Hindi Story 2025 : साइकिल से स्कूल आते और जाते समय हर रोज 16-17 साल की एक लड़की गुमटी पर आती. गेहुंआ रंग, दुबलीपतली, छरहरी बदन, कजरारी आंखें, चंचल स्वभाव. गुमटी पर जब भी वह आती, 2 ही चींजें खरीदती – लेज का चिप्स और चैकलेट.
गुमटी चलाने वाले दुकानदार रवि की उम्र भी लगभग 20 साल की होगी.वह भी गोरा, लंबा और सुंदर था. उस की सब से बड़ी खूबी थी कि हंसमुख मिजाज का लड़का था. किसी भी ग्राहक से वह मुसकराते हुए बातें करता. उस की दुकान अच्छी चलती. हर उम्र के लोग उस की गुमटी पर दिखते. बच्चे चैकलेट और कुरकुरे के लिए, बुजुर्ग खैनी व चूना के लिए, तो नौजवान पानगुटका के लिए. महिलाएं साबुन और शेंपू के लिए आते.
रवि की गुमटी एक बड़ी बस्ती में थी, जहां 10 गांव के लोग बाजार करने के लिए आते. इस बस्ती में एक उच्च विद्यालय था, जहां कई गांवों के लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते. इस उच्च विद्यालय में इंटर क्लास तक की पढ़ाई होती. इस बस्ती में जरूरत की लगभग हर चीजें मिल जातीं.
रवि के पिता दमा की बीमारी से परेशान रहते. घर का सारा काम रवि की मां करती. रवि के परिवार का सहारा यही गुमटी था. सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक रवि इसी गुमटी में बैठ कर सामान बेचा करता. इसे खाने और नाश्ता करने तक की फुरसत नहीं मिलती.
रवि खुशमिजाज के साथ साथ दिलदार भी था. किसी के पास अगर पैसे नहीं हैं तो उसे उधार सामान दे दिया करता. 20,000 रुपए दिए गए उधार मिलने की संभावना नहीं के बराबर थी. फिर भी कोई उधार के लिए आता, तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देता. वह ग्राहकों को चाचा, भैया, दीदी, चाची से ही संबोधित करता.
उच्च विद्यालय में वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा था. आज भी वह लड़की जींस और टौप पहने रवि की गुमटी पर चिप्स और चैकलेट के लिए आई थी. आज अन्य दिनों की अपेक्षा वह बला की खूबसूरत लग रही थी. रवि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
लड़की ने हंसते हुए कहा, ‘‘नाम जान कर क्या करेंगे?’’
रवि ने कहा, ‘‘ऐसे ही पूछ दिया. माफ करना.’’
लड़की बोली, ‘‘इस में माफ करने की क्या बात है? मेरा नाम मेनका है.’’
‘‘अच्छा, तुम्हारा चेहरा भी मेनका गांधी से मिलताजुलता है. मांबाप कुछ देख कर ही तुम्हारा नाम मेनका गांधी रखे होंगे.’’
लड़की बोली, ‘‘मुझे मालूम नहीं. लेकिन मेरा नाम हमारे दादाजी ने मेनका रखा है. तुम्हारे दादा मेनका गांधी के बारे में अधिक जानते होंगे.’’
लड़की बात को पलटते हुए बोली, ‘‘आज हमारे स्कूल में वार्षिकोत्सव कार्यक्रम है. आप भी देखने आइएगा. तुम भी कुछ प्रोग्राम दोगी क्या?’’
लड़की बोली, ‘‘हां, मैं भी रेकौर्डिंग गीत पर डांस करूंगी.’’
रवि बोला, ‘‘कितने बजे से कार्यक्रम होगा?’’
‘‘यही लगभग 11 बजे से,’’ लड़की अनुमान से बोली.
रवि बोला, ‘‘कोशिश करूंगा.’’
