ससुरजी की मौत, पर सासजी और हमारी श्रीमतीजी खुश. और मैं हैरान. ऐसा नहीं कि गम का माहौल नहीं था, तो फिर खुशी क्यों? पढि़ए, डा. गोपाल नारायण आवटे की यह कहानी.

सुबह अभी नींद खुली भी नहीं थी कि धर्मपत्नी के दहाड़ें मार कर रोने की आवाज कानों में आई. हम हड़बड़ा कर उठ बैठे. आज रविवार था. सोचा था कि आराम करेंगे लेकिन आराम के दुश्मनों का न कोई धर्म होता है न कोई जाति, सो हम तेजी से रोने वाली जगह पहुंचे.

हम ने देखा श्रीमतीजी के हाथों में टेलीफोन लटका हुआ था. मानो कोई मरा हुआ सांप हो और वह जोरों से दहाड़ें मार कर रो रही थीं.

‘‘क्या बात हो गई?’’ हम ने घबरा कर उन से पूछा.

वह हमें देख कर और जोरों से रोने लगीं. हम भी उन के स्वर में स्वर मिलाने लगे, हमारी आवाज पंचम स्वर में जा पहुंची थी. वह घबरा गईं और चुप हो गईं. वह चुप हो गईं तो हम भी चुप हो गए. उन्होंने सिसकते हुए बताया, ‘‘पापा नहीं रहे.’’

‘‘कब?’’

‘‘अभी फोन आया था, हमें चलना होगा.’’

हमारे ससुर साहब बड़े सिद्धांतवादी थे. हमेशा खादी पहनी, सिद्धांत ओढ़े, भगवा टोपी लगाई, नीली जाकेट पहनी, सदैव ईमानदारी से रहने का भाषण दिया.

विवाह पूर्व हम बड़े खुश थे कि चलो, किसी बढि़या नेता की बेटी से हमारा विवाह हो रहा है. लेकिन हमारे सभी सपने जल्द ही टूट गए, सब आदर्श की आग में जल कर खाक हो गए. हमारे ससुर दहेज के खिलाफ थे. इसलिए हमें भी हां में हां मिलानी पड़ी और बिना दहेज के ऐसा विवाह हुआ जिस की मिसाल दी जा सकती है. नियमकानून का सहारा ले कर मात्र 5 बरातियों को ही उन्होंने आने को कहा था, जिस के परिणामस्वरूप हमारे मांबाप, भाईबहन और हमें मिला कर ही हम 5 हो गए थे.

दोस्त ऐसे नाराज हुए कि कभी उन्होंने हमारा मुंह नहीं देखा. हमारी धर्मपत्नी भी खुश हो गई थीं. नासपिटे फालतू दोस्तों से उन्हें नजात मिल गई थी. हमेशा आदर्श की चर्चा करने वाले और अमेरिका से ले कर दिल्ली तक के नेताओं से संबंध बताने वाले हमारे ससुरजी अब नहीं रहे थे. हमें ध्यान आया कि हमारी एकमात्र सास की हालत न जाने कैसी हो रही होगी, लेकिन वह भी बड़े नेताओं की तरह काले चश्मे को आंखों पर लगा कर अपने भावों को छिपा रही होंगी.

हम ने नाश्ता किया, कपड़े बदले और पत्नी के साथ उस के मायके के लिए निकल गए. बीचबीच में यादों की जुगाली भी करते जा रहे थे जिस के चलते पत्नी गंगाजमुना नाक से बहा देती थीं.

जब हम ससुराल पहुंचे तो दोपहर हो चुकी थी. हमारी सोच बिलकुल सच थी. धर्मपत्नी जैसे ही लपक कर अपनी मम्मी यानी हमारी सास से लिपटीं उन्होंने बड़े ठंडे ढंग से उस की पीठ पर हाथ फेरा और एक ओर बैठ जाने का निर्देश दिया. हमारी सास सफेद रंग की शिफोन की साड़ी में थीं, आंखों पर सदा की तरह काले रंग का चश्मा था, हलका सा मेकअप भी था. चेहरे पर ऐसे भाव थे मानो निर्लेप हों.

हम भी एक कोने में दुबक गए. हम तो समझे थे कि हमारे आते ही धूमधाम से शवयात्रा निकाली जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. 8-10 व्यक्ति बैठे थे और बड़े सुव्यवस्थित तरीके से कमरा सजा हुआ था. पता नहीं क्या प्रोग्राम है? हम मन ही मन विचार कर ही रहे थे कि तभी हमें हमारे पड़ोस में बैठे एक व्यक्ति ने बताया, ‘‘कोई मंत्रीजी आ रहे हैं. उन्हीं का इंतजार है.’’

