मैं अटैची लिए औटो में बैठ गई. करीब 1 महीने बाद अपने पति अमित के पास लौट रही थी. मुझे विदा करते मम्मीडैडी की आंखों में खुशी के आंसू थे. मैं ने रास्ते में औटो रुकवा कर एक गुलदस्ता और कार्ड खरीदा. कार्ड पर मैं ने अपनी लिखावट बदल कर लिखा, ‘हैपी बर्थडे, सीमा’ और फिर औटो में बैठ घर चल. सीमा मेरा ही नाम है यानी गुलदस्ता मैं ने खुद के पैसे खर्च कर अपने लिए ही खरीदा था. दरअसल, पटरी से उतरी अपने विवाहित जीवन की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए इनसान को कभीकभी ऐसी चालाकी भी करनी पड़ती है. पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई थी. मम्मीपापा का सोचना था कि उसे ससुराल जाते देख कर मैं ने अपने घर अमित के पास लौटने का फैसला किया. उन का यह सोचना पूरी तरह गलत है. सचाई यह है कि मैं अमित के पास परसों रात एक तेज झटका के बाद लौट रही हूं.

मुझे सामने खड़ी देख कर अमित हक्केबक्के रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं बिना कोई सूचना दिए यों अचानक घर लौट आऊंगी.

मैं मुसकराते हुए उन के गले लग कर बोली, ‘‘इतना प्यार गुलदस्ता भिजवाने के लिए थैंक यू, माई लव.’’

उन के गले लग कर मेरे तनमन में गुदगुदी की तेज लहर दौड़ गई थी. मन एकदम से खिल उठा था. सचमुच, उस पल की सुखद अनुभूति ने मुझे विश्वास दिला दिया कि वापस लौट आने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

‘‘तुम्हें यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ उन की आवाज में नाराजगी के भाव मौजूद थे.

‘‘अब शरमा क्यों रहे हो? लो, आप से पहले मैं स्वीकार कर लेती हूं कि आज सुबह उठने के बाद से मैं आप को बहुत मिस कर रही थी. वैसे एक सवाल का जवाब दो. अगर मैं यहां न आती तो क्या आप आज के दिन भी मुझ से मिलने नहीं आते? क्या सिर्फ गुलदस्ता भेज कर चुप बैठ जाते?’’

‘‘यार, यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ वे एकदम से चिड़ उठे, ‘‘और रही बात तुम से मिलने आने की तो तुम मुझे नाराज कर के मायके भागी थीं. फिर मैं क्यों तुम से मिलने आता?’’

‘‘चलो, मान लिया कि आप ने यह गुलदस्ता नहीं भेजा है, पर क्या आप को खुशी भी नहीं हुई है मुझे घर आया देख कर? झूठ ही सही, पर कम से कम एक बार तो कह दो कि सीमा, वैलकम बैक.’’

‘‘वैलकम बैक,’’ उन्हें अब अपनी हंसी रोकने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘आई लव यू, माई डार्लिंग. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘अगर आप ने नहीं भेजा है, तो फिर यह गुलदस्ता मुझे किस ने गिफ्ट किया है?’’

‘‘यह तो तुम ही बता सकती हो. मुझ से दूर रह कर किस के साथ चक्कर चला रही हो?’’

‘‘मैं आप की तरह अवैध रिश्ता बनाने में विश्वास नहीं रखती हूं. बस, जिंदगी में जिस एक बार दिल दे दिया, सो दे दिया.’’

‘‘अवैध प्रेम करने का शौक मुझे भी नहीं है, पर यह बात तुम्हारे शक्की मन में कभी नहीं घुसेगी,’’ वे एकदम नाराज हो उठे.

‘‘देखोजी, मैं तो इस मुद्दे को ले कर कभी झगड़ा न करने का फैसला कर के लौटी हूं. इसलिए मुझे उकसाने की आप की सारी कोशिशें अब बेकार जाने वाली हैं,’’ उन का गुस्सा कम करने के लिहाज से मैं प्यार भरे अंदाज में मुसकरा उठी.

