Trending Debate : आजकल ट्रेंड चल पड़ा है कि जिस को भी बड़ा नेता बनना है वो हिंदू भावनाओं को भड़काने वाला कोई विवादित बयान दे दे तो रातोंरात पोपुलर हो जाता है. इस समय औरंगजेब और औरंगजेब की कब्र को लेकर खूब विवादास्पद बयान दिए जा रहे हैं. जाहिर है कि कब्र की आग अभी और फैलेगी और यह मामला बाबरी मसजिद से भी ज्यादा गंभीर हो सकता है.

महाराष्ट्र सहित पूरे उत्तर भारत में औरंगजेब की कब्र को लेकर सियासत गरम है. फिल्म छावा जो छत्रपति शिवाजी और उन के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन और मुगल शासक औरंगजेब से उन के युद्ध पर आधारित है, की रिलीज के बाद हिंदू संगठन औरंगजेब के खिलाफ आग उगल रहे हैं. खुल्दाबाद से औरंगजेब की कब्र को उखाड़ फेंकने के लिए विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और भाजपा के कार्यकर्ता सड़क पर हैं. मजे की बात यह है कि जिस फिल्म को देख कर हिंदूवादी उग्र हो रहे हैं, उस फिल्म की कहानी इतिहास के पन्नों से नहीं बल्कि मराठी के उपन्यासकार शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास ‘छावा’ से उठाई गई है.

हिंदू संगठनों ने महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर सरकार द्वारा कब्र को नहीं हटाया जाएगा तो हम अयोध्या की बाबरी मसजिद की तरह इसे खुद हटा देंगे. इस के बाद से छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) में स्थित औरंगजेब की कब्र की सुरक्षा बढ़ा दी गई है और बड़ी संख्या में पुलिस बल की वहां तैनाती है.

गौरतलब है कि औरंगजेब की कब्र भारत की ऐतिहासिक विरासत है. इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का संरक्षण प्राप्त है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कानून के अनुसार, कोई भी प्राचीन स्मारक या संरचना जो कम से कम 100 वर्षों से मौजूद हो, उसे पुरातत्वीय स्थल या संरक्षित स्मारक माना जाता है. औरंगजेब की कब्र 1707 से खुल्दाबाद में मौजूद है. इस आधार पर केंद्र सरकार ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है और महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार इस को चाह कर भी हटा नहीं सकती.

बावजूद इस के औरंगजेब की कब्र को ले कर कारसेवा की गूंज बिलकुल वैसे ही उठ रही है और माहौल कुछ उसी तरह गरम हो रहा है, जिस तरह बाबरी मसजिद विध्वंस के समय हुआ था. राम जन्मभूमि को ले कर शुरू हुई कारसेवा के पहले उत्तर प्रदेश के कई शहरों में दंगे शुरू हो गए थे. 17 मार्च को नागपुर के महाल में दो गुटों के बीच जिस तरह हिंसा भड़की उस ने दंगों के लिए धरातल तैयार कर दिया है. महाल के बाद देर रात हंसपुरी में भी हिंसा हुई. उपद्रवियों ने दुकानों में तोड़फोड़ की और वाहनों में आग लगा दी. इस दौरान जम कर पथराव भी हुआ. हिंसा के बाद कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है.

हिंसा की खबर जब उत्तर प्रदेश पहुंची तो श्री कृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास ने मुगल शासक औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलाने वाले को 21 लाख रुपए इनाम के तौर पर देने का ऐलान कर डाला. कहा कि ऐसी कब्र हिंदुस्तान में नहीं होनी चाहिए. अगर किसी को कब्र की जरूरत है तो पाकिस्तान ले जाए. इस से पहले एक लेखक मनोज मुन्तशिर ने औरंगजेब की कब्र पर शौचालय बनवाने का मशवरा भी दिया था.

आजकल ट्रेंड चल पड़ा है कि जिस को भी बड़ा नेता बनना है वो हिंदू भावनाओं को भड़काने वाला कोई विवादित बयान दे दे तो रातोंरात पोपुलर हो जाता है. इस समय औरंगजेब और औरंगजेब की कब्र को ले कर खूब विवादास्पद बयान दिए जा रहे हैं. जाहिर है कि कब्र की आग अभी और फैलेगी और यह मामला बाबरी मसजिद से भी ज्यादा गंभीर हो सकता है.

