माधवी एक बडे़ संस्थान में कार्यरत थी. उस का काम अच्छा था. उसे बटरिंग करनी नहीं आती थी. एक दिन माधवी औफिस में काफी परेशान दिखी. कारण था उस का अप्रेजल. उसे उम्मीद थी कि उस का इंक्रीमैंट अच्छा होगा पर ऐसा नहीं हुआ. इंक्रीमैंट तो हुआ पर इतना कम कि वह किसी से यह बात शेयर नहीं कर सकती थी. माधवी को अपना दुख तो था ही, उस से भी ज्यादा उसे गम था अपनी सहेली के अप्रेजल का. सहेली की पोस्ट के साथ सैलरी भी खूब बढ़ी, जबकि वह माधवी से कम काम किया करती थी पर हां, बटरिंग करती थी. दरअसल, औफिस में काम करते हुए हमें कुलीग्स ऐसे मिलते हैं जो बेहद कामचोर होते हैं, गप व बटरिंग में डूबे रहते हैं. उन का दिमाग काम में कम, बातों में ज्यादा लगता है. ऐसे लोग अपने प्रमोशन में तो बाधा बनते ही हैं, दूसरों को भी बहुत डिस्टर्ब करते हैं. एक दूसरा उदाहरण देखते हैं. नीना रोजाना रिलैक्सेशन टाइम का फायदा उठाती यानी 10 बजे तक ही औफिस आती. जबकि औफिस टाइमिंग 9.30 बजे होता था और आधे घंटे का रिलैक्सेशन टाइम होता था. आते ही थोड़ा बाल कंघी कर, मेकअप चढ़ा कर किसी से बात करने के लिए रेडी होती या कहें कि बनठन कर कंप्यूटर औन करती और थोड़ा उस दिन के काम के बारे में विचार करती.

थोड़ी देर में ही फोन पर दूसरे विभागों से कौल आती कि अरे, आज तू कितने बजे आई है – अच्छा, मैं भी इतने बजे आई, शाम को साथ ही चलेंगे. अब दिनभर नीना के पास उस की सहेलियां बारीबारी से आती रहतीं और चर्चाएं करतीं कि यार, रात में देर से सोई, यार, मैं कल शौपिंग गई थी, वहां फलां चीजें बड़ी सस्ती हैं आदिआदि. सहेलियों के जाने के बाद थोड़ी पेटपूजा भी जरूरी थी. तो नीना अब बे्रकफास्ट के लिए बैठती यानी बे्रकफास्ट के बाद उस का कार्यालयी काम शुरू होता 11.30 और 12 बजे के बीच. वह हाफटाइम बिना काम के निकालने के लिए माहिर थी. नीना जैसी कई महिलाएं हैं जो औफिस में पिकनिक मनाने आती हैं. ऐसी महिलाएं खुद ऐसा कर के अपना नुकसान कर रही हैं. उन्हें लगता है कि उन की इस तरह की इमेज को नहीं पकड़ा जाएगा. जबकि ऐसी इमेज से उन का प्रमोशन तो रुकेगा ही, आसपास के कुलीग्स भी उन से बात करने से कतराएंगे.

धूम्रपान और चाय की लत

ज्यादातर लोगों में औफिस से बाहर बारबार चक्कर काटने की आदत भी होती है. वे चाय पीने या फिर सिगरेट पीने की तलब के चलते बाहर आतेजाते रहते हैं. ऐसे लोगों का औफिस में कम और बाहर ज्यादा समय बीतता है. इसलिए इन लोगों की औफिस में उपस्थिति 8-9 घंटे के औफिस में 5-6 घंटे की होती है. सुबह 9 से 10 के बीच ज्यादातर औफिस शुरू हो जाते हैं पर ये लोग अपने काम की शुरुआत 11.30 से 12.00 के बीच करते हैं.

डिस्टर्बेंस क्रिएट करना

कई लोगों की आदत होती है कि वे काम कर रहे अन्य लोगों को डिस्टर्ब करते हैं. गप मारने वालों या गौसिप करने वालों की सीट अगर काम करने वालों के पास होती है तो काम रुकता है. ऐसे लोग न तो खुद काम करते हैं और न ही दूसरों को करने देते हैं.

