अमेरिका में भारतीय मूल के लगभग 30 लाख लोग हैं जो अमेरिकी जनसंख्या का लगभग 1 प्रतिशत से थोड़ा ही कम है. वैसे तो 1635 में जेमस्टोन वर्जिनिया में पहला ईस्ट इंडियन अमेरिका आया था पर पहला कन्फर्म्ड भारतीय 1790 में ब्रिटिश जहाज से मद्रास से व्यापार के सिलसिले में आया था. 1894 और 1900 के बीच सिखों का समूह कैलिफोर्निया प्रांत में आया जिस में पंजाब के किसान और श्रमिक थे. इन में से कुछ विभिन्न प्रांतों में स्थित लकड़ी की मिलों में काम करते थे. 1912 में कैलिफोर्निया के स्टौकटन में पहला गुरुद्वारा बना. 1913 में अखोय कुमार मजूमदार भारतीय मूल के पहले अमेरिकी नागरिक बने पर 1923 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, उन की नागरिकता रद्द कर दी गई थी क्योंकि वहां के संविधान के अनुसार ईस्ट इंडियन अमेरिका का नागरिक नहीं हो सकता था. 1946 में लूस केल्लर ऐक्ट पास होने के बाद अब कोई भी भारतीय अमेरिकी नागरिक हो सकता है.
वर्ष 2000 तक लगभग साढ़े 16 लाख भारतीय मूल के अमेरिकी लोग थे जो 2010 तक बढ़ कर साढ़े 28 लाख हो चुके थे. ऐसा अमेरिका में टैक्नोलौजी बूम के चलते हुआ. आईटी और कंप्यूटर के क्षेत्र में यहां भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी थी. चीन के बाद भारतीय ही अमेरिका में सब से ज्यादा अप्रवासी यानी विदेशी मूल के लोग हैं. ज्यादातर लोग आईटी के क्षेत्र में हैं पर आजकल अन्य क्षेत्रों में भी भारतीयों ने यहां अपनी साख बना ली है.
शिक्षा और आय में आगे
आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय अन्य अप्रवासियों और यहां तक कि औसत अमेरिकन से भी आगे हैं. 71 प्रतिशत भारतीय स्नातक या उस से उच्च डिगरी रखते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत केवल 28 प्रतिशत ही है. दूसरी ओर लगभग 40 प्रतिशत भारतीय स्नातकोत्तर डिगरी वाले हैं जो अमेरिका के राष्ट्रीय औसत का लगभग 5 गुना ज्यादा है. वहीं, भारतीयों की औसत वार्षिक आय लगभग 88 हजार अमेरिकी डौलर है जबकि राष्ट्रीय औसत आय 49 हजार डौलर ही है. यह मुकाम भारतीयों ने अपनी लगन और परिश्रम से प्राप्त किया है.
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों में लगभग 51 प्रतिशत हिंदू हैं, बाकी अन्य धर्मों–ईसाई, इसलाम, सिख, जैन आदि धर्मों के लोग हैं. अपनेअपने धर्म को मानने की यहां छूट है. अमेरिकी समाज बहुत ही खुला है. यहां सभी एकदूसरे को बराबर की दृष्टि से देखते हैं. यहां साधारणतया कोई दंगाफसाद नहीं होता. इक्केदुक्के छिटपुट हिंसा के नस्लीय मामले मिल सकते हैं. दरअसल, किसी के पास फालतू समय ही नहीं है. यहां कर्म ही ध्येय है और श्रम की प्रतिष्ठा है.
अनुशासित भारतीय
अन्य अप्रवासियों की तुलना में भारतीयों ने अमेरिकी समाज में आसानी से समावेश कर अपनी जगह बना ली है. इस की एक वजह इन की अंगरेजी भाषा पर पकड़ भी है. यहां भारतीयों के अनेक रेस्टोरैंट और ग्रौसरी के स्टोर्स हैं. भारतीय भोजन अमेरिकी और अन्य देशों के नागरिक भी शौक से खाते हैं. यहां कोई त्योहार या उत्सव वीकडेज पर पड़ने पर उसे सप्ताहांत में छुट्टी के दिन ही सामूहिक रूप से मनाते हैं क्योंकि वीकडेज में वे अपने काम को सर्वोच्च महत्त्व देते हैं. उसी तरह जन्मदिन या शादी की एनीवर्सरी वीकडेज पर हुई तो उसे व्यक्तिगत तौर पर भले ही घर में मना लें, पार्टी तो सप्ताहांत में ही रखते हैं. मगर यहां भी भारतीय सभी पर्वत्योहार परंपरागत मनाते हैं पर किसी प्रकार का शोरशराबा वर्जित है. हम नियमों का उल्लंघन अपने देश में आराम से कर लेते हैं पर यहां ऐसा करने का साहस नहीं है. अपने यहां लाइन तोड़ने, शोर मचाने, सड़कों पर थूकने या कचरा फेंकने जैसे नियमों का उल्लंघन भले करते हों, पर यहां आते ही हम बिलकुल बदल जाते हैं और अनुशासित रहते हैं.
