दुनिया में अकेली औरतों की संख्या बढती ही जा रही है. घरेलू हिंसा की बढती घटनाओं और आत्मनिर्भर बनने की चाह में आंकडे बताते है कि करीब 7 करोड महिलायें अकेली रहती हैं. बीते 10 सालों में यह आंकडे 39 फीसदी तक बढ गये है. 2001 में यह संख्या 5 करोड के आसपास थी. 1990 में लडकियो की शादी की औसत उम्र 19 साल थी जो 2011 में बढ कर 21 साल हो गई है. अकेली रहने वाली ज्यादातर लडकियां 25 से 29 आयु वर्ग की है. देश के भीतर के आंकडों को देखे तो उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक महिलाये अकेली रह रही है. इनकी संख्या करीब 1 करोड 20 लाख है. 62 लाख महिलायें महाराष्ट्र में और 47 लाख आंध्र प्रदेश में है. अकेली महिलाओं की बढती संख्या से अब इनको सामाजिक सुरक्षा और मान्यता भी मिलने लगी है. इनके मान सम्मान और अधिकार के लिये लोग जागरूक हो रहे है.

24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में उत्तर प्रदेश महिला सम्मान प्रकोष्ठ के कार्यालय से एक मार्चपास्ट निकाला गया. जिसकी अगुवाई महिला सम्मान प्रकोष्ठ की प्रमुख एडीजी पुलिस सुतापा सन्याल ने किया. अंश वेलफेयर फांउडेशन द्वारा आयोजित रैली में महिलायें ‘सिंगल है कमजोर नहीं’ का नारा लगाते चल रही थी. मार्चपास्ट में महिला आयोग की सदस्य श्वेता सिंह, महिला सम्मान प्रकोष्ठ की साध्ना सिंह और सत्या सिंह, अंश वेलपफेयर की श्रद्वा सक्सेना, ममता सिंह, रीता सिंह और अनूप घोष इनरव्हील क्लब गोमती की अपर्णा मिश्रा सहित बहुत सारी महिलाओं ने हिस्सा लिया. इस मौके पर अकेली महिलाओं के लिये काम करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया गया.

मार्चपास्ट के उद्देश्य पर बात करते अंश वेलपफेयर फांउडेशन की श्रद्वा सक्सेना ने कहा ‘समाज में अकेली औरतों की संख्या बढती जा रही है. कई बार इस तरह की महिलाओं को कमजोर मानकर उनका हक मारा जाता है. हम चाहते है कि यह महिलायें खुद में कमजोर न रहे.यह खुद में आत्मनिर्भर बनी रहेगी तो समाज भी इनका साथ देगा. हम समाज के लडने की नहीं उसके साथ अच्छे से रहने और एक दूसरे की भावनाओं को समझने पर जोर दे रहे है.जिससे अकेली रहने वाली महिला को कमजोर न समझा जाये.कई बार कमजोर समझ कर समाज ऐसी महिलाओं की उपेक्षा करता है.समाज की उपेक्षा से अकेली रहने वाली महिलायें कमजोर न हो ऐसा हमारा प्रयास होगा.समाज को भी इस तरह अकेली महिलाओं की मदद करनी चाहिये.’

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