तो हमें तुरंत रिस्पांस मिलता है. अगर हम एक रेस्टारेंट में बैठे हैं और वहां मौजूद ज्यादातर लोग हमारे पास आकर फोटो खींचना शुरू कर देते हैं, तो हमें समझ में आ जाता है कि हमारे वेब सीरीज को देखा गया. वहां मौजूद लोगों में से सत्तर प्रतिशत लोगों ने आकर मुझे गले लगा कर या हाथ मिलाकर कहा कि बड़ा अच्छा शो है. इसके मायने कि हमारा प्रयास सफल रहा. सोशल मीडिया से भी एक बहुत बड़ा पैरामीटर मिल जाता है कि आप कितना सफल हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म हमें कोई आंकड़े नहीं देता है. पर फिल्मों के रिलीज के साथ हमें तुरंत आंकड़े व दर्शकों का रिस्पांस मिलना शुरू हो जाता है. हमें फिल्म का वीकेंड पर या अंतिम बाक्स आफिस कलेक्शन भी पता चलता है. इससे समझ में आ जाता है कि लोग हमसे कितना खुश हैं. मैं ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स से बहुत खुश हूं. दर्शकों ने इस पर हमारी अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘टाइगर’’ को दर्शकों नेटफ्लिक्स पर काफी पसंद किया था. अब ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ भी काफी पसंद किया.
बौलीवुड में जब भी किसी किताब पर फिल्म बनती है, वह असफल हो ती रही हैं. जबकि ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ के साथ ऐसा नहीं हुआ? इसके लिए आप लोगों ने किस तरह की सावधानी बरती थी ?
बौलीवुड में जब हम किताब का सिनेमाईकरण @अडौप्ट करते हैं, तो दो घंटे की फिल्म के लिए बहुत सारी चीजें कट जाती हैं. यह सब एडौप्ट करने वाले लेखक व निर्देशक के थौट प्रोसेस पर बहुत सारी चीजें निर्भर करती हैं. वह अपनी सोच के अनुरूप तय करता है कि किताब से क्या नहीं रखना चाहिए. ऐसे में लेखक के अंदर कला होनी चाहिए कि वह सही ढंग से कर पाए. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या बीच में गाने पिरोने में हो जाती है, जो कि किताब में नहीं होते हैं. इससे भी पटकथा खराब हो जाती है.पर बौलीवुड में गानों की जरूरत है. जबकि वेब सीरीज में गाने रखने की जरुत नहीं पड़ती.
इसके अलावा ‘वेब सीरीज’ में 7 से 15 एपीसोड होते हैं, हर एपीसोड तीस से पचास मिनट का होता है.तो यहां किताब की हर बात को सही ढंग से पिरोया जा सकता है. यानी कि किताब में दर्ज किसी भी हिस्से को हटाने की जरुरत नहीं.
बल्कि चाहें तो चीजों को जोड़ भी सकते हैं. मसलन-वेब सीरीज ‘द बार्ड आफ ब्लड’ में हमने दो किरदार जोड़ने के अलावा क्लायमेक्स को भी बदला था. इसमें एक लड़की का करेक्टर जोड़ा, जो रोमांटिक रिलेशनशिप में है. इस वजह से किसी किताब पर वेब सीरीज ज्यादा अच्छी बन सकती है.
इसके अलावा मेरी राय में यह कहना गलत होगा कि किताबों का सही ढंग से अडौप्टेशन@ सिनेमाईकरण नहीं हो पाता. हो सकता है कि बौलीवुड में नहीं हो पा रहा है. लेकिन विदेशों में किताबों पर आधारित कई बेहतरीन फिल्में बनी हैं. वहां पर किताबें अडौप्ट अच्छे से अडौप्ट हो गई हैं.
ओटीटी प्लेटफौर्म के तहत अमैजान व नेटफ्लिक्स के अलावा कई छोटे-छोटे दूसरे प्लेटफौर्म भी आ गए हैं. जहां पर काफी वाहियात चीजें भी दिखाई जा रही हैं. क्या आपने कुछ देखा है ?
