सुरेश शहर की धान मंडी में गेहूं की बोरियां बेच कर लौट रहा था. अभी उसे कई चौराहे व छोटीबड़ी सड़कें पार कर के अपने गांव पहुंचना था.
वह मंडी रोड से सीधा दिल्ली रोड पर आ गया था. यहां से परली तरफ उस के गांव को जाने वाली सड़क थी. इन दोनों के बीच की जगह में एक शानदार सरकारी इमारत थी. इस इमारत के चारों ओर घास से लदा हराभरा मैदान और चारदीवारी थी.
चारदीवारी के छोर पर बड़ा सा लोहे का गेट था, जहां एक चौकीदार खड़ा था. इस गेट से अंदर हो कर दूसरे गेट से बाहर गांव की ओर जाने वाली सड़क पर निकला जा सकता था.
यह आम रास्ता नहीं था, लेकिन छोटा जरूर था. लिहाजा, सुरेश ने डेढ़ मील पैदल न चल कर इमारत से हो कर जाने वाले रास्ते से ही गुजरना ठीक समझा.
सुरेश गेट के पास जा कर थोड़ी देर तक खड़ा देखता रहा. 2 औरतें और 4 आदमी एकएक कर के निकल गए थे. उन में से 3 ने तो चौकीदार के हाथ में कुछ दिया था और 3 को चौकीदार ने सलाम ठोंका था.
सुरेश भी मौका देख कर अंदर घुसने लगा तो चौकीदार की रोबदार और कड़क आवाज गूंजी, ‘‘ऐ रुको.’’
वह ठिठक कर वहीं खड़ा हो गया.
चौकीदार अपने बेंत को जोर से खटखटाता हुआ उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘क्या बात है, बिना इजाजत लिए अंदर कैसे जा रहे हो?’’
‘‘इधर से उधर जाना था,’’ सुरेश ने कहा.
‘‘इस बिल्डिंग से हो कर? क्या तुम ने बोर्ड नहीं पढ़ा कि बिना इजाजत अंदर जाना मना है,’’ चौकीदार बोला.
‘‘हां, जा तो रहा था, पर बोर्ड नहीं पढ़ा,’’ सुरेश ने जवाब दिया.
‘‘अंदर किस से मिलना है?’’ चौकीदार ने पूछा.
‘‘किसी से भी नहीं,’’ सुरेश ने कहा.
‘‘किसी से भी नहीं मिलना तो क्या इसे आम रास्ता समझ रखा है?’’ चौकीदार ने कड़क लहजे में पूछा.
‘‘हां,’’ सुरेश बोला.
‘‘क्या उस पार आगरा रोड पर जाना है?’’ चौकीदार ने पूछा.
‘‘हां जी, आप ने बिलकुल ठीक समझा.’’
‘‘पर, कानूनन तुम इधर से नहीं जा सकते, क्योंकि यहां घुसना भी जुर्म?है,’’ चौकीदार ने बताया.
‘‘लेकिन, गैरकानूनन तो जा सकता हूं न?’’ सुरेश ने पूछा.
‘‘ऐ, मेरे सामने गैरकानूनी बात करता है. पता है कि मैं कौन हूं? ऐसी बातें मुझे कतई पसंद नहीं हैं,’’ चौकीदार कानून झाड़ने लगा.
‘‘क्या इस देश में सबकुछ कानून के मुताबिक चलता है? क्या यहां गैरकानूनी कुछ नहीं होता?’’ सुरेश ने पूछा.
‘‘फालतू बकवास कर के क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हो?’’ चौकीदार ने चिढ़ते हुए कहा.
‘‘मैं इस बात को बखूबी जानता हूं, पर आप मुझे अभी उस तरफ जाने दीजिए, वरना मेरी आखिरी बस निकल जाएगी,’’ सुरेश ने खुशामद की.
‘‘कहा न, यह आम रास्ता नहीं है.’’
‘‘तो क्या यह खास रास्ता है, खास लोगों के लिए?’’
‘‘हां, तू ऐसा ही समझ ले.’’
‘‘तो फिर आप मुझे भी कुछ देर के लिए खास आदमी मान लीजिए. इस में आप का क्या जाता है?’’
‘‘कैसे मान लूं…’’ चौकीदार कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा इस शहर में कोई कोठीबंगला है या फिर तुम किसी ऊंचे घराने से वास्ता रखते हो?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तुम किसी पार्टी के सदस्य हो?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘किसी क्लब के मैंबर हो, प्रैस क्लब, जिमखाना क्लब, किसी के भी?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘किसी भ्रष्टाचार के मामले में तुम्हारा नाम कभी उछला है?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘किसी एमपी, एमएलए, सीएम, कैबिनेट मिनिस्टर से कोई पहुंच रखते हो?’’
‘‘मुझे तो इस शहर में कोई नहीं जानता, सिवा धान मंडी के मुनीमों के,’’ सुरेश ने बताया.
‘‘क्या तुम्हें बौडीगार्ड मिले हुए हैं?’’
‘‘मिले होते तो क्या अकेला यहां मक्खी मारने के लिए खड़ा होता?’’
‘‘माफिया से सांठगांठ है?’’
‘‘जी, वह भी नहीं है.’’
‘‘किसी का खून किया है या फिर कभी जेल गए हो?’’
