भारतीय संस्कृति में विवाह को एक संस्कार यानी जीवन जीने का तरीका माना गया है. लेकिन बदलते समय के साथ जीवन जीने का यह तरीका बदल रहा है और वे लोग जो बिना किसी रिश्ते में बंधे जिंदगी जीने का मजा लेना चाहते हैं वे विवाह का विकल्प लिव इन रिलेशनशिप में तलाश रहे हैं.

लिव इन रिलेशनशिप की वकालत करने वाले कहते है कि इसमें जिम्मेदारियों के अभाव में लाइफ टेंशन फ्री होती है, लिव इन पार्टनर अपना-अपना खर्च खुद उठाते है, कमरे के बेड से लेकर खाने-पीने की चीजों तक में दोनों फिफ्टी-फिफ्टी के भागीदार होते हैं. ज़िन्दगी भर किसी एक के साथ बंधे रहने की मजबूरी नहीं होती.

जब आपको लगे कि आप एक दूसरे के साथ खुश नहीं है आप एक दुसरे को टाटा बाय-बाय कह सकते हैं यानी आप बिना किसी झंझट के पार्टनर बदल सकते हैं. इस रिश्ते में कोई बंदिशें नहीं होती है. आप जब मर्ज़ी घर आइये, जिसके साथ मर्ज़ी घूमिये कोई रोकटोक नहीं, कोई पूछने वाला नहीं.

लिव इन उन लोगों को खासा आकर्षित करता है जो वैवाहिक जीवन तो पसंद करते हैं लेकिन उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से मुक्त रहना चाहते हैं. जिम्मेदारियों के बिना ‘शेयरिंग और केयरिंग’ के रिश्ते का यह नया कॉन्सेप्ट युवाओं को बेहद रास आ रहा है. काम या पढ़ाई के लिए घर से दूर रह रहे युवाओं के बीच लिव इन रिलेशन खासा लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि घर से दूर अनजाने शहर में यह रिश्ता युवाओं को भावनात्मक सपोर्ट देता है.

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बढ़ती मंहगाई की चलते ऐसे जोड़ों को बड़े शहरों में लिव इन में रहने के कई फायदे होते हैं. खर्चे शेयर होने के साथ एक दुसरे का साथ भी मिल जाता है. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर अपनी मोहर लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिश्ते को पाप या अपराध मानने की बजाय पुरुषों के साथ रह रही महिलाओं और उनके बच्चों को कानूनी संरक्षण देने का रास्ता निकाले जाने की पहल भी की है.

यह तो हुआ इस रिश्ते का खुशनुमा पहलू लेकिन बिना बंधन के इस रिश्ते का एक दर्दनाक पहलू भी है जिससे अधिकांश युवा अनजान हैं जो पत्रकार पूजा तिवारी और प्रत्यूषा के मौत के मामले में साफतौर पर सामने आया है.

जहाँ प्यार, सेक्स,  शक और धोखे ने किसी को जान देने पर मजबूर कर दिया. माना कि इस रिश्ते में कोई दायित्व नहीं होता. आप बिना किसी बंधन के एक दुसरे के साथ रहते हैं लेकिन जब दो लोग एक दुसरे के साथ रहने लगते है तो वे एक दुसरे के साथ भावनात्मक रूप से भी जुड़ते है और इस जुड़ाव में वे एक दुसरे से अपेक्षाएं भी रखने लगते है लेकिन जब दोनों पार्टनर्स में से कोई भी एक सामने वाली की फीलिंग्स की अनदेखी करता है तो भावनात्मक रूप से कमजोर साथी इसे धोखा समझता है और कुछ न कर पाने की स्थिति में तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और बिना बंधन का यह रिश्ता  दर्दनाक बन जाता है.

इस रिश्ते का सबसे नकारात्मक पहलू यह होता है कि लिव इन में रहने वाले इन जोड़ों का अपने परिवार या दोस्तों से कोई कनेक्शन नहीं होता जिसके चलते उनके बीच अनबन या लड़ाई होने पर सुलह समझौता कराने वाला कोई अपना नहीं होता.

जैसा कि प्रत्युषा के मामले में भी सामने आया. हाल में ही हुआ पत्रकार पूजा तिवारी आत्महत्या प्रकरण भी इसी बिना बंधन के रिश्ते का एक भयावह परिणाम है. हाल के दिनों में लिव इन के साथ यौन शोषण, धोखाधड़ी और घरेलू हिंसा के मामलों में काफी इजाफा हुआ है ऐसे में आज़ादी की चाह रखने वाले युवाओं को लिव इन रिश्ता थोड़े समय के लिए भले ही मौज मस्ती और खुलेपन का एहसास देता हो लेकिन पूजा हो या प्रत्यूषा,  इनकी डेथ मिस्ट्री से जुड़ा लिव-इन का सच खतरनाक संकेत दे रहा है जिस से युवाओं को सबक लेने की ज़रुरत है.

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