धर्मपत्नी ने भी सुन लिया था. वह दौड़ कर अंदर गईं और यात्रा से थके चेहरे को धोपोंछ कर नई साड़ी के साथ आ गईं.

1 घंटे की लंबी प्रतीक्षा के बाद मंत्रीजी आए. उन्हीं के साथ कैमरामैन, सिक्योरिटी गार्ड आदि. वह हमारी सास के पास बैठे. सास ने कैमरे की ओर एक क्लोजअप शाट दिया. मंत्रीजी ने 30 सेकंड का एक वक्तव्य दिया. 2 फूलमालाएं चढ़ाईं. हमारे ससुर को विश्व का महान आदर्शवादी व्यक्ति बताया. हमें सुन कर बड़ा भला लगा. हमें पहली बार प्रतीत हुआ कि हमारे ससुर महान थे और हम उन के आदर्शवादी दामाद हैं. थोड़ी देर बाद पूरी टीम चली गई, उसी के साथ शवयात्रा भी प्रारंभ हो गई.

दाहसंस्कार को निबटा कर हम जब श्मशान से लौटे तब तक शाम हो गई थी. घर में काफी उत्साह का वातावरण था. हम भी नहाधो कर ड्राइंगरूम में आ गए थे. सब टीवी के सामने बैठे थे. न्यूज आने वाली थी. सब देख लेना चाह रहे थे कि वह शव के साथ कैसे लग रहे थे. थोड़ी देर में न्यूज प्रारंभ हुई और आखिरी के अंतिम क्षणों में उस समाचार को भी दिखलाया जाने लगा. हमारा दिल धकधक कर उठा. हम भी स्वयं को टीवी पर देख लेना चाह रहे थे. हमारी सास अपलक समाचार को देख लेना चाह रही थीं कि अचानक पावर कट हो गई और चहुंओर घुप्प अंधेरा हो गया. सभी ने बिजली विभाग को दर्जन बददुआएं दीं. थोड़ी देर बाद जब बिजली आई तो समाचार बुलेटिन समाप्त हो चुका था.

तभी हमारे साले ने यह खुशी की खबर सुनाई कि यह समाचार 1 घंटे बाद पुन: दिखलाई देगा. सब के चेहरे पर खुशियां छा गईं. सब ने तब तक भोजन निबटाया और फिर एकसाथ टीवी के सामने आ कर बैठ गए. सच ही कहा था साले साहब ने कि 1 घंटे बाद पुन: समाचार आएगा. समाचार आया. सब के चेहरे टीवी पर जम गए. दिल की धड़कनें तेज हो गईं. थोड़ी देर बाद समाचार देख सब खुश हो गए. मेरी पत्नी ने नाराजगी के साथ हमारी सास से कहा, ‘‘क्या मम्मी, तुम ने सिर पर ऐसा पल्ला ले लिया कि चेहरा ही छिप गया.’’

‘‘नहीं री पगली, उस ने 2-3 शाट लिए थे लेकिन एडिट कर के मात्र यही शाट रहने दिया,’’ सास ने उदास स्वर में कहा.

‘‘मम्मी, तुम ने मंत्री की ओर देखा भी नहीं, थोड़ी बातचीत तो करतीं. एकदम पूरे शाट को बिगाड़ दिया जबकि जीजाजी का शाट भीड़ में भी सुंदर दिखलाई दे रहा है,’’ साले ने कहा.

हम सब उस 1 मिनट से भी कम समय के समाचार की समीक्षा कर रहे थे.

सब खुश थे. तभी बड़ी खुशीखुशी हमारे साले ने कहा, ‘‘मम्मी, देखना, तुम्हारे अंतिम समय पर यदि मुख्यमंत्री को न बुलाया तो पापा की असल औलाद नहीं.’’

‘‘सच मम्मी, मैं तो सिर पर पल्ला भी नहीं रखूंगी, बालों की स्टाइल भी तो दिखना चाहिए,’’ धर्मपत्नी ने अपने भैया की बात में सहमति की आहुति दी.

मैं ठगा सा पूरे परिवार को देखता रह गया. लगा कि क्या पूरा समाज ही पूरी तरह से अपंग हो गया है? सब रिश्ते संवेदना शून्य हो गए हैं? मेरे सवाल का कोई भी जवाब कमरे में नहीं था. पूरा ससुराल टीवी पर दिखलाई देने की खुशी में मगन था.

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