राजस्थान के राजसमंद जिले का खमनोर गांव गुलाब की खेती के लिए जाना जाता है. यहां के कई किसान गुलाब की खेती कर के व गुलाब के उत्पाद तैयार कर के अपनी रोजीरोटी चलाते हैं. इन में से एक किसान गणेश माली से जब भेंट की तो उन्होंने अपनी सफलता की कहानी बताई. गणेश माली ने बताया कि उन के पास 3 बीघे जमीन है, जिस पर पिता किशन लाल सालों से गुलाब की खेती करते रहे हैं. अब उन के बूढ़े होने से यह काम गणेश ने संभाल लिया है. उन के दादा भी गुलाब की खेती किया करते थे. इस क्षेत्र में गुलाब की खेती बहुत पुरानी कही जा सकती है. गुलाब की खेती करतेकरते गणेश के पिताजी ने बाद में गुलकंद और गुलाबजल बनाना शुरू किया.

गणेश माली ने 2010 से गुलाब का शरबत बनाना शुरू किया था. उदयपुर कृषि महाविद्यालय ने यहां के किसानों को शरबत बनाना सिखाया था, इस के लिए गणेश भी उदयपुर गए थे. पिछले साल उन्हें 50 हजार रुपए की आमदनी फूलों से हुई थी, वहीं गुलाब के फूलों से गुलकंद, शरबत व गुलाबजल बना कर बेचने से करीब 50 हजार रुपए की कमाई हुई थी. 2013 में उन्होंने गुलाब से तैयार की गई चीजों को बिहार में बेचने के लिए भेजा था. उन्होंने बताया कि गुलाब से गुलाबजल, इत्र व रस आसवन विधि द्वारा बनाए जाते हैं. इस विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इस के लिए खास तरीके से बनाई गई भट्ठी  पर तांबे का छोटे मुंह वाला एक बड़ा देग चढ़ाया जाता है, जिसे पानी से आधा भरने के बाद उस में करीब 5 हजार गुलाब के फूल डाले जाते हैं. बाद में देग का मुंह ढक्कन लगा कर बंद कर दिया जाता है.

देग के मुंह पर कपड़े की पट्टी बांध कर मिट्टी का लेप किया जाता है, ताकि भाप बाहर न निकले. दूसरी ओर इस देग के मुंह पर एक लंबा व घुमावदार पाइप लगा होता है, जिस का एक सिरा ठंडे पानी में रखे एक बरतन से जोड़ा जाता है, जिस में देग से निकलने वाली भाप ठंडी हो कर गुलाबजल में बदल जाती है. भट्ठी 7-8 घंटे चलती है. 5 हजार फूलों से करीब 50 बोतल गुलाबजल बनता है. ज्यादा फूलों से कम गुलाबजल बनाए जाने पर वह बहुत बढि़या किस्म का होता है, जबकि ज्यादा माल तैयार करने पर गुलाबजल अच्छी किस्म का नहीं बनता. करीब 500 फूलों से 1 लीटर गुलाबजल तैयार किया जाए तो वह अच्छा होता है.

गणेश माली ने बताया कि वे अपने गुलाबों से तैयार गुलकंद 300 रुपए प्रति किलोग्राम, गुलाबजल 100 रुपए प्रति लीटर और शरबत 150 रुपए प्रति लीटर की दर से गणेश चैत्री रोज प्रोडक्शन के नाम से बेचते हैं. गुलाब के इत्र के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि चंदन के तेल में गुलाब के रस का इस्तेमाल कर के इत्र बनाया जाता है. 1 लीटर चंदन के तेल को 1 से डेढ़ लाख फूलों के रस के साथ 10 बार छान कर इत्र बनता है. उन्होंने बताया कि यह तरीका बहुत लंबा है और इस में मेहनत भी करनी पड़ती है. 1 किलोग्राम इत्र 2 से ढाई लाख रुपए में बिकता है, जिसे खरीदना हर किसी के बूते से बाहर है. कोई बड़ा सेठ ही इसे खरीदता है. ऐसे लोगों के कहने पर ही हम लोग गुलाब का इत्र बनाते हैं.

चैत्र महीने में होने वाली यह फसल 15 मार्च और 15 अप्रैल के बीच होती है. खासतौर से 20 दिनों की गुलाब की यह फसल मौसम पर टिकी होती है. चैत्री गुलाब की पंखुडि़यां पतली होने के कारण नाजुक होती हैं, जो गरमी बरदाश्त नहीं कर पातीं. उन्होंने बताया कि अच्छे मौसम में 1 बीघे में 2 लाख रुपए की फसल होती है, जिस में 50 हजार रुपए मजदूरी चली जाती है. लेकिन पिछले 5 सालों से पैदावार में कमी आ रही है, क्योंकि जिस समय गरमी चाहिए उस समय गरमी नहीं मिलती और जब सर्दी की जरूरत होती है, उस वक्त मौसम गरम हो जाता है.

उन्होंने बताया कि उन के इलाके में पुदीना व जामुन भी काफी होते हैं. पुदीना बाजार में मिल जाता है. जामुन की गुठली भी 20 से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मिल जाती है. वे इस का रस बनाते हैं. जामुन की गुठली का रस डायबिटीज (शुगर) के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है. कुछ लोग गुठली नहीं मिलने पर जामुन के पेड़ की छाल भी इसे बनाने में इस्तेमाल करते हैं.

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