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चमेली जब भी रिटायर्ड डिप्टी कलक्टर पवन के बंगले पर काम करने आती है, वह 45 साल से 30 साल की बन जाती है, क्योंकि 65 साला पवन अकेले रहते हैं. उन की पत्नी सुधा उन की रिटायरमैंट के 15 साल पहले गुजर गई थीं. तब से वे अकेले हैं. उन के एकलौता बेटा है जिस की बैंक में पोस्टिंग होने के बाद उस ने वहीं काम कर रही एक लड़की से शादी कर ली थी.

उस समय पवन की रिटायरमैंट के 3 साल बचे थे. जब तक वे सेवा में थे, तब तक उन के सरकारी बंगला था, नौकर थे, इसलिए रोटी बनाने की चिंता नहीं थी. जब भी वे भोपाल जाते बहू का रूखा बरताव देख कर भीतर ही भीतर दुखी होते.

सोचा था कि रिटायरमैंट के बाद वे अपने बेटे के पास रहेंगे. मगर बेटे का बदला बरताव देख कर उन्होंने अपना मन बदल लिया और रिटायरमैंट के बाद वे छोटा का मकान खरीद कर उसी शहर में बस गए. जिस शहर से वे रिटायर हुए थे.

रिटायरमैंट के बाद सरकारी बंगला और नौकर छूट गए थे, इसलिए वे खुद ही रोटी बनाते थे, कमरे में झाड़ू लगाते थे और कपड़े धोबी से धुलवाते थे. इस तरह वे चौकाचूल्हे में माहिर हो गए थे. मगर जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी शरीर में कमजोरी आ रही थी. रोटियां बेलने में तकलीफ होने लगी थी.

जब पवन की पत्नी सुधा गुजरी थीं तब रिश्तेदारों ने उन्हें दोबारा शादी करने की सलाह दी थी. पर तब उन्होंने मना कर दिया था. रिश्तेदार कई रिश्ते भी ले कर आए, मगर उन्होंने सभी रिश्तों को ठुकरा दिया था.

पवन तो अपने बेटे के पास ही बाकी जिंदगी बिताना चाहते थे, मगर ऐसा हो न सका. अब जा कर उन्हें एहसास हुआ कि आज वे अकेले जिंदगी काट रहे हैं.

जब उन से रोटियां नहीं बनने लगीं तब उन्होंने चमेली को रख लिया. शुरुआत में तो वह ठीकठाक रही, मगर जैसेजैसे समय बीतता गया, उस के मन के भीतर का शैतान जागता गया.

वह जानती थी, पवन का बेटा उन से दूर है इन का विश्वास जीत कर सारी धनदौलत हड़पी जा सकती है. इस के लिए उस ने योजना बना कर उसे अपने तरीके से अंजाम देना शुरू कर दिया.??

दरअसल, आदमी की सब से बड़ी कमजोरी औरत होती है, इसलिए जब भी चमेली घर का काम करने आती, अपने को बदलने लगी. वह सजधज कर आने लगी. उन्हें देख कर कामुक निगाहों से मुसकाने लगी.

पवन चमेली का यह बदला रूप देखते थे. वे अपनी नजरें फेर लेते थे. तब चमेली मन ही मन कहती थी, ‘कितने ही विश्वामित्र बन जाओ, मगर यह मेनका एक दिन तुम्हारी तपस्या भंग कर के ही रहेगी.’

इस के बाद चमेली जितनी देर घर में रहती, वह अपना आंचल गिरा देती. बरतन मांजने लगती तो पेटीकोट ऊपर चढ़ा लेती.

पवन चमेली के इस बरताव को समझ रहे थे. एक दिन वे बोले, ‘‘तुम शादीशुदा हो, ऐसा मत किया करो.’’

चमेली उस दिन तो चुप रही, फिर अगले दिन उस ने कहा, ‘‘आप को बाईजी की याद तो सताती होगी?’’