समय से काम न करना

गौसिप करने वालों का काम समय से पूरा नहीं हो पाता. वे दूसरों के काम को भी प्रभावित करते हैं. इस से उन की इमेज तो खराब होती ही है पर जिन का काम प्रभावित होता है उन की भी इमेज खराब हो सकती है.

सीट पर कम रहना

गप मारने वाले या कहें कि गौसिप करने वाले अपनी सीट पर कम ही बैठते हैं. उन्हें इधरउधर ही देखा जाता है. औफिस में सभी को पता रहता है कि वे लोग सीट पर नहीं हैं तो उन का अड्डा कहां होगा. अब इसी से समझ लीजिए कि आप की इमेज क्या बनेगी.

मोबाइल रिंगटोन तेज रखना

औफिस में मोबाइल फोन की घंटी बजती रहती है, वह भी तेज आवाज में. लाउड सौंग्स की रिंगटोन से दूसरों का काम डिस्टर्ब होता है. ऐसे लोग फोन को सीट पर छोड़ कर गप मारने चले जाते हैं, इस से न सिर्फ आसपास बैठे कुलीग्स डिस्टर्ब होते हैं बल्कि दूरदूर तक बैठे अन्य विभागों के लोग भी तेज आवाज सुन कर ऊपरनीचे, इधरउधर या एक बार उठ कर तो जरूर देखते हैं.

मोबाइल पर घंटों बातें करना

गप मारने वालों के लिए औफिस में गौसिप कैसे भी, होनी ही चाहिए. फिर चाहे वह फोन से हो या खुद बातें कर के. आप को औफिस में ज्यादातर लोग गैलरी, वाशरूम, रिसैप्शन, फोन, लिफ्ट, स्टेयर्स आदि पर चिपके मिलेंगे. ये लोग औफिस डैकोरम मेंटेन नहीं करते और जोरजोर से बातें करते हैं. ये कार्यालय समय के कुछ घंटे फोन में जरूर बरबाद करते हैं.

बाहर की हवा खाना

औफिस में कई लोगों का यहां तक भी कहना होता है कि चलो यार, थोड़ी बाहर की हवा खाने चलते हैं. कई लोग सुबह आ कर फैशन परेड में शामिल होते हैं. अगर गलती से कोई महिला या युवती शौपिंग पर गई हो तो बस अगले दिन का टौपिक यही रहता है. इतना ही नहीं, यह सुन कर भी कई महिलाएं औफिस के समय में ही घूमने निकल जाती हैं. पुरुषों को अगर देखें तो वे पान, गुटखा, तंबाकू, सिगरेट, पानी आदि पीने के बहाने बाहर की हवा या एक चक्कर काट कर जरूर आते हैं.

कैसे बचें

काम की बात करें : अगर आप को गौसिप करने से बचना है और अपनी इमेज सही बनानी है तो आप ऐसा करने वालों से बचें. आप सिर्फ उन से काम की बात ही करें. कभी भी अपनी पर्सनल लाइफ पर चर्चा न करें वरना आप की पर्सनल लाइफ का ढिंढोरा पिट जाएगा. आप तो अपना समझ कर एक को बताएंगे पर वह आप की बात पूरे औफिस में अपनी बुरी आदतों के चलते बता देगा. गौसिप करने वाले आप को कई बातें बता कर आप की प्रतिक्रियाएं जानना चाहेंगे. इतना ही नहीं, वे आप को बारबार प्रोवोक भी करेंगे. आप इस चर्चा में पड़ें नहीं बल्कि उन की बातों को घुमा कर अलग टौपिक छेड़ दें या फिर अपने को व्यस्त बता कर चले जाएं या उन्हें जाने के लिए कहें.

