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इंदिरा हत्याकांड और सैंसरबाजी

अकसर राजनीतिक संदर्भों पर बनी फिल्में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सीबीएफसी की कैंची तले आ कर फंस जाती हैं. कई बार कुछ बड़े कदमों के बाद फिल्में रिलीज हो जाती हैं तो कई बार सालों तक बैन रहती हैं. इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित तथाकथित फिल्म ‘आंधी’ को भी सैंसरबाजी का शिकार होना पड़ा था और ‘किस्सा कुरसी का’ के तो पिं्रट तक जला दिए गए थे. फिलहाल देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और उस समय की घटनाओं पर आधारित फिल्म ‘31 अक्तूबर’ भी सैंसर के गलियारों में उलझी हुई थी. लेकिन, अब खबर है कि सोहा अली खान व वीर दास अभिनीत यह फिल्म सैंसर बोर्ड के सुझाए गए 9 बडे़ कट्स के बाद रिलीज होगी. निर्माता के मुताबिक सीबीएफसी की सुधार समिति ने कई बार फिल्म जमा करवाई और फिर कट्स लगवाए. शिवाजी लोटन पाटील ने इसे निर्देशित किया है.

अपने आपको आकर्षक बनाए रखना हुआ आसान

सौन्द्रर्य प्रसाधन कंपनी ओरिफ्लेम इंडिया ने अपनी नई आकर्षक स्किन केयर प्रोडक्ट ‘नोव ऐज रेंज’ का लौंच मुंबई में किया. इस अवसर पर पिछले 5 सालों से ब्रांड एम्बेसेडर , छरहरी काया की धनी, खूबसूरत अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे का कहना है कि यह प्रोडक्ट 50 सालों से प्रयोग किया जा रहा है और इसकी गुणवत्ता की परख, मैंने की है. यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं कोई भी ब्रांड को एंडोर्स करने से पहले उसे परख लूं. जब तक मुझे किसी ब्रांड पर भरोसा नहीं होता मैं उसकी इंडोर्समेंट नहीं करती. इनके उत्पाद काफी शोध के बाद बाज़ार में लाये जाते हैं. इसके अलावा ये सारे उत्पाद इंडियन स्किन को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं. जिससे सबको सूट करें. ये सही है कि महिलाएं हर उम्र में सुंदर दिखना चाहती हैं. सुंदर दिखने से कई फायदे भी हैं, मसलन आपका आत्मबल ऊंचा रहता है, वे घर और बाहर अच्छा सामंजस्य बना पाती हैं.

अपने आप को फिट कैसे रखती हैं, पूछे जाने पर वह कहती हैं कि मैं नियमित जिम और वर्कआउट करती हूं. क्योंकि आपके ‘मसल्स’ ही आपके सबसे अच्छे दोस्त है जो आपके अंत तक साथ रहते हैं. इसके अलावा त्वचा की ग्लो को बनाये रखने के लिए भी मैं अपने खान-पान पर ध्यान देती हूं. मैं महिलाओं से कहना चाहती हूं कि वें काम के बीच में अपने लिए समय निकालें, अपना ध्यान रखें और खुश रहें. मैं वर्किंग मदर के साथ-साथ एक खुश मां और पत्नी हूं. फिल्मों में काम न करने के पीछे मेरा बच्चा है, जिस पर मैं ध्यान देती हूं. अंदर से खुश और संतुष्ट रहना बहुत जरुरी है. उसका असर आपकी त्वचा पर पड़ता है.

वैब सीरीज की ‘माया’

निर्देशक विक्रम भट्ट कैंप सस्पैंस, हौरर और बोल्ड सीन की चाशनी में लिपटी फिल्में बनाते रहे हैं. उन की आखिरी हिट फिल्म ‘राज’ थी. अपने नए आइडिए से जब उन्हें फिल्म बनाने में दिक्कत पेश आई तो उन्होंने वैब सीरीज बनाने का फैसला किया है. विक्रम अब एक्ट्रैस शमा सिकंदर को ले कर ‘माया’ नाम की वैब सीरीज बना रहे हैं. हालांकि कुछ इसे इंटरनैट पर फैली तमाम कामुक वैब सीरीज से जोड़ रहे हैं लेकिन विक्रम इसे सौफ्ट पौर्न नहीं मानते. यूट्यूब सरीखे तमाम पोर्टल अनोखे व नए विषयों पर वैब सीरियल बना रहे हैं. यशराज बैनर का डिजिटल चैनल वाईआरएफ भी यही काम कर रहा है जिस ने हाल में ‘सैक्स चैट विद पप्पू ऐंड पापा’ बनाया है.