‘‘तुम तो 1 महीने में ही बहुत समझदार हो गई हो.’’

‘‘यह आप सही कह रहे हो.’’

‘‘मैं क्या सही कह रहा हूं?’’

‘‘यही कि एक महीना आप से दूर रह कर मेरी अक्ल ठिकाने आ गई है.’’

‘‘तुम तो सचमुच बदल गई हो वरना तुम ने कब अपने को कभी गलत माना है,’’ वे सचमुच बहुत हैरान नजर आ रहे थे.

‘‘अब क्या सारा दिन हम ऐसी ही बेकार बातें करते रहेंगे? यह मत भूलिए कि आज आप की जीवनसंगिनी का जन्मदिन है,’’ मैं ने रूठने का अच्छा अभिनय किया.

‘‘तुम कौन सा मुझे बता कर लौटी हो, जो मैं तुम्हारे लिए एक भव्य पार्टी का आयोजन कर के रखता,’’ वे मुझ पर कटाक्ष करने का मौका नहीं चूके.

‘‘पतिदेव, जरा व्यंग्य और दिल दुखाने वाली बातों पर अपनी पकड़ कमजोर करो, प्लीज. आज रविवार की छुट्टी है और मेरा जन्मदिन भी है. आप का क्या बिगड़ जाएगा अगर मुझे आज कुछ मौजमस्ती करा दोगे? साहब, प्यार से कहीं घुमाफिरा लाओ… कोई बढि़या सा गिफ्ट दे दो,’’ मैं भावुक हो उठी थी. कुछ पलों की खामोशी के बाद वे बोले, ‘‘वह सब बाद में होगा. पहले सोच कर यह बताओ कि यह गुलदस्ता तुम्हें किस ने भेजा होगा.’’ मैं ने भी फौरन सोचने की मुद्रा बनाई और फिर कुछ पलों के बाद बोली, ‘‘भेजना आप को चाहिए था, पर आप ने नहीं भेजा है…तो यह काम विकास का हो सकता है.’’

‘‘कौन है यह विकास?’’ वे हैरान से नजर आ रहे थे, क्योंकि उन्हें अंदाजा नहीं था कि मैं किसी व्यक्ति का नाम यों एकदम से ले दूंगी. ‘‘पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई है. यह विकास उस के बड़े भाई का दोस्त है.’’

‘‘आगे बोलो.’’

‘‘आगे क्या बोलूं? पति से दूर रह रही स्त्री को हर दिलफेंक किस्म का आदमी अपना आसान शिकार मानता है. वह भी मुझ पर लाइन मार रहा था, पर मैं आप की तरह…सौरी… मैं कमजोर चरित्र वाली लड़की नहीं हूं. उस ने ही कोशिश नहीं छोड़ी होगी और मुझे अपने प्रेमजाल में फंसाने को यह गुलदस्ता भेज दिया होगा. मैं अभी इसे बाहर फेंकती हूं,’’ आवेश में आ कर मैं ने अपना चेहरा लाल कर लिया. ‘‘अरे, यों तैश में आ कर इसे बाहर मत फेंको. कोई पक्का थोड़े ही है कि उसी कमीने ने इसे भेजा होगा.’’

‘‘यह भी आप ठीक कह रहे हो. तो एक काम करते हैं,’’ मैं उन की आंखोें में प्यार से देखने लगी थी.

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘आप इस से ज्यादा प्यारा और ज्यादा बड़ा एक गुलदस्ता मुझे भेंट कर दो. उसे पा कर मैं खुश भी बहुत हो जाऊंगी और अगर इसे विकास ने ही भेजा होगा, तो इस की अहमियत भी बिलकुल खत्म हो जाएगी.’’

‘‘तुम तो यार सचमुच समझदार बन कर लौटी हो,’’ उन्होंने इस बार ईमानदार लहजे में मेरी तारीफ की.

‘‘सच?’’

‘‘हां, अभी तक तो तुम्हारे अंदर आया बदलाव सच ही लग रहा है.’’