लड़की मुसकराते हुए बोली, ‘‘कोशिश नहीं, जरूर आइएगा. नाटक, गीतसंगीत और डांस एक से एक बढ़ कर कार्यक्रम होगा. पहली बार इस तरह का बड़ा कार्यक्रम रखा गया है. उद्घाटन करने के लिए विधायकजी आने वाले हैं.’’
‘‘अच्छा ठीक है, जरूर आउंगा,’’ रवि बोला.
रवि स्कूल में 10 बजे ही पहुंच गया. मंच पर परदा लगाने और अन्य कामों में सहयोग करने लगा. रवि भी इसी स्कूल से मैट्रिक पास हुआ था. वह भी पढ़ने में मेधावी था. मजबूरी में वह पान की गुमटी खोल दिया था. इस विद्यालय के 2 शिक्षक नियमित रूप से रवि के पास ही पान खाते थे. रवि उन दोनों शिक्षकों से पढ़ा भी था. दोनों शिक्षकों का बहुत सम्मान और आदर करता था.
विधायकजी मंच पर आए. फूलमाला और बुके दे कर उन्हें सम्मानित किया गया. उन्होंने दीप प्रज्वलित कर मंच का उद्घाटन किया. अपने विधायक फंड से उन्होंने विद्यालय के चारों तरफ बाउंड्री कराने के लिए आश्वासन दिया. तालियों की गड़गड़ाहट से उपस्थित लोगों ने उन का स्वागत किया.
स्वागत गीत, नाटक, सामूहिक लोकगीत एक से एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया. सब से अंत में रेकौर्डिंग गीत पर डांस की घोषणा हुई. लहंगाचुनरी पहने जब मेनका ‘‘मैं नाचूं आज छमछम…‘‘ गीत पर डांस करने लगी, तो उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हो गए.
रवि तो भावविभोर हो गया. मेनका को डांस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विधायकजी द्वारा प्रदान किया गया. अन्य छात्रछात्राओं को भी पुरस्कार मिला.
रवि के मनमस्तिष्क पर मेनका का डांस घर बना लिया. आज रातभर उसे नींद नहीं आई. वही डांस दिमाग में घूमता रहा. दूसरे दिन 10 बजे मेनका फिर गुमटी पर चिप्स और चैकलेट लेने आई. रवि तो मन ही मन इंतजार कर रहा था.
मेनका को देखते ही वह बोलने लगा, ‘‘क्या गजब का तुम ने डांस किया. लोग तो तुम्हारी तारीफ करते थक नहीं रहे हैं. जिधर सुनो उधर तुम्हारी ही चर्चा.’’
मेनका बोली, ‘‘आप लोगों का आशीर्वाद है.’’
जब मेनका चिप्स और चैकलेट का पैसा देने लगी, तो रवि बोला, ‘‘मेरी तरफ से गिफ्ट है. हम गरीब आदमी और दे ही क्या सकते हैं?’’
मेनका भी निःशब्द हो गई और चिप्स और चैकलेट इसलिए ले लिया कि रवि के दिल को ठेस न पहुंचे.
मेनका भी रवि के विचारों से प्रभावित हो गई. मेनका रवि से एक दिन मोबाइल नंबर मांगी. रवि तो इस का इंतजार ही कर रहा था, लेकिन खुद मोबाइल नंबर मांगने में संकोच कर रहा था.
आज रवि बेहद खुश था और फोन के आने का इंतजार कर रहा था. जब भी मोबाइल रिंग करता, तो दिल धड़कने लगता. देखता तो दूसरे का फोन. मन खीज उठता. जब रवि रात में खाना खा कर करवटें बदल रहा था. नींद नहीं आ रही थी. ठीक रात 11 बजे रिंग टोन बजा. जल्दी से बटन दबाया, तो उधर से सुरीली आवाज आई, ‘‘सो गए क्या?’’
रवि बोला, ‘‘तुम ने तो हमारी नींद ही गायब कर दी. जिस दिन से डांस का तुम्हारा प्रोग्राम देखा है, उस दिन से हमारे दिमाग में वही घूमता रहता है. रात में नींद ही नहीं आती.’’