अमेरिका के अनेक प्रांतों में भारत के विभिन्न प्रांतों के लोग बसे हैं. सब अपनी परंपरानुसार पर्वत्योहार मनाते हैं और अन्य प्रांत के लोगों को भी आमंत्रित करते हैं. यहां भारतीयों के लिए रेडियो स्टेशन, टीवी चैनल और समाचारपत्र व सिनेमाहौल भी हैं जो बौलीवुड की हिंदी फिल्मों के अतिरिक्त अन्य भाषाओं की फिल्में भी दिखाते हैं.
लगभग आधे भारतीय तो अमेरिका के 4 प्रांतों– कैलिफोर्निया, न्यूयार्क, न्यूजर्सी और टैक्सास में बसे हैं. सब से ज्यादा भारतीय कैलिफोर्निया राज्य में हैं क्योंकि आईटी की सब से ज्यादा कंपनियां यहीं पर हैं. सैन फ्रांसिस्को का वह एरिया जो सिलिकौन वैली कहलाता है यहीं पर है, उस में भी 1995 से 2000 या उस के बाद आने वालों की संख्या सब से ज्यादा है.
अमेरिकी नागरिकता और कायदे
कुछ लोगों को कंपनी सीधे अस्थायी वर्क वीजा एच1बी पर बुलाती है. इस में अधिकतर युवा होते हैं, फिर ये अपनी पत्नी व बच्चों को आश्रित वीजा एच4 पर लाते हैं. अगर इन के बच्चे अमेरिका में पैदा हुए तो वे जन्म से अमेरिकी नागरिक होते हैं. फिर ज्यादा दिन रहने पर इन युवाओं को ग्रीन कार्ड मिल सकता है जिसे स्थायी नागरिक कहते हैं. और चंद वर्षों यानी लगभग 5 साल होतेहोते अमेरिकी नागरिकता के हकदार हो जाते हैं. दूसरा तरीका है स्नातक करने के बाद यहां विद्यार्थी वीजा एफ1 पर एमएस स्नाकोत्तर कर के यहां नौकरी में आते हैं और फिर ऊपर बताई गई विधि के अनुसार नागरिक तक बन सकते हैं. भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा यहां आईटी क्षेत्र में कार्यरत है. अमेरिका में प्रवेश के लिए उपरोक्त एच1बी और एफ1 वीजा गेटपास है. जैसा कि पहले कहा गया है अमेरिका में सर्वाधिक शिक्षित भारतीय तो हैं ही, इन के बच्चे भी कुछ कम नहीं हैं. जहां भी भारतीय समुदाय है वहां के स्कूलों में भारतीय और चीनी बच्चों की संख्या ज्यादा है और वे पढ़ाई में भी आगे हैं. यहां राष्ट्रीय स्तर पर स्पैलिंग की प्रतिस्पर्धा में 1999 से अब तक 73 प्रतिशत विजेता भारतीय बच्चे रहे हैं. जहां भारत के विद्यालयों में सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान दिया जाता है वहीं अमेरिका में बच्चों को पहली कक्षा से खेलकूद में प्रोत्साहित किया जाता है. यहां लगभग सभी बच्चे स्कूल के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों में भाग लेते हैं, जैसे तैराकी, चेस, पियानो, गिटार, आइस स्कैटिंग आदि जो सप्ताहांत में किए जाते हैं और फिर गरमी की छुट्टी में ये ऐक्टिविटीज और ज्यादा होती हैं. इस छुट्टी में बच्चे विशेष तैराकी और आइस स्कैटिंग की ट्रेनिंग लेते हैं. इन में भारतीय बच्चों की संख्या भी काफी होती है.
जानीमानी हस्तियां
अमेरिका में काफी तादाद में भारतीय उच्च पदों पर हैं और कुछ तो विश्व में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा चुके हैं. विज्ञान के क्षेत्र में हरगोविंद खुराना, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं. संगीत में जुबिन मेहता भारत का नाम रोशन कर चुके हैं. आईटी में विनोद खोसला, संजय मल्होत्रा, शांतनु नारायण, संजय झा, सत्या नडेला व सुंदर पिचई विश्वविख्यात हैं. अंतरिक्ष में कल्पना चावला और सुनीता विलियम, बैंकिंग में विक्रम पंडित, पेप्सी प्रमुख इंदिरा नुई को कौन नहीं जानता है. सुंदरता में नीना दाबुलुरी 2014 की मिस अमेरिका रह चुकी हैं. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी भारतीयों की प्रतिभा को पहचानते हुए प्रीतिंदर भरारा को अटौर्नी जनरल और विवेक मूर्ति को सर्जन जनरल पद पर नियुक्त किया.
राजनीति में बौबी जिंदल अमेरिका के लूसिआना राज्य के 3 बार गवर्नर रह चुके हैं और 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के एक उम्मीदवार भी थे हालांकि नवंबर में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. वे अमेरिका के किसी प्रांत के भारतीय मूल के पहले गवर्नर हैं. अमेरिका के संविधान के अनुसार, जिस का जन्म अमेरिका में नहीं हुआ है वह राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकता है. अनेक अन्य प्रतिष्ठित भारतीय अमेरिका में सम्मानित पदों पर हैं.
