बाल सफेद होने का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. पहले सफेद बाल व्यक्तित्व की पहचान हुआ करते थे. बाल सफेद होने पर आदमी को समझदार, शिष्ट तथा गरिमामय माना जाता था. राजा दशरथ ने एक बार कान के पास एक सफेद बाल देखा तो उन्होंने राजपाट छोड़ कर संन्यास की तैयारी कर ली थी. सफेद बालों की ही देन थी कि लोग संन्यासाश्रम एवं वानप्रस्थाश्रम में चले जाया करते थे, लंगोट लगा लेते थे. अब मामला उलटा है. सारे वे काम सफेद बालों के बाद होने लगे हैं जो काले बालों में किए जाते थे. 50 वर्ष की उम्र में भी बाल सफेद हों तो लोग इसे खानपान अथवा तेलादि का विकार मान कर शिष्टता धारण करने को ही तैयार नहीं हैं. उलटे मेहंदी लगा लेंगे, सैलून में डाई करा लेंगे तथा अन्य कई प्रकार के लोशन लगा कर सफेदी को छिपा लेंगे. ज्यादा समझाओ कि भाई, बाल सफेद हो गए, अब तो धैर्य धरो, तो कहेंगे कि बाल सफेद हो गए तो क्या, दिल तो अभी काला है.

यह सही है कि जब तक दिल काला रहेगा, बाल के सफेद होने का कोई अर्थ नहीं रहेगा. पहले के लोग ही मन से साफ होते थे और बाल सफेद होने के बाद तो और भी पावन हो जाया करते थे. घर में मुखिया के बाल ज्यों ही सफेद होने लगे कि वह संजीदगी ओढ़ कर साधु का आचरण करने लगता था. महल्ले के लोग ‘ताऊ’, ‘बाबा’ अथवा ‘बुड्ढा’ मान कर सम्मान दिया करते थे. उस की बात को तवज्जुह दी जाती थी. न्याय करने में ऐसे लोग पहल किया करते थे. उन की न्यायप्रियता प्रसिद्ध होती थी. अब देखिए, सफेद बालों की आड़ में काले कारनामे किए जाते हैं. सारी बेईमानियां इन की आड़ में करने का प्रयास किया जाता है. अब सफेद बालों वाले आदमी से ‘ताऊ’ अथवा ‘बाबा’ कह कर देखिए, उस से पहले उस की पत्नी आप से झगड़ लेगी. तुरंत बाजार जा कर बाल काले करने की दवा ले आएगी और सिर पर मलना शुरू कर देगी. वह नहीं चाहती कि उन पर असमय ह बुढ़ापा थोपा जाए. शरीर से बूढ़े हुए लोग मन से जवान रहने के कारण सफेद बालों की विशिष्टता को नकार रहे हैं. बाल सफेद होने की प्रक्रिया से अकेला पुरुष ही परेशान हो, ऐसा नहीं है, महिलाएं भी इन का नामोनिशान मिटा कर इन की खेती को समूल नष्ट करने की दिशा में जागरूक हैं. जो महिलाएं 40 की उम्र में बुढ़ापे के चिह्न शरीर पर आने पर अपना गौरव समझती थीं, अब देखिए, महिलाएं अपनी षष्टिपूर्ति के बाद भी इस फसल को सिर पर नहीं देखना चाहतीं. वे भी बालों को दवा, मेहंदी अथवा ब्यूटीपार्लर में जा कर काले करा रही हैं. सफेद बालों की यह समस्या दिनोंदिन विकट होती जा रही है. महिलाओं का सामान्यतया इस मामले में तर्क यह है कि यदि वे सफेद बालों को पनपने दें तो पुरुष उन की ओर देखना बंद कर देते हैं. कमोबेश रूप में यही स्थिति पुरुषों की है. वे भी 58 पार कर जाने के बाद भी यही चाहते हैं कि कोई हसीना उन पर भी एक न एक दिन नजर डालेगी, यदि उस समय उन के सिर पर बाल सफेद हुए तो सारा खेल बिगड़ जाएगा. इसलिए वे भी बाल रंग रहे हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...