‘‘मुझे अपने बेटे पर गर्व है,’’ सुमन फिर बोली, ‘‘क्या बताऊं, बीना, बहुत प्यार करता है. असीम को छोड़ कर कहीं चली जाऊं, तो इसे बुखार हो जाता है.’’
मां और बच्चे में प्यार और ममता तो सहज होती है. उसे बारबार अपने मुंह से कह कर प्रमाणित करने की जरूरत भला कहां होती है.
उस रात बीना ने अनायास पति के सामने अपने मन की बात कह दी, तो वे भी गरदन हिला कर बोले, ‘‘हां, अकसर ऐसा होता है. जहां जरा सी मिलावट हो वहां मनुष्य जोरशोर से यही साबित करने में लगा रहता है कि मिलावट है ही नहीं. जो पतिपत्नी घर पर अकसर कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ते रहते हैं वे चार लोगों में ज्यादा चिपकेचिपके से रहते हैं. मानो, लैलामजनू के बाद इतिहास में इन्हीं का स्थान आने वाला है.’’
‘‘आप का मतलब सुमनजी को अपने बच्चे से प्यार नहीं है.’’
‘‘बच्चे से प्यार नहीं है, ऐसा तो नहीं हो सकता. मगर कुछ तो असामान्य अवश्य है जिसे तुम्हारी सुमन बहनजी सामान्य बनाने के चक्कर में स्वयं ही असामान्य व्यवहार कर रही थीं, क्योंकि जो सत्य है, उसे चीखचीख कर बताने की जरूरत नहीं होती. और फिर रिश्तों में तो दिखावे की जरूरत होनी ही नहीं चाहिए. अरे भई, पतिपत्नी, मांबेटे, सासबहू, भाईबहन, इन में अगर सब सामान्य है, तो है. प्यार होना चाहिए इन रिश्तों में जो कि प्राकृतिक भी है. उसे मुंह से कह कर बताने व दिखाने की जरूरत नहीं होती. अगर कोई चीखचीख कर कहता है कि उन में बहुत प्यार है, तो सम झो, कहीं कोई दरार अवश्य है.’’