कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस शिवगनामन और न्यायमूर्ति सुप्रतिम भट्टाचार्य के सामने एक हैरान करने वाला मामला सामने आया. अदालत के सामने एक जनहित याचिका दायर (पीआईएल) की गई, जिस में कहा गया कि राज्य की जेलों में महिला कैदी गर्भवती हो रही हैं. यह महिलाएं जेलों में अपनी सजा काटने के दौरान गर्भवती हो रहीं हैं. याचिका में अदालत से सुधार गृहों के पुरुष कर्मचारियों के उन बाड़ों में काम करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया, जहां महिला कैदियों को रखा जाता है. याचिका में इस को बहुत ही गंभीर मामला कहा गया है.

याचिका में कहा गया कि जेलों में अब तक कम से कम 196 शिशुओं ने जन्म लिया है. यह मामला जेल के अंदर बंद महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा है. अदालत ने कहा यह बहुत गंभीर मुद्दा है. अदालत ने इन सभी मामलों को आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ को स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर दिया है.

एनसीआरबी ने 2023 की अपनी रिपोर्ट में बताया कि पश्चिम बंगाल की जेलों में क्षमता से 1.3 अधिक महिला कैदी बंद हैं. पश्चिम बंगाल की जेलों में 19,556 पुरूष और 1 हजार 920 महिलाएं कैद हैं.

आमतौर पर जब महिलाएं जेल भेजी जाती हैं तो उन का मैडिकल टेस्ट होता है. खासतौर पर यह देखा जाता है कि महिला गर्भवती है या नहीं? पश्चिम बंगाल की जेलों में जिन महिलाओं का मुद्दा उठ रहा है वह इस से अलग है. यहां जिन महिलाओं की बात हो रही है वह जेल में रहते हुए गर्भवती हुईं. जेलों में महिला के साथ बलात्कार होना सरल काम नहीं है. वहां सुरक्षाकर्मी और जेल सहकर्मी दोनों ही होते हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कैसा शोषण है ?

क्या कहता है आर्टिकल 21 :

यह मसला शोषण से अधिक सैक्सुअलिटी का लगता है. सैक्स के बारे में समाज की सोच बेहद रुढ़िवादी है. सैक्स जिंदगी से वैसा ही गुंथा है जैसा इसे होना चाहिए. सैक्सुअलिटी जिंदगी है. इसी के जरिए जिंदगी आगे बढ़ती है, यही प्रकृति है. संविधान ने भी आर्टिकल 21 के तहत इस को मौलिक अधिकार माना है.

आर्टिकल 21 यह अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं हो सकता है. इस का अर्थ है कि राज्य कानून के अधार पर किसी भी व्यक्ति की जिंदगी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को वंचित नहीं कर सकता है.

आर्टिकल 21 में प्रयुक्त दैहिक स्वतंत्रता शब्द पर्याप्त विस्तृत अर्थ वाला शब्द है और इस रूप में इस के अंतर्गत दैहिक स्वतंत्रता के सभी आवश्यक तत्व शामिल है जो व्यक्ति को पूर्ण बनाने में सहायक है. इस में ही अपनी इच्छा अनुसार विवाह करने का अधिकार और सैक्स करने का अधिकार भी दिया गया है. जिस का अर्थ यह है कि कोई औरत अगर अपनी इच्छा से सैक्स करती है तो वह अपराध नहीं है. सैक्स उस का मौलिक अधिकार है. अब इस से वह गर्भवती होती है या उस के बच्चे होते हैं तो वह भी उसी का हिस्सा है.

महिलाओं ने उठाई आवाज

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक महिला ने गर्भवती होने के लिए अर्जी लगाई कि वह मां बनना चाहती है इसलिए जेल में बंद उस के पति को कोर्ट रिहा कर दे. महिला ने कहा है कि 15 से 20 दिनों के लिए ही सही, उस के पति को रिहा कर दिया जाए, जिस से वह मां बन सके.

महिला की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने मैडिकल जांच के आदेश दिए हैं, जिस से यह पता चल सके कि वह मां बन सकती है या नहीं. महिला का पति एक आपराधिक मामले में इंदौर सेंट्रल जेल में बंद था.

महिला ने हाई कोर्ट से कहा है कि संतान पैदा करना मौलिक अधिकार है, इसलिए अदालत उस के पति को रिहा कर दे. महिला ने अपनी याचिका में रेखा बनाम राजस्थान सरकार का जिक्र करते हुए कहा है कि पहले भी ऐसे मामले में जमानत दी जा चुकी है. एक बेंच ने संतान प्राप्ति के लिए एक कैदी को 15 दिनों की पैरोल दी थी. इस से यह साफ होता है कि मौलिक अधिकारों के प्रति अदालतें कितना सचेत रहती हैं.

