ओलिंपिक खेलों में दीपा करमाकर के आकर्षणीय जिमनास्टिक खेल व 2 और पदकों के साथ भारत का प्रदर्शन संतोषजनक है. दीपा इस अनजाने खेल में चौथा स्थान पा सकी. हां, उस के बारे में राजस्थान की एक युवती द्वारा ट्विटर पर किए गए कमैंट पर हुए हंगामे ने साबित कर दिया कि असल में हम अभी कट्टर देश हैं. और कट्टरपंथी देशों में बहुतकुछ गलत होता ही है.
उस युवती को दीपा द्वारा प्रौडुनोवा वौल्ट का प्रयोग करने पर आपत्ति थी. उस ने अपने ट्वीट में इस बारे में खुले शब्दों में कहा कि इस तरह के देश के लिए अपनी जान पर खेलना गलत है, जहां अमीर देशों के जैसी सुविधाएं नहीं हैं. इस ट्वीट की भाषा में ‘डैम्ड’ शब्द था जिस पर सोशल मीडिया में उस की आलोचना तो हुई ही, पुलिस भी उस युवती के दरवाजे पहुंच गई.
यह असहिष्णुता की निशानी है. देशभक्ति का मतलब यह तो नहीं कि हम भारत को गरीब, गंदा और भ्रष्ट देश न कह सकें जबकि हम सब जानते हैं कि यह देश है ऐसा. सच को छिपा लेने से तथ्य बदल नहीं जाते. दीपा करमाकर ने भारी जोखिम लिया ताकि मैडल मिल सके. पर मैडल पाने वालों के साथ यह देश कैसा व्यवहार करता है, सब को मालूम है. पाई गई सफलता को 4 दिनों बाद यहां भुला दिया जाता है.
रियो में हुए ओलिंपिक खेलों में देश के पुरुष खिलाडि़यों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया. ऐसे में इस के जिम्मेदार लोगों के दरवाजों पर पुलिस को ठकठकाना चाहिए, न कि उस नागरिक के, जो खिन्न हो कर गुस्से का इजहार कर रहा है. दरवाजा तो उन का खटखटाया जाना चाहिए था जिन्होंने रियो जा कर अपना मजाक उड़वाया. उन का क्या किया?