आरुषि तलवार का नाम इतना चर्चित हो चुका है कि शायद ही कोई पूछने की जरूरत करेगा कि ‘यह आरुषि कौन है?’ आरुषि को सभी जान चुके हैं, पहचान चुके हैं. 13 वर्ष की छोटी उम्र में बेचारी मासूम आरुषि इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी है. उसे मौत के घाट उतारने वाले हैं उस के स्वयं के मातापिता. – डा. नूपुर तलवार और डा. राजेश तलवार.
आरुषि के मातापिता अनपढ़गंवार नहीं हैं. वे उच्चशिक्षित हैं, डैंटिस्ट हैं. आरुषि उन की इकलौती लाड़ली बेटी थी. ‘लाड़ली’ ही थी, इस के कई प्रमाण उन के पास से कानून हासिल कर चुका है. विदेशों के सैरसपाटे के फोटोग्राफ्स और जन्मदिन की बढि़या पार्टियों के फोटोग्राफ्स मौजूद हैं. तो फिर उन्होंने अपनी इकलौती लाड़ली बेटी को क्यों मार डाला? इस संदेह के लिए कोई जगह नहीं है कि आरुषि को किसी तीसरे व्यक्ति ने मार डाला. सारे सुबूत जुटाए जा चुके हैं कि उस की हत्या उस के मम्मीपापा ने की है और कानून ने उन्हें उम्रकैद की सजा भी सुना दी है. इस समय डा. नूपुर तलवार और डा. राजेश तलवार सलाखों के पीछे हैं. शायद, मन ही मन अपनी करनी पर पछता भी रहे हैं. फिलहाल गाजियाबाद जेल में तलवार दंपती बाकायदा डैंटल क्लीनिक चला कर कैदियों की सेवा कर रहे हैं.
क्यों होता है ऐसा?
गौरतलब है कि 16 मई, 2008 को तलवार दंपती की बेटी आरुषि का मृत शरीर उन के घर में मिला था. एक दिन बाद नौकर हेमराज की लाश घर की छत पर मिली. सीबीआई कोर्ट ने नवंबर 2013 में उन्हें आरुषि व हेमराज हत्याकांड का दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी. पहली नजर में तो यह बात गले उतारनी मुश्किल है कि कोई भी मातापिता अपनी ही संतान को उस की गलतियों की सजा, उसे मौत के घाट उतार कर दें लेकिन ऐसा हो रहा है. तलवार दंपती की करनी का दिल दहला देने वाला उदाहरण समाज के सामने है. ऐसे जघन्य अपराध में लिप्त कई मातापिता आज के दौर में समाज के सामने आ रहे हैं. जवान बेटियों के मामले में तो अभिभावक कुछ ज्यादा ही कू्ररताभरा व्यवहार समाज के सामने रख रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसी कौन सी मजबूरी है जो अभिभावकों को इतना नीच कार्य करने के लिए बाध्य कर रही है? किस वजह से ऐसा हो रहा है?
आज के सामाजिक जीवन का अवलोकन करने पर ऐसी घटनाओं के घटित होने के पीछे बहुत से कारण नजर आते हैं. सब से पहला कारण तो यही है कि हम भले ही पाश्चात्य संस्कृति की कितनी भी नकल करें, हमारी मानसिकता वही सदियों पुरानी है. मातापिता बेटियों को पाश्चात्य परिधान अपनाने की छूट तो दे देते हैं लेकिन उन्हें लाजशर्म के आवरण में ढकी हुई भी देखना चाहते हैं. उन्हें पुरुष मित्रों के साथ या पराए पुरुषों के साथ बतियाने या घूमनेफिरने की तो खुली छूट दे देते हैं लेकिन उन के साथ उन का एकांत में रहना उन्हें अखरता है. बेटियां सुरक्षा को ले कर या अन्य किसी मदद के लिए परपुरुष का हाथ थाम लेती हैं तो ये उन्हें मंजूर है लेकिन परपुरुष उन की बेटी पर नजर डाले, यह उन्हें मंजूर नहीं है.
