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औलाद के फेर में अपना सब कुछ लुटा रही हैं महिलाएं

हर शादीशुदा औरत की यही ख्वाहिश होती है कि उस के भी एक औलाद हो. जिन औरतों को औलाद नहीं होती, तो उस के लिए वे हर तरह की कोशिश करने से बाज नहीं आती हैं. दवा, दुआ, तावीज से ले कर तरहतरह की मन्नतें, यहां तक कि औलाद पाने के चक्कर में वे अपना सबकुछ लुटा देती हैं. रुक्मिणी की शादी को 7 साल बीत चुके थे, पर उस के कोई औलाद नहीं थी. घर वाले भी औलाद न होने के चलते उस पर ध्यान देना कम कर चुके थे.

रुक्मिणी के गांव के एक लड़के ने बताया कि वह एक ओझा को जानता है. उस के पास सैकड़ों औरतों ने झाड़फूंक कराई और वे मां बन गईं.

रुक्मिणी रिश्ते में उस लड़के की भाभी लगती थी. उस ने यकीन कर लिया और उस के साथ उस ओझा के पास चली गई. ओझा ने बताया कि मामला गंभीर है, इसलिए रुक्मिणी को एक हफ्ता उस के पास रह कर हवन करना पड़ेगा. उस के रहने का इंतजाम हो जाएगा. ओझा की बात सुन कर रुक्मिणी तैयार हो गई.

एक हफ्ते तक औलाद का लालच दे कर ओझा और उस के एक सहयोगी ने रुक्मिणी का यौन शोषण किया और उस से रुपए भी ऐंठे. हां, रुक्मिणी के बच्चा हो गया, तो वह मुंह बंद कर के पति के साथ रहती रही, पर ओझाओं के चक्कर भी लगाती रही.

इसी तरह फरजाना खातून का निकाह हुए महज 2 साल ही बीते थे कि उस की ससुराल वाले फरजाना खातून के पति पर दबाव बनाने लगे कि इस औरत से बच्चा नहीं होगा, तुम दूसरी शादी कर लो. फरजाना उचित इलाज के लिए कहती रही, पर उस की एक न सुनी गई.

ससुराल वालों ने अपने लड़के की दूसरी शादी कर दी. वह दोनों पत्नियों की झाड़फूंक, दुआतावीज कराता रहा, पर औलाद न हो सकी.

इसी तरह रीता औलाद पाने के चक्कर में एक ओझा के पास गई. ओझा ने कहा कि रात 12 बजे एक पूजा करनी पड़ेगी. उस पूजा से तमाम औरतों को औलादें हुई हैं.

रीता उस की बातों में आ गई. जब आधी रात हुई, तो उस ओझा ने उस के साथ दुष्कर्म किया और डर की वजह से उस की हत्या कर दी. घर वाले जब उसे खोजने लगे, तो कहीं पता नहीं चला.

पुलिस के पास मामला दर्ज कराया गया. पुलिस ने रीता की जमीन में गड़ी लाश बरामद कर उस ओझा को जेल भेज दिया.

एक गांव में बेटा पाने के लिए यज्ञ कराया गया. वहां हजारों औरतें आईं. रोजाना रात को रंगारंग कार्यक्रम होता. मौके का फायदा उठा कर बहुत सी औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया.

चैत नवमी और दुर्गा पूजा के मौके पर उत्तर प्रदेश में कछौसा शरीफ, बिहार में अमझरशरीफ, मनोराशरीफ समेत कई जगहों पर ‘भूतना मेला’ लगता है. वहां ज्यादातर हिस्टीरिया बीमारी से पीडि़त और औलाद की चाह रखने वाली औरतें जाती हैं और अपना सबकुछ लुटा कर घर लौटती हैं.

डाक्टर विमलेंदु कुमार ने बताया कि  औरतों के बच्चा न होने की कई वजहें  हैं, जिन का सही इलाज होने से ही औलाद पैदा हो सकती है. लेकिन बहुत से लोग उचित इलाज नहीं करा कर ओझागुनी, झाड़फूंक के फेर में पड़ कर अपना समय और पैसे की बरबादी के साथसाथ इज्जत तक भी दांव पर लगा देते हैं.

