‘‘मैं कौन हूं तुम्हारी?’’ सुमन ने प्रेम से पूछा.

‘‘यह क्या पूछ लिया. मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम मुझ से प्यार करती हो,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘और घर पर तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. फिर मैं क्या लगी रिश्ते में तुम्हारी?’’ सुमन ने थोड़े गुस्से में पूछा.

‘‘क्या प्यार काफी नहीं?’’

‘‘इस प्यार का नाम क्या है?’’

‘‘प्यार का कोई नाम नहीं होता.’’

‘‘होता है. समाज इसे रखैल नाम देता है और मुझे यह नाम स्वीकार नहीं,’’ सुमन ने तेज स्वर में कहा.

‘‘तुम मेरी दूसरी पत्नी भी तो समझ सकती हो खुद को.’’

‘‘पत्नी दूसरीपहली नहीं होती, पत्नी सिर्फ पत्नी होती है. यदि मुझ से प्यार करते हो तो मुझ से शादी करो. नहीं तो इतने दिनों तक जो तुम कर रहे थे मेरे साथ, वह मात्र एक छलावा था प्यार के नाम पर.’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘मैं सच कह रही हूं.’’

‘‘लेकिन यह भी एक सच है कि मैं शादीशुदा हूं.’’

‘‘और मैं क्या हूं?’’

प्रेम चुप रहा. उस से जवाब देते न बना. यह उस की गलती थी कि वह शादीशुदा हो कर भी दूसरी स्त्री के चक्कर में पड़ गया. वह घरपरिवार वाला व्यक्ति है. वह दूसरी शादी कैसे कर सकता है? उस के बच्चे क्या सोचेंगे? लोग क्या कहेंगे उसे? स्त्रीलोलुप, लम्पट? शुरूशुरू में तो सब अच्छा लगा, घूमनाफिरना, प्यारभरी बातें करना आदि. उस की पत्नी अपनी घरगृहस्थी व बच्चों में इतनी डूबी हुई थी कि उसे ध्यान भी न रहा कि उस का पति एक पुरुष भी है और पुरुष को घरगृहस्थी के कामों में उलझी हुई पत्नी के अलावा एक ऐसी स्त्री भी चाहिए जो उसे प्यार करे लेकिन दिनभर काम से थकीहारी पत्नी रात को बिस्तर पर पहुंच कर सो जाती. सुबह वही घरगृहस्थी शुरू. पत्नी अपना पत्नीधर्म बखूबी निभा रही थी लेकिन पति का प्रेमी मन प्रेम की तलाश में सुंदरी के आगोश के लिए भटक रहा था. वह हकीकत से दूर कल्पनालोक में विचरने को उत्सुक था. वह प्रेमिका के गजरे में फूल सजाना चाहता था. प्रेमभरी वार्त्ता से मन को बहलाना चाहता था. इसी चाहत में उसे सुमन मिल गई. दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. प्रेम सीनियर था सुमन का. दोनों में प्रेम हो गया. जब बात प्रेम से आगे बढ़ कर शादी पर पहुंची तो प्रेम को सचाई बतानी पड़ी.

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