3 दोस्त रमेश, दीपक और सुरेश ने उज्जैन के महाकाल में दर्शन करने का कार्यक्रम तय किया. वे अपनी कार से 8 घंटे का सफर तय कर के रात करीब 11 बजे उज्जैन पंहुच गए. पहले से ही धर्मशाला का नंबर ले कर वहां रुकने का इंतजाम हो गया था. वहां धर्मशाला में रुके. धर्मशाला के मैनेजर ने बताया कि सुबह की आरती देखने के लिए पहले से रजिस्ट्रेशन करा लीजिए. आधार कार्ड और प्रति व्यक्ति सौ रुपए ले कर रजिस्ट्रेशन हो गया. इस के बाद रात का खाना खाते 12 बज गए. मैनेजर ने यह बताया था कि 2 से 3 बजे के बीच मंदिर के गेट नंबर 2 पर पहुंच जाना क्योंकि सीमित संख्या में ही दर्शन करने के लिए लोग अंदर जाते हैं.

रात एक बजे के बाद ही तीनों दोस्त मंदिर गेट पर पहुंचे तो बताया गया कि अपने कपड़े उतार कर धोती पहननी है. प्रसाद वाली दुकान पर धोती मिली, उसे पहना गया. इस के बाद मंदिर के अंदर प्रवेश मिला. वहां देखा तो पता चला कि उस हौल में पहले से ही सौ से दो सौ के करीब लोग मौजूद हैं. अब लाइन लग गई. 3 बजे से लगी लाइन में खड़ेखड़े करीब 2 घंटे बीते होंगे.

5 बजे के करीब उस हौल में बैठने का मौका मिला जहां से आरती और शृंगार को देखा जा सकता था. वह हौल सिनेमाघर जैसा बना था जहां आगे वाले करीब से देख रहे थे और पीछे वाले दूर से. भीड़ भी बढ़ती जा रही थी. हौल में टीवी स्क्रीन भी लगे थे. जिन पर पूजा और शृंगार को देखा जा सकता था.

6 बजे शुरू हुई पूजा एक घंटे तक चलती रही. इस के बाद ही हौल से बाहर निकलने को मिला. मंदिर परिसर में तमाम और छोटेछोटे मंदिर हैं, जिन के महत्त्व वहां लिखे थे. ऐसे में एक के बाद एक मंदिर में दर्शन किए गए. रात से अभी तक सुकून नहीं मिला था.

उज्जैन मंदिर के बाहर निकल कर प्रसाद वाली दुकान में ही कपड़े बदले गए. इस के बाद चायनाश्ता कर के सोच रहे थे कि अब धर्मशाला चला जाए, तभी एकदो लोगों से बात हुई तो पता चला कि महाकाल के दर्शन करने के बाद काल भैरव के दर्शन जरूरी होते हैं. किराए पर एक औटो रिकशा ले कर काल भैरव गए तो रास्ते में बातों में यह पता चला कि उज्जैन में एक के बाद एक कई मंदिर हैं. ऐसे में सब का दर्शन जरूरी होता है. दोपहर इन मंदिरों के दर्शन में बीत गई. शरीर पूरी तरह से थक चुका था. खाना खाने की ताकत भी शरीर में नहीं थी.

धर्मशाला वाला कमरा रात को तो ठीक लग रहा था. दिन के उजाले में वह सोने लायक नहीं दिख रहा था. ऐसे में धर्मशाला छोड़ कर होटल लिया गया. होटल के कमरे में पहुंचते ही बिस्तर पर जैसे ही लेटे होंगे, नींद बेहोशी की तरह से आ गई. कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. होटल के वेटर ने घंटी बजा कर पूछा कि ‘डिनर रूम में लेंगे या रैस्तरां में?’ तब जा कर पता चला कि हम पर्यटन पर उज्जैन के महाकाल दर्शन करने आए हैं. जैसेतैसे डिनर कर के वापस कमरे में आ कर सो गए. यह पर्यटन सुकून नहीं, परेशानी का सबब बन गया था. घर वापस आने के बाद भी यह एहसास नहीं हो रहा था कि कहीं घूम कर वापस लौटे हैं.

हर जगह चढ़ावा

यह केवल एक मंदिर की ही बात नहीं है. उत्तर प्रदेश का मशहूर मंदिर है विध्यांचल देवी का मंदिर, जो मिर्जापुर में पड़ता है. वहां पतिपत्नी राकेश और सविता दर्शन करने के लिए ट्रेन से पहुंचे. रात को करीब 10 बजे थे. रेलवे स्टेशन से मंदिर के पास बाजार पंहुच कर गेस्ट हाउस टाइप होटल में एक कमरा 2 हजार रुपए के लिए बुक किया. कमरा साधारण ही था. रेट के हिसाब से उतना अच्छा नहीं था. वहां से मंदिर 2 किलोमीटर दूर था. मंदिर दर्शन के पहले गंगा स्नान करना था. ऐसे में सुबह

5 बजे वहां पहुंच गए. गंगा में खुले में ही महिलापुरुष स्नान कर रहे थे. इस के बाद किसी तरह से इधरउधर जगह देख कर कपड़े बदले गए.