‘‘क्या मैं आप को शक्ल से खूनी लगता हूं?’’
‘‘शक्ल से तो तुम मासूम लगते हो, लेकिन खूनी के चेहरे पर नहीं लिखा होता कि उस ने खून किया है.’’
‘‘आप सही कह रहे हैं, लेकिन मैं ने कोई खून नहीं किया.’’
‘‘क्या तुम्हारे पास काला पैसा है?’’
‘‘काला क्या, जो सफेद भी है वह भी थोड़ा सा है.’’
‘‘तो फिर तुम खास आदमी नहीं हो सकते. मैं तुम्हें खास आदमी मान कर खास आदमियों की इज्जत धूल में नहीं मिलाऊंगा,’’ चौकीदार ने कहा.
‘‘तो क्या खास आदमी ऐसे लोग होते हैं?’’
‘‘हां, बिलकुल ऐसे ही होते हैं.’’
तभी अचानक चौकीदार को खयाल आया कि वह एक बेहद मामूली आदमी के हर सवाल का जवाब दिए जा रहा?है, जैसे बहुत फुरसत में हो. वह खामोश हो गया.
‘‘आप कुछ खास लोगों के बारे में बता रहे थे न,’’ चौकीदार को अचानक चुप हुआ देख कर सुरेश ने कहा.
‘‘हां बता तो रहा था, लेकिन यह जरूरी नहीं कि मैं सारी बातें बताऊं.’’
‘‘अजी, आप तो नाराज हो गए. चलिए, बातें खत्म करते हैं. अब मुझे इधर से निकलने दीजिए.’’
‘‘बिलकुल नहीं. तुम इतनी जिद क्यों कर रहे हो?’’
‘‘मैं जल्दी घर नहीं पहुंचा तो बीवीबच्चे चिंता करेंगे. मुझे कई जरूरी काम भी निबटाने हैं.’’
‘‘इस मुल्क में जितने गैरजरूरी लोग हैं, उन्हें ही जरूरी काम होते हैं.’’
‘‘आप अब हद से आगे बढ़ रहे?हैं,’’ सुरेश गुस्से से बोला.
‘‘मेरी हद क्या है, यह तुम तय करोगे?’’ चौकीदार भी सख्त लहजे में बोला.
कुछ पलों तक सुरेश सख्त नजरों से उसे देखता रहा, फिर चौकीदार बोला, ‘‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं इस समय ड्यूटी पर हूं. यहां की सिक्योरिटी का जिम्मा भी मेरा है. तुम्हें शायद पता नहीं, इस बिल्डिंग में बड़े लोगों की मीटिंग चल रही?है. उन की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी भी मेरी ही है.’’
‘‘किस मुद्दे को ले कर मीटिंग चल रही है?’’ सुरेश ने पूछा.
‘‘मीटिंग के लिए किसी मुद्दे की जरूरत नहीं होती’’
‘‘बिना मुद्दों के मीटिंग?’’ सुरेश ने हैरान हो कर पूछा.
‘‘इस राजधानी में एक करोड़ लोग रहते हैं. मुद्दे भी एक करोड़ ही समझो. यहां मुद्दों की क्या कमी है?’’
‘‘फिर भी, कुछ तो मुद्दा होगा.’’
‘‘हां, फिलहाल चायनाश्ते के साथ मीटिंग इस मुद्दे पर हो रही है कि अगले हफ्ते किस मुद्दे को ले कर मीटिंग की जाए.’’
इसी बीच सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया. उस ने गेट में घुसने की कोशिश की.
उसे घुसता देख कर चौकीदार कड़क लहजे में बोला, ‘‘ऐ रुको, यह आम रास्ता नहीं है.’’
उस आदमी ने जेब में से 10 रुपए का सिक्का निकाला. उसे अपने हथेली में फंसाते हुए चौकीदार के पास अपने हाथ को ले कर बोला, ‘‘कैसे हो दोस्त?’’
चौकीदार मुसकराया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर आदमी के हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अच्छा हूं दोस्त, बहुत दिनों बाद मिले हो.’’
इस बीच 10 रुपए का वह सिक्का चौकीदार की हथेली में चला गया था. फिर लोहे का गेट पूरा खुला और खास रास्ता, खास आदमी के लिए खुल गया. इधर 10 रुपए का सिक्का चौकीदार की जेब में पहुंच गया था.
अब सुरेश की समझ में सारी बात आ गई थी. उस ने जेब में हाथ डाल कर 5 रुपए का सिक्का निकाला. सिक्का अपने हाथ में रख कर चौकीदार की ओर बढ़ाने लगा कि तभी चौकीदार बोला, ‘‘अब क्यों शर्मिंदा करते हो यार. अब तुम जाओ. देखो, मैं ने तुम्हारे लिए गेट खोल रखा है. यह आम रास्ता तो नहीं है, फिर भी अब तुम मेरे खास हो.’’
सुरेश ने चौकीदार की तरफ देखा. वह काफी शर्मिंदा सा लग रहा था. पर यही तो उस की ऊपरी कमाई थी, जो खास रास्ते से गुजरने वाले खास लोगों से उसे मिलती थी. सुरेश उस का शुक्रिया अदा कर के अपने रास्ते की ओर निकल गया.