सोचसमझ कर बोलें

गौसिप करने वालों से हमेशा सोचसमझ कर ही बोलें. वे अगर किसी की बुराई या गलत बात कर रहे हैं तो आप उस पर अपनी राय कतई न दें, और अगर बोलें तो शब्दों को तोल कर ही, क्योंकि कहीं आप की कही बात को उस सदस्य से बोल दिया गया तो ऐसी स्थिति में वे तो बच कर निकल जाएंगे पर आप फंस जाएंगे. गलत बात के खिलाफ हमेशा आवाज उठाएं. अगर कोई गलती कर रहा हो तो उसे समझाएं. यह कतई न सोचें कि इस के चक्कर में पड़ कर मेरी नौकरी पर गाज गिरेगी. आप हमेशा जो सच हो उसे सामने रखें.

ग्रुपिंग का हिस्सा न बनें

हमेशा ग्रुप में रहने से बचें. हालांकि ग्रुप में रह कर आप अपनी तमाम बातें व काम को डिसकस कर सकते हैं लेकिन सभी के स्वभाव में अंतर होने की वजह से कब कोई आप की काट कर दे, यह आप को भी पता नहीं चलेगा. फिर बाद में आप यह सोचते रहेंगे कि काश, मैं अकेला या अकेली होती.

एकजैसा व्यवहार रखें

औफिस में सभी को एकसमान ही आंकें. वरिष्ठता झाड़ेंगे तो आप हंसी के पात्र ही होंगे क्योंकि हर औफिस में नए लोग आते हैं. ऐसे में उन से यह कहना कि हम तो यहां 15-20 सालों से हैं, गलत होगा क्योंकि जूनियर भी आप के काम पर सवाल कर सकते हैं और फिर, यह भी मत भूलिए, आप भी कभी जूनियर थे.

गौसिपिंग के अड्डे

गैलरी एरिया : औफिस में अकसर मीना फोन ले कर गैलरी में बात किया करती. वह जोरजोर से ठहाके और कभीकभी फोन में खुसुरफुसुर किया करती. अगर वह सीट पर नहीं होती और कोई उस को पूछता तो आसपास बैठे कुलीग्स कहते कि गैलरी में होगी.

साइड कौर्नर्स गैलरी : औफिस की गैलरी में ज्यादातर लोग बातें करते मिलेंगे या फिर कोई अपने फोन से चिपका मिलेगा. यहां कुछ लोग समझते हैं कि हम नजरों में नहीं आएंगे पर सच तो यह है कि ऐसे लोग ज्यादा नजरों में आते हैं.

स्टेयर्स एरिया : सीढि़यों पर बातचीत करने की भी बहुतों की आदत होती है. ऐसे लोग बातचीत करने के लिए सारे कोने इस्तेमाल कर चुके होते हैं.

रूफ एरिया : अगर औफिस बिल्ंिडग की छत हो तो क्या कहने. वहां तो लंचटाइम और टीटाइम के वक्त लोगों की बहुत जमती है. यहां भी एक अड्डा फिक्स रहता है.

पार्किंग एरिया : औफिस की पार्किंग हो या फिर औफिस की बाहरी जगह, वहां भी लोग आप को गपशप करते मिलेंगे. यह गपशप रोजाना ही होती है.

वाशरूम एरिया : अकसर औफिस में भी कई लोग वाशरूम में बातें करने से भी नहीं चूकते. सब से ज्यादा बातें यहीं की जाती हैं क्योंकि इस जगह कई लोग टकरा जाते हैं. लोगों को यहां वक्त का भी पता नहीं चलता.

जलन महसूस करना ठीक नहीं

फोर्टिस हौस्पिटल के मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारेख बताते हैं कि ज्यादातर लोग आगे बढ़ने के चक्कर में दूसरों को ठोकर मार कर चलते हैं, जोकि गलत है. हार या जीत तो सब की लाइफ का हिस्सा है पर सक्सैस पाने वाले से जलन महसूस करना भी ठीक नहीं है. ऐसे लोग हार कर अपनेआप को खुद ही दुख पहुंचाते हैं. इस से बचने के लिए आप एक लक्ष्य निर्धारित करें और इस से भटकें नहीं. 

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