जमात से निकाल दिए जाने की धमकी ने करामत को सहमा दिया. करामत नईमा को तलाक दिए जाने के फैसले पर बौखला गया. एक बार फिर वह गरजता, बरसता कमरे में घुसा और धड़ाम से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. डरीसहमी नईमा के बाल पकड़ कर खींचते हुए पलंग पर पटक दिया, ‘‘सुन, तलाक तो मुकीम भाई का गमगीन चेहरा देख कर दे रहा हूं मगर याद रख, जब भी मेरी ख्वाहिश का अजगर फन उठाएगा तो उस की खुराक पूरी करनी होगी, समझी. वरना तुझे समूचा का समूचा निगल कर तेरी हड्डीपसलियां तोड़ कर पचा जाने की भी ताकत रखता है यह करामत.’’नईमा कंपकंपा गई यह सुन कर. वह रात काली थी मगर जितनी शिद्दत से उस कालिमा को महसूस कर रही थी नईमा, उतनी शायद किसी ने भी नहीं की होगी. उजले बदन पर नाखूनों और दांतों के नीले निशान लिए नईमा अब्बा के घर लौटी. आखिर किस मिट्टी की बनी है यह औरत, जो मर्दों के हर जुल्म को बरदाश्त कर लेती है.
‘‘अम्मी, करामत से तलाक के बाद अब तो मेरा निकाह बच्चों के अब्बू से दोबारा हो जाएगा न,’’ अंदर से घबराई, डरीडरी सी नईमा ने अपनी अम्मी से पूछा.
‘‘मेरे खयाल से अब कोई दिक्कत तो नहीं आनी चाहिए,’’ अम्मा ने उसे तसल्ली दी.
‘‘बस, अम्मी, इद्दत के 3 महीने 13 दिनों के बाद के दिन निकाह की तारीख तय करवा लेना अब्बा से कह कर. बस, थोड़े दिनों की बात और है अम्मी, मेरा और बच्चों का बहुत बोझ पड़ गया है आप दोनों के बूढ़े कंधों पर. लेकिन अम्मा, फिक्र मत करो, मैं दिन में बीड़ी और रात को कपड़ों में बटन टांक कर पाईपाई जमा करूंगी और रफीक मुकद्दम का सारा कर्जा, सूद समेत चुका दूंगी,’’ आशाओं की हजार किरणें उतर आईं नईमा की आंखों में. अम्मी की बूढ़ी पलकें बेटी की शबनमी हमदर्दी से भीग गईं.इद्दत के दिनों में ही नईमा ने घर सजाने की कई छोटीबड़ी चीजें खरीद लीं. जिंदगी को नए सिरे से जीने की ललक ने मीठामीठा एहसास जगा दिया नईमा के दिल में. पुराने दिनों की तमाम तल्खियों को भूल कर हर पल खुशहाल जिंदगी जीने के सपने फिर से पनीली आंखों में तैरने लगे.