जेलों में बच्चों की हालत

कुछ समय पहले इस संवाददाता को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जेल में कैद कुछ महिलाओं से मिलने का मौका मिला था. इन में से कुछ जेल में जाने से पहले गर्भवती थी वहां उन के बच्चे का जन्म हुआ और कुछ महिलाएं ऐसी थी जिन को उस समय अपराधिक मसले में जेल भेजा गया. जब उन का बच्चा छोटा था तो उसे भी मां के साथ जेल भेज दिया गया था. जेल में यह देखने को मिला कि बच्चे कैसे पलते हैं ?

जेल नियमों के मुताबिक जेल में अगर किसी महिला कैदी का बच्चा 5 साल से कम उम्र का है तो वो जेल में ही बने क्रच में रह सकता है. ऐसे बच्चों के लिए जेल में बकायदा क्रच का इंतजाम होता है, जिस का संचालन किसी न किसी एनजीओ को दिया जाता है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक देश भर की जेलों में 4,19,623 कैदी हैं, जिन में से 17,834 महिलाएं हैं, यानी कुल कैदियों में 4.3 फीसदी महिलाएं हैं. साल 2000 में ये आंकड़ा 3.3 फीसदी था. यानी 15 साल में महिला कैदियों में एक फीसदी का इजाफा हुआ है. 17,834 में से 11,916 यानी तकरीबन 66 फीसदी महिलाएं विचाराधीन कैदी हैं.

महिला कैदियों की स्थिति में सुधार नहीं होने की एक वजह इन के बढ़ते आंकड़े हैं. देश के अधिकांश जेलों में कैदियों की संख्या ज्यादा और स्टाफ कम हैं. एक तरफ जहां सुरक्षाकर्मियों की कमी है दूसरी तरफ विचाराधीन कैदियों की वजह से जेलों में भीड़ भी लगातार बढ़ती जा रही है.

देशभर के जेल में तकरीबन 34 फीसदी स्टाफ की कमी है. तकरीबन 80 हजार स्टाफ की जरूरत है और केवल 53000 स्टाफ ही हैं. महिला कैदियों में से ज्यादातर के बच्चे छोटे थे. 5 साल के उपर के बच्चे उन के नाते रिश्तेदारों के साथ बाहर रहते हैं. वह उन से मिल नहीं पातीं. हत्या जैसे मामलों में ज्यादातर महिला कैदी बंद होती हैं. ऐसी महिलाओें को घर परिवार और समाज के लोग बुरा समझ कर छोड़ देते हैं. वह इन को जेल से बाहर नहीं लाना चाहते हैं. अपराधी महिला के शरीर की भी जरूरत होती है. इस बात को समझने की जरूरत नहीं महसूस की जाती. सालोंसाल यह अपने पति या परिवार से मिल नहीं पाती है.

देश में कुल 1401 जेल हैं जिन में से केवल 18 में महिला कैदियों के लिए अलग जेल की व्यवस्था है. यानी बाकी जेलों में महिला कैदी पुरूषों और महिला कैदियों के लिए बने साझा जेल में रहने को मजबूर है. इन जेलों में एक दीवार बना कर महिला कैदियों और पुरुष कैदियों के लिए अलगअलग व्यवस्था की जाती है.

महिला कैदियों की उम्र कि बात करें तो 30-50 साल की उम्र की महिला कैदी 50.5 फीसदी हैं. 18-30 साल की उम्र के महिला कैदी 31 फीसदी हैं. जरूरत इस बात की है कि महिला कैदियों के जेल में रहने के दौरान परिवार से संबंध बना रहे इस के लिए उन्हें समयसमय पर परिवार से मिलने जाने दिया जाए. जिन महिला विचाराधीन कैदियों ने अपने जुर्म की अधिकतम सजा का एकतिहाई समय जेल में बिता दिया हो, उन की बेल पर रिहाई का प्रवाधान किया जाए.

पारिवारिक रिश्तों को जेल के दौरान भी बनाए रखने के लिए सजायाफ्ता कैदियों को 7 हफ्ते की छुट्टी और 4 हफ्ते के पैरोल यानि किसी विशेष काम के लिए मिलने वाली छुट्टी का प्रावधान है. इस के लिए कोर्ट से इजाजत मिलती है. बहुत सारे मामलों में परिवार रूचि नहीं दिखाते तो इस का लाभ महिला कैदी को नहीं मिल पाता है.

महिलाओं के साथ भेदभाव

सैक्स इंसान की जरूरत है. इस बात को हमेशा स्वीकार भी किया जाता है. युद्ध में जब सैनिक घरों से दूर रहते हैं तो उन के लिए ऐसे प्रबंध किए जाते हैं. जिन का जिक्र कम होता है पर कई बार इस तरह की बातें सामने आती भी हैं. यहां भी महिलाओं के साथ भेदभाव होता है.

इसराइल में सैनिकों को सरोगेट सैक्स थेरैपी मुहैया कराने का खर्चा खुद सरकार उठाती है. बुरी तरह घायल और यौन पुनर्वास की जरूरत वाले सैनिकों को यह सुविधा मुहैया कराई जाती है. सरोगेट सैक्स थेरैपी के तहत मरीज के लिए किसी ऐसे शख्स को हायर किया जाता है, जो उस के सैक्स पार्टनर जैसा व्यवहार करे.

