राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली भा डीएनए क्या है? डीएनए एक जैव यौगिक है, जो किसी भी जीव में आनुवांशिक सूचना को समाहित रखता है. मातापिता से संतति में जाने वाले आनुवांशिक गुणों जैसे आकार, प्रकार, रंग इत्यादि से संबंधित सूचना का भी निर्धारण करता है. जैव प्रौद्योगिकी क्या है? जैव प्रौद्योगिकी एक तकनीक है, जिस में किसी भी जीव का उपयोग किसी विशेष उपयोग के लिए या उत्पाद को बनाने या विधि को रूपांतरित करने के लिए किया जाता है.
ट्रांसजेनिक तकनीक क्या है? ट्रांसजेनिक तकनीक आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी का एक उदाहरण है, जिस के अंतर्गत किसी भी जीव के जीन को दूसरे किसी जीव में स्थानांतरित कर के किसी वांछित गुण को प्राप्त किया जाता है. जैसे किसी पौधे को किसी विनाशकारी कीट के प्रति प्रतिरोधी बनाने के लिए जीन का स्थानांतरण करना. जीएम फसल किसे कहते हैं? ट्रांसजेनिक फसल वह फसल है, जिन के जीनों के समूह में किसी दूसरी प्रजाति के जीन या जीनों को स्थानांतरित कर के सम्मलित किया जाता है. इस तकनीक के अंतर्गत जीन को किसी असंबंधित पौधे या पूर्ण रूप से भिन्न प्रजाति से भी लिया जा सकता है. किन हालात में जीएम फसल बनाए जाते हैं?
किसी भी फसल को अपने जीवनकाल में बहुत सारे जैव और अजैव तनाव (स्ट्रैस) से गुजरना पड़ता है, जिन से पूर्ण रूप से लड़ने के लिए इन फसलों या इन से संबंधित प्रजातियों में कभीकभी वांछित गुण नहीं पाए जाते हैं, जो कृषि पैदावार के दृष्टिकोण से काफी नुकसानदायक होते हैं. यदि यह जानकारी हो कि यह वांछित गुण किसी दूसरे जीव में पाए जाते हैं, तो ऐसी परिस्थिति में उस वांछित गुण से संबंधित जीन को उस पौधे में स्थानांतरित किया जाता है या किया जा सकता है. चूंकि फसलों में प्रजनन सिर्फ उसी प्रजाति में ही संभव है, ऐसे गुणों को सिर्फ इसी तकनीक से ही शामिल किया जा सकता है.
बीटी कपास इस का एक उदाहरण है. जीएम फसल की क्या जरूरत है? जैसा कि यह पहले साफ किया जा चुका है कि ट्रांसजेनिक तकनीक का उपयोग वैज्ञानिक फसलों के गुणों को और विकसित करने के लिए करते हैं. यह तकनीक परंपरागत तरीकों से गुणों का संततियों में स्थानांतरण की निर्भरता को दूर करता है. क्या होगा जब हम या हमारे पशु जीएम फसलों का उपयोग खाने में करेंगे? अभी तक हमारे बीच ऐसा कोई भी वैज्ञानिक तथ्य सामने नहीं आया है, जो यह प्रमाणित करता हो कि ट्रांसजेनिक फसलों के डीएनए से मनुष्यों/पशुओं के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर होता हो. वैसे भी डीएनए हमारे हर तरह के खाद्य पदार्थों (शाकाहारी और मांसाहारी) में मौजूद होता है, जिस का हम प्रतिदिन उपयोग करते हैं. ये डीएनए चाहे ट्रांसजेनिक फसलों या गैरट्रांसजेनिक फसलों से हमारे भोजन में आते हों,
पाचन के दौरान छोटेछोटे जैव यौगिकों में बदल जाते हैं या उत्सर्जित हो कर हमारे शरीर से बाहर चले जाते हैं. जीएम फसलों की खेती से मिट्टी या आसपास के वातावरण पर क्या असर पड़ेगा? ऐसी फसलों की खेती पूरे परीक्षण के बाद ही की जाती है. वैज्ञानिक परीक्षणों ने यह साबित किया है कि इस तकनीक के कारण वातावरण, मिट्टी और जैव विविधता पर इस का कोई बुरा असर नहीं पड़ता. भारत में किसानों द्वारा कौन सी जीएम फसलों की खेती की जा रही है? भारत में पड़े पैमाने पर ट्रांसजेनिक कपास (बीटी कपास) की खेती की जा रही है. यह बीटी कपास बौल्वर्म कीटों से प्रतिरोधित है. भारत में कपास की खेती में उपयोग होने वाले खेतों का 95 फीसदी हिस्सा बीटी कपास की खेती में प्रयोग हो रहा है. बीटी कपास क्या है? वैसे, बीटी कपास ट्रांसजेनिक फसल है (आनुवांशिक रूप से संशोधित कपास), जिस में एक विशेष गुण ट्रांसजेनिक तकनीक के द्वारा शामिल किया गया है.