‘‘तो इसी बात पर बाहर लंच करा दो,’’ मैं ने आगे बढ़ कर उन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नो प्रौब्लम, स्वीटहार्ट. मैं नहा लेता हूं. फिर घूमने चलते हैं.’’ फिर जब कुछ देर बाद मैं उन के मांगने पर तौलिया पकड़ाने गई, तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गुसलखाने के अंदर खींच लिया. मेरा मन तो चाह ही रहा था कि ऐसा कुछ हो जाए. 1 महीने की दूरी की कड़वाहट को मिटाने का काम सिर्फ बातों से नहीं हो सकता था. अत: उन की बांहों में कैद हो कर मेरा उन के साथ मस्त अंदाज में नहाना हम दोनों की मनमुटाव की कड़वाहट को एक झटके में साफ कर गया था. वे मुझे गोद में उठा कर शयनकक्ष में ले आए… प्यार के क्षण लंबे होते गए, क्योंकि महीने भर की प्यास जो हम दोनों को बुझानी थी. बाद में मैं ने उन से लिपट कर तृप्ति भरी गहरी नींद का आनंद लिया.

जब 2 घंटे बाद मेरी आंखें खुलीं तो मैं खुद को बहुत हलकाफुलका महसूस कर रही थी. मन में पिछले 1 महीने से बसी सारी शिकायतें दूर हो गई थीं. मुझे परसों रात को विकास के साथ घटी वह घटना याद आने लगी जिस के कारण मैं खुद ही अमित के पास लौट आई थी. परसों रात मैं तो विकास के सामने एकदम से कमजोर पड़ गई थी. कविता की शादी में हम दोनों खूब काम कर रहे थे. हमारे बीच होने वाली हर मुलाकात में उस ने मेरी सुंदरता व गुणों की तारीफ करकर के मुझे बहुत खुश कर दिया था. लेकिन मुझे यह एहसास नहीं हुआ था कि अमित से दूर रहने के कारण मेरा परेशान व प्यार को प्यासा मन उस के मीठे शब्दों को सुन कर भटकने को तैयार हो ही गया था. मैं उस रात कविता के घर की छत पर बने कमरे से कुछ लाने गई थी. तब विकास मेरे पीछेपीछे दबे पांव वहां आ गया. दरवाजा बंद होने की आवाज सुन कर मैं मुड़ी तो वह सामने खड़ा नजर आया. उस की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़ कर मैं बुरी तरह घबरा गई. मेरा सारा शरीर थरथर कांपने लगा.

‘‘विकास, तुम मेरे पास मत आना. देखो, मैं शादीशुदा औरत हूं…मेरे हंसनेबोलने का तुम गलत अर्थ लगा रहे हो…मैं वैसी औरत नहीं हूं…’’ उस ने मेरे कहने की रत्ती भर परवाह न कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘प्लीज, मुझे जाने दो…छोड़ो मुझे,’’ मैं उस से ऐसी प्रार्थना जरूर कर रही थी पर इस में भी कोई शक नहीं कि मुझे उस की नाजायज हरकत पर तेज गुस्सा नहीं आया था. उस कमरे के साथ बालकनी न जुड़ी होती तो न जाने उस रात क्या हो जाता. उस बालकनी में 2 किशोर लड़के गपशप कर रहे थे. अगर ऐन वक्त पर उन दोनों की हंसने की आवाजें हमारे कानों तक न आतीं, तो विकास थोड़ी सी जोरजबरदस्ती कर मेरे साथ अपने मन की करने में सफल हो जाता. उस की पकड़ ढीली पड़ते ही मैं कमरे से जान बचा कर भाग निकली थी. मैं सीधी अपने घर पहुंची और बिस्तर पर गिर कर खूब देर तक रोई थी. बाद में कुछ बातें मुझे बड़ी आसानी से समझ में आ गई थीं. मुझे बड़ी गहराई से यह एहसास हुआ कि अमित के साथ और उस से मिलने वाले प्यार की मेरे तनमन को बहुत जरूरत है. वे जरूरतें अगर अमित से नहीं पूरी होंगी तो मेरा प्यासा मन भटक सकता है और किसी स्त्री के यों भटकते मन को सहारा देने वाले आशिकों की आजकल कोई कमी नहीं.