मैंने नहीं देखा.शायद मैं देखना भी नहीं चाहूंगा.मैं नेटफ्लिक्स पर ज्यादा ध्यान देता हूं. नेटफ्लिक्स पर क्वालिटी काफी अच्छी आती है. अच्छे कौंसेप्ट पर ही फिल्में व वेब सीरीज आ रही हैं. नेटफ्लिक्स पर काफी रीयल चीजें ही आती हैं. तो नेटफ्लिक्स अच्छा है.
आपको अपनी ईमेज को बदलने में सोशल मीडिया की मदद मिली या यह सिनेमा में आए बदलाव से संभव हो पाया ?
मुझे नहीं लगता है कि सोशल मीडिया की वजह से कुछ बदलाव होता है. पर हां, सोशल मीडिया व इंटरनेट की वजह और अलग अलग प्लेटफार्म की वजह से अच्छी फिल्में बनने लगी हैं, जिसका फायदा हर कलाकार की तरह मैं भी ले रहा हूं. अब ऐसी फिल्में भी बन रही हैं, जिन्हें आप थिएटर में रिलीज नहीं कर सकते हैं. मसलन- बार्ड औफ ब्लड, को थिएटर@सिनेमाघरों में रिलीज नहीं कर सकते. सिनेमाघर वाली फिल्म में 5 गाने आपको डालने पड़ेंगे. जबकि ‘बार्ड आफ ब्लड’ अंतरराष्ट्रीय फिल्म है. इसमें अलग तरह का अभिनय है.‘बार्ड आफ ब्लड’ में बहुत कुछ ऐसा है, जो कि सिर्फ सिनेमाघर जाने वाले दर्शकों के पल्ले ही नहीं पड़ेगा. पर ओटीटी प्लेटफौर्म पर वह उस चीज को पसंद कर रही है. तो इंटरनेट, ओटीटी प्लेटफौर्म और सोशल मीडिया की वजह से यह बहुत बड़ा बदलाव आया है. आज लोग अपने सोच, अपनी पसंद व नापसंद को जाहिर कर रहे हैं.
पहले हमें पता ही नहीं था कि लोगों को क्या पसंद आता है. निर्माता ने कहा कि दर्शक आपको इसी ईमेज में देखना चाहता है, तो हम उसकी बात को आंख मूंदकर मान लेते थे. अब आम जनता बौक्स औफिस कलेक्शन को भी जानती है. आप अपनी इमारत से नीचे उतरें, तो वाचमैन को भी पता होगा कि आपकी फिल्म की ओपनिंग क्या है. अब इंटरनेट बहुत बड़ी चीज हो गई है.
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लेकिन आपको ऐसा नहीं लगता है कि सोशल मीडिया लोगों तक पहुंचने में जहां आपकी मदद कर रहा है, वहीं कहीं ना कहीं आपके स्टारडम को नुकसान भी पहुंचा रहा है ?
मुझे नहीं लगता कि सोशल मीडिया नुकसान पहुंचा रहा है. हां! अब कलाकार के लिए एक अलग तरह का ट्रेंड बन गया है. कलाकार किस तरह से सोशल मीडिया का उपयोग करते है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. कुछ कलाकार हर दिन कुछ ना कुछ अपडेट डालते रहते हैं. पर इसका मतलब यह नहीं है कि अगर आप अगर रोज कुछ ना कुछ ट्वीट करोगे, तो बहुत ज्यादा सफलता पाओगे. यह कोई कभी भी नहीं बता सकता कि एक कलाकार स्टार स्टार कब और कैसे बनता है. कुछ ऐसे स्टार भी हैं, जो आज भी सोशल मीडिया पर नहीं हैं.
जब सोशल मीडिया नहीं था, तब स्टार सुपरस्टार जैसी पदवी मिला करती थी. अब वह सब कुछ खत्म हो चुका है.दूसरी बात सोशल मीडिया के चलते इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि वह बौक्स औफिस पर आपके सोशल मीडिया के फालोअवर्स आपकी फिल्म देखने सिनेमाघर मे आएंगे ?
