उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ही लोकसभा चुनाव की नजर से सब से प्रमुख विपक्षी दल हैं. 2019 में सपा 5, बसपा 10 और कांग्रेस को 1 सीट मिली थी. बीतें 5 सालों में हुए उपचुनावों में सपा 2 सीटें भारतीय जनता पार्टी से हार गई. इस से अब उस के पास केवल 3 सांसद हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव भी हुए, उन में भी सपा को छोड़ कांग्रेस और बसपा मुकाबले में कहीं नजर नहीं आईं. सभी दलों को अपनी राजनीतिक जमीन का पूरा अंदाजा है.

2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा मिल कर लड़ी थीं. कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं थी लेकिन अमेठी और रायबरेली सीट पर सपा फ्रैंडली समर्थन दे रही थी. मोटामोटा देखें तो सपा, बसपा, कांग्रेस और लोकदल पिछले चुनाव में एकसाथ थे. बसपा अभी बाहर है पर उस की लड़ाई भी भाजपा से अधिक है. इंडिया गठबंधन में भले ही बसपा न हो पर कांग्रेस की सोच यह है कि बसपा साथ आए. बसपा को साथ लेने से सपा को एतराज है. कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि वह सपा-बसपा को एक मंच ले आएगी.

मोदीविरोधी मोरचे की शुरुआत भले ही बिहार के मुख्यमंत्री जनता दल युनाइटेड नीतीश कुमार ने की हो पर उस को आगे बढ़ाने का काम कांग्रेस ने किया. उस की वजह यह है कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन का सब से बड़ा पार्टनर है. वह इस भूमिका को अदा करने का काम भी कर रही है. ‘दक्षिणापंथी’ हर संभव इस कोशिश में थे कि सीट बंटवारे के मसले पर इंडिया गठबंधन बिखर जाए. सपा, टीएमसी और आप इस झांसे में आ कर सीट बंटवारे पर तूतू मैंमैं करने भी लगीं. कांग्रेस ने धैर्य दिखाया, जिस से बंटवारा नहीं हो सका.

बड़ी कुर्बानी को तैयार कांग्रेस

कांग्रेस की तरफ से यह कह दिया गया कि उस का फोकस लोकसभा की उन 128 सीटों पर है जहां लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है. 308 सीटें ऐसी हैं जहां पर इंडिया गठबंधन के दल भी मुकाबले में हैं. कांग्रेस इन समीकरणों को देख कर कुल 255 सीटों पर फोकस कर रही है. ऐसे में उस के और सहयोगी दलों के बीच बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं है. कांग्रेस अपने से ज्यादा सहयोगी दलों को ले कर परेशान है. पश्चिम बंगाल में टीएमसी और सीपीआईएम, उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा एकसाथ नहीं जुट रहे.

कांग्रेस इंडिया गठबंधन को एकजुट रखने के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार है. वह सीट बंटवारे को नाक का सवाल नहीं बनाने जा रही. इस के साथ ही साथ कांग्रेस अपना प्रधानमंत्री भी नहीं बनाना चाहती. कांग्रेस इस के लिए मायावती के नाम पर विचार कर रही है. इस के सब से मुखर विरोधी सपा और टीएमसी हैं. कांग्रेस इन दलों को विश्वास में ले कर ही कोई निणर्य लेना चाहती है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने सीट फामूर्ला 2 तरह के प्लान के साथ तैयार किया है. पहला प्लान जिस में कांग्रेस, सपा और लोकदल है. उस में कांग्रेस अपने लिए 12 से 15 सीटें चाहती है. दूसरे प्लान में कांग्रेस सपा के साथ बसपा को जोड़ कर चल रही है. इस में कांग्रेस 10 सीटों पर तैयार हो जाएगी. बची 70 सीटों पर बसपा और सपा व लोकदल होंगे. 2019 के लोकसभा में सपा 36 और बसपा 37 पर चुनाव लड़ी थीं. कुछ इसी तरह के बंटवारे की राह निकलने की उम्मीद है.

सत्ता नहीं, मुद्दे हैं खास

15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन है. राजनीतिक हलकों में यह कयास लगाया जा रहा है कि इस दिन कुछ बड़ा हो सकता है. बसपा और सपा के बीच कांग्रेस सीटों की कुर्बानी देने का तैयार है. कांग्रेस के लिए सत्ता से अधिक मुद्दे खास हैं. केंद्र की सरकार को हटाना जरूरी है. अगर भाजपा को नहीं हटाया गया तो सभी दलों पर खतरा मंडरा रहा है. यह बात कांग्रेस ही नहीं, इंडिया गठबंधन के दूसरे दल भी जानते हैं. इसलिए आपस में सीट बंटवारे को ले कर कोई दिक्कत नहीं है. इन सब का एक ही फामूर्ला है कि जहां जो दल भाजपा को हरा सकता है वह हराए. आपस में टकराव न करें.

बारबार ‘दक्षिणापंथी’ मीडिया के समर्थक इस बात को दिखाते रहते हैं कि इंडिया गठबंधन सीट बंटवारा कैसे करेगी? उन के बीच लड़ाई है. असल में आपस में कोई लड़ाई नहीं है. गठबंधन की लड़ाई केवल भाजपा से होगी. जो भी दिक्कतें आएंगी, कांग्रेस बड़े पार्टनर के रूप में उन की कांउसलिंग करती है, अपने को दो कदम पीछे हटाती है.

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की जोड़ी अलग तरह की राजनीति देश के सामने पेश करने के रोडमैप पर चल रही है. अब छोटे दल भी इस बात को समझ रहे हैं. इंडिया गठबंधन की मीटिग न होने की एक वजह यह होती है कि हर मीटिंग के बाद कोई न कोई नेता कोई ऐसी बात बोल देता है जिस को दक्षिणपंथी समर्थक मीडिया तिल का ताड़ बना देती है. जिस से खटास बढ़ रही है. अब सभी दलों के नेता आपस में बात कर के मसले सुलझा रहे हैं.

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