हैरानी की बात है कि जो शासक 300 साल पहले मर चुका है, दक्षिणपंथियों को उस की कब्र हटाने की याद अब आ रही है. गौर करिये कि जिस दिन नौसेना पोत चालक, हैलीकौप्टर पायलट, परीक्षण पायलट, पेशेवर नौसैनिक, गोताखोर, पशुप्रेमी, मैराथन धावक और नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स विश्व कीर्तिमान रच कर, मानवज्ञान का दायरा विकसित करने के लिए अंतरिक्ष के रहस्यों को समेटे 289 दिन के बाद धरती पर वापस आ रही थीं, उस दिन हमारे देश के युवा एक 300 साल पुरानी कब्र खोदने को बेकरार हो रहे थे.

यह बात सच है कि औरंगजेब के हाथ कई राजाओं के खून से रंगे हुए हैं. खुद अपने बाप और भाइयों की ह्त्या का आरोप इस मुगल शासक पर है. पर सत्ता में रहे कितने ही शासक हैं जिन पर ऐसे आरोप हैं. कोई औरंगजेब अकेला तो ऐसा शासक नहीं है. हमारे तमाम धर्मग्रंथ सगे भाइयों और परिजनों के लहू से ही लाल हैं. उन की हत्याएं किसी बाहरी ने नहीं बल्कि सत्ता पाने की लालसा में उन के अपने लोगों ने की. क्या महाभारत का युद्ध किसी बाहरी से अपना राज्य बचाने के लिए हुआ था? आखिर भाईभाई में ही मारकाट मची थी और पूरे वंश को गाजर मूली की तरह रणभूमि में काट डाला गया था. सत्ता के लालच में आज के राजनेता अपने करीबियों का कत्ल कर देते हैं या करवा देते हैं तो सिर्फ औरंगजेब पर ही दोषारोपण क्यों?

अच्छेअच्छे राजाओं ने अपने राज को बढ़ाने के लिए क्रूरता की. अशोक महान का उदाहरण सामने है. उस ने तो इतना खून बहाया कि अंत में खुद ग्लानि से भर गया और सब कुछ छोड़ कर धर्म प्रचार में लग गया. उल्लेखनीय है कि सम्राट अशोक ने कलिंग पर 362 ईसा पूर्व में युद्ध किया था. इस युद्ध में एक लाख लोग मारे गए थे और इतने ही लोग युद्ध के बाद पैदा हुई परिस्थितियों से मरे थे. डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को या तो बंदी बनाया गया था या निर्वासित किया गया था. मारे गए लोगों में से ज्यादातर लोग असैनिक थे. युद्ध के बाद अशोक उड़ीसा के धावली क्षेत्र गए, तो वहां एक नदी थी जो खून से लाल हो गई थी. इन तमाम दृश्यों और युद्ध भूमि में खूनखराबे, रोतेबिलखते लोगों को देख कर अशोक विचलित हो गया. इस युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया.

औरंगजेब अपने पड़दादा अकबर के बाद सब से अधिक समय तक शासन करने वाला मुगल शासक था. उस के शासन में मुगल साम्राज्य अपने विस्तार के शिखर पर पहुंचा. औरंगजेब जब सत्ता में आया तो जो राज्य उस को विरासत में मिला था उस ने उस का विस्तार करना शुरू किय, जैसा कि हर राजा करता है. दक्षिण भारत उस से बाहर था, तो उस ने इस के लिए लड़ाइयां लड़ीं. औरंगजेब ने दक्कन से ले कर बदख़्शान (उत्तरी अफगानिस्तान) और बाल्ख (अफगान-उज़्बेक) तक अपने राज्य को फैलाया और लगभग आधी सदी (50 साल) तक सफलतापूर्वक राज किया. औरंगजेब की सफलता इस बात से आंकी जा सकती है कि उस की प्रजा ने उस को ‘आलमगीर’ का नाम दिया था. आलमगीर यानी विश्व विजेता. क्योंकि औरंगजेब ने हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि उस के आसपास के क्षेत्रों को भी जीत कर भारत भूमि से मिलाया था. यह उपलब्धियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. मगर भाजपा के शासनकाल में मुगल बादशाहों के खिलाफ जहर उगल कर समाज के ध्रुवीकरण की कोशिश अपने चरम पर है. कहीं उन के नाम पर रखे जिलों, शहरों, सड़कों के नाम बदले जा रहे हैं तो कहीं उन की कब्र उखाड़ फेंकने की कोशिश हो रही है.

