एक दिन रुक्मिणी सेठानी हमारे घर आई. उस ने मुझे 500 सौ रुपए दे कर धीमे से कहा, ‘‘ये रुपए रख लो अब्दुल्ला की बहू, मुझे दीवाली के दिन लौटा देना. दीवाली आज से ठीक एक महीने बाद है, लो रुपए…’’

पर मैं ने हाथ आगे नहीं बढ़ाया. दरअसल, रुक्मिणी की बात मेरी समझ में नहीं आई. बिना मांगे रुपए दे कर दीवाली के दिन वापस करने की बात कुछ रहस्यमय लगी.

सेठानी होशियार थी. मेरी उलझन झट ताड़ गई. मुसकरा कर बोली, ‘‘बहू, यह एक टोटका है, दीवाली का टोटका.’’

फिर पाटे पर अच्छी तरह बैठ कर उस ने अपनी बात खुलासा बताई, ‘‘देखो राबिया, हमारे व्यापार में पिछले 2-3 वर्षों से मुनाफा नहीं हो रहा. लक्ष्मी आ ही नहीं रही. हां, अलबत्ता खर्च काफी हो जाता है. पंडितजी ने पतरा देख कर बताया है कि इस बार भी 6 का लाभ और 10 का खर्च है.’’

‘‘फिर तो इस का कारण भी उन्होंने बताया होगा?’’

‘‘बताया क्यों नहीं? बोले, ‘आप के घर दीवाली के दिन लक्ष्मी आए तो बात बने. इस दिन कोई रुपए ला कर दे तो समझना पौ बारह हैं,’’’

सेठानी तनिक मुसकराई.

‘‘अच्छा, फिर?’’ मुझे बड़ा अजीब लग रहा था.

‘‘फिर क्या, पंडितजी ने एक टोटका बताया है. वह करने पर ठीक दीवाली के दिन हमारे घर रुपए जरूर आएंगे.’’

‘‘कौन सा टोटका?’’

‘‘यही जो मैं करने जा रही हूं. ये रुपए तुम अपने पास रख लो. दीवाली वाले दिन मुझे दे जाना. किसी भी रूप में आए, दीवाली के दिन लक्ष्मी
आनी चाहिए. बस, टोटका पूरा हो जाएगा. फिर सालभर लाभ ही लाभ. कुछ समझे?’’

‘‘समझ गई,’’ चकित हो कर मैं ने सेठ धनपतराय की पत्नी को देखा. कितनी नादान, कितनी अंधविश्वासी है यह.

खैर, अपनी हंसी दबा कर सेठानी से 500 रुपए ले कर रख लिए और कहा, ‘‘मैं ये रुपए ठीक दीवाली के दिन आप के यहां आ कर दूंगी. आप का टोटका पूरा हो जाएगा. अब तो खुश हैं?’’

‘‘जीती रहो, राबिया, इस बार कुछ लाभ ज्यादा हो जाए तो रमा के हाथ पीले कर दूं. वैसे, उस की सगाई की बात चल रही है. लड़के वाले जल्दी ही रमा को देखने आएंगे.’’

‘‘हां, वैसे विभा और निशा भी सयानी हो गई हैं. उन के लिए भी घरवर खोज लो.’’

‘‘पहले रमा का ब्याह हो जाए, फिर आगे सोचूंगी. सेठजी को तो कोई चिंता नहीं. बस, व्यापार के पीछे पड़े रहते हैं. घर की तरफ तो मुड़ कर भी नहीं देखते.’’

सेठानी उठने को हुई तो मैं ने एक बात पूछ ली कि टोटका पूरा करने के लिए उन्होंने इतनी दूर ला कर रुपए क्यों दिए? यह काम तो पड़ोस में भी हो सकता था.

सेठानी का जवाब था, ‘‘पड़ोस में हमारी जातबिरादरी के लोग रहते हैं. अपने समाज में ऐसा करने से बात खुल जाती है जबकि टोटका गुप्त होना चाहिए. फिर अपने समाज वाले मौकेबेमौके ताना देने से भी नहीं चूकते. सब को पता लग जाने पर टोटके का प्रभाव जाता रहता है.’’

‘‘और अब तुम यह भी पूछोगी कि ये रुपए मुझे ही क्यों दिए तो इस का जवाब यह है कि तू और तेरा आदमी ईमानदार हैं. टोटके में लिखापढ़ी तो होती नहीं है, सो कोई ऐन वक्त पर इनकार कर दे तो सारे रुपए डूब गए.’’

