संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के एक कोर्स‘एमए हिंदू’ अध्ययन में इस साल मात्र 1 छात्र ने ही अप्लाई किया है.यह कोर्स जब शुरू किया जा रहा था तब ढोलमजीरे बजाए गए, मीडिया ने भी खूब वाहवाही की, इसे नवयुवकों के हिंदू धर्म के प्रति ज्ञान बढ़ाने के उद्देश्य के साथ यह कहा जा रहा था कि इस में रोजगार के विकल्प खुलेंगे.

हैरानी इस बात की नहीं कि इतने गाजेबाजे के बावजूद सिर्फ एक ही स्टूडैंटने इस कोर्स में एडमिशन लिया,हैरानी तो उस स्टूडैंट पर है कि आखिर किन मजबूरियों में उसे ऐसे कोर्स में एडमिशन लेना पड़ा? अब जाहिर है एक छात्र के साथ यह कोर्स कराना संभवनहीं, जिस के लिए पूरी फैकल्टी लगाई जाए,महंगे शिक्षक लगाए जाएं, क्लास एलौट किया जाए. ऐसे में यह पूरा एक्सपैरिमैंट ही बड़ा फेलियर साबित हुआ है.

जब यह कोर्स शुरू किया जा रहा था तब कहा जा रहा था कि इस में अध्यापन, कथा मर्मज्ञ,ज्योतिषीचार्य व कर्मकांड के क्षेत्र में रोजगार खुलेंगे. आप खुद सोचिए जिस तरह के रोजगार मिलने की बात यह कोर्स कर रहा है, वे रोजगार हिंदुओं में किन के हाथों तक सीमित हैं, क्या वे किसी गैरब्राह्मण को इन कामों को करते देख सकता है? दूसरा,मुफ्तखोरी वाले इस काम को रोजगार माना जाए भी कि नहीं? पंडिताई, हाथदिखाई, लगन कराई, झाड़फूंक जैसे काम किसी तरह के उत्पादन नहीं करते, सिवा अंधविश्वास फैलाने के.

कोर्स में युवाओं के दिलचस्पी न लिए जाने से एक बात और साबित होती है कि हिंदू अपने वेदपुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों को पढ़ना नहीं चाहते. यह हिंदुओं के उस फरेब को दिखाता है जो संस्कृति का ढोल तो खूब पीटते हैं लेकिन उन में रत्तीभर भी पढ़ने की इच्छा नहीं है.

फलांना कोई आता है और किसी भी आविष्कार पर कहता है कि यह तो वेदों व उपनिषदों में पहले ही लिखा हुआ है. तो, हिंदू बस बिना पढ़े हीकल्पना कर लेते हैं कि हमारे शास्त्रों में सबकुछ लिखा हुआ है, हम ने परमाणु दिया, हम ने चांद पर पहुंचने का रास्ता खोजा, कंप्यूटर तो पुराणों में है, ट्रांसप्लांट सर्जरी तो शिवजी कर चुके हैं,हमारा धर्म सबसे प्राचीन है,ये महान ग्रंथ है, इन ग्रंथों के लिए हिंदू अपनी जान दे सकता है फलांनाढीमकाना आदिआदि. लेकिन पढ़ने की बात आएगी, तो पढ़ेगा नहीं.

ज्यादा से ज्यादा हिंदू वेदों का नाम तो बता देंगे लेकिनउन वेदों के चरितार्थ क्या हैं, इसे जानने के लिए वे प्रवचन करने वाले पंडेपुरोहित या बाबाओं के भरोसे हैं और आजकल तो नवयुवकों को व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने का चस्का अलग लग गया है. लेकिन असल में वेदों, पुराणों में है क्या, यह जानने की इच्छा अधिकतर को रत्तीभर नहीं है.

अब मुद्दे पर आया जाए तो एक तथ्य यह भी है कि जिस दिनपिछड़ों ने अपने धर्मग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दिया, श्लोकों, किस्सों, कथाओं को जानना शुरू कर दिया तो धर्म को ले कर बनाई गई नैतिकता, सम्मान ख़ाक में मिल जाएगी.इन पुस्तकों के आधार पर रचा गया पाखंड और पाखंड के जरिए निचलों से लूटमाटकरने का सारा खेल ही खत्म हो जाएगा.

वह खुद ही समझ आ जाएगा कि पुराण,उपनिषद और स्मृतियां आदि सबने किस प्रकार से भारतीय समाज को भेदभाव के जाल में फंसारखा है. आज जो धर्म के नारे लगा सड़कों पर लठैत बने घूम रहे हैं उन्हें कैसे इन ग्रंथों के माध्यम सेनीचबना कर पढ़ने से रोका गया, इस की पोल खुल जाएगी.

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