मेनका मुसकराते हुए एक गाना गाने लगी, ‘‘मुझे नींद न आए, मुझे चैन न आए, कोई जाए जरा ढूंढ के लाए, न जाने कहां दिल खो गया…’’
‘‘अरे मेनका, तुम तो गजब का गाना गाती हो. हम तो समझे थे कि सिर्फ डांस ही करती हो. कोयल से भी सुरीली आवाज है तुम्हारी. इस तरह की सुरीली आवाज विरले लोगों को ही नसीब होती है.’’
फिर दोनों इधरउधर की बहुत सी बातें करते रहे. मेनका से यह भी जानकारी मिली कि उस के पिता सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं और मां सरकारी स्कूल में टीचर. बातें करते पता ही नहीं चला और सुबह के 4 बज गए.
मेनका बोली, ‘‘अब कल रात में बात करेंगे.’’
रवि सुबहसवेरे घूमने के लिए बाहर निकल पड़ा. नहाधो कर चायनाश्ता कर के समय पर वह अपनी गुमटी पर चला गया. उस के दिमाग से अब मेनका का चेहरा उतर ही नहीं रहा था.
एक बुजुर्ग 50 ग्राम खैनी मांगता है. उसे रवि 100 ग्राम देने लगता है, तो वे बोलते हैं, ‘‘तुम्हारा दिमाग कहां है. 50 ग्राम की जगह 100 ग्राम दे रहे हो.’’
‘‘अच्छा, मैं ठीक से सुन नहीं पाया. अभी 50 ग्राम दिए देता हूं.’’
सुबह 10 बजने से पहले ही रवि मेनका का बेसब्री से इंतजार करने लगा. ठीक 10 बजे मेनका आई. मुसकराते हुए उस ने चिप्स और चैकलेट ली. आंखों से इशारा की. पैसे दी और चलती बनी.
रवि पैसा नहीं लेना चाहता था, लेकिन वहां कई लोग खड़े थे, इसलिए वह पैसे लेने से इनकार नहीं कर सका. कई लोग गुमटी पर ही इस के डांस की चर्चा करने लगे. क्या गजब का डांस किया था. रवि भी तारीफ करने लगा.
यह सिलसिला लगातार जारी रहा. मेनका हर रोज रात में फोन करती. छुट्टी का दिन छोड ़कर जब भी वह स्कूल आती. आतेजाते समय गुमटी पर अवश्य आती. चिप्स और चैकलेट के बहाने रवि को नजर भर देखती और चलते बनती.
रवि की शादी के लिए अगुआ आए थे. रवि के पिताजी बोल रहे थे. मेरी तबियत ठीक नहीं रहती. तेरी मां भी काम करतेकरते परेशान हो जाती है. जीतेजी अगर पतोहू देख लेते, तो अहोभाग्य होता.
‘‘पिताजी, इस गुमटी से 3 आदमी का ही पेट पालना मुश्किल होता है. हर चीज खरीद कर ही खानी है. किसी तरह 1-2 कमरा और बन जाते, तब शादीविवाह करते.’’
‘‘अरे बेटा, हमारे जीवन का कोई ठिकाना नहीं है. लड़की वाले भी बढ़िया हैं. तुम्हारे मामा जब शादी के लिए लड़की वाले को ले कर आए हैं, तो उन की बात भी माननी चाहिए.
‘‘बता रहे थे कि लड़की भी सुंदर और सुशील है. उस के मातापिता भी बहुत अच्छे हैं. इस तरह का परिवार हमेशा नहीं मिलेगा. लड़की भी मैट्रिक पास है. शादीविवाह में खर्च भी देने के लिए तैयार हैं. और क्या चाहिए?’’
यह सुन कर रवि उदास हो गया. अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी को क्या जवाब दे. वह असमंजस में पड़ गया. वह चुप रहा. आगे कुछ भी नहीं बोल पाया. रवि के सामने तो संकट का पहाड़ खड़ा हो गया.एक तरफ मातापिता और दूसरी तरफ दिलोजान से चाहने वाली मेनका.
