(डेढ़ स्टार)

यह फिल्म 1998 में आई ‘बड़े मियां छोटे मियां’ की सीक्वल है. पिछली फिल्म में बड़े मियां का रोल अमिताभ बच्चन और छोटे मियां का रोल गोविंदा ने निभाया था. वह एक कौमेडी फिल्म थी जबकि नई फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ के ऐक्टर्स भी अलग है और यह फिल्म पिछली फिल्म के मुकाबले एकदम अलग एक ऐक्शन फिल्म है. इस फिल्म में युवा पीढ़ी के कलाकारों अक्षय कुमार को बड़े मियां बनाया गया है तो टाइगर श्रौफ को छोटे मियां बनाया गया है.

इन दोनों कलाकारों ने अपनी शुरुआती फिल्मों में खूब धमाकेदार ऐक्शन किए हैं, मगर पिछले 2-3 सालों से दोनों की फिल्में खूब पिटी हैं और दर्शकों में इन का क्रेज खत्म हो चुका है. अक्षय कुमार की ‘पृथ्वीराज’, ‘बच्चन पांडे’, ‘रामसेतु’, जिसे मोदी सरकार ने प्रचार के लिए बनवाया था, और ‘रक्षाबंधन’ जैसी फिल्में बुरी तरह फ्लौप हो गईं.

छोटे मियां यानी टाइगर श्रौफ की पिछली दोनों फिल्में ‘हीरोपंती-2’ और ‘गणतंत्र’ को तो दर्शक भी नसीब नहीं हुए. अब अली अब्बास जफर, जिस ने ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी ऐक्शन फिल्म बनाई थी, इन दोनों फ्लौप ऐक्टर्स को ले कर इस धमाकेदार ऐक्शन फिल्म को बनाया है. फिल्म देखते वक्त लगता है कि दर्शक फिल्म में ऐक्शन नहीं, ऐक्शन में फिल्म देख रहे हों. मशीनगनों, टैंक, मिसाइलों के अलावा अत्याधुनिक हथियारों वाली इस फिल्म में अगर कमी है तो यह कि इस में कहानी नदारद है.

कहानी में दिखाया गया है कि भारत पर लगातार खतरा मंडराता नजर आता है. दुश्मनों के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करने के लिए भारत के वैज्ञानिकों ने एक अद्भुत शील्ड ‘करनकवज’ ईजाद की है जो युद्ध होने पर भारत को ढक लेगी और दुश्मनों की मिसाइलों को नेस्तनाबूद कर देगी.

भारतीय सेना की टुकड़ी एक कीमती पार्सल को सुरक्षित जगह ले कर जा रही होती है. तभी एक भारीभरकम कदकाठी वाला मास्कमैन जवानों को मौत के घाट उतार कर कवच अपने कब्जे में कर लेता है. कर्नल आजाद (रोनित रौय) इस मास्कमैन से निबटने और कवच वापस लाने की जिम्मेदारी कोर्टमार्शल की सजा पा चुके 2 जवानों कैप्टन फिरोज उर्फ फ्रेडी (अक्षय कुमार) और कैप्टन राकेश उर्फ रौकी (टाइगर श्रौफ) को देते हैं. फ्रेडी और रौकी उस पार्सल को मास्कमैन से छीन कर वापस लाते हैं. तभी दुश्मनों की मिसाइलें भारत को तबाह करने के लिए रवाना होती हैं. फ्रेडी और रौकी हवा में ही उन मिसाइलों को खत्म कर भारत को बचा लेते हैं ठीक उसी तरह जैसे आजकल इजरायल और हमास तथा यूक्रेन और रूस के बीच छोड़ी जा रही मिसाइलों को हवा में ही नष्ट किया जा रहा है. इस मिशन में फ्रेडी और रौकी के साथ कैप्टन (मानुषी) और आईटी स्पैशलिस्ट भी हैं.

फिल्म की यह कहानी एकदम खोखली है. कहानी का लेखन बहुत ही कमजोर है. कल्पना के घोड़े दौड़ाए गए हैं. टैक्नोलौजी, एआई, पाकिस्तान, मानव क्लीन, प्रलय जैसी कई बातें फिल्म में डाली गई हैं, फिर भी कोई ड्रामा नहीं बन पाया है. फिल्म दर्शकों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाती. दरअसल, इस फिल्म को देखने जाने से पहले दिमाग को घर पर छोड़ कर जाना होगा.

फिल्म में इन दोनों नायकों के मानव क्लोनों को दिखाया गया है जो दोनों नायकों से ऐक्शन करते नजर आते हैं. ऐक्शन दृश्यों में कई विदेशी फिल्मों की नकल की गई लगती है. फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. लंबाई ज्यादा है.

मध्यांतर से पहले फिल्म तेज रफ्तार से भागती है. कहानी असल में सैकंडहाफ में शुरू होती है, जब इस में साइंस फिक्शन का तड़का लगता है. मास्कमैन कबीर (पृथ्वीराज सुमुकारन) के साथसाथ फिल्म आजकल बहुचर्चित एआई तकनीक की भी बात करती है, मगर इस में रिसर्च की कमी साफ दिखाई देती है.

निर्देशक फिल्म में कुछ नया नहीं दिखा पाया है. अक्षय कुमार चिरपरिचित अंदाज में है. टाइगर श्रौफ कौमिक जोक्स से प्रभावित करता है. मानुषी छिल्लर ने अच्छे ऐक्शन सीन दिए हैं. पृथ्वीराज सुदुमारन नैगेटिव भूमिका में सब पर भारी पड़ा है. फिल्म का तकनीकी पक्ष अच्छा है. 2 गाने अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म में याद रखने लायक कुछ नहीं है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.

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