परपुरुष नौकर के तौर पर उन की बेटियों की सेवा कर सकता है लेकिन अगर उस ने अपने नौकर होने की हद पार कर ली तो वह सजा का पात्र हो जाता है. बेटी को गलत काम करते हुए जब वे रंगेहाथ पकड़ लेते हैं तब उन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है. और तब वे ऐेसे अपराध भी कर बैठते हैं जैसे कि आरुषि के मातापिता ने किया. जबकि विदेशों में बेटियों को पहले ही अच्छेबुरे कामों के बारे में अभिभावक समझाते हैं और बाद में उन्हें स्वतंत्र रूप से समाज में विचरण करने के लिए छोड़ देते हैं. ऐसे में अगर वे गलत काम करती भी हैं तो यह उन की बेटियों की अपनी जिम्मेदारी होती है. और गलत कामों का परिणाम भी बेटियां भुगतती हैं तो अभिभावक उस में हस्तक्षेप नहीं करते. हमारे समाज में नौकर को भी सजा, उसे सिर्फ नौकरी से हटाने भर की ही नहीं दी जाती, और भी बहुतकुछ उस के साथ किया जाता है. पुलिस के हाथ पकड़वा देना तो आम बात है, उसे कई बार जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है.
बेटियों पर कुठाराघात
30 साल की गृहिणी रजनी बताती हैं, ‘‘मैं 16 साल की थी और 10वीं कक्षा में अंगरेजी मीडियम के एक कोएड स्कूल में पढ़ती थी. तब मेरे साथ एक हादसा हुआ. उस के जिम्मेदार मेरे मम्मीपापा हैं. मेरे पापा सरकारी दफ्तर में इंजीनियर थे और मम्मी एक प्राइवेट फर्म में कार्यरत थीं. मम्मीपापा की आमदनी अच्छी थी. शहर की पौश कालोनी में हमारा अपना बड़ा मकान था. मैं बड़ी बेटी थी और मुझ से 5 साल छोटा भाई था. मम्मीपापा, दादी और हम 2 भाईबहन. मैं जब 15 साल की थी तब मेरी दादी गुजर गईं और मैं तब से अकेलापन महसूस करने लगी. अब मेरे छोटे भाई को भी पढ़ने के लिए देहरादून होस्टल में भेजा गया. ‘‘घर में खाना बनाने के लिए 20-22 साल का जवान रसोइया था और घर के बाकी काम करने के लिए एक 18-19 साल की लड़की आती थी. वह 1 साल मैं ने बड़ी मुश्किल से गुजारा. मम्मीपापा अपनी नौकरी में व्यस्त रहते थे. मेरी तरफ ध्यान देने का उन के पास समय नहीं था. मम्मी के पास बैठ कर मैं अपने मन की कई बातें उन से कहना चाहती थी, अपनी कई समस्याओं के लिए सलाहमशवरा करना चाहती थी पर मैं मन मसोस कर रह गई. ऐसे में मैं अपने घर में रसोइए और काम करने वाली लड़की को छिप कर कई बार ‘गुंटरगूं’ करते देखती थी और इस दिशा में मेरी रुचि बढ़ती जा रही थी.
‘‘एक दिन रसोइए ने मेरा हाथ पकड़ कर जब मुझे अपनी ओर खींचा तो पहले मैं घबराई लेकिन फिर बड़ा मजा आया. फिर तो ऐसा रोज ही होने लगा. मम्मीपापा का डर तो था नहीं, मैं मजे कर रही थी. वह रोज रात मेरे कमरे में आता था और आधा घंटा हम दोनों मौजमस्ती करते थे. मम्मीपापा अपने कमरे में होते थे. उन्हें पता तक नहीं चलता था. ‘‘उस रात रसोइया मेरे कमरे में आया और जैसे ही उस ने दरवाजा बंद किया, कि थोड़ी ही देर में बाहर से दरवाजा पीटा जाने लगा और मम्मीपापा के चीखनेचिल्लाने की आवाजें भी आने लगीं. पता नहीं आज उन्होंने कैसे रसोइए को मेरे कमरे में आते देख लिया था. मैं ने हड़बड़ी में गाउन पहन कर दरवाजा खोला. रसोइया मेरे पीछे था. मम्मीपापा जैसे ही अंदर आए, रसोइया बाहर भाग गया. गुस्से से भरी हुई मम्मी ने मुझे बालों से पकड़ कर मुंह पर तमाचे जड़ने शुरू कर दिए और पापा ने अपनी बैल्ट उतार कर मुझे पीटना शुरू कर दिया. मैं दर्द से चिल्ला रही थी. जब मेरे बदन से खून टपकना शुरू हुआ तब जा कर कहीं वे रुके. रसोइया तो घर छोड़ कर भाग गया था, बाद में उस का कहीं अतापता नहीं चला.