 

बेटियां होती हैं दिल के करीब

झारखंड की रा?जधानी रांची के हेसाग स्थित ओल्डएज होम, ‘अपना घर’ में रहने वाली सुदामा की अंतिम यात्रा ने लोगों की आंखें नम कर दीं, जब उन्हें मुखाग्नि उन के बेटे ने नहीं, बल्कि मुंहबोली बेटी सुनीता ने श्मशान घाट पहुंच कर दी. आज से करीब 20 साल पहले सुदामा को ‘अपना घर’ की सिस्टर ने गेट के बाहर दर्द से कराहते हुए पाया था. सिस्टर ने उन्हें अपने यहां पनाह दे दी. 58 वर्षीया सुदामा ने तब बताया था कि उन के अपने बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. कोई  शख्स उन्हें इस ओल्डएज होम की देहरी तक छोड़ गया था. तब से सुदामा इसी ओल्डएज होम में रहने लगीं. पहले से यहां 20 बुजुर्ग महिलाएं रहती थीं. सुदामा पहले तो उदास और गुमसुम रहतीं पर धीरेधीरे दूसरी महिलाओं से बातें करने लगीं और ओल्डएज होम की महिलाओं को ही अपना परिवार मानने लगीं. यहीं पर सुनीता नाम की लड़की अकसर उन से मिलने आती थी. उस ने सुदामा को अपनी मां माना था. दोनों एकदूसरे से इतनी जुड़ गई थीं कि इस पराई बिटिया ने स्वयं आगे बढ़ कर मृत मां को मुखाग्नि दी और एक बेटे द्वारा किए जाने वाले दूसरे सारे कर्तव्य भी निभाए.

जिस वृद्ध, लाचार महिला को सगे बेटे ने घर से निकाल दिया, उसे एक पराई बेटी ने अपनों से बढ़ कर मान दिया और अंतिम समय तक साथ निभाया. वास्तव में यह घटना पुत्र की कृतघ्नता और पराई बेटी की मानवीयता की अनोखी मिसाल है.

बुजुर्गों की दशा

देश में कुल आबादी का 8 से 9 फीसदी हिस्सा बुजुर्गों का है. पिछले एक दशक में भारत में वृद्धों की आबादी 39.3 फीसदी की दर से बढ़ी है. पर अफसोस की बात यह है कि इन बुजुर्गों के जीवन में अकेलेपन और अपनों के अत्याचार की समस्या भी लगातार बढ़ रही है. गैर सरकारी संगठन, ‘हैल्पएज इंडिया’ द्वारा 8 राज्यों के 12 शहरों में किया गया सर्वेक्षण बताता है कि भारत में करीब 50 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार के शिकार हो रहे हैं. पुरुष बुजुर्गों की अपेक्षा महिला बुजुर्गों पर अत्याचार ज्यादा होते हैं. जहां 48 फीसदी बुजुर्ग पुरुष अपनों के अत्याचार के शिकार होते हैं वहीं बुजुर्ग महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 52 फीसदी है.

सर्वेक्षण के मुताबिक, सब से कड़वी सचाई यह है कि इन बुजुर्गों पर अत्याचार करने वाले कोई और नहीं, बल्कि उन के खुद के परिवार के लोग और सगेसंबंधी ही होते हैं, खासतौर पर बेटेबहू ज्यादा जुल्म ढाते हैं. सर्वेक्षण रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि 64 फीसदी पीडि़त बुजुर्गों को पुलिस हैल्पलाइन और इस से निबटने वाली प्रणाली के बारे में जानकारी थी पर लोकलाज के भय से केवल 12 फीसदी बुजुर्गों ने ही इस का सहारा लिया. 53 फीसदी लोगों ने अपने सगेसंबंधियों को जुल्म के बारे में बताया. वृद्धा सास के प्रति एक बहू के निष्ठुर और बर्बरतापूर्ण व्यवहार की झलक लोगों ने देखी जब हाल ही में उत्तर प्रदेश के बिजनौर से एक दिल दहलाने वाला वीडियो वायरल हुआ. 1 मिनट के इस वीडियो में 70 साल की एक वृद्ध बीमार और अशक्त महिला को उस की बहू द्वारा बड़ी बेरहमी के साथ मारने का प्रयास करते देखा जा सकता था.