वह रात का इंतजार करने लगा. सोचा कि मेनका ही कुछ उपाय निकाल सकती है.
रात 11 बजे मोबाइल की घंटी बजी. हैलोहाय होने के बाद मेनका ने पूछा, ‘‘आज गुमटी नहीं खोली.क्यों…?’’
रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’
‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.
‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.
‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’
‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’
‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’
‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’
मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’
‘‘गुमटी का क्या करें?’’
‘‘बेच दो.’’
‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’
‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’
‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’
‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.
‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’
रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’
मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’
‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.
रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.
संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.
अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’
संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’
‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’
संजय बोला, ‘‘मैं यहां एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’
‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.
रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’
रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’
‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’
‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’
रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.
मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?
मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’
दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.
संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’
रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.
रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.
संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.
संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.
रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’
‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’
रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.
इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.
प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.
दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.
रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.
आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.
रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.
रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.
सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’
‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’
‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’
‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’
‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’
‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’
‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’
रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’
‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.
हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.
खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’
कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’
बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.
मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.
सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.
मेनका बोली, ‘‘आप लोगों का आशीर्वाद है.’’
जब मेनका चिप्स और चैकलेट का पैसा देने लगी, तो रवि बोला, ‘‘मेरी तरफ से गिफ्ट है. हम गरीब आदमी और दे ही क्या सकते हैं?’’
मेनका भी निःशब्द हो गई और चिप्स और चैकलेट इसलिए ले लिया कि रवि के दिल को ठेस न पहुंचे.
मेनका भी रवि के विचारों से प्रभावित हो गई. मेनका रवि से एक दिन मोबाइल नंबर मांगी. रवि तो इस का इंतजार ही कर रहा था, लेकिन खुद मोबाइल नंबर मांगने में संकोच कर रहा था.
आज रवि बेहद खुश था और फोन के आने का इंतजार कर रहा था. जब भी मोबाइल रिंग करता, तो दिल धड़कने लगता. देखता तो दूसरे का फोन. मन खीज उठता. जब रवि रात में खाना खा कर करवटें बदल रहा था. नींद नहीं आ रही थी. ठीक रात 11 बजे रिंग टोन बजा. जल्दी से बटन दबाया, तो उधर से सुरीली आवाज आई, ‘‘सो गए क्या?’’
रवि बोला, ‘‘तुम ने तो हमारी नींद ही गायब कर दी. जिस दिन से डांस का तुम्हारा प्रोग्राम देखा है, उस दिन से हमारे दिमाग में वही घूमता रहता है. रात में नींद ही नहीं आती.’’
मेनका मुसकराते हुए एक गाना गाने लगी, ‘‘मुझे नींद न आए, मुझे चैन न आए, कोई जाए जरा ढूंढ के लाए, न जाने कहां दिल खो गया…’’
‘‘अरे मेनका, तुम तो गजब का गाना गाती हो. हम तो समझे थे कि सिर्फ डांस ही करती हो. कोयल से भी सुरीली आवाज है तुम्हारी. इस तरह की सुरीली आवाज विरले लोगों को ही नसीब होती है.’’
फिर दोनों इधरउधर की बहुत सी बातें करते रहे. मेनका से यह भी जानकारी मिली कि उस के पिता सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं और मां सरकारी स्कूल में टीचर. बातें करते पता ही नहीं चला और सुबह के 4 बज गए.
मेनका बोली, ‘‘अब कल रात में बात करेंगे.’’
रवि सुबहसवेरे घूमने के लिए बाहर निकल पड़ा. नहाधो कर चायनाश्ता कर के समय पर वह अपनी गुमटी पर चला गया. उस के दिमाग से अब मेनका का चेहरा उतर ही नहीं रहा था.