‘‘इस घटना के बाद मेरा पढ़ाई से मन हटता गया. जैसेतैसे मैं ने 12वीं पास कर ली. उस के बाद साधारण से लड़के के साथ मेरी शादी कर दी गई. आज भी मैं अपने मम्मीपापा से बहुत नफरत करती हूं.’’ रजनी के उपरोक्त उदाहरण में क्या दोषी सिर्फ रजनी है, उस के मातापिता नहीं हैं? उस के मातापिता ने पहले ध्यान क्यों नहीं दिया कि बेटी किस दिशा में और क्यों आगे बढ़ रही है. मां को तो ध्यान देना चाहिए था कि बेटी चाहती क्या है. स्मिता ने भी कुछ ऐसा ही बताया. स्मिता घर से तो कालेज जाने के लिए निकलती थी पर पहले सहेलियों के साथ और बाद में आवारागर्द लड़कों के साथ उस का घूमनाफिरना शुरू हो गया. सिगरेट और ड्रग्स की लत भी लग गई. जब मम्मीपापा को पता चला तब तक पानी सिर से ऊपर जा चुका था. पापा को अपने बिजनैस से फुरसत मिलती नहीं थी और मम्मी को किट्टी पार्टियों व रिश्तेदारों के यहां आनेजाने से फुरसत नहीं मिलती थी. स्मिता को उस के दोस्त के साथ किसी होटल के कमरे से बरामद किया गया. उस के साथी लड़के को पुलिस के हवाले कर दिया गया. लेकिन पुलिस ने स्मिता को भी गिरफ्तार किया. बाद में मोटी रकम खर्च कर के उस के मम्मीपापा ने केस को रफादफा करा दिया. स्मिता को नशे की आदत छुड़वाने के लिए नशामुक्ति केंद्र में 1 साल तक रखा गया. 40 साल की स्मिता अब तक कुंआरी है. स्मिता कहती है कि उस की जिंदगी उस के मम्मीपापा की वजह से बरबाद हुई है. अगर मम्मी मेरी मित्र बन कर मेरा साथ देतीं, मेरी समस्याओं पर गौर करतीं तो मुझे गलत लोगों का साथ क्यों ढूंढ़ना पड़ता?
परवरिश में कमी
अपने में ही मस्त रहने वाले मातापिता यह समझते हैं कि वे धन कमा कर और सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ा कर अपने बच्चों के प्रति अपना फर्ज पूरा कर रहे हैं. बेटियों को उन की इच्छानुसार कपड़े पहनने की छूट दे कर वे अपनेआप को आधुनिक होने का दरजा दे रहे हैं. बेटी स्कूल या कालेज कब जाती है, जाती भी है कि नहीं, उस की किस विषय में रुचि है, उस की क्या समस्याएं हैं आदि जानकारी रखने को वे समय की बरबादी समझते हैं. घर में भी बेटी नौकरों के साथ या किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ कैसे पेश आती है, इस का ध्यान रखना भी वे जरूरी नहीं समझते. बेटियों को गलत रास्ते पर डालने के लिए हमारी कुछ आदतें भी जोर मार रही हैं. हमारे मध्यवर्गीय और उच्चमध्यवर्गीय समाज में लड़का हो या लड़की, उसे खर्च करने के लिए मातापिता अपनी हैसियत से कुछ बढ़ कर ही धन और अन्य सुविधाएं दे देते हैं. इस वजह से बच्चे पैसे की अहमियत नहीं समझते हैं. नतीजतन, गलत मित्रों का साथ मिल जाता है और वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं. बेटियों के मामले में मातापिता तब ज्यादा सख्त हो जाते हैं जब बेटियां गलत काम कर के उन्हें मानसिक चोट पहुंचाती हैं. अगर पहले से ही बेटियों को प्यार से सही काम कौन सा और गलत काम कौन सा, यह समझाया जाए, यौनशिक्षा से भी परिचित कराया जाए तो किसी भी लड़की को अपने ही मम्मीपापा के हाथों जान नहीं गंवानी पड़ेगी.
बेटियों से लाड़प्यार का मतलब सिर्फ उन पर अंधाधुंध खर्चा करना, उन की नित नई फरमाइशें पूरी करना या आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराना नहीं है. उन के मन की थाह ले कर उन्हें अकेलापन और असुरक्षा की भावना से बचाना, उन की बातें और समस्याएं ध्यान से सुनना, समयसमय पर उचित सलाह देना और उन से मिलनेजुलने वालों पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी है. यही सच्चा प्यार है. आज हर बेटी आरुषि है जो अपने मातापिता से इसी प्यार की मांग कर रही है, दो पल साथ बिताने की ख्वाहिश रखती है. हर मातापिता को इस दिशा में सोचने की जरूरत है.