समाज के ठेकेदार आखिर यह कैसी शिक्षा दे रहे हैं

इस माता की जय बोलो या उस माता की. नहीं बोलोगे तो सिर फोड़ देंगे, यह शिक्षा दी जा रही है आज  युवाओं और किशोरों को, उन के द्वारा जो संस्कृति, समाज, संस्कारों और सरकार के ठेकेदार हैं. आज का किशोर भ्रम में है. ये माताएं आई कहां से? उस किशोर के घर में जो मां है, वह ही तो उस का केंद्र है. वह उस के खाने का खयाल रखती है. पढ़ाई पर ध्यान देती है. उसे घुमाने ले जाती है. 2 घंटे न दिखे तो लगता है जीवन अधूरा रह गया. उस मां की जय न बोलो तो समाज के ठेकेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता पर उस मां जो है ही नहीं, दिखती नहीं, कुछ करती नहीं, बचाती नहीं, खाना नहीं देती, सुख नहीं देती, के पीछे इतना हल्ला?

क्या जय माता वाली ने कभी कुछ दिया है? लाखों लोग सर्दी में ठिठुरते हुए, गरमी में झुलसते हुए नारे लगाते इस मंदिर या उस जुलूस में गला बैठाते रहते हैं, पर मिलता क्या है? उन के चेहरे तो देखो? ज्यादा के मुरझाए हुए. कपड़े देखो, फटे हुए. खाना देखो, मैले रूमाल में बंधा हुआ या गंदगी के ढेर के बराबर लगे खोमचे से. गरीब घर की मां भी उस से कहीं ज्यादा प्यार से खिलाती है पर उस अपनी मां की जय न बोलने पर आप देशद्रोही नहीं बनते. घरद्रोही भी नहीं बनते. वह मां जो जिंदा है, घर चला रही है, कमा रही है, अगर परेशान है अपने बेटेबेटियों से या उन के पिता से तो उस की तरफदारी वाले कहां हैं?

मां ने जन्म दिया तो प्राकृतिक क्रिया है पर जिस तरह पाला वह प्यार है, वात्सल्य है, अपनापन बच्चों पर उड़ेलना है, उन की जरूरत अपनी जरूरत से पहले पूरी करना है. यह जो भारत माता निकली है अब भगवा पेट से यह तब कहां थी जब ग्रीस की सेनाओं ने हमला किया था? यह भारत माता तब कहां थी जब मुगल, अफगान, तुर्क आए? यह तब कहां सो रही थी जब पुर्तगाली आए, अंगरेज आए? वह किसे बचा रही थी कैसे बचा रही थी, जब ये विदेशी लोग आए थे और अपने किले, महल, मकान, बस्तियां बना कर यहां रहने लगे थे? यह आज भी कहां है जब किसान कर्ज, भूख और बीमारी से आत्महत्या कर रहे हैं? यह तब क्यों नहीं प्रकट होती जब एक लड़की को उठा कर गाड़ी में बैठा लिया जाता है और घंटों उस से बलात्कार किया जाता है? यह तब कहां चली जाती है जब 5 साल की मासूम को कोने में ले जा कर कोई वहशी रौंद देता है?

उस की आत्मा तब कहां चली जाती है जब दंगों में घर जला दिए जाते हैं, बस्तियां उजाड़ दी जाती हैं? भारत माता हो, झंडेवाली माता हो, काली माता हो, वैष्णो माता हो, सीता माता हो या दुर्गा माता हो, कभी बचाने नहीं आतीं. भारत माता को भी दूसरी माताओं की तरह चंदा जमा करने का जरिया बनाया जा रहा है. असली मां को भुला दिया जा रहा है जिस की गोद में दुबक कर हंसा जा सकता है, रोया जा सकता है और जहां सब से ज्यादा सुरक्षा मिलती है.

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