‘‘यह तो आप ने अच्छी बात सोची.’’

‘‘हांहां, बहू, मैं हमेशा अच्छी बात ही सोचती हूं. तो अब चलूं?’’ रुक्मिणी सेठानी उठ खड़ी हुई.

‘‘देख राबिया, हमारेतुम्हारे परिवारों में बड़ा पुराना अपनापन है. किसी से यह बात कहना नहीं. तू जाने या मैं, बस,’’ चलतेचलते उन्होंने समझाया.

सेठ धनपतराय का पूरा घर दीवाली के दिनों में कुछ ज्यादा ही अंधविश्वासी हो जाता था. आवश्यक चीजों की एक माह पहले ही खरीदारी हो जाती थी. बाकी पूरे कार्तिक मास में शायद ही उन्होंने कभी एक पैसा भी अंटी से निकाला हो.

उधर रमा की सगाई की बात तो चल ही रही थी. लड़के वालों ने अचानक कहला दिया कि हम रमा को देखने के लिए आ रहे हैं. लड़की पसंद आई तो सगाई पक्की कर जाएंगे. जब भी अवसर मिलेगा, आ जाएंगे.

यह समाचार बहुत अच्छा था, पर दिन व समय तय न होने के कारण सेठ धनपतराय के परिवार को कुछ असुविधा हो रही थी. खैर, लड़के वाले जो न करें वह थोड़ा.

छोटी दीवाली के दिन सेठानी ने सेठ को बताया, ‘‘देखना, कल दीवाली के दिन हमारे घर लक्ष्मी आएगी. कहीं से आए, कुछ रुपए जरूर आएंगे.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ सेठ धनपतराय मुसकराए.

सेठानी ने हंस कर पति की तोंद पर अपना सिर टिका दिया. ‘‘मेरी हथेली में खुजली जो हो रही है. रुपए जरूर आएंगे,’’ सेठानी ने अपनी हथेली खुजाना शुरू कर दिया था.

उस ने अपनी योजना पति को भी नहीं बताई थी. सेठ सोचने लगा कि दीवाली के दिन उन के यहां रुपए कहां से आ सकते हैं. दीवाली के दिन सुबह से ही सेठ धनपतराय के घर में बड़ी शांति थी. पूरा घर सतर्क था कि आज एक पैसा भी खर्च न हो जाए. उन्होंने चाय के लिए दूध भी रात को ही मंगवा लिया था. उधार का माल न सेठ किसी को देता था, न कोई सेठ को उधार देता था. लोग वही सुलूक कर रहे थे जो सेठ उन के साथ किया करता था. सुबह के 8 बजे होंगे कि सेठ के दरवाजे पर एक गाड़ी आ कर रुकी.

‘‘कौन है, देखना तो.’’ बही बंद कर के सेठ ने चश्मा ठीक किया. फिर खुद ही खिड़की से बाहर देख लिया, ‘‘अरे सुनो तो रुक्मिणी, वे लोग आ गए हैं, लड़के वाले.’’

सेठानी, जो रसोई झाड़ रही थी, भाग कर नल के नीचे गई. उस ने हाथमुंह धोया और अपनी बेटियों को सावधान कर के बैठक में आ गई. रमा जहांतहां से सफेदी के छींटों से भरी थी. विभा ने उसे स्नानघर में धकेल कर कुंडी चढ़ा दी, ‘‘झट से नहा ले.’’

पूरे घर में हड़कंप मच गया, लेकिन सेठानी ने शीघ्र ही स्थिति को संभाल लिया. उस ने बढ़ कर अपने होने वाले दामाद व साथ आई समधिनों का हार्दिक स्वागत किया. उन्हें बैठक में बिठा कर कुशलक्षेम पूछी. इस के बाद सेठ को वहां छोड़ कर वह बेटियों के पास भीतर आ गई.

‘‘मां, कहो तो बाजार से मिठाई ले आऊं? हमारे यहां तो मिठाई शाम को ही बनेगी. मेहमानों को नाश्ता…’’ निशा ने मां से पूछा.

‘‘नहीं, करमजली, आज हम एक पैसा भी नहीं खर्च करेंगे.’’

सेठानी झंझला रही थी, ‘‘वह लक्ष्मी ले कर अभी तक क्यों नहीं आई?’’

