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अलार्म की आवाज ने विचारों की शृंखला को तोड़ दिया. सारी रात सोचतेसोचते ही बीत गई थी. एक ठंडी सांस ले कर मैं उठ खड़ी हुई.

फिर 1 साल बाद ही भारत आना हुआ. इस बीच वीरां का विवाह भी हो चुका था. जब इस बात का पता चला तो मन में एक टीस सी उठी थी.

‘‘तुम्हारी पसंद का मूंग की दाल का हलवा बनाया है, वहां तो क्या खाती होगी तुम यह सब,’’ मम्मी मेरे आने से बहुत उत्साहित थीं.

‘‘वीरां कैसी है, मम्मी? वह अपने ससुराल में ठीक तो है न?’’

‘‘हां, वह भी आई है अभी मायके.’’

‘‘अच्छा, तो मैं जाऊंगी उस से मिलने,’’ मैं ने खुश हो कर कहा.

इस पर मम्मी कुछ खामोश हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘‘हम ने तुम से एक बात छिपाई थी. वीरां की शादी के कुछ दिन पहले ही समर रिहा किया गया था. उस का एक पांव बेकार हो चुका है. बैसाखियों के सहारे ही चल पाता है. अभी महीना भर पहले ही उस का भी विवाह हुआ है. तुम वहां जाओगी तो जाहिर है, अत्यंत असहज महसूस करोगी. बेहतर होगा किसी दिन वीरां को यहीं बुला लेना.’’

वज्रपात हुआ जैसे मुझ पर. नियति ने कैसा क्रूर मजाक किया था मेरे साथ. समर की रिहाई  हुई तो मेरी शादी के फौरन बाद. किस्मत के अलावा किसे दोष देती? समय मेरी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल चुका था. अब हो भी क्या सकता था?

इसी उधेड़बुन में कई दिन निकल गए. पहले सोचा कि वीरां से बिना मिले ही वापस लौट जाऊंगी, लेकिन फिर लगा कि जो होना था, हो गया. उस के लिए, वीरां के साथ जो मेरा खूबसूरत रिश्ता था, उसे क्यों खत्म करूं? अजीब सी मनोदशा में मैं ने उस के घर का नंबर मिलाया.

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