‘‘कुलक्षणी,अभी से जवानी फूट पड़ी… शर्म नहीं आई तुझे  बाप तो चला गया और मेरे ऊपर यह मुसीबत… किस से कहूं  क्या करूं ’’

पड़ोसिन अचला के रोनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर मैं ने उन के घर की घंटी बजाई. उन से हमारे बहुत ही अच्छे संबंध थे. दरवाजा खोलते ही मुझे देख कर वे रोते हुए बोलीं, ‘‘कहीं का नहीं छोड़ा इस ने मुझे… पिता तो चल बसे हैं… मेरा तो कुछ खयाल करती  मैं क्या इस के बारे में नहीं सोचती हूं  इसी के लिए तो जी रही हूं.’’

मैं ने पूछा, ‘‘पर हुआ क्या है ’’

‘‘अरे, पेट से है यह,’’ कह वे जोरजोर से रोने लगीं.

मैं भी सुन कर हैरान रह गई. फिर पूछा, ‘‘कैसे  कहां ’’

‘‘इसी से पूछो. मुझे तो कुछ बताती ही नहीं.’’

‘‘आप शांत रहें… मैं इसे अपने घर ले जाती हूं. वहां इस से सब कुछ प्यार से पूछती हूं,’’ कह मैं उसे अपने घर ले गई. निशा डरीसहमी चुपचाप मेरे साथ चल दी. घर आ कर मैं ने उसे अपने साथ खाना खिलाया. जिस तरह से वह बड़ेबड़े निवाले खा रही थी उस से मालूम होता था सुबह से कुछ नहीं खाया है बेचारी ने. जब वह खाना खा चुकी तो मैं ने प्यार से पूछा, ‘‘सचसच बताओ यह किस का काम है  डरो नहीं.’’

उस के मुंह से सिर्फ एक ही शब्द निकला, ‘‘मामा.’’

‘‘क्या यह सच है ’’

वह बोली, ‘‘हां, मामा घर आते रहते थे. कभी चौकलेट लाते, कभी नई ड्रैस, तो कभी घुमाने ले जाते. मैं सोचती थी यह सब उन का लाडप्यार है… फिर एक दिन मां घर में नहीं थीं… और बस… मैं ने उन्हें मना भी किया, पर नहीं माने उलटे बाद में बोले कि मां को मत बताना… वे मर जाएंगी… मैं तुम से माफी मांगता हूं… फिर कभी ऐसा न होगा. यह सुन कर मैं बहुत डर गई और फिर मां को कुछ नहीं बताया,’’ और फिर वह जोरजोर से रोने लगी.

मात्र 13 वर्ष की थी बेचारी. अभी तो जवानी की दहलीज पर कदम ही रखा था. कैसे समझती वह सब, जब 42 वर्षीय मामा न समझा फिर मैं उसे समझाते हुए बोली, ‘‘धैर्य रखो, सब ठीक हो जाएगा… मैं तुम्हारी मां से बात करती हूं… तुम यहीं रहो.’’ फिर जब मैं ने उस के घर जा कर उस की मां अचला को सच बताया तो उन के तो जैसे पैरों तले से जमीन खिसक गई. बोलीं, ‘‘क्या  काश, मेरी अभी मौत हो जाए,’’ और फिर दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

मैं उन्हें धैर्य बंधाते हुए बोली, ‘‘चलिए, निशा से बात कीजिए.’’ थोड़ी ही देर बाद निशा अपनी मां की छाती से लग रोते हुए बोली, ‘‘मां, तुम ने बोला तुम देर शाम बाहर मत जाओ, मैं नहीं गई. स्कूल से सीधे घर आओ, मैं आई. दुपट्टा ठीक से लो, मैं ने लिया. महल्ले के लड़कों से मत बोलो, मैं नहीं बोली. पर तुम ने यह कभी नहीं कहा कि मामा, चाचा, फूफा, मौसा आदि से भी दूर रहो. मैं कैसे समझती कि जिन की गोद में खेल कर बड़ी हुई वे ही ऐसा करेंगे  अगर तुम बता देतीं तो यह न होता मां.’’

अचला अपने माथे पर जोर से हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटी… तुम्हारी कोई गलती नहीं… सब ठीक हो जाएगा… हम कोई उपाय सोचते हैं… तुम डरो नहीं, तुम्हारी मां तुम्हारे साथ है,’’ कह अचला ने मेरी तरफ ऐसे देखा गोया पूछ रही हों कि तुम्हीं बताओ क्या करें. तब मैं ने उन का हाथ थाम कर कहा, ‘‘घबराएं नहीं, यह मेरी भी बच्ची है. मेरी जानपहचान की डाक्टर हैं. सब ठीक हो जाएगा…’’

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