‘‘क्या मतलब है?’’ जरा नाराज हो कर पवन बोले.

‘‘मेरा मतलब यह है साहब…’’ चमेली बोली, ‘‘आप अकेले हैं तो आप को बाईजी की याद तो कभीकभी आती होगी? जब रात को अकेले सोते होंगे?

‘‘क्या कहना चाहती है तू?’’

‘‘मैं यह कहना चाहती हूं साहब, अगर आप के मन में कभी औरत की जरूरत हो…’’

‘‘चमेली, मुंह संभाल कर बोल,’’ बीच में ही बात काटते हुए पवन बोले, ‘‘मेरे सामने कभी ऐसी बात मत करना.’’

जी साहब, माफी मांगते हुए चमेली बोली, ‘‘एक दिन आप ने ही तो कहा था कि बात कहने से मन का बोझ हलका हो जाता है.’’

‘‘ठीक है ठीक है…’’ बीच में ही बात काट कर पवन बोले, ‘‘मगर मुझे किसी औरत की जरूरत नहीं है.’’

मगर पवन की समझाइश का असर चमेली पर नहीं पड़ा. उस दिन के बाद तो वह और मेनका बन गई. उस का आंचल गिराना जारी था. यह कर के वह पवन की कमजोरी पकड़ना चाहती थी. मगर उन की तरफ से कोई हलचल नहीं मचती थी. न जाने कैसा पत्थरदिल है उन का दिल. आग के सामने भी नहीं पिघलता.

ऐसे में एक दिन चमेली की सहेली लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘तेरे विश्वामित्रजी पिघले कि नहीं?’’

‘‘कहां पिघले… न जाने किस पत्थर के बने हैं.’’

‘‘इस में तेरी कमजोरी होगी.’’

‘‘सबकुछ तो कर लिया जो एक औरत को करना चाहिए. इस में मेरी कहां से कमजोरी आ गई?’’

‘‘तब तो उस की जायदाद कभी हड़प नहीं सकती है.’’

‘‘अब उस के सामने नंगी होने से तो रही.’’

‘‘तुझे नंगा होने की जरूरत ही नहीं है?’’ कह कर लक्ष्मी ने उस के कान में कुछ कहा. वह गरदन हिला कर बोली, ‘‘ठीक है.’’

चमेली ने पवन के भीतर खूब जोश पैदा करने की कोशिश की, मगर वे टस से मस नहीं हुए. जब पानी सिर से ज्यादा ही गुजरने लगा, तब पवन बोले, ‘‘देखो चमेली, मैं पहले ही कह चुका हूं. अब फिर कह रहा हूं तुम ने अपने हावभाव बदलो. मगर तुम एक कान से सुनती हो दूसरे कान से निकाल देती हो.’’

‘‘साहब, चौकाचूल्हे के काम करने में यह सब न चाहते हुए भी हो जाता है,’’ मादक मुसकान फेंकते हुए चमेली बोली.

‘‘झूठ मत बोलो, तुम यह सब जानबूझ कर करती हो.’’

‘‘नहीं साहब, ऐसा नहीं है.’’

‘‘तुम खुद को नहीं बदल सकती हो तो कल से तुम्हारी छुट्टी,’’ पवन अपना फैसला सुनाते हुए बोले.

तब चमेली बहुत चिंतित हो गई. सच तो यह है कि वह यहां काम करती है, बदले में पैसा पाती है. उस ने कभी नहीं सोचा था कि उसे यह दिन पड़ेगा.

वह तकरीबन रोते हुए बोली, ‘‘नहीं साहब, मेरे पेट पर लात मर मारो, अब कभी भी शिकायत नहीं मिलेगी.’’

‘‘ठीक है. मगर फिर शिकायत मिलेगी तब तुझे निकालने में जरा भी देर न करूंगा,’’ कह कर पवन भीतर चले गए. चमेली तिलमिलाती रह गई.

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