एक बुजुर्ग 50 ग्राम खैनी मांगता है. उसे रवि 100 ग्राम देने लगता है, तो वे बोलते हैं, ‘‘तुम्हारा दिमाग कहां है. 50 ग्राम की जगह 100 ग्राम दे रहे हो.’’
‘‘अच्छा, मैं ठीक से सुन नहीं पाया. अभी 50 ग्राम दिए देता हूं.’’
सुबह 10 बजने से पहले ही रवि मेनका का बेसब्री से इंतजार करने लगा. ठीक 10 बजे मेनका आई. मुसकराते हुए उस ने चिप्स और चैकलेट ली. आंखों से इशारा की. पैसे दी और चलती बनी.
रवि पैसा नहीं लेना चाहता था, लेकिन वहां कई लोग खड़े थे, इसलिए वह पैसे लेने से इनकार नहीं कर सका. कई लोग गुमटी पर ही इस के डांस की चर्चा करने लगे. क्या गजब का डांस किया था. रवि भी तारीफ करने लगा.
यह सिलसिला लगातार जारी रहा. मेनका हर रोज रात में फोन करती. छुट्टी का दिन छोड ़कर जब भी वह स्कूल आती. आतेजाते समय गुमटी पर अवश्य आती. चिप्स और चैकलेट के बहाने रवि को नजर भर देखती और चलते बनती.
रवि की शादी के लिए अगुआ आए थे. रवि के पिताजी बोल रहे थे. मेरी तबियत ठीक नहीं रहती. तेरी मां भी काम करतेकरते परेशान हो जाती है. जीतेजी अगर पतोहू देख लेते, तो अहोभाग्य होता.
‘‘पिताजी, इस गुमटी से 3 आदमी का ही पेट पालना मुश्किल होता है. हर चीज खरीद कर ही खानी है. किसी तरह 1-2 कमरा और बन जाते, तब शादीविवाह करते.’’
‘‘अरे बेटा, हमारे जीवन का कोई ठिकाना नहीं है. लड़की वाले भी बढ़िया हैं. तुम्हारे मामा जब शादी के लिए लड़की वाले को ले कर आए हैं, तो उन की बात भी माननी चाहिए.
‘‘बता रहे थे कि लड़की भी सुंदर और सुशील है. उस के मातापिता भी बहुत अच्छे हैं. इस तरह का परिवार हमेशा नहीं मिलेगा. लड़की भी मैट्रिक पास है. शादीविवाह में खर्च भी देने के लिए तैयार हैं. और क्या चाहिए?’’
यह सुन कर रवि उदास हो गया. अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी को क्या जवाब दे. वह असमंजस में पड़ गया. वह चुप रहा. आगे कुछ भी नहीं बोल पाया. रवि के सामने तो संकट का पहाड़ खड़ा हो गया.एक तरफ मातापिता और दूसरी तरफ दिलोजान से चाहने वाली मेनका.
वह रात का इंतजार करने लगा. सोचा कि मेनका ही कुछ उपाय निकाल सकती है.
रात 11 बजे मोबाइल की घंटी बजी. हैलोहाय होने के बाद मेनका ने पूछा, ‘‘आज गुमटी नहीं खोली.क्यों…?’’
रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’
‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.
‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.
‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’
‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’
‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’
‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’
मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’
‘‘गुमटी का क्या करें?’’
‘‘बेच दो.’’
‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’
‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’
‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’
‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.
‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’
रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’
मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’
‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.
रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.
संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.
अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’
संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’
‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’
संजय बोला, ‘‘मैं यहां एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’
‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.
‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.
रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’
रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’
‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’
‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’
रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.
मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?
मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’
दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.
संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’
रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.
रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.
संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.
संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.
रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’
‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’
रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.
इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.
प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.
दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.
रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.
आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.
रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.
रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.
सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’
‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’
‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’
‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’
‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’
‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’
‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’
रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’
‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.
हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.
खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’
कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’
बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.
मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.
सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.