वीडियो में पहले बहू अपनी सास को हाथों से पीटती दिखती है. फिर पत्थर से वह वृद्धा के सिर पर चोट मारती है. इस के बाद कपड़े से गला घोंट कर मारने का प्रयास भी करती है. एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा इस वीडियो को फेसबुक पर अपलोड किया गया और तब पुलिस ने इंडियन पीनल कोड के सैक्शन 307 के अंतर्गत उस बहू के खिलाफ केस दर्ज किया. इसी तरह का एक मामला दक्षिणपूर्व दिल्ली का है. कालकाजी इलाके के एक बेटे ने बुजुर्ग मांबाप के घर की बिजली और पानी के कनैक्शन काट दिए. पिता जब बेटे के पास शिकायत करने पहुंचा तो बेटेबहू ने मिल कर उन्हें पीट दिया. वहीं संगम विहार क्षेत्र में भी इसी तरह की घटना हुई. एक बेटे ने बुजुर्ग बाप को इतना पीटा कि उन के बाएं पैर की हड्डी टूट गई.

जिस बेटे को बांहों में भर कर मांबाप प्यारदुलार से चूमते हैं, जिस के बढ़ते कदमों को देख बलिहारी जाते हैं, जिस की हर ख्वाहिश पूरी करने को जीजान से जुट जाते हैं, उसी बेटे के हाथों बुढ़ापे में जब मांबाप को मार खानी पड़े तो जरा सोचिए, क्या गुजरेगी उन के दिल पर.

समाज की विसंगति

सामाजिक व्यवस्था की विसंगति है कि ज्यादातर घरों में लोग बेटे के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं. उन के पैदा होने से ले कर उन के लालनपालन, कैरियर व हर चीज में बेटे को बेटियों की अपेक्षा ज्यादा अटैंशन दी जाती है. मगर जब बाद में वही बेटा अपने दायित्वों से हाथ झाड़ लेता है तो मातापिता आंसू बहाते हैं. हाल ही में जब 12वीं के नतीजे घोषित हुए तो हर साल की तरह इस बार भी लड़कियों ने अपना परचम लहराया. सिर्फ सीबीएसई ही नहीं, विभिन्न राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं में भी लड़कियां लड़कों से आगे रहीं. पर अफसोस, हम अकसर अपने घरों में बेटी की पढ़ाई में कोताही कर बेटों को ही पढ़ाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 52.2 फीसदी लड़कियां बीच में ही अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ देती हैं. जबकि बेटों को आगे बढ़ाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है. नतीजा यह होता है कि कई दफा बेटे सिर्फ पढ़ाई और कैरियर में ही नहीं, जिंदगी की दौड़ में भी आगे निकलने के प्रयास में अपने मांबाप को बोझ समझने लगते हैं और इस बोझ को वे किसी ओल्डएज होम या कहीं और उतार कर आगे बढ़ जाते हैं.

पर क्या आप जानते हैं, अकसर उपेक्षित छोड़ दी गई लड़कियां मांबाप के ज्यादा करीब और उन के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होती हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह बात स्वीकारी थी कि एक बेटी मांबाप के लिए 5 बेटों से बढ़ कर होती है.