इस के फलस्वरूप यह एक कीटनाशक प्रोटीन का उत्पादन करने लगता है. कीटनाशक प्रोटीन उत्पन्न करने वाला जीन, मिट्टी में पाए जाने वाले एक जीवाणु (बैसिलस थूरींजिएन्सिस) से प्राप्त किया गया है. बीटी जीन कैसे काम करता है? बीटी जीन क्राई नामक प्रोटीन का कोडन करता है, जो कीटपतंगों के लिए विषैला होता है. जब इस प्रोटीन को कीटपतंग खाते हैं, तब यह प्रोटीन उन के मध्य आंत में मौजूद क्षारीय माध्यम में सक्रिय विष प्रोटीन के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं. सक्रिय विष प्रोटीन में बदलने के बाद ही यह ब्रश बार्डर कोशिकाओं में उपस्थित ग्राही (रेसेप्टर) प्रोटीन से स्वीकृत किए जाते हैं. नतीजतन, ऐसी कोशिकाओं में छेद हो जाते हैं और जिन से हो कर जल और आयन प्रवेश करने लगते हैं. अंतत: कोशिकाएं एवं कीट मर जाते हैं. बीटी कपास की खेती से किसानों को क्या लाभ मिला है?
वर्ष 2002-2016 के बीच भारत में किसानों ने बीटी कपास की खेती कर के अपनी आय को तकरीबन 21.1 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंचा दिया है, जिस से तकरीबन 7.5 मिलियन किसानों और उन के परिवारों को लाभ मिला है. बिक्री से पहले जीएम फसलों का कौनकौन सा परीक्षण किया जाता है? भारत में जीईएसी सर्वोच्य संस्था है, जो जीएम फसलों के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति प्रदान करती है. यह अनुमति विभिन्न बायोसेफ्टी परीक्षण जैसे प्रयोगशाला, नैटहाउस, सीमित फील्ड वगैरह के बाद ही दी जाती है. एक बार जब यह वातावरण, मनुष्यों और जानवरों के उपयोग के लिए सुरक्षित पाया जाता है, तब ही खेती के लिए अनुमति दी जाती है.
भविष्य में जीएम फसलों से क्याक्या अपेक्षाएं हैं? ट्रांसजेनिक तकनीक में बहुत सी संभावनाएं हैं, जो उच्य पैदावार वाली, साथ ही साथ अत्यधिक पोषक तत्त्वों वाली किस्में विकसित कर सकती हैं. अनुसंधान ये बताते हैं कि इस तकनीक से हम लवण, सूखा, उष्मा प्रतिरोधी किस्में बना सकते हैं. इस के अतिरिक्त हम ऐसे पौधे विकसित कर सकते हैं, जो व्यावसायिक यौगिक जैसे औद्योगिक तेल, प्लास्टिक, दवा, रोग संबंधित टीका का उत्पादन कर सकते हैं. आधुनिक समय में पादप प्रजनन में कौनकौन सी नई पद्धतियों की खोज हुई है? अभी हाल के वर्षों में कुछ नई तकनीकों जैसे क्रिस्पर (क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शार्ट पैलिंड्रोमिक रेपिट्स), टैलेंस (ट्रांसक्रिप्शन एक्टीवेटर लाइक इफैक्टर न्यूक्लेयज), मैगान्यूक्लेयज की खोज हुई है, जो अत्यधिक सटीक तकनीक है. इन तकनीकों का उपयोग फसलों के गुणों में बेहतर सुधार के लिए किया जा रहा है. संस्था की इस वैबसाइट 222.ठ्ठद्बश्चड्ढ.द्बष्ड्डह्म्.द्दश1.द्बठ्ठ पर भी जानकारी ली जा सकती है.