आपने कदम सही कहा. अब सुपर स्टार कोई नही रहा. सोशल मीडिया उसी तरह से हो गया जैसे कि आज से छह सात वर्ष पहले हम किसी शौपिंग मौल में जाकर नाच गा कर अपनी फिल्म का प्रमोशन करते थे, जहां दो से पांच हजार लोग तो कम से कम इकट्ठा हो ही जाते थे. फिर भी फिल्म की ओपनिंग नहीं हो पाती थी. लोग स्टार को देखने के लिए आए, लेकिन उनको फिल्म व उसकी कहानी पसंद नहीं, तो वह टिकट नहीं खरीदेंगे. वैसा ही सोशल मीडिया पर आपके बहुत सारे चाहने वाले होंगे, करोड़ों फालोअर्स होंगे, लेकिन वह अपनी खुद की पसंद की फिल्म के ही टिकट खरीदेंगे. अब लोगों के पास दिमाग है कि इस स्टार को तो हम पसंद करते हैं, लेकिन फिल्म पसंद नहीं आने वाली, इसलिए टिकट नहीं खरीदेंगे.
क्या दूसरी वेब सीरीज करने का इरादा है ?
अभी फिलहाल नहीं.. इन दिनों अपनी पांच फिल्मों में व्यस्त हूं. मगर इसका दूसरा सीजन जब बनेगा, तब जरुर करुंगा.
आपकी नई फिल्म ‘‘द बौडी’’ क्या है?
यह फिल्म एक सफलतम स्पेनिश फिल्म का भारतीयकरण है. यह फिल्म एक रात की कहानी है. अस्पताल के मुर्दाघर से एक बौडी@ शव गायब हो जाता है. यह बौडी एक सफल औरत की लाश@शव था. इस अनोखे केस की जांच करने के लिए जांच अधिकारी जयराज आते हैं. बौडी कहां गई, कोई सुराग नही. सवाल है कि इस बौडी को कोई क्यों चुराना चाहेगा ? क्या वह बौडी, बौडी थी. क्योंकि मेडिकल टर्म्स में कैटल अप्सी एक ऐसी चीज है, जहां पर कभी-कभी बौडी उठकर भी निकलती है. जैसे भूत का कांसेप्ट होता है. जांच अधिकारी को सबसे पहले इस महिला के पति यानी कि मेरे किरदार पर शक होता है. क्योंकि अगर इस चीज का फायदा किसी को होना है, तो उसके पति को होना था. यहां से कहानी शुरु होती है. किसने क्या किया? वजह क्या थी? कई सवाल हैं. जांच अधिकार ने पूरे मौल को चारों तरफ से बंद करा दिया है.
फिल्म में एक दूसरी लड़की है, जिसके साथ मेरे किरदार का अफेयर चल रहा है.फिल्म खत्म होने से पहले दर्शक अंदाजा नही लगा सकता कि सच क्या है?
आप अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगे?
यह एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है. इसलिए अपने किरदार के बारे में ज्यादा विस्तार से बता नही पाउंगा. मैंने अजय का किरदार निभया है, जो कि प्रोफेसर है और इस अमीर औरत से शादी की है. तथा इसके साथ इसी के घर में घर जमाई बनकर रहता है. बीवी मर जाती है, तो जांच अधिकारी अजय को बुलाते हैं. फिर सारे पन्ने खुलने शुरू होते हैं. एक दूसरी औरत @लड़की से अफेयर की बात भी सामने आती है. कुछ अतीत भी है.
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आपको इस फिल्म में ऐसी क्या खास बात नजर आयी कि आपने फिल्म करने के लिए हामी भरी ?
मैंने स्पेनिश फिल्म देखी और मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आयी. पूरी फिल्म अनप्रिडिक्टेबल थी. थ्रिलर है.इसलिए मुझे लगा कि यह बहुत अलग फिल्म है, जिसे करना चाहिए.
सोशल मीडिया पर आप किस बारे में ज्यादा लिखना पसंद करते हैं या किस चीज पर अपनी राय देते हैं?
मैं पौलीटिकल मामले में ज्यादा कमेंट नहीं करता हूं. फिल्मों को लेकर ही बात करता हूं. संजीदा विषय पर बात करना मैंने बंद कर दिया है.