वहीं, अमेरिका के सोशियोलौजिकल एसोसिएशन फाउंडेशन द्वारा जारी एक अध्ययन के मुताबिक, जब बात केयर करने की आती है तो बेटियां मांबाप का खयाल बेटों की अपेक्षा दोगुनी रखती हैं. अध्ययन में 50 साल से अधिक उम्र के 26 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया. अध्ययन में पाया गया कि बेटियां औसतन प्रतिमाह 12.3 घंटे का वक्त अपने बुजुर्ग अभिभावकों की देखभाल में लगाती हैं जबकि पुत्र महज 5.6 घंटे ही इस काम में व्यतीत करते हैं. बेटियों को इस काम में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे जौब, बच्चे वगैरा. मगर बेटों के मामले में केवल यही बात माने रखती है कि कोई और सहयोगी है या नहीं. अध्ययनकर्ता एंजेलिना कैरिर्गोयावा के मुताबिक, बेटे मांबाप की देखभाल की जिम्मेदारी उठाना तब कम कर देते हैं जब उन की बहन मौजूद हो. इस के विपरीत बेटियां अपने अभिभावक की और भी ज्यादा देखभाल करने लगती हैं जब उन का भाई होता है. यानी ज्यादातर बेटे मांबाप के प्रति अपनी जिम्मेदारियां बहनों को स्थानांतरित करने में माहिर होते हैं.

यही नहीं, एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, 18 साल की उम्र के बाद बेटियां अपने मांबाप से बहुत कम रुपयों की मांग करती हैं, जबकि बेटों के साथ ऐसा नहीं. सर्वे में पाया गया है कि 41 फीसदी युवा पुरुष अपने मांबाप से खर्च करने के लिए पैसे लेते हैं, जबकि अभिभावक के साथ रहने वाली सिर्फ 31 फीसदी युवा लड़कियां ही ऐसा करती हैं. करीब 60 फीसदी बेटियां मांबाप को भावनात्मक संबल देती हैं. छोटीछोटी बातों से उन का खयाल रखती हैं, जैसे फोन करना, उन के पास जाना, बैठ कर बातें करना जबकि 50 फीसदी से भी कम लड़के ऐसा करते हैं.

शायद यही वजह है कि लोग भी अब बेटों की अपेक्षा बेटियों को प्राथमिकता देने लगे हैं. हाल ही में कार्लसन स्कूल औफ मैनेजमैंट व रुटजर्स बिजनैस स्कूल में की गई रिसर्च के मुताबिक, अभिभावकों की पहली पसंद बेटे नहीं, बल्कि बेटियां बनती जा रही हैं. इस रिसर्च में 60 फीसदी लोगों ने अपनी भावी संतान के रूप में एक बेटी की ही कल्पना की.

जीवन की मुसकान

मेरी 2 बेटियों में सिर्फ ढाई वर्ष का अंतर है. तबीयत ठीक न रहने के कारण मैं काम करने में दिक्कत महसूस करती हूं. एक दिन ऐसे ही मैं परेशान हो गई कि 2 छोटे बच्चों के साथ कैसे काम करूं. तब मेरी साढ़े 4 वर्षीय बेटी बोली, ‘‘मम्मी, आप परेशान मत हो. मैं अब बड़ी हो गई हूं. मैं आप की मदद करूंगी.’’ उस की यह बात सुन कर मैं हंस दी. तब से वह मेरी हर काम में मदद करती है. उस की इतनी सी उम्र में समझ और मदद करने के जज्बे से मुझ में काम करने की हिम्मत आ जाती है.

नेहा प्रधान, कोटा (राज.)

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बात उस समय की है जब मेरा तबादला ओडिशा के गंजाम जिले के ब्रह्मपुर कसबे में हुआ था. उस समय मेरा प्रोबेशन पीरियड चल रहा था. मेरी सहेली की बैंक शाखा, मेरी बैंक शाखा के पास ही थी. सो, हम दोनों ने किराए का मकान ले कर एकसाथ रहने का फैसला लिया. एक दिन जब दोनों की एक समय पर ही बैंक से छुट्टी हो गई तो हम दोनों ने बाहर डिनर करने की सोची. हम डिनर कर के होटल से बाहर निकले तो बिजली चली गई थी. हम अंधेरे में घर के लिए पैदल निकल पड़ीं. हमें जिस गली में जाना था, उस में न जा कर गलत रास्ते पर चल पड़े. मेरी सहेली मुझे बारबार बोल रही थी कि हम गलत रास्ते जा रहे हैं पर मैं ने उस की बात अनसुनी कर दी. मुझे पूरा यकीन था कि मैं सही थी. लेकिन जब तकरीबन एक किलोमीटर चलने के बाद बिजली आई तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ. तब हम अपने किराए के मकान के बिलकुल विपरीत दिशा में करीब 5 किलोमीटर दूर थे. रात के 9:30 बज चुके थे.

