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लेखिका-ज्योति मिश्रा 

मुझे बहुत दिनों बाद रागिनी को इतना खुश देख कर बहुत खुशी हुई. मैं और रागिनी जब कमरे से बाहर निकले तो लड़कियां हमें देख कर तरहतरह की बातें कर रही थीं. कुछ ने तो रागिनी को देख कर भद्दे कमैंट्स भी मारे... ‘रातभर कहां रही... बहुत स्मार्ट हैं तेरे भइयू... एकदम बम्बईया हीरो... किस का भाई, बहन को ले कर मौल जाता है भई. तुम्हारी तो ऐश है. काश, कोई हमें भी बाइक पे घुमाने वाला होता...’ आदि.

रागिनी ने किसी की बात कोई जवाब नहीं दिया. रोज की तरह वह चुपचाप तैयार हो कर अपने डिपार्टमैंट चली गई. मैं अपने डिपार्टमैंट पहुंची, तो मुझे देखते ही संजीव ने कहा, ‘रागिनी का साथ छोड़ दो, वरना उस के साथसाथ लोग तुम्हें भी बदनाम करेंगे.’

मैं ने कहा, ‘क्यों, ऐसा क्या हो गया?’ उस ने कहा, ‘मैं इस भइयू को और रागिनी को अच्छी तरह जानता हूं. मेरे पड़ोस में है इन का घर. कल दिनरात दोनों गायब रहे, तुम्हें तो मालूम ही होगा.’ मैं ने कहा, ‘हां, जब रागिनी के मांबाप को भइयू के साथ उस के कहीं आनेजाने में आपत्ति नहीं है, तो हम लोग कौन होते हैं बोलने वाले?’

वह जोर से हंस कर बोला, ‘कैसे मांबाप? वह अम्माबाऊजी? वे तो दूर के रिश्ते से इस के मौसामौसी हैं. इस के  असली मम्मीपापा मुंबई में हैं जिन्हें यह अपनी मौसीमौसा बताती है. उन्हें तो इस की कोई फिक्र ही नहीं है. इस के मुंबई में रहने वाले मम्मीपापा जब मुंबई गए थे तो उन की माली हालत  अच्छी नहीं थी. मुंबई की महंगाई  और  उस पर से तीनतीन बेटियां. सुगंधा के बाद नंदा और चंदा जुड़वां बहने हुईं थीं. एक बेटी के बाद एकसाथ 2 बेटियों का आ जाना उन लोगों के लिए बोझ ही था. ऐसे में चंदा को रागिनी बना कर निसंतान अम्मा को देने में उन्हें ज्यादा मुश्किल नहीं हुई.

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