इस के लिए कन्सलटेशन रूम होता है. जिस में छोटा आरामदेह काउच, दीवारों पर महिला और पुरुष जननांगों के फोटो लगे होते हैं. यह कमरा होटल के कमरे की तरह नहीं होता है. यह घर जैसा दिखता है. किसी अपार्टमेंट की तरह. यहां बिस्तर, सीडी प्लेयर, कमरे से सटे बाथरूम में शावर भी होता है. इस को वेश्यावृति नहीं माना जाता है. सैक्स थेरैपी कई मायनों में एक कपल थेरैपी मानी जाती है. सरोगेट महिला या पुरुष यहां पार्टनर की भूमिका निभाने के लिए रखे जाते हैं. इसराइल में इसे इस हद तक मंजूरी मिली हुई है कि सरकार उन घायल सैनिकों के लिए सरोगेट सैक्स थेरेपी का पूरा खर्चा उठाती है.

सैक्स थेरैपी सेशन का 85 फीसदी हिस्सा अंतरंगता सिखाता है. इस में अंतरंगता कायम करने के तरीके बताए जाते हैं. उन्हें एकदूसरे के करीब आने, स्पर्श, छूने के तरीके, शारीरिक आदानप्रदान और अंतरंग संवाद कायम करने के तरीके बताए जाते हैं.

इसराइल में 18 साल की उम्र तक आते ही ज्यादातर इसराइलियों को आवश्यक मिलिट्री सर्विस के लिए बुला लिया जाता है और वे अधेड़ होने तक रिजर्व सैनिक बने रह सकते हैं. ऐसे में उन की हर तरह की जरूरतों का ध्यान रखा जाता है.

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों द्वारा मौज-मस्ती और शारीरिक भूख मिटाने के लिए 2 लाख से अधिक विदेशी युवतियों को सैक्स गुलाम यानि यौन गुलाम बनाया गया था. इन्हें कंफर्ट वीमन नाम दिया गया था. इस में से ज्यादातर लड़कियां दक्षिण कोरिया की थीं. करीब 80 साल के बाद कोर्ट ने इस पर बड़ा फैसला देते हुए जापान सरकार को पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कहा. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों ने विदेशी लड़कियों को अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए सैक्स गुलाम बना रखा था. प्रत्येक सैनिक के लिए सैक्स गुलाम उपलब्ध थी. सैक्स गुलाम बनाई गई युवतियों की संख्या 2 लाख से अधिक थी.

जापानी सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में जम कर इन का यौन शोषण किया था. जबरन कई वर्षों तक अपने साथ रखा था. सैक्स गुलाम बनाई गई इन युवतियों को एक ही काम दिया गया था, वह था सैनिकों की शारीरिक भूख मिटाना.

कोर्ट ने युद्धकालीन यौन दासता के सभी पीड़ितों को 1,54,000 डौलर यानि प्रत्येक को 1 करोड़ 28 लाख रुपए से अधिक का बतौर मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया. अदालत ने कहा कि पीड़ितों का जबरन अपहरण किया गया, फिर उन्हें यौन दासता में फंसाया गया. जबकि निचली अदालत ने इस मांग को खारिज कर दिया था. जीवित बची 16 महिलाओं ने कोर्ट में अपील दायर की थी. मगर 2021 में निचली अदालत ने कहा था कि महिलाएं मुआवजे की हकदार नहीं हैं. कोर्ट ने कहा था कि यदि पीड़ितों के पक्ष में फैसला सुनाया तो एक राजनयिक घटना हो सकती है.

जिन महिलाओं और लड़कियों को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यौन गुलाम बनाया गया था, वह सभी युद्ध के बाद सामान्य जिंदगी नहीं जी सकीं थी. सैक्स को ले कर इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि यह इंसानी जरूरत है. किसी महिला को यदि कैदी के रूप में जेल भेज दिया जाता है तो उस की शारीरिक जरूरतें खत्म नहीं हो जाती. इसराइल में सैनिकों की जरूरत को समझ कर सैक्स थेरैपी दी जाती है. तो दूसरे विश्वयुद्ध में जबरन सैक्स गुलाम बनाने के खिलाफ 80 साल बाद मुआवजा देने का आदेश हो सकता है.

हमारे देश में जो महिला कैदी हैं उन में 2 तरह की हैं. एक में घर परिवार उन की कानूनी मदद करता है तो उन को भी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए जेल से कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाती है. वहां कुछ महिला कैदी वैसी हैं जिन के जेल जाने के बाद उन के घरपरिवार के लोग भूल चुके होते हैं. अगर देश की जेलों में कैद 18 से 50 साल उम्र की महिला कैदियों की बात करें तो इन की संख्या 80 फीसदी है. ऐस में ‘राइट टू हैव सैक्स’ इन का मौलिक अधिकार है जिसे संविधान ने आर्टिकल 21 में दिया है. इस पर भी विचार करना जरूरी है.

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