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अब पटाखे छोड़ने में नन्हे को मजा आने लगा तो वह अपनी मां से अलग हो कर अनिरुद्ध के साथ फुलझड़ी छुड़ाने लगे. दीपा वहीं एक कुरसी पर बैठ कर दोनों को देखने लगी. तभी पता नहीं कहां से एक रौकेट दनदनाता हुआ आया और उस की गोद में गिर गया और पलभर में आग लग गई. वह चिल्लाई, नन्हे ने मांमां कहते हुए उस से चिपट कर बचाने का प्रयत्न किया किंतु दीपा ने उसे परे धकेल दिया. उसे स्वयं से ज्यादा नन्हे की चिंता थी और नन्हे मां को बचाने के लिए बारबार उस से चिपकने की कोशिश कर रहा था, जिस के कारण उस के हाथ झुलस गए थे. जब तक कोई कुछ कर पाता, समझ पाता, बहुत देर हो चुकी थी. दीपा की सिंथैटिक साड़ी क्षणभर में जल कर उस के जिस्म से ऐसे चिपक गई कि उस को निकालना भी कठिन हो गया था.

दीवाली के आमोदप्रमोद में व्यस्त डाक्टरों के अनुपस्थित रहने के कारण उसे समय पर सही चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाई. 10 घंटे जिंदगी और मौत के बीच झूलने के बाद आखिरकार उस ने प्राण त्याग दिए थे.

वैसे तो मनीष की मौत के बाद ही जिंदगी उस के लिए रसहीन हो चुकी थी, वह जी रही थी सिर्फ नन्हे के लिए. उस की सांस चल रही थी तो सिर्फ नन्हे के लिए, किंतु इस भयानक घटना के बाद उस के मन में एक ही वेदना थी कि अब नन्हे का क्या होगा? उस की परवरिश कौन करेगा? उस के मन की वेदना और आंखों में भरी याचना को समझ कर उसे दिलासा देते हुए स्मिता ने कहा था, ‘दीपा, तुम नन्हे की चिंता मत करो, उस की देखभाल मैं करूंगी. बस, तुम शीघ्र ठीक हो जाओ.’

‘भाभी, बस, मैं यही चाहती थी, अब मैं शांति से मर तो सकूंगी,’ यत्नपूर्वक पीड़ायुक्त शब्दों में अपनी भावना प्रकट कर उस ने आंखें बंद कर ली थीं, जो फिर कभी नहीं खुल पाईं.

नन्हे, जिस ने अपने मातापिता को एक साल के अंदर ही खो दिया था, को संभालना मुश्किल हो गया था. वह समझ ही नहीं पा रहा था कि उस के पिता के साथ मां भी कहां चली गई तथा अब वे दोनों ही लौट कर क्यों नहीं आ सकते. वह नन्हे न तो किसी से बोलता था और न ही किसी के साथ खेलना चाहता था और न ही खाना… बस, सहमासहमा सब को देखता रहता था.

उमेश भी इस घटना से भौचक्के रह गए, कहां वे तो दीपा को ससुराल से इसलिए लाए थे कि वह अपनी दुखभरी यादों से कुछ समय के लिए मुक्ति पा सके, लेकिन वह तो सदा के लिए ही इस संसार से मुक्ति पा गई थी. अपराधबोध से ग्रस्त उमेश के लिए अब नन्हे की परवरिश, उस की उचित देखभाल केवल कर्त्तव्य ही नहीं, दायित्व भी बन गया था और यही बहन के प्रति उन की श्रद्धांजलि थी. यही कारण था कि नन्हे के दादादादी जब उसे लेने आए तो नम्र स्वर में अपनी इच्छा प्रकट कर दी थी तथा उन्होंने भी उन की इच्छा का मान रखा था.

उमेश ने अनिरुद्ध के स्कूल में ही नन्हे का नाम लिखा दिया था. स्कूल जाने से उस के व्यवहार में थोड़ा बदलाव आया था किंतु जब अनिरुद्ध को उमेश के साथ हंसतेबोलते देखता तो चुप हो जाता था. स्मिता और उमेश दोनों ही उसे पास बुला कर प्यार करना चाहते. अनिरुद्ध की तरह उस का होेमवर्क कराने में मदद करने का प्रयास करते, लेकिन चाह कर भी वह उस के मन की ग्रंथि को तोड़ नहीं पाए थे. रात में अकसर मांमां कहता हुआ चौंक कर उठ बैठता तब स्मिता ने उसे अपने पास सुलाने का फैसला लिया था.

