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नया क्षितिज: क्या हुआ जब फिर आमने सामने आए वसुधा और नागेश
‘वक्त ने किया क्या हंसी सितम, तुम रहे न तुम हम रहे न हम...’ कुछ इसी नगमे सा था वसुधा और नागेश के प्यार का फसाना.
भाग - 1
लंबा छरहरा बदन तकरीबन अभी भी उसी प्रकार का था. बस, चेहरे पर हलकीहलकी धारियां आ गई थीं जो निकट आते वार्धक्य की परिचायक थीं.
भाग - 2
6 महीनों बाद ही पापा ने उस का विवाह मृगेंद्र से सुनिश्चित कर दिया और वह विदा हो कर अपने पति के घर की शोभा बन गई.
भाग - 3
वह मन ही मन में बोल उठती थी, ‘काश, इस समय मैं नागेश की बांहों में होती.’ एक प्रकार से वह दोहरे व्यक्तित्व को जी रही थी.
भाग - 4
अचानक उसे ऐसा लगा जैसे मृगेंद्र ने उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा, ‘क्या हुआ, वसु, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है.
भाग - 5
वसुधा का प्रारब्ध तो उस का अकेलापन था क्योंकि बच्चे उस से दूर अपनी दुनिया में व्यस्त थे. लेकिन एक नया क्षितिज जीवनसंध्या की राह पर अकेली खड़ी वसुधा का बाहें पसार कर स्वागत करने को आतुर है. ऐसे में क्या करेगी वह?
भाग - 6
वसुधा यह सोचसोच कर अभीभूत हो रही थी कि नागेश न होते तो क्या होता. संतानों ने तो अपनाअपना ही देखा.
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