यह तथ्य और सत्य लगातार अपना स्थान बनाता चला जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने के 10 वर्षों में जो था वह तो था ही, आज उन की कार्यवाहक सरकार के दौरान भी लोकतंत्र के सब से महत्त्वपूर्ण आयाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकारी पहरों की खबरें सुर्खियों में बनी हुई हैं.

शायद यही कारण है कि अमेरिका जैसे देश ने पहली बार भारत के संसदीय चुनाव‌ या कहें ‘लोक महोत्सव’ में पर्यवेक्षक भेजने में रुचि नहीं दिखाई, जो अपनेआप में एक काला अध्याय बन चुका है और आने वाले समय में दुनियाभर में यह एक मुद्दा बन सकता है जिस का जवाब नहीं दिया जा सकता.

होना तो यह चाहिए था कि 18वें लोकसभा के चुनाव के दरमियान भारत सरकार दुनियाभर से आग्रह करती कि आइए और हमारे चुनाव का आप अवलोकन करिए कि कहीं कोई कमी तो नहीं है, देखिए भारत में किस तरह निष्पक्ष चुनाव हो रहे हैं. कहते हैं न ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ शायद यही कारण है कि आज भारत सरकार नहीं चाहती कि कोई दूसरा देश अपना पर्यवेक्षक भारत में भेजे या फिर दुनियाभर से पत्रकार आ कर यहां हो रहे चुनाव का अवलोकन करें और अपनी रिपोर्टिंग दुनिया को बताएं.

यही कारण है कि आस्ट्रेलियाई महिला पत्रकार अवनी डायस ने जब अपनी हकीकत बताई तो वह दूर तक चली गई. और चुनाव आयोग के साथसाथ भारत सरकार की कुरसी हिलने लगी. आस्ट्रेलियाई पत्रकार ने दावा किया कि भारत सरकार द्वारा उन के कार्य वीजा को आगे बढ़ाने से इनकार करने के बाद उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने यह कहते हुए कार्य वीजा बढ़ाने से इनकार किया था कि उन की रिपोर्ट ‘सीमाओं का उल्लंघन’ है.

अगर हम निष्पक्ष समीक्षा करें तो स्पष्ट हो जाता है कि भारत सरकार कितनी कमजोर है और इस के पीछे की वजह है कि आस्ट्रेलिया की यह पत्रकार सचाई को दुनिया को न बता दे, इसलिए उसे आननफानन चलता कर दिया गया. भारत सरकार का कहना है कि आस्ट्रेलियाई पत्रकार अवनी डायस का यह तर्क गलत और भ्रामक है कि उन्हें चुनाव कवर करने की अनुमति नहीं दी गई और उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया गया.

दूसरी तरफ आस्ट्रेलियाई ब्रौडकास्टिंग कौर्पोरेशन की दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख अवनी डायस ने बताया कि सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर की गई रिपोर्टिंग पर भारत सरकार द्वारा आपत्ति जताने के बाद उन्हें लोकसभा चुनाव के दिन यानी 19 अप्रैल को भारत छोड़ना पड़ा था. डायस ने कहा, “मुझे अचानक भारत छोड़ना पड़ा. भारत सरकार ने मुझ से यह कहते हुए कार्य वीजा को बढ़ाने ने इनकार कर दिया कि मेरे द्वारा की गई रिपोर्टिंग सीमा लांघ गई थी.”

इस से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार अगर चाहती तो आस्ट्रेलिया की इस महिला पत्रकार को कम से कम चुनाव की अवधि तक सम्मान से रिपोर्टिंग का अवसर दे सकती थी, मगर ऐसा लगता है कि आज की सत्ता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरे बैठाने में अपना हित समझती है. और सरकार के इस कार्य-व्यवहार से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सचमुच भारत में लोकतंत्र पर पहरा बढ़ता जा रहा है.

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