पहले तो अनिरुद्ध ने कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर बातबात पर वे नन्हे से झगड़ने लगा, कभी वह उस की किसी वस्तु पर गलती से भी हाथ लगा लेता तो वह चिढ़ जाता तथा कभीकभी मार भी देता था. उस की इन हरकतों पर स्मिता डांटती तो वह चिढ़ कर कहता, ‘आप तो बस, उसे ही प्यार करती हो, मुझे नहीं. क्या मैं आप का बेटा नहीं रहा?’

अनिरुद्ध को प्यार से समझाना चाहती, ‘बेटा, उस के मातापिता नहीं हैं इसलिए उसे प्यार की तुम से ज्यादा आवश्यकता है.‘तो इस का मतलब यह तो नहीं कि उस की गलत बात पर भी उसे कुछ न कहो, बस, मुझे ही डांटती रहो,’ चिढ़ते हुए उस ने जवाब दिया था.

अनिरुद्ध के मन में नन्हे के लिए न जाने कहां से इतनी कटुता, ईर्ष्या आ गई थी कि वह अपनी चीजें अपने दूसरे दोस्तों के साथ शेयर कर सकता था, पर नन्हे के साथ नहीं.

अनिरुद्ध की उद्दंडता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. एक दिन नन्हे ने अनिरुद्ध की गैरमौजूदगी में उस का गिटार बजाने की कोशिश की, तभी अनिरुद्ध आ गया. उस ने नन्हे के हाथ से गिटार छीनते हुए एक जोरदार चांटा उस के गाल पर मारा तथा चीखते हुए बोला, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी चीजें छूने की, टूट जाता तो क्या होता?’

नन्हे को सहमा हुआ देख कर स्मिता ने कहा, ‘टूटा तो नहीं. क्या छोटे भाई के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाता है?’‘किस का भाई, यह मेरा भाई नहीं है, कैसी मां हो जो अपने बेटे से अधिक दूसरे के बेटे को चाहती हो.’अनिरुद्ध का उत्तर सुन कर गुस्से से उस के गाल पर एक चांटा लगाते हुए वह बोली, ‘तुम एकदम बिगड़ गए हो, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है कि अपने से बड़ों से कैसे बात की जाती है.’

अनिरुद्ध ने जोरों से रोना शुरू कर दिया था. उमेश भी आवाज सुन कर अपने कमरे से बाहर निकल आए थे और नन्हे इस सारी घटना के लिए स्वयं को दोषी समझ कर सुबक कर बोला, ‘भैया, मुझे माफ कर दो. अब मैं इसे हाथ भी नहीं लगाऊंगा.’

उमेश ने सारे घटनाक्रम पर नजर डाली तथा नन्हे की स्वीकारोक्ति सुन कर उसे गोद में उठा कर बोले, ‘बेटे, यदि तुम भी गिटार बजाना सीखना चाहते हो तो मैं तुम्हारे लिए भी ऐसा ही गिटार खरीद दूंगा.’

नन्हे तो संतुष्ट हो गया था लेकिन अनिरुद्ध दिनोंदिन और भी ज्यादा उद्दंड होता जा रहा था, शायद वह अपने प्यार में और किसी की हिस्सेदारी सहन नहीं कर पा रहा था. अब नन्हे से न वह बोलना चाहता था और न ही उस के साथ खेलना चाहता था. यहां तक कि स्कूल भी साथसाथ जाने में आनाकानी करने लगा था.

अनिरुद्ध की निरंतर बढ़ती उद्दंडता तथा नन्हे का अंतर्मुखी होते जाना देख कर आखिरकार उमेश ने सुझाव दिया था, ‘नन्हे को होस्टल में डाल दिया जाए जिस से कम से कम वह सहज हो कर रह सके.’

स्मिता उमेश का सुझाव

सुन कर अनचाहे ही अपराधबोध से ग्रस्त हो उठी थी, लेकिन स्थिति की गंभीरता को समझ कर न चाहते हुए भी उसे उमेश का समर्थन करना पड़ा था, वास्तव में वह विवश हो गई थी. तमाम कोशिशों के बाद भी वह अनिरुद्ध के व्यवहार में परिवर्तन नहीं ला पाई थी, और न ही यह कह पाई थी, ‘होस्टल में डालना है तो अनिरुद्ध को डालो, नन्हे को नहीं, बेचारा अनाथ है, इसलिए क्या उसे सजा दे रहे हो… आखिर है तो वह तुम्हारी बहन का ही लड़का, फिर उस के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?’

 

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