आज की राजनीति में इतिहास के राजाओं के नाम का जम कर उपयोग हो रहा है. कहा जा रहा है कि हिंदू राजा महान थे और मुसलमान राजा खराब थे. यह सिर्फ ध्रुवीकरण कर हिंदू वोट पाने का एक तरीका है. ‘बांटो और राज करो’ का यह तरीका अंगरेजों और अंगरेज इतिहासकारों का इजाद किया हुआ है जिसे अंगरेजी में कहते हैं ‘कम्युनल राइटिंग औफ हिस्ट्री’ यानी इतिहास का सांप्रदायिक लेखन. उस का आधार होता है राजा के कार्य को उस के धर्म से जोड़ना जबकि वास्तव में किसी भी राजा को प्रजा के धर्म से कोई लेनादेना नहीं होता है. राजा जो कुछ भी करता है वह सत्ता और सम्पत्ति के लिए करता है और अपने राज्य के विस्तार के लिए करता है.

ऐसा सिर्फ औरंगजेब ने नहीं किया बल्कि हर शासक ने किया फिर चाहे वह हिंदू था या मुसलमान. मगर आम जनता को कहानी कुछ इस तरह सुनाई जाती है कि जैसे मुसलिम शासकों ने दूसरों की जगहों पर अतिक्रमण किया. इसे कैसे ठीक कहेंगे कि हिंदू राजा अगर अपने राज्य का विस्तार करे तो वह प्रतापी और महान. वह अश्वमेघ यज्ञ करे और घोड़ा छोड़ कर तमाम दूसरे राज्यों को अपने अधीन होने के लिए विवश करे तो वह प्रतापी राजा और वहीं अगर मुसलिम राजा अपने राज्य के विस्तार के लिए लड़ाई लड़े तो वह क्रूर और आक्रांता हो जाता है.

औरंगजेब को सब से विवादास्पद मुगल शासक कहा गया. उस का नाम हिंदुओं के मंदिर तोड़ने और हिंदू तीर्थ पर जजिया कर लगाने के लिए बदनाम है. लेकिन विकिपीडिया पर औरंगजेब के इन फैसलों और कृत्यों के बारे में काफी रोचक तथ्य मिलते हैं. विकिपीडिया लिखता है –

औरंगजेब द्वारा लगाया गया जिज्या/जज़िया कर उस समय के हिसाब से था. मुगल काल में यह कर पहले भी लगाया जाता था. मुगल शासक अकबर ने जज़िया कर को हटा दिया था, लेकिन औरंगजेब के समय यह दोबारा लागू किया गया. जज़िया सामान्य करों से अलग था जो गैरमुसलमानों को चुकाना पड़ता था. इस के 3 स्तर थे और इस का निर्धारण संबंधित व्यक्ति की आमदनी से होता था. इस कर के कुछ अपवाद भी थे. गरीबों, बेरोजगारों और शारीरिक रूप से अशक्त लोग इस के दायरे में नहीं आते थे. इन के अलावा हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में सब से ऊपर आने वाले ब्राह्मण और सरकारी अधिकारी भी इस से बाहर थे. मुसलमानों के ऊपर लगने वाला ऐसा ही धार्मिक कर जकात था जो हर अमीर मुसलमान के लिए देना जरूरी था.

विकिपीडिया लिखता है, आधुनिक मूल्यों के मानदंडों पर जज़िया निश्चितरूप से एक पक्षपाती कर व्यवस्था नजर आती थी. आधुनिक राष्ट्र, धर्म और जाति के आधार पर इस तरह का भेद नहीं कर सकते. इसीलिए जब हम 17वीं शताब्दी की व्यवस्था को आधुनिक राष्ट्रों के पैमाने पर देखते हैं तो यह बहुत अराजक व्यवस्था लग सकती है, लेकिन औरंगजेब के समय ऐसा नहीं था. उस दौर में इस के दूसरे उदाहरण भी मिलते हैं. जैसे मराठों ने दक्षिण के एक बड़े हिस्से से मुगलों को बेदखल कर दिया था. उन की कर व्यवस्था भी तकरीबन इसी स्तर की पक्षपाती थी. वे मुसलमानों से ज़कात वसूलते थे और हिंदू आबादी इस तरह की किसी भी कर व्यवस्था से बाहर थी.

अब अगर औरंगजेब द्वारा मंदिरों को तोड़ने की चर्चा करें तो स्थापित और ख्यात इतिहासकार कहते हैं कि उस ने ज्यादा से ज्यादा 15 मंदिर तोड़े, जिन्हें तोड़ने के पीछे वजह थी.

विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड ईटन के मुताबिक मुगल काल में मंदिरों को ढहाना दुर्लभ घटना थी और जब भी ऐसा हुआ तो उस के कारण राजनीतिक ही रहे. ईटन के मुताबिक वही मंदिर तोड़े गए जिन में विद्रोहियों को शरण मिलती थी या जिन की मदद से शहंशाह के खिलाफ साजिश रची जाती थी. उस समय मंदिर तोड़ने का कोई धार्मिक उद्देश्य नहीं था. उस की जड़ में राजनीतिक कारण ही थे.

उदाहरण के लिए औरंगजेब ने दक्षिण भारत में कभी भी मंदिरों को निशाना नहीं बनाया, जबकि उन के शासनकाल में ज्यादातर सेना वहां तैनात थी. उत्तर भारत में उन्होंने जरूर कुछ मंदिरों पर हमले किए जैसे मथुरा का केशव राय मंदिर लेकिन इस का कारण धार्मिक नहीं था. मथुरा के जाटों ने सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया था इसलिए यह हमला किया गया.

आजकल बुलडोजर बाबा भी मस्जिदों को और मुसलमानों की सम्पत्तियों को यही कह कर तोड़ रहे हैं कि उस में आतंकी, विद्रोही, बदमाश रहते हैं. कोई फर्क नहीं है. सत्ता में जो बैठा है उस को अपने खिलाफ कहीं विद्रोह की ज़रा भी सुगबुगाहट मिली नहीं कि वह उस विद्रोह को दबाने के लिए निकल पड़ता है. इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सेना भेजी थी क्योंकि वहां विद्रोही गतिविधियों की सूचना थी. फिर औरंगजेब पर इतनी चिल्लपों क्यों?

डा. पट्टाभि सीतारमैया जो आजादी की लड़ाई में एक बड़े लीडर भी थे, की लिखी एक किताब है ‘फेदर्स एंड स्टोन’. इस किताब में वो लिखते हैं कि काशी का जो मंदिर तोड़ा गया था उस में कुछ अनैतिक काम चल रहे थे. ऐसे और भी कारण होंगे जिस के चलते औरंगजेब ने 12-15 मंदिर तोड़े. यह दुर्भाग्यपूर्ण था. पर सवाल यह उठता है कि अगर उस ने मंदिर तोड़े या वह हिंदूओं से नफरत करता था, तो उस ने बाकी मंदिरों को दान क्यों दिया?

औरंगजेब ने अनेक मंदिरों को संरक्षण दिया. किंग्स कालेज, लंदन की इतिहासकार कैथरीन बटलर लिखती हैं कि औरंगजेब ने जितने मंदिर तोड़े, उस से ज्यादा बनवाए थे. कैथरीन फ्रैंक, एम अथर अली और जलालुद्दीन जैसे विद्वान इस तरफ भी इशारा करते हैं कि औरंगजेब ने कई हिंदू मंदिरों को अनुदान दिया था जिन में बनारस का जंगम बाड़ी मठ, चित्रकूट का बालाजी मंदिर, इलाहाबाद का सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर और गुवाहाटी का उमानंद मंदिर सब से जानेपहचाने नाम हैं.

डा. विशम्भर नाथ पांडेय जो आजादी के आंदोलन से जुड़े थे और आजादी के बाद उड़ीसा के गवर्नर भी बने, ने एक किताब ‘फरमान औफ किंग औरंगजेब’ लिखी थी. इस किताब को लिखने से पहले उन्होंने अपने कई रिसर्च स्कौलर्स को दक्षिण भारत के मंदिरों के पुजारियों के पास भेज कर औरंगजेब द्वारा दिए गए आदेशों यानी फरमानों की प्रतियां इकट्ठा करवाई थीं. इन फरमानों से उन्हें पता चला कि औरंगजेब ने करीब सौ मंदिरों को बड़े दान दिए. अब यह आश्चर्य की बात है. यह बात दक्षिणपंथी सरकार के नेता कभी नहीं बताएंगे. गुवाहाटी (आसाम) में कामाख्या देवी का मंदिर, उज्जैन में महाकाल के मंदिर को और वृन्दावन में भगवन कृष्ण के मंदिर को औरंगजेब ने बड़े दान दिए. कहीं उस ने जागीरें दीं, कहीं आभूषण और स्वर्ण मुद्राएं दीं. तो औरंगजेब हिंदू विरोधी था इस बात को इतिहास नकारता है.

