गंगासागर मेला औपचारिक रूप से समाप्त हो गया है. लेकिन अभी भी मेला स्थल पर मकर संक्रांति का सुरूर बाकी है. पुण्यार्थी और पर्यटकों के अलावा साधुओं का जमघट अभी भी लगा हुआ है. इस बीच खत्म हुआ मेला अपने पीछे गंदगी का बड़ा अंबार छोड़ गया है. हफ्ते भर चले इस मेले के कारण यहां जमी गंदगी बंगाल की खाड़ी और हुगली नदी के संगम के साथ इसके आसपास के पूरे इलाके के पर्यावरण के लिए खतरा बन गयी है. दूर-दूर तक मल और अन्य कचरे की बदबू से टिकना मुहाल हो गया है. यह हालत तब है जब इस साल गंगासागर मेले में अनुमान के ‍लिहाज से भीड़ कम जुटी है. अब जब गंगासागर की समाप्ति की सरकारी तौर पर घोषणा हो चुकी है, तब यहां साफ-सफाई का काम धीरे-सुस्ते ही चलेगा.

मेला प्रबंधन का जिम्मा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने कुछ कैबिनेट मंत्रियों को सौंपा था. पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी, युवा मामलों के मंत्री अरूप चौधुरी और बिजली मंत्री मनीश गुप्ता को सौंपा था. मेला समाप्ति की घोषणा के साथ ये तमाम मंत्री गंगासागर मेले से रवाना हो गए. पुलिस प्रशासन से लेकर विभाग के उच्चाधिकारी मेला स्थल को उसके अपने हाल में छोड़ कर कोलकाता लौट आए. भारत सेवाश्रम सहित सौ से अधिक स्वयंसेवी संगठन यहां प्रबंधन में जुटे थे. वे सब भी जा चुके हैं. गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक की सफाई का जिम्मा उठानेवाले गायत्री परिवार के किसी नुमाइंदे का पता नहीं. 

फिलहाल मेला स्थल का जिम्मा डायमंड हार्बर नगरपालिका का है. छिटपुट तौर पर सफाई का काम नगरपालिका और दक्षिण 24 परगना जिला प्रशसान के साथ मिल कर शुरू किया है. लेकिन इतने बड़े मेला स्थल की साफ-सफाई के लिए उसके पास कार्यबल नहीं है. हालांकि राज्य जनस्वास्थ यांत्रिकी विभाग ने मेला शुरू होने से पहले ही टेंडर बुलाकर मेला स्थल में बिजली, पान और साफ-सफाई का जिम्मा एक कंपनी को दे दिया है.  

मेला शुरू होने से पहले अनुमान के अनुरूप प्रशासन ने अपनी तैयारियों के बड़े-बड़े दावे किए थे. इस साल मेले में लगभग 25 लाख लोगों के शामिल होने का अनुमान था. लेकिन प्रशासन के अनुसार महज 14 लाख लोगों ने संगम स्नान किया. सरकारी तौर पर गंगासागर मेले को निर्मल गंगासागर मेला नाम दिया गया था. लेकिन मेला खत्म होने के बाद इन दावों की कलई पूरी तरह से खुल गयी है. सिर्फ कहने के लिए गंगासागर मेले में साफ-सफाई का पूरा इंतजाम किया गया था. प्रशासन के अनुसार मेला स्थल से लेकर सागर तट तक 30 हजार अस्थायी शौचालय बनाए गए थे. आज इन शौचालयों में गंदगी पसरी पड़ी है.

बताया जा रहा है कि पहले ही इन शौचालयों में पानी की कमी थी. मेला के दौरान तीर्थयात्री प्लास्टिक की बोतलों में सागर का पानी लेकर शौच निपटने को मजबूर थे. और अब जब मेला खत्म हो गया है तो इन्हीं शौचालयों के टूटे दरवाजे से खुले शौच का नजारा आम हो रहा है. मेले के दौरान भी लोग शौचालय में न जाकर कहीं किसी आड़ में ही शौच की जरूरत को निपटा लेते थे.

यह हाल केवल गंगासागर का नहीं है, कोलकाता के बाबूघाट स्थित प्रिंसेप घाट, इडेन और विक्टोरिया मेमोरियल के आसपास से लेकर ब्रिगेड मैदान तक के विभिन्न इलाकों में जहां-तहां शौच से कोलकातावासी आजीज आ चुके हैं. हर साल यह स्थिति गंगासागर मेला शुरू होने से पहले ही बनने लगती है. गौरतलब है कि मेला में शामिल होने के लिए देश के विभिन्न कोने से लोग कोलकाता आते हैं. और आमतौर पर ज्यादातर तीर्थयात्री कोलकाता के विभिन्न मैदानी इलाके में अपना एकाध दिन गुजर-बसर करके गंगासागर के लिए रवाना होते हैं. इस दौरान इन इलाकों में ऐसी गंदगी फैलाती ही है.

लेकिन इस बार ऐसी गंदगी से निपटने के लिए कैब (सीएबी) यानि क्रिकेट एसोशिएशन औफ बंगाल ने विशेष अभियान चलाया था. कैब के ग्राउंड्स कमिटी के चेयरमैन देवव्रत दास का कहना है कि पूरे इलाके में अपने खर्च पर कैब ने सुरक्षा कर्मियों को गश्त पर लगवाया था. इस काम के लिए कैब को 60-70 हजार रु. तक खर्च करने पड़े. इसके अलावा इन इलाकों के थाना क्षेत्र से 20-25 पुलिस कंस्टेबलों को भी गश्त में लगाया गया था. खासतौर पर रात के समय. इसके बाद इडेन के इलाके में गंदगी में कुछ कम जरूर हुई. लेकिन विक्टोरिया, ब्रिगेड इलाके को तीर्थयात्रियों की गंदगी से बचाया नहीं जा सका.

धार्मिक स्थलों में गंदगी भारत की एक बड़ी समस्या है. वैसे ही 12 महीनों में जाने जितने पर्व-त्यौहार हैं, उस लिहाज से गंदगी भी अपार फैलाती है. स्वच्छ भारत अभियान में धार्मिक स्थलों की गंदगी को भी शामिल किया जाना चाहिए था. वैसे गंगा की सफाई को लेकर बड़ा नगाड़ा पीटा गया. पर यह मोटेतौर पर बनारस तक ही केंद्रित है. बताया जाता है कि गंगासागर में केंद्र की गंगा सफाई अभियान का कुछ नजर नहीं आया. इसीसे केंद्र की मंशा जाहिर होती है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...