वहां हम ने 2 पुलिस वालों को देखा और घर लौटने का रास्ता पूछने लगीं. उन्होंने हमें रास्ता बता दिया. हम उन के बताए हुए रास्ते में 15 मिनट चलने के बाद फिर खो गए. हमें डर भी लग रहा था क्योंकि रात हो गई थी. करीब 15 मिनट के बाद हम ने पुलिस की एक पैट्रोलिंग जीप देखी जिस में वही 2 पुलिस वाले अपने दोस्तों के साथ थे. उन्होंने हमें देखा और बताया कि उन्हें लगा था कि हम लोग उस जगह पर नए हैं, इसलिए खो गए होंगे. वे हम दोनों को ढूंढ़ते हुए आए थे. फिर उन्होंने अपनी जीप में बिठा कर हमारे घर पर हमें पहुंचा दिया. हमें पता चला कि हमारा घर उन के पैट्रोलिंग इलाके के अंदर नहीं आता, फिर भी उन्होंने हमें हमारे घर पर सहीसलामत छोड़ा. मैं आज तक उस घटना को भूल नहीं पाई हूं. मैं यह सोच कर आज भी कांप उठती हूं कि अगर उस रात वे लोग न मिले होते तो हम कैसे घर आते.

मधुस्मिता, भुवनेश्वर (ओडिशा)

मैं नायाब बन गई

तू ने प्यारभरी नजरों से जो देखा

तेरी ये ‘मैं’ नायाब बन गई

तराशे पत्थर मेरे बदन पर

आते ही शृंगार बन गए

मेरे शबनमी नूर की गिरफ्त में

आ कर वे माहताब बन गए

तेरे दिए हीरे जो मैं ने पहने

मेरी तपिश से आफताब बन गए

सजधज कर मैं ने कदम रखे

तेरे दिल की महफिल में

‘हमारी’ पाक दोस्ती

खूबसूरत किताब बन गई

तू ने प्यारभरी नजरों से जो देखा

तेरी ये ‘मैं’ नायाब बन गई.

       – मीनाक्षी सिंह

अदालत में भैंस

भैंस हैरान थी, लेकिन सही बात तो यह है कि उस के मन में लड्डू भी फूट रहे थे. हैरानी की बात यह थी कि उसे साक्ष्य के लिए अदालत ने बुलाया था और लड्डू इसलिए फूट रहे थे कि बरसों बाद उसे ऐसी जगह जाने का मौका मिला था, जहां जाना उस के लिए अभी तक वर्जित माना जाता था. भैंसों की तो पता नहीं, लेकिन इंसानों में जब किसी को ऐसा मौका मिलता है, तो उस के अपने करीबी लोग ही टांगखिंचाई करने लगते हैं. ‘शुक्र है कि भैंसियत को अब तक इंसानियत का रोग नहीं लगा,’ भैंस ने मन ही मन सोचा.

लेकिन यह स्वाभाविक इच्छा तो सभी प्राणियों के मन में होती है कि उन की अभूतपूर्व उपलब्धि को दूसरे प्राणी भी जानें. आदमी तो अपनीअपनी छोटीछोटी उपलब्धियों को जताने या बताने के लिए बड़ेबड़े होर्डिंग्स लगवा लेता है, अपने ही खर्चे पर अपना ही सम्मान समारोह आयोजित करवा लेता है, 100-150 पिछलग्गुओं को इकट्ठा कर के जुलूस निकलवा लेता है, जिस में बेसुरे गानों पर बेहूदा लोग बेढंगा नाच नाचते चलते हैं. जिंदाबादमुर्दाबाद होता रहता है. मगर बेचारी भैंस के पास ये सब विकल्प कहां? हिंदी के कुछ मुहावरों ने उसे इतना बदनाम कर दिया है कि अब कोई उस के आगे बीन तक नहीं बजाना चाहता. ‘भैंस के आगे बीन बाजे भैंस पड़े पगुराए.’