मुगल काल में भी भारत की ज्यादा प्रजा हिंदू थी और सत्ता में बैठा हर व्यक्ति इस बात को अच्छी तरह समझता है कि प्रजा की भावनाओं का आदर किए बगैर आप सुचारु रूप से राज्य नहीं कर सकते हैं. औरंगजेब ने तो 50 साल तक राज किया. उस की सेना में हिंदू राजा बड़ी संख्या में थे. वह हिंदू प्रजा को अपने साथ ले कर चला. औरंगजेब के दरबार में हिंदू अधिकारियों की संख्या 34 फ़ीसदी थी. उस में राजा जयसिंह (जो छत्रपति शिवाजी से मोर्चा लेने गए थे) दूसरे राजा जसवंत सिंह और तीसरे थे राजा रघुनाथ बहादुर, जो औरंगजेब का रेवेन्यू डिपार्टमेंट देखते थे. राजा रघुनाथ बहादुर राजा टोडरमल के पोते थे. वही राजा टोडरमल जो बादशाह अकबर के दरबार में ऊंचे ओहदे पर थे. तो मुगल प्रशासन हमेशा ही एक मिलाजुला प्रशासन था जिस में हिंदू राजपूत राजाओं को बड़ेबड़े ओहदे और सम्मान प्राप्त था.

छत्रपति शिवाजी महाराज के राज में भी बहुतेरे मुसलमान अधिकारी थे. उन के सब से बड़े अधिकारी थे मौलाना हैदर अली, जो उन के गोपनीय सचिव और सेनापति थे. उन का तोपखाना मुसलमान अधिकारी के नियंत्रण में काम करता था. ये सारी बातें इतिहास में दर्ज हैं और जिन को नकारा नहीं जा सकता है.

दरअसल सत्ता का आधार धर्म हो ही नहीं सकता. यह एक प्रमाणित सत्य है कि जिस ने भी अपनी सत्ता का आधार धर्म को बनाया, वह सत्ता कुछ ही समय में समाप्त हो गई. इतिहास को हिंदूमुसलमान के चश्मे से देखेंगे तो हिंसा और उपद्रव ही होंगे.

औरंगजेब किस तरह हिंदू विरोधी था जबकि उस के दरबार में सभी हिंदू त्यौहार मनाए जाते थे. ‘जश्ने चरागां’ यानी दिवाली और ‘जश्ने गुलाबी’ यानि होली यह दोनों ही त्यौहार खासी धूमधाम से मनाए जाते थे.

मुगल काल में ब्रज भाषा और उस के साहित्य को हमेशा संरक्षण मिला और यह परंपरा औरंगजेब के शासन में भी जारी रही. कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जुड़ी इतिहासकार एलिसन बुश लिखती हैं कि औरंगजेब के दरबार में ब्रज को प्रोत्साहन देने वाला माहौल था. शहंशाह के बेटे आज़म शाह की ब्रज कविता में खासी दिलचस्पी थी. ब्रज साहित्य के कुछ बड़े नामों जैसे महाकवि देव को उन्होंने संरक्षण दिया था. इसी भाषा के एक और बड़े कवि वृंद तो औरंगजेब के प्रशासन में भी अधिकारी नियुक्त थे.

हिंदू धर्म की भक्ति परम्परा इसी मुगल शासनकाल में विकसित हुई. मुगल दौर में ही धार्मिक परम्पराओं का मेलजोल भी बढ़ा. गंगाजमुनी संस्कृति का विकास इस दौर में हुआ. हिंदूमुसलिम ने एकदूसरे के तौरतरीके, खानपान, पहनावा आदि को अपनाया. अगर मुगल हिंदूओं से नफरत करते तो हमारी महान भक्ति परम्परा को वे कतई विकसित न होने देते. भक्ति काल के अनेक बड़े कवि इसी दौर में हुए.

मुगलों के 300 साल तक शासन किया, अगर वे हिंदूओं से नफरत करते होते तो हिंदू धर्म समाप्त क्यों नहीं हुआ? वह तो इस दौर में खूब उन्नत हुआ. खूब मंदिरों का निर्माण हुआ. हिंदू बनाम मुसलिम का राग अलापना अंगरेजों ने शुरू किया और बाद में चल कर साम्प्रदायिक ताकतों ने इस को पकड़ लिया और उस के आधार पर हिंदूमुसलमानों को आपस में लड़वा कर अपना उल्लू सीधा करते रहे. मुसलिम लीग ने हिंदुओ के खिलाफ नफरत फैलाई. हिंदू महासभा और आरएसएस ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई. एक लम्बे समय से हिंदूमुसलिम कार्ड खेल कर भाजपा सत्ता में है. यह उस का अमोघ अस्त्र है जो कभी खाली नहीं जाता.

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