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चाय आ गई थी और उस के साथ बिस्कुट भी. उन्होंने मुझे बड़े अदब से चाय पेश की और मुझ से बातें भी करते रहे. बोले, ‘‘चेक ले कर ही जाइएगा दीयाजी. हो सकता है कि थोड़ी देर लग जाए. बहुत खुशी होती है न कुछ करने का पारिश्रमिक पा कर.’’

और तब मैं सोच रही थी कि शायद अब यह मतलब की बात करें कि बदले में मुझे उन्हें कितना कमीशन देना है. मैं तो बिलकुल ही तैयार बैठी थी उन्हें कमीशन देने को. मगर मुझ से उन्होंने उस का कुछ जिक्र ही नहीं किया. मैं ने ही कहा, ‘‘सर, मैं तो आकाशवाणी पर बस प्रोग्राम करना चाहती हूं. बाकी पारिश्रमिक या पैसे में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है. मेरी रचनात्मक प्रवृत्ति का होना ही कुदरत की तरफ से दिया हुआ मुझे सब से बड़ा तोहफा है जो हर किसी को नहीं मिलता है. सर, यह यहां मेरा पहला प्रोग्राम है. आप ही की वजह से यह मुझे मिला है. यह मेरा पहला पारिश्रमिक मेरी तरफ से आप को छोटा सा तोहफा है क्योंकि जो मौका आप ने मुझे दिया वह मेरे लिए अनमोल है.’’

कहने को तो मैं कह गई, लेकिन डर रही थी कि कहीं वे मेरे कहे का बुरा न मान जाएं. सब तरह के लोग होते हैं. पता नहीं यह क्या सोचते हैं इस बारे में. कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर दी मैं ने अपनी बात कहने में. मेरे दिलोदिमाग में विचारों का मंथन चल ही रहा था कि वे कह उठे, ‘‘दीयाजी, आप सही कह रही हैं, यह लेखन और यह बोलने की कला में माहिर होना हर किसी के वश की बात नहीं. इस फील्ड से वही लोग जुड़े होने चाहिए जो दिल से कलाकार हों. मैं समझता हूं कि सही माने में एक कलाकार को पैसे आदि का लोभ संवरण नहीं कर पाता. आप की ही तरह मैं भी अपने को एक ऐसा ही कलाकार मानता हूं. मैं भी अच्छे घर- परिवार से ताल्लुक रखता हूं, जहां पैसे की कोई कमी नहीं. मैं भी यहां सिर्फ अपनी रचनात्मक क्षुधा को तृप्त करने आया हूं. आप अपने पारिश्रमिक चेक को अपने घर पर सब को दिखाएंगी तो आप को बहुत अच्छा लगेगा. यह बहुत छोटा सा तोहफा जरूर है, लेकिन यकीन जानिए कि यह आप को जिंदगी की सब से बड़ी खुशी दे जाएगा.’’

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