‘‘कौन मां?’’ विभा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

‘‘कोई भी, अच्छा, पहले चाय तो बना. लड़का आया है. एक उस की चाची है, दूसरी बूआ है,’’ रुक्मिणी हड़बड़ा रही थी.

‘‘चाय बना ली, पर वह खराब हो गई,’’ यह स्वर रमा का था.

‘‘खराब क्यों हो गई?’’ सेठानी ने दांत पीसे.

‘‘दूध रात का था, मां, शायद फट गया.’’

‘‘फट गया? अरी चुड़ैल, चाय जैसी भी है, बैठक में पहुंचाओ तो सही. क्या मेरी नाक कटवा कर ही चैन लोगी.’’

‘‘तब कुछ फल खरीद लाऊं मां, अभी 2 मिनट लगेंगे.’’

‘‘फिर वही बात, आज दीवाली है, हम लक्ष्मी खर्चेंगे नहीं, कहीं से खीचेंगे जरूर.’’ सेठानी ने फिर मन ही मन राबिया को गाली दी.

यों मां और बेटियों के बीच तकरार चल ही रही थी कि लड़के की चाची वहां आ गई, ‘‘क्या बात है, समधिन?’’

‘‘कुछ नहीं, बस चाय आ रही है, आप बैठें,’’ रुक्मिणी हंस दी.

‘‘चाय? चाय तो हमारा विमल नहीं पीएगा. वैसे भी पहली बार मीठे मुंह का शगुन होता है. बाजार से मिठाई मंगवा लें,’’ चाची यह कह कर वापस बैठक में आ गई. उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था.

रुक्मिणी अब क्या करे? कहीं से लक्ष्मी आ जाए तो टोटका पूरा कर के वह कुछ खर्च भी कर सकती है. मगर इस से पहले तो संभव नहीं था. हद हो गई, राबिया ने अभी तक रुपए नहीं भेजे. क्या मैं उस के पास पड़ोस के रामू को भेजूं? भूल तो नहीं गई वह.

मेहमान 8 बजे सेठ धनपतराय की हवेली पर आए थे, अब 11 बजने को आ गए, पर मजाल क्या जो उन्हें दूध, चाय, फल या मिठाई का नाश्ता मिल जाता.

विमल ने इसे अपना अपमान समझा. उस का मूड एकदम खराब हो गया. उस ने चाची की ओर संकेत किया. फिर चाची ने बूआजी को कुहनी मारी, लेकिन बूआजी ने उन्हें थोड़ा शांत रहने का इशारा किया.

सेठ इस बात को समझ गया. वह उठ कर लज्जित भाव से घर में गया, ‘‘अरी भागवान, कुछ तो कर. न हो तो रमा को ही बैठक में भेज दे.’’

‘‘नहीं जी, खाली हाथ वह नहीं जाएगी. बस, कहीं से लक्ष्मी आ जाए तो मैं सबकुछ मंगवा लूंगी, फल, मिठाई वगैरह. आप को शरम लगती है तो तनिक देर यहीं बैठ लें.’’

अभी अंदर ये बातें हो रही थीं कि तभी बैठक में एक लड़की ने प्रवेश किया. वहां अपरिचितों को बैठा देखा तो पूछ लिया, ‘‘सेठानी कहां है जी?

उन्होंने 500 रुपए मंगवाए थे, मेरी खाला से. रामू गया था कहने. ये लो, उन्हें दे देना.’’

‘‘वे भीतर आंगन में होंगी. अंदर चली जाओ. उन के रुपए उन्हीं को दो.’’

लड़की भोली थी. अंदर चली गई.

बैठक में सन्नाटा छा गया. ‘‘बड़ा धन्नासेठ बनता है. घर में फूटी कौड़ी नहीं. नाश्तेपानी के लिए भी उधार रुपए मांगे हैं, उठ बेटे. हमें इस कंगले से रिश्ता नहीं जोड़ना,’’ और मेहमान उठ खड़े हुए.

उन्हें गाड़ी में चढ़ते देखा तो सेठानी दौड़ कर बाहर आई. उस ने खिसिया कर कहा, ‘‘अरे कहां चल दिए? बैठिए, मैं मिठाई मंगवा रही हूं.’’ पर लड़के वालों ने एक न सुनी और अपनी गाड़ी आगे बढ़वा दी.

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