अमेरिका में भारतीय परंपरा
जहां भारतीयों ने अपनी परंपरा व संस्कृति को अमेरिका में भी बरकरार रखा है वहीं वे अमेरिका के प्रमुख त्योहारों में भी खुलेदिल से भाग लेते हैं, जैसे हैलोवीन के मौके पर भारतीय बच्चे पड़ोस के अमेरिकी घरों में जा कर ‘ट्रिक या ट्रीट’ का आनंद लेते हैं और अगर छोटे बच्चे अकेले जाने योग्य नहीं, तो मातापिता उन्हें साथ ले कर जाते हैं. क्रिसमस के अवसर पर भारतीय भी अपने घरों में क्रिसमस ट्री को सजा कर रंगबिरंगे बल्बों से रोशनी करते हैं. अमेरिकी लोगों की तरह भारतीय भी मन लगा कर काम करते हैं. सप्ताह के प्रथम 5 दिन काम करते हैं, बाकी के 2 दिन अपनेअपने व्यक्तिगत कार्य और मनोरंजन के लिए रखते हैं. सप्ताहांत में वे गेम्स, सिनेमा या कहीं भ्रमण पर निकलते हैं. इस के अलावा शौपिंग, ग्रौसरी, कपड़ों की धुलाई, घर की सफाई व बागबानी आदि में व्यस्त रहते हैं.
यहां लेबर बहुत महंगी होती है, इसलिए ज्यादातर काम स्वयं करना पड़ता है. भारत की तरह महरी, धोबी, ड्राइवर आदि की सुविधा नहीं है. अमेरिकी लाइफ बहुत फास्ट है. वे समय नष्ट नहीं करना चाहते, यहां तक कि खाने में भी. यही कारण है कि यहां फास्टफूड काफी प्रचलित हैं और अधिकतर काम स्वचालित यंत्रों द्वारा किए जाते हैं. यहां धुले कपड़े खुले में नहीं सुखाने पड़ते हैं, ये मशीन में ही पूरी तरह सूख जाते हैं. भारतीय भी इस से अछूते नहीं हैं. यहां सभी देशों के लोग आ कर बस गए हैं. सो, उन देशों के व्यंजन भी उपलब्ध हैं. बीचबीच में भारतीय भी अवकाश के दिन इस का आनंद लेते हैं. समय की कीमत यहां सभी को पता है, इसलिए ज्यादा मिलनाजुलना नहीं होता. अगर कहीं जाना भी हुआ तो पहले से फोन पर समय लेते हैं और ठीक समय पर ही जाते हैं. लौंग वीकेंड यानी शनिवार व रविवार के आगेपीछे कोई अवकाश हुआ तो भारतीय भी इस का भरपूर आनंद लेना नहीं भूलते. पहले से ही योजना बना कहीं दूर घूमने निकल जाते हैं.
राष्ट्रभक्ति और कानून
ऐसा नहीं है कि भारतीयों को सफलता हाथ पर हाथ रखे मिली हो. इस के लिए उन्हें भरपूर परिश्रम करना पड़ा है. अपनों को सात समंदर पार छोड़ बिछुड़ने की मानसिक पीड़ा सताती है. फिर यहां के बिलकुल नए वातावरण में अपने को ढालने में समय लगता है. अपने देश में बोले जाने वाली अंगरेजी और अमेरिकी अंगरेजी के उच्चारण में बहुत अंतर है. यहां की जीवनशैली भिन्न है. भारत की तरह ‘चलता है’ कल्चर यहां सोच भी नहीं सकते हैं. आप किसी भी देश, धर्म या जाति के हों, सब के लिए एक ही कानून है. यहां के लोग राष्ट्रभक्त होते हैं. भारतीय चाहे किसी भी धर्म के हैं, उन्हें या उन के बच्चों को अवसर पड़ने पर राष्ट्रगान गाना होता है.
यहां के यातायात नियम हमारे यहां से भिन्न ही नहीं, विपरीत भी हैं और ड्राइव करते समय हौर्न नहीं बजाना है. यहां अपने टीचर या बौस, चाहे कितना भी सीनियर हो, को उस के फर्स्ट नेम से संबोधित करना होता है, सर या मैडम नहीं. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कुछ वर्ष पहले ‘ओबामा केयर’ नियम बनाया था जिस के अंतर्गत यहां के बुजुर्ग स्थायी निवासियों को बहुत मामूली खर्च पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है. इस लिहाज से भारतीय मूल के लोग अपने मातापिता को यहां का स्थायी निवासी (ग्रीन कार्ड) कार्ड ले कर यहां उन का उचित इलाज करा सकते हैं, जो चाहें तो 4-5 साल में नागरिकता भी प्राप्त कर सकते हैं. इस तरह बुजुर्ग मातापिता अमेरिका में बसे अपने बच्चों के साथ अब आराम से रह सकते हैं. अमेरिका अभी भी भारतीय युवाओं का ड्रीम डैस्टिनैशन है.