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‘‘जी आंटी.’’

‘‘अरे, तब तो तुम सच में जुड़वां की तरह ही हो. कैसा संयोग है. इतने सालों बाद तुम दोनों एकसाथ खड़ी हो.’’

साखी और सांची के चेहरों पर प्रसन्नता के भाव आ गए थे.

‘‘तब तो तुम ने अपने पापा की गाड़ी से कालेज आयाजाया करोगी?’’

‘‘नहीं आंटी, शायद बस से... लेकिन बस में तो बहुत समय बरबाद होता है. बहुत घूमघूम कर आती है.’’

‘‘तो औटो से आओजाओ न और लड़कियों के साथ. साखी के लिए तो मैं ने एक औटो वाले से बात कर ली है. कहो तो तुम्हारे लिए भी कर लूं, सिविल लाइंस तो रास्ते में ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है आंटी, लेकिन पापा से पूछना पड़ेगा. अच्छा नमस्ते आंटी.’’

‘‘नमस्ते बेटा, अपनी मम्मी से मेरा नमस्ते बोलना. मैं उन से मिलने आऊंगी. मेरी उन से बहुत पुरानी पहचान है, उतनी पुरानी जितनी तुम्हारी उम्र है,’’ उन के स्वर में उत्साह आ गया था.

फिर दोनों ने साथ आना, साथ जाना शुरू कर दिया और एक ही कोचिंग में पढ़ते हुए 11वीं, फिर 12वीं की परीक्षाएं लगभग बराबर अंक पा कर पास कीं. दोनों का लक्ष्य था, प्री मैडिकल टैस्ट पास कर के एमबीबीएस करना. दोनों ने गंभीरता से पढ़ाई शुरू कर दी.

परीक्षाएं पूरी होने पर दोनों संतुष्ट थीं, परिणाम के प्रति आशान्वित भी. परिणाम घोषित हुआ तो वे अलगअलग शहरों में थीं क्योंकि अपनेअपने पिता के स्थानांतरण के कारण उन के शहर बदल गए थे. लेकिन समाचारपत्र में छपा अपना अनुक्रमांक व उच्च वरीयता क्रम देख कर साखी की आंखों से खुशियां नहीं आंसू छलके. कारण, सांची के अनुक्रमांक का कहीं अतापता नहीं था. उसे यह बहुत अविश्वसनीय सा लगा. साखी अपने वर्ग की मैरिट लिस्ट में बहुत ऊपर थी. उसे प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मैडिकल कालेज में प्रवेश मिला.

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