दिल्ली की महानगरीय जीवनशैली में सुबह से ही ट्रैफिक की भरमार से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महानगरों में किस हद तक व्यस्तता अपने चरम पर है. महिला व पुरुष भेड़बकरियों की तरह बसों में चढ़तेउतरते हैं. ऐसे ही एक ठसाठस भरी बस में मुझे भी चढ़ने का अवसर मिला. यह बस इतनी भरी हुई थी कि बैठने के लिए जगह मिलना दूर, इस भीड़ में खड़े रहना भी मुश्किल था. बस में कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें खड़े होने में ही आनंद आ रहा था. सीटें खाली होतीं पर जनाब खड़े रहते और खाली सीट पर कोई भद्र महिला अपना कब्जा जमा लेती. जब भी बस किसी स्टौप पर रुकती और अगर कोई महिला बस में चढ़ती तो पहले तो उसे गेट से अंदर आने के लिए खचाखच भरी भीड़ का सामना करना पड़ता, फिर जैसे ही वह अपने को व्यवस्थित करती, उस की खोजी नजर इस बात की तहकीकात करती नजर आती कि कहीं उसे महिला सीट पर पुरुष दिखाई दे जाए और वह महिला सीट के जुमले के सहारे उक्त सीट पर बड़ी विनम्रता के साथ आसन जमा सके.
चलती का नाम गाड़ी की तरह बस सब को लिए चली जा रही थी. टिकटटिकट चिल्लाते हुए कंडक्टर अपना काम कर रहा था और बस में बातों की जुगाली करती सवारियां अपने में मस्त थीं. हर बार की तरह बस एक बार फिर एक स्टौप पर रुकी और इस बार एक वृद्ध व्यक्ति जैसेतैसे बड़ी मुश्किल से बस में सवार हुआ. वृद्ध बस के अगले गेट से चढ़ा था इसलिए उसे उम्मीद थी कि वृद्ध और विकलांगों वाली सीट पर उसे शायद राहत मिल जाए, लेकिन 2 मूकबधिर छात्रों के उस पर बैठे होने से वृद्ध को निराशा हाथ लगी. अभी वह आगे कुछ सोच पाता कि एक जवान सी दिखने वाली करीब 40 साल की भद्र महिला ने उम्र के तकाजे का सम्मान करते हुए उसे अपनी सीट दे दी.
मुझे यह सब देख कर सुखद अनुभूति हुई कि महिला सीट होने के बावजूद इस महिला ने वृद्ध की उम्र का खयाल रखा. हालांकि महिला ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उस के चेहरे की भावभंगिमा से साफ जाहिर हो रहा था कि उसे ऐसा करना अच्छा लगा. बात यहीं खत्म नहीं हुई. बस में भीड़ तो थी ही और चढ़नेउतरने वालों का तांता लगा था, बस फिर एक स्टौप पर रुकी. इस बार चढ़ने वाले तमाम चेहरों में एक बड़ा ही आकर्षक चेहरा बस में चढ़ा. उस की उम्र 20-22 साल के बीच, सुंदर काया, आधुनिक पहनावा, कंधे पर फैंसी पर्स और चेहरे पर उमंग थी. बस की सभी पुरुष सवारियों की निगाहें उस पर टिक गईं. जो महिला सीट की तरफ खड़े थे, उन के चेहरे देख कर साफ लग रहा था कि मानो उन का ऐसे खड़े रहना सार्थक हो गया हो. तभी एक घटना घटी. उस युवती की आंखें भी महिला सीट पर बैठे हुए किसी पुरुष को ढूंढ़ने लगीं ताकि वह अपने नारी अधिकार का प्रयोग करते हुए सीट पर कब्जा जमा सके.