गंगा नदी से करीब एक किलोमीटर दूर मंदिर था. मंदिर के पास भारी भीड़ थी. अचानक एक पुजारी की निगाह इन लोगों पर पड़ी. पुजारी ने इशारा किया कि इधर से आएं. इन लोगों को लगा कि वह कोई मदद कर रहा होगा. मंदिर की व्यवस्था में लगा होगा. उस ने अपने पीछेपीछे इन को ले जा कर मुख्य मंदिर के द्वार पर खड़ा कर दिया. अंदर एक और पुजारी था. दोनों के बीच कोई बात हुई जिस के कारण मंदिर में दर्शन थोड़ा जल्दी मिल गया. प्रसाद भी रास्ता दिखाने वाले पुजारी ने अपने पास से दिलवा दिया. पूजा-दर्शन के बाद जब बाहर निकले तो रास्ता दिखाने वाले पुजारी ने दक्षिणा के लिए 11 सौ रुपए का इशारा किया. न चाहते हुए भी 11 सौ रुपए उस को देने पड़े.

हर मंदिर की एक खास बात होती है. वहां यह लिखा रहता है या पुजारी यह बताता है कि इस मंदिर के दर्शन का कार्य तभी पूरा होगा जब दूसरे मंदिर का दर्शन किया जाए. विध्यांचल दर्शन के बाद काली खोह और अष्ठभुजा देवी का दर्शन करने की मान्यता है. काली खोह के मंदिर में दर्शन कराने से ले कर जगहजगह पूजा और चढ़ावा के लिए दर्शन करने वाले दबाव डालते हैं. वे पूजा और चढ़ावा देने वालों को अच्छे से दर्शन कराते और न देने वाले को ऐसे ही दर्शन करने को कहते हैं.

पहली बार दर्शन करने गया आदमी यह सम?ा ही नहीं पाता है कि किस तरह से वह इन के चंगुल में फंस गया. जब वह मंदिर से बाहर निकलता है तो पता चलता है कि 2 हजार रुपए का चढ़ावा बिना किसी तैयारी के चढ़ा चुका है. इसी तरह के हालात अष्ठभुजा देवी के दर्शन के समय हुए. सीढि़यों पर चढ़ते हुए पुजारी मिल जाते हैं कि ‘चलो दर्शन करा दें.’ पुजारी इस तरह से अपनीअपनी तरफ खींचते हैं कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पहाड़गंज की याद आ जाती है जहां होटल दिलाने के नाम पर तमाम एजेंट अपनी तरफ खींचते हैं और कहते हैं कि उन का होटल ही सब से अच्छा है.

धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 9 साल के कार्यकाल में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया गया. इस के लिए देश के कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया. नरेंद्र मोदी ने 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. तब वे देश के 15वें प्रधानमंत्री बने थे. बीते 9 सालों में मोदी ने देश में धार्मिक पर्यटन को खूब बढ़ावा दिया. देश के कई मशहूर मंदिरों का जहां उद्धार किया तो कई पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया.

यह ही नहीं, विदेशों में भी कई मंदिरों को स्थापित करने में मदद की. इन में अयोध्या में राममंदिर निर्माण, काशीविश्वनाथ कौरिडोर, चारधाम परियोजना जैसी कई योजनाएं शामिल हैं. प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि देश का आध्यात्मिक विकास तभी होगा जब देश में धार्मिक और पावन स्थलों को बेहतर किया जा सकेगा. वे कई बार कह चुके हैं कि भारत के धार्मिक पर्यटन उद्योग को धीरेधीरे विकसित करना है.

मंदिर ही मंदिर

देश में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में भव्य मंदिर बनाने पर मोदी ने जोर दिया है. 2018 में अबूधाबी में बनने वाले पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी. अबूधाबी में श्रीकृष्ण श्रीनाथजी के पुनर्निर्माण के लिए 4.2 मिलियन डौलर देने का ऐलान किया था. दुबई में एक नए भव्य हिंदू मंदिर के कपाट आधिकारिक तौर पर खोल दिए गए. यह हिदू मंदिर जेबेल अली में अमीरात के कौरिडोर औफ टोलरैंस में स्थित है.

अयोध्या में राममंदिर का निर्माण शुरू हुआ. जनवरी 2024 में इस का एक हिस्सा पूरा होगा. उस को दर्शन करने वालों के लिए खोला जाएगा. इस के बाद ही नरेंद्र मोदी का 2024 के लोकसभा चुनाव को ले प्रचार अभियान शुरू होगा. यह उद्घाटन कार्यक्रम नई संसद के उद्घाटन से भी भव्य होगा. इस की तैयारियां शुरू हो चुकी है.

राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने मंदिर निर्माण के काम की शुरुआत अगस्त 2020 में की थी. सरकार ने अयोध्या को एक बड़े तीर्थस्थल के रूप में विकसित कर धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बनाने की योजना बना रखी है.