भैंस को अचानक लगने लगा कि उस का स्टेटस सचमुच बहुत बढ़ गया है. इस देश में जब कोई आदमी अपनेआप को आम आदमी से अलग समझने लगता है, तो सब से पहले उस के मन में हिंदी भाषा के प्रति चिढ़ का भाव पैदा होता है और अभीअभी एक मुहावरे के बारे में सोचते हुए भैंस ने हिंदी के व्याकरण को कोसा है. भैंस अपनेआप पर ही इतराई. जाती रहे किसी दूसरे की भैंस पानी में, जाए तो उस की बला से, उस ने कौन सा सारे जमाने का ठेका ले रखा है? इस विचार के साथ ही भैंस के मन में आभिजात्य होने का एक और लक्षण प्रकट हुआ.

भैंस ने तय कर लिया कि लोकतंत्र में अपनी सतत उपेक्षा के विरुद्ध अब एक नई क्रांति का सूत्रपात करने का समय आ गया है. भला यह भी कोई बात हुई कि जिस आदमी के हाथ में लाठी हो, वही भैंस पर कब्जा करने चला आए? आखिर एक खामोश प्राणी होने का अर्थ यह तो नहीं कि वह जीवनभर दूसरों की लाठी के जोर पर ही पगुराता रहे.

भैंस के मन में यह बात बहुत गहरे तक पैठ गई कि हो न हो, इस में गायों की भी साजिश हो. जो समाज दूध देने वाले एक प्राणी में सारे देवताओं का अस्तित्व देखता हो, वही समाज दूध देने वाले किसी दूसरे प्राणी के प्रति सिर्फ इसीलिए सतत उपेक्षा भाव रखे कि उस का रंग काला है? यह रंगभेद की मानसिकता से ग्रस्त आदमी का ओछापन है, भैंस ने सोचा. उस ने तय कर लिया कि अब आदमी की भाषा और व्याकरण को गलत साबित करने के लिए वह किसी दिन अपने आगे बीन बजवाएगी और उस बीन की धुन पर नाच कर भी दिखाएगी. जो समाज ‘मुन्नी के बदनाम होने के ठुमकों’ पर तालियां और सीटी बजाबजा कर मजे लेता है और फिर भी नैतिकता की बातें करता है, उस समाज को भी पता तो चलना ही चाहिए कि एक भैंस यदि ठान ले तो चमेली से ज्यादा चिकनी हो सकती है.

भैंस के पास घड़ी नहीं थी. उस ने उचक कर पास खड़े आदमी की कलाई की तरफ देखा. अभी अदालत जाने में देर थी. भैंस का मन फिर वितृष्णा से भर उठा. ‘मेरे दूध का कारोबार करकर के यह आदमी बनठन के घूम रहा है. कलाई में महंगी घड़ी बांध कर इतराता डोल रहा है और मेरे तबेले में एक अदद दीवारघड़ी का इंतजाम भी नहीं? आने दो बच्चू को अगली बार मेरे पास, अब बताऊंगी कि काला अक्षर मेरे लिए भैंस बराबर होता है कि उस के लिए.’ भैंस ने मन ही मन सोचा. मगर यह सोच कर एक बार फिर विद्रोह की भावना उस के मन में घर कर गई कि आदमी की भाषा के व्याकरण के सारे मुहावरे केवल उसी का मखौल उड़ाते हैं.

लोकतंत्र में अवसरवादिता की हद तो यह है कि हम भैंसें लगातार उपेक्षा की शिकार हुई हैं लेकिन उपेक्षितों की बात कर के अपना खजाना भरने वालों ने भी वक्त आने पर हाथी की ही मूर्तियां लगवाईं. कोई यदि किसी चौराहे पर एकाध भैंस की भी मूर्ति लगवा देता तो लोकतंत्र का क्या बिगड़ जाता? भैंस ने मन में सोचा और फिर यह सोच कर उसे प्रसन्नता हुई कि भैंसों में सामाजिक क्रांति का शंख फूंकने के लिए उस के पास क्रांतिकारी भाषण का एक महत्त्वपूर्ण मसौदा तैयार हो गया है.