तब मैं ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने में जरा भी देर नहीं लगाई थी. किसी विकास जैसे इनसान को प्रेमी बना कर अपनी इज्जत को दांव पर लगाने से बेहतर मुझे अमित के पास लौटने का विकल्प लगा. मैं मायके में रहने इसलिए आई थी, क्योंकि मुझे शक था कि औफिस में उस के साथ काम करने वाली रितु के साथ अमित के गलत संबंध हैं. वे हमेशा ऐसा कुछ होने से इनकार करते थे पर जब उन्होंने उस के यहां मेरे बारबार मना करने पर भी जाना चालू रखा, तो मेरा शक यकीन में बदलता चला गया था.उस रात मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यों मायके भाग कर अमित से दूर हो जाना तो इस समस्या का कोई हल था ही नहीं. यह काम तो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा था. यों दूर रह कर तो मैं अकेले रह रहे अमित को रितु से मिलने के ज्यादा मौके उपलब्ध करा रही थी. तभी मैं ने अमित के पास लौट आने का फैसला कर लिया था और आज सुबह औटो कर के लौट भी आई थी.

कुछ देर तक सो रहे अमित के चेहरे को प्यार से निहारने के बाद मैं ने उन के कान में प्यार से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है, जनाब.’’

‘‘तो प्यार करना फिर से शुरू कर देता हूं, जानेमन,’’ नींद से निकलते ही उन के दिलोदिमाग पर मौजमस्ती हावी हो गई.

‘‘अभी तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं.’’

‘‘तो बोलो खाना खाने कहां चलें?’’

‘‘मेरा चाइनीज खाने का मन है.’’

‘‘तो चाइनीज खाने ही चलेंगे.’’

‘‘पहले से तो किसी के साथ कहीं जाने का कोई प्रोग्राम नहीं बना रखा है न?’’

‘‘तुम रितु के साथ मेरा कोई प्रोग्राम होने की तरफ इशारा कर रही हो न?’’ वे एकदम गंभीर नजर आने लगे.

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ मैं ने झूठ बोला.

‘‘झूठी,’’ उन्होंने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित करने के बाद संजीदा लहजे में कहा, ‘‘मैं तुम्हें आज फिर से बता देता हूं कि रितु के साथ मेरा कोई गलत चक्कर…’’

‘‘मुझे आप पर पूरा विश्वास है,’’ मैं ने उन्हें टोका और हंस कर बोली, ‘‘मैं तो आप को बस यों ही छेड़ रही थी.’’

‘‘तो अब इस जरा सा छेड़ने का परिणाम भी भुगतो,’’ उन्होंने मुझे अपने आगोश में भरने की कोशिश की जरूर, पर मैं ने बहुत फुरती दिखाते हुए खुद को बचाया और कूद कर पलंग से नीचे उतर आई.

‘‘भूखे पेट न भजन होता है, न प्यार, मेरे सरकार. अब फटाफट तैयार हो जाओ न.’’

‘‘ओके, पहले तुम्हारी पेट पूजा कर ही दी जाए नहीं तो प्यार का कार्यक्रम रुकावट के साथ ही चलेगा,’’ मेरी तरफ हवाई चुंबन उछाल कर वे तैयार होने को उठ गए. रितु को ले कर अमित के अडि़यल व्यवहार ने मुझे विकास की तरफ लगभग धकेल ही दिया था. अगर हमारा मनमुटाव मुझे गलत रास्ते पर धकेल सकता है, तो मैं अपने प्यार, सेवा और विश्वास के बल पर उन को अपनी तरफ खींच भी सकती हूं. उन की आंखों में अपने लिए गहरी चाहत और प्यार के भावों को पढ़ कर मुझे लग रहा कि बिना शर्त लौटने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

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