नरेंद्र मोदी वाराणसी से सांसद हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद काशीविश्वनाथ मंदिर के कौरिडोर के जीर्णोद्धार का काम 8 मार्च, 2019 को शुरू कराया. इस के जरिए मंदिर दर्शन करने वाले घाट से पानी ले कर सीधा मंदिर आ सकते हैं

4 साल में भव्य काशीविश्वनाथ मंदिर कौरिडोर का निर्माण कार्य पूरा हुआ. इस बीच कम से कम 40 प्राचीन मंदिरों का भी पता चला, जिन का जीर्णोद्धार किया गया. काशीविश्वनाथ कौरिडोर से पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कही गई.

इसी तरह से गुजरात में सोमनाथ मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण कराया गया. नरेंद्र मोदी श्री सोमनाथ ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं. यह ट्रस्ट सोमनाथ मंदिर परिसर का प्रबंधन और रखरखाव करता है. उत्तराखंड का केदारनाथ मंदिर साल 2013 में बाढ़ आने पर प्रभावित हुआ था. मोदी सरकार ने केदारनाथ धाम का पुनर्विकास किया. केदारनाथ धाम की भव्यता को फिर से निखारा गया. मोदी सरकार ने केदारनाथ मंदिर के साथ ही साथ यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ आदि 4 पवित्र शहरों को एक ही सड़क से जोड़ने की योजना बनाई. इस के लिए 900 किलोमीटर लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया है.

जम्मूकश्मीर के एक आंकड़े से यह पता चला कि कश्मीर में कुल 1,842 हिंदू मंदिर या पूजास्थल हैं. इन में 952 मंदिर हैं जिन में 212 में पूजाअर्चना हो रही है पर 740 जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं. मोदी सरकार ने श्रीनगर में कई पुराने मंदिरों का पुनर्निर्माण शुरू कर दिया. सब से पहले ?ोलम नदी के किनारे बने रघुनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया.

नरेंद्र मोदी ने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में करीब 900 मीटर लंबे ‘श्री महाकाल लोक’ गलियारे का लोकार्पण किया. महाकालेश्वर मंदिर गलियारा विकास परियोजना कुल 856 करोड़ रुपए की लागत की है. पहले चरण में ‘महाकाल लोक’ को 351 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है.

पिछले 9 सालों में जो खर्च हुआ वह जो 2017-18 में 411 करोड़ आवंटित थे वहीं 411 करोड़ खर्च हुए. इसी तरह 2018-19 में 406 करोड़ में से 405 करोड़ खर्च हुए और 2019-20 में 436 करोड़ में से 435 करोड़ खर्च हुए.

धार्मिक पयर्टन में सुकून नहीं

जब हम पर्यटन के लिए धार्मिक जगहों पर जाते हैं तो वहां सुकून नहीं मिलता. वहां पंडेपुजारियों का एक आतंक सा दिखता है. बाहर से मंदिर कितना ही खूबसूरत क्यों न बन जाए, अंदर बैठे पुजारी और पंडों के लिए दर्शन करने आया व्यक्ति एक चढ़ावा चढ़ाने वाला आदमी ही होता है. उस से दर्शन करने, प्रसाद चढ़ाने, कोई विशेष पूजा कराने के लिए कहा जाता है. ऐसे में उस की जेब को लगातार ढीला किया जाता है.

हैरानी की बात यह होती है कि जानतेसम?ाते हुए भी व्यक्ति चढ़ावा चढ़ाने के लिए मजबूर हो जाता है. ऐसे में सुकून नहीं मिलता. वह हैरानपरेशान हो कर धर्म के डर से चढ़ावा चढ़ाता है. जब वह इस यात्रा से वापस आता है तो उस के मन में तमाम तरह की बुरी यादें होती हैं.

ऊंची जातियां अपने फायदे के लिए यह चाहती हैं कि सारी आर्थिक व्यवस्था धार्मिक रीतिरिवाजों के आसपास ही रहे जिस से चढ़ावे के रूप में पैसा उन के पास आता रहे. सरकार जनता के टैक्स के पैसों से मंदिरों का निर्माण कराती है. पुजारियों और आसपास के दुकानदारों को बिना पैसा खर्च किए अच्छी दुकान मिल जाती है. इस से बिना पूंजी अच्छा मुनाफा होता है. हर मंदिर परिसर में महंगाई ज्यादा होती है और सामान की क्वालिटी घटिया.

इन जगहों पर ऊंची जातियों की ही दुकानें होती हैं. मंदिर परिसर मानो सवर्ण रोजगार के अलावा कुछ और न हो. ऐसे में सरकार की धार्मिक पर्यटन नीति ग्राहक ले कर आई है. बिना किसी प्रयास के इन ऊंची जातियों के लोगों को सरकार की नीति से लाभ होता है. अपने इस वोटबैंक को खुश करने के लिए मोदी सरकार ने धार्मिक पर्यटन नीति को बढ़ावा देने का काम किया है. इस का इतना प्रचारप्रसार किया जाता है कि देखने वाले मजबूर हो कर इन शहरों में जाएं जिस से यहां कारोबार करने वालों को लाभ दे कर इन से वोट लिए जा सकें.

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