 

भैंस ने फिर घड़ी की तरफ देखा. घड़ी की सूइयां तेजी से सरक रही थीं. भैंस पर आरोप था कि उस ने एक आदमी की पानी की बालटी में मुंह डाल दिया है. भैंस को आदमी की ओछी मानसिकता पर आश्चर्य हुआ. प्यासी भैंस पानी में मुंह मार दे तो होहल्ला और भ्रष्ट अधिकारी अपनी हवस को शांत करने के लिए इधरउधर मुंह मारता फिरे तो भी लोकतंत्र खामोश? यह जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का कैसा शासन है भई? कई गांवों में तो केवल इसीलिए लोगों को मार गिराया गया है कि एक समुदाय के कुएं से किसी दूसरे समुदाय के आदमी ने पानी कैसे भर लिया? भैंस ने किसी आदमी को तो नहीं मारा, केवल बालटी में मुंह मारा है. भैंस के दूध को पीपी कर मुटियाओ और फिर भैंस पर ही लाठी का जोर आजमाओ, यह तो सरासर अन्याय है.

पंडे तो पवित्र नदियों के किनारे भी अपनेअपने डेरे कायम कर के ऐसे बैठ गए, गोया नदी, नदी नहीं हुई, उन की बपौती हो गई और भैंस यदि एक अदद बालटी से पानी पी ले तो हंगामा. जानता है न आदमी कि वह भैंस के पानी पीने पर कितना ही हंगामा कर ले, पर फिर भी भैंस बेचारी किसी भी हाल में चिल्ला कर यह नहीं कहेगी कि हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है.

भैंस के मन में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उसे लगने लगा था कि अब क्रांति के अलावा कोई उपाय नहीं है. सदियों से आदमी ने उसे बेवकूफ बनाया है. उस का दूध पिया है. वक्त पड़ने पर उस की सवारी भी की है. लेकिन उस ने पानी से भरी हुई उस की छोटी सी बालटी मे मुंह क्या मार दिया, आदमी ने उस के सारे एहसानों को भुला दिया है. भैंस ने पास खड़े आदमी को अपने सींग पर उठा कर दूर फेंकने के लिए जोर से आवाज की, तभी किसी ने उसे धीरे से पुकारा, ‘‘अरी भैंस, तू भी किस आदमी से शिकायत करती है, जो आदमी अपना उल्लू सीधा होते ही रिश्तों की पवित्रता में तेजाब डालने से नहीं चूकता उस आदमी से यह उम्मीद कैसे की जाए कि वह भैंस के प्रति ईमानदार रह सकेगा. जो आदमी धर्म के नाम पर खून की नदियां बहाने से नहीं हिचकिचाता, उस आदमी को एक बालटी पानी के लिए हंगामा करने में क्या शर्म आएगी? जो आदमी सत्ता की चौसर पर पासे फेंकते हुए पड़ोसियों और सगे भाइयों तक को लड़वा देता है, उस आदमी के नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? फिर तू तो यों भी अपनी आदत से मजबूर है. अभी आदमी लाठी उठाएगा, तू उस के साथ चल निकलेगी.

भैंस ने चौंक कर इधरउधर देखा. लेकिन उसे कहीं कोई नजर नहीं आया. भैंस चाहती थी कि वह अपने मन की बात किसी के साथ साझा करे लेकिन उस ने देखा कि अदालत का समय हो चुका था. आदमी ने लाठी दिखाई तो भैंस के मन में एक बार विद्रोह की भावना जागी. मगर उस ने सोचा कि अभी लोकतंत्र को जिंदा रखना है. अभी लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति आस्था रखनी जरूरी है. आदमी ने भले ही यह सोचा कि भैंस उस की लाठी के डर के कारण आगे बढ़ रही है, लेकिन भैंस को आदमी से क्या लेनादेना था? आदमी जो चाहे वह सोचे, उस की बला से.

सब ने देखा, उस दिन एक अदालत में बहस की नहीं, भैंस की चर्चा थी.

अब वायरल हो रहा है केजरीवाल का ये VIDEO

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल परेशान हैं. कारण हैं दिल्ली के समाज कल्याण, महिला और बाल विकास मंत्री संदीप कुमार. बुधवार को मीडिया में एक सीडी सामने आई, जिसमें कथित तौर पर संदीप कुमार दो महिलाओं के साथ आपत्तिजनक हालात में नज़र आ रहे थे. संदीप कुमार पिछले साल भी सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिल्ली सचिवालय में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि वो प्रतिदिन सुबह उठकर अपनी पत्नी के पैर छूते हैं.

