कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

यों सिद्धांत रूप में तो अम्मां अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध नहीं थीं परंतु जब अपने घर में ऐसे विवाहों की बात उठी तो पूर्वाग्रहों से ग्रस्त वह सहर्ष अपनी स्वीकृति देने में हिचकिचा रही थीं.

‘‘अंतर्जातीय विवाहों से हमारे आचारविचार में छिपी संकीर्णता खत्म हो जाती है. अंधविश्वासों व दकियानूसीपन के अंधेरे से ऊपर उठ कर हम एक खुलेपन का अनुभव करते हैं. विभिन्न प्रांतों की संस्कृति तथा सभ्यता को अपनाकर भारतीय एकता को बढ़ावा देते हैं...’’ अम्मां किसी से कह रही थीं.

मैं और छोटी भाभी कमरे से निकल रहे थे. जैसे ही बाहर बरामदे में आए तो देखा कि अम्मां किसी महिला से बतिया रही हैं. सुन कर एकाएक विश्वास होना कठिन हो गया. कल रात ही तो अम्मां बड़े भैया पर किस कदर बरस रही थीं, ‘‘तुम लोगों ने तो हमारी नाक ही काट दी. सारी की सारी बेटियां विजातियों में ब्याह रहे हो. तुम्हारे बाबूजी जिंदा होते तो क्या कभी ऐसा होता. उन्होंने वैश्य समाज के लिए कितना कुछ किया, उन की हर परंपरा निभाई. सब बेटाबेटी कुलीन वैश्य परिवारों में ब्याहे गए. बस, तुम लोगों को जो अंगरेजी स्कूल में पढ़ाया, उसी का नतीजा आज सामने है.

‘‘अभी तक तो फिर भी गनीमत है. पर तुम्हारे बेटेबेटियों को तो वैश्य नाम से ही चिढ़ हो रही है. बेटियां तो परजाति में ब्याही ही गईं, अब बेटे भी जाति की बेटी नहीं लाएंगे, यह तो अभी से दिखाई दे रहा है.’’

बड़े भैया ने साहस कर बीच में ही पूछ लिया था, ‘‘तो क्या अम्मां, तुम्हें अपने दामाद पसंद नहीं हैं?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...