काला चश्मा चढ़ाए इस युवती को अपनी आंखों को ज्यादा तकलीफ नहीं देनी पड़ी और आखिरकार वह वृद्ध उस की नजरोें में आ ही गया. वह धीरेधीरे अपने शिकार की ओर बढ़ने लगी और भीड़ को चीरती हुई वृद्ध के पास पहुंची और महिला सीट की दुहाई देते हुए सीट छोड़ने का आग्रह किया. इस आग्रह में वह अपनी भारतीय संस्कृति को भूल गई कि वह एक वृद्ध की मजबूरी पर अपना दावा ठोंक रही है. बस में बैठे सभी लोग हतप्रभ रह गए. अभी बुजुर्ग अपने को संभालते हुए उठने की कोशिश कर ही रहा था कि युवती बड़ी ही बेशर्मी से बोली कि उठने में इतनी देरी, बैठने को तो झट बैठ गए होंगे, देखते नहीं महिला सीट है. उफ्फ, आजकल के बुजुर्ग… इन्हें महिलाओं की सीट पर बैठने में बड़ा आनंद आता है. अरे बाबा, चलो, जल्दी से सीट खाली करो.
बुजुर्ग आगे कुछ समझ पाता कि अपनी युवा सोच और सुंदरता के घमंड में खोई युवती न जाने कितने अच्छेअच्छे शब्दों से बुजुर्ग का सम्मान बढ़ा चुकी थी. उस का यह व्यवहार सभी सवारियों को अच्छा नहीं लगा. हिम्मत कर जब बुजुर्ग को सीट देने वाली उस महिला ने युवती के इस आचरण पर एतराज जताया तो उस ने तपाक से उत्तर दिया कि बुजुर्ग हैं तो क्या गोद में बैठा लें. बस में सफर करने की क्या जरूरत है, उम्र बढ़ गई है तो घर पर ही बैठे रहते. जैसेतैसे हिम्मत कर मैं ने कुछ बोलना चाहा, युवती ने मानो मुझे काट खाया और कहने लगी, ‘आप कौन होते हैं बीच में बोलने वाले, क्या लगते हैं आप इन के. मैं अच्छी तरह जानती हूं इन शरारती बुजुर्गों को. यह जानबूझ कर महिला सीट पर बैठते हैं.’ लेकिन तब तक बस में और भी कई आवाजें उठने लगीं बुजुर्ग के पक्ष में, पर युवती के तेवर ज्यों के त्यों ही बने रहे.
इस नोकझोंक के बीच बस रुकी और बुजुर्ग कब बस से उतर गया किसी को पता भी नहीं चला. शायद उसे भी अंदाजा नहीं था कि उस के बुढ़ापे का मजाक ऐसे सरेआम उड़ाया जाएगा. इसी दौरान एक अधेड़ उम्र की महिला बस में सवार हुई और एक नेकदिल व्यक्ति ने आदर और सम्मान के साथ अपनी सीट से उठ कर उक्त महिला को बैठने की जगह दे कर उक्त घटना में एक और पुट जोड़ दिया. इस बीच कुछ दूरी का सफर तय कर खूबसूरत तुनकमिजाज युवती भी बस से उतर गई. अब क्या था, इस पूरे प्रकरण पर लोगों ने खुल कर अपने विचार रखने शुरू कर दिए. कुछ सवारियां बैठेबैठे लोगों की बातों पर मजे ले रही थीं. किसी सज्जन ने कहा कि महिला और युवती में अंतर नहीं है क्या… बहुत फर्क होता है. युवती स्वस्थ और जवान होती है जबकि महिला अधेड़, उम्रदराज होती है. युवतियां तो घंटों खड़े हो कर बस में सफर कर सकती हैं, लेकिन महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं. तभी एक और महाशय बोल पड़े कि महिला शादीशुदा, बच्चों वाली होती है जबकि युवती… सचाई यह है कि इस वाकिए के बाद मैं भी युवती और महिला के बीच केअंतर को समझने की बचकानी कवायद करने लगा और इस का उत्तर तलाशने में लग गया.