खैर, संदीप की तथाकथित सीडी सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दीं. लेकिन सबसे खास बना हुआ है अरविंद केजरीवाल एक वीडियो, जिसमें वो गाना गाते हुए नजर आ रहे हैं. यह वीडियो कुछ समय पहले आम आदमी पार्टी के फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया था.

ट्विटर और फेसबुक पर इस वीडियो का लिंक कल से आज तक हजारों लोगों ने शेयर किया है. लोगों ने लिखा है केजरीवाल जी आप क्या गा रहे हैं और हो क्या रहा है. आप भी देखिए ये वीडियो.

वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें  

पेट्रोल 3.38 और डीजल 2.67 रुपए प्रति लीटर महंगा

जहां एक तरफ केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के तहत बढ़ी हुई सैलरी का असली तोहफा दिया है वहीं दूसरी तरफ से लोगों को एक बड़ा झटका लगा है. झटका इसलिए क्योंकि पेट्रोल-डीजल के दामों में भारी बढ़ोतरी हुई है. जहां पेट्रोल के दाम में 3 रुपये 38 पैसे की बढ़ोतरी की गई है वहीं डीजल के दामों में 2 रुपये 67 पैसे का इजाफा कर दिया गया है. बढ़ी हुई कीमतें आज आधी रात से लागू हो जाएंगी.

कीमतें बढ़ने के बाद दिल्ली में पेट्रोल के दाम 60.09 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 63.47 रुपये हो गए हैं और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 65.04 रुपये से बढ़कर 68.40 रुपये हो गए हैं. कोलकाता में पेट्रोल के दाम 64.18 रुपये से बढ़कर 66.84 रुपये हो गए हैं वहीं दक्षिण भारत के शहर चेन्नई में पेट्रोल के दाम 59.65 रुपये से बढ़कर 63.02 रुपये हो गए हैं.

आपको बता दें कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियां हर 15 दिन में ईंधन कीमतों में बदलाव का ऐलान करती हैं और ऐसा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव के चलते किया जाता है. सरकार ने जबसे पेट्रोल-डीजल कीमतों को डीकंट्रोल किया है तबसे ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को तेल कीमतों में बदलाव करने का अधिकार मिला है. वर्ना पहले सरकार इनकी कीमतों को नियंत्रण में रखती थी और बाद में ओएमसीज (ऑयल मार्केटिंग कंपनियां) को सब्सिडी का पेमेंट करती थीं.

जानें क्या हैं डीजल के बढ़े हुए दाम

कीमतें बढ़ने के बाद दिल्ली में डीजल के दाम 50.27 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 52.94 रुपये हो गए हैं और मुंबई में डीजल 52.48 रुपये से महंगा होकर 55.15 रुपये जा पहुंचा है. कोलकाता में पेट्रोल के दाम 55.81 रुपये से बढ़कर 58.48 रुपये हो गए हैं वहीं दक्षिण भारत के शहर चेन्नई में पेट्रोल के दाम 51.76 रुपये से बढ़कर 54.43 रुपये हो गए हैं.

कितनी कटौती हुई अब तक

जुलाई से अब तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 4 बार कटौती की गई थी, लेकिन एक साथ पेट्रोल 3.38 रुपये महंगा कर दिया गया जिससे 3-4 बार की कटौती का फायदा आज एक झटके में वापस ले लिया गया. इससे पहले 15 अगस्‍त को तेल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत में 1 रुपये और डीजल की कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी.

तेल कंपनियों ने 31 जुलाई को पेट्रोल के दाम में 1.42 रुपये लीटर और डीजल में 2.01 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी. इससे पहले 16 जुलाई को पेट्रोल की कीमत में 2.25 रुपये लीटर की कटौती की गई वहीं डीजल के दाम में 0.42 रुपये लीटर की कमी की गई थी.

तेल कंपनियों के मुताबिक रुपये-डॉलर की वर्तमान एक्सचेंज रेट के चलते पेट्रोल-डीजल की कीमत में इजाफा करना जरूरी हो गया था. डीजल की कीमतों में हुई इस बढ़ोतरी से मान सकते हैं कि ढुलाई महंगी हो जाएगी जिसका सीधा असर आम लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा. सब्जियों, फलों से लेकर रसोई की कई चीजों और रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली चीजों की ढुलाई महंगी होगी जिससे इनकी कीमतें बढ़ने का भी खतरा है.

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