संगीता के कुछ जवाब देने से पहले ही उस औरत ने फोन काट दिया. उस औरत ने अपना नंबर ब्लौक कर रखा था. वह वापस फोन भी नहीं कर सकती थी. फोन किसी लैंडलाइन से आया था.
वह जब फोन रख कर मुड़ी, तब बहुत गुस्से में थी. सीधे चल कर वह अंजलि के पास पहुंची और सारी बात उसे बता दी.
‘‘भाभी, बेकार में खुद को परेशान मत करो. वह स्त्री तुम्हें तंग करने के लिए ही छेड़ रही है,” अंजलि ने उसे शांत स्वर में समझाया.
‘‘कहिं वह सच ही न बोल रही हो,’’ संगीता की आंखों में भय और चिंता के भाव झलके.
‘‘अरे नहीं भाभी. मुझे विश्वास है कि भैया का किसी औरत से कोई गलत संबंध नहीं है.’’
अंजलि के समझाने से संगीता का मन बड़ी हद तक शांत हो गया. लेकिन यह भी सच था कि वह विवेक के औफिस से लौटने का इंतजार बेसब्री से कर रही थी.
उसे यह मालूम था कि उन की बिरादरी के मर्द अकसर दूसरी निचली बाजारू औरतों से संबंध बना लेते हैं. उस ने अपने चाचाओं, मौसाओं के बहुत किस्से सुने थे. उस के ससुर सरकारी नौकरी में थे और खासे सुधर गए थे.
शाम को उसे जबरदस्त धक्का लगा. विवेक की कमीज से उठती जनाना सैंट की महक कई फुट दूर खड़ी संगीता तक पहुंच कर उसे एकदम से रोंआसा कर गई.
पास में खड़ी अंजलि को बेहद चिंतित देख कर संगीता के मन में असुरक्षा का भाव और गहरा हो गया. “क्या हाल है तुम्हारा संगीता?” सोफे पर बैठते हुए विवेक ने मुसकराते हुए सवाल किया.
“कौन है यह औरत?” संगीता ने रोंआसे स्वर में उलटा उस से ही सवाल पूछा.
‘‘कौन औरत?’’ विवेक चौंक पड़ा.
‘‘वही औरत जिस से लिपटाचिपटी कर के आ रहे हो.’’
‘‘यह क्या बकवास कर रही हो?’’ विवेक गुस्सा हो उठा.
‘‘मुझ से छिपाइये मत.’’
‘‘मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं तुम से.’’
‘‘आप के कपड़ों से लेडीज सैंट की खुशबू क्यों और कैसे आ रही है?’’
विवेक ने अपनी कमीज को सूंघा. पहले माथे में बल डाल कर सोच में खोया रहा और फिर उलझनभरे लहजे में बोला, ‘‘बस की सीट पर मेरी बगल में एक औरत बैठी तो थी, पर मुझे ध्यान नहीं आता कि उस ने ऐसा सैंट लगाया हुआ था.’’
‘‘झूठ बोलने की कोशिश मत करिए. मुझे उस ने फोन पर पहले ही बता दिया था कि तुम्हारे शरीर से आज शाम उस की महक आएगी. मुझे क्यों धोखा दे रहे हैं आप?’’ संगीता की आंखों से आंसू बह निकले.
‘‘तुम पागल हो गई हो. मेरा किसी औरत से कोई संबंध नहीं है. मैं तुम्हें कैसे इस बात का विश्वास दिलाऊं?” विवेक भन्ना उठा.
संगीता की एकदम से रुलाई फूट पड़ी और वह कमरे की तरफ भाग गई. विवेक ने गहरी सांस खींची और दुखी अंदाज में अपनी पत्नी को समझानेमनाने उस के पीछे चला गया.
संगीता ने विवेक की एक न सुनी. नाराजगी दर्शाते हुए उस ने रात का खाना खाने से इनकार कर दिया. तब विवेक ने गुस्से से भर कर खूब जोर से डांट दिया.
अपने कमरे में आंसू बहा रही संगीता को संभालने की जिम्मेदारी अंजलि के कंधों पर आ पड़ी.
अंजलि की सिर्फ एक बात संगीता के दिल में जगह बना पाई. वह चाह कर भी उस बात की अहमियत को नजरअंदाज नहीं कर पाई.
‘‘भाभी, इस स्त्री की असलियत का पता तो हम चला ही लेंगे, पर आप मेरे एक सवाल का जवाब दोगी?’’ अंजलि बहुत गंभीर नजर आ रही थी.
‘‘पूछो.’’
‘‘भाभी, मान लेते हैं कि भैया की जिंदगी में उस औरत की जगह है. हमें उन्हें उस के चुंगल से भैया को छुड़ाना भी होगा, पर क्या आप उन से एक सवाल आत्मविश्वासभरे स्वर में पूछ पाओगी?’’
‘‘कौन सा सवाल?’’
‘‘यही कि मुझ में क्या कमी थी, जो आप को उस दूसरी स्त्री से संबंध बनाने पड़े?’’
संगीता से कोई जवाब देते नहीं बना. उस ने अपने गिरहबान में झांका तो पहली नजर में ही उसे अपने बदन में कई खामियां नजर आईं. जब से वह जवान हुई थी, उस के पीछे लडक़ों की लाइन लगी रही थी. विवेक से शादी भी पहली बार देखनेदिखाने में हो गई क्योंकि वह नौकरी भी कर रही थी और बेहद सुंदर थी.
‘‘मैं ने विवेक को खो दिया, तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ वह विलाप कर उठी.
‘‘भाभी, यों हौसला छोडऩे से काम नहीं बनेगा. अपनेआप को संभालो. मैं आप के साथ हूं न,’’ अंजलि ने संगीता का फौरन हौसला बढ़ाया.
‘‘मुझे क्या करना चाहिए?’’ संगीता के इस सवाल के जवाब में अंजलि उसे देर तक बहुत से सुझाव देती रही.
अपनी ननद की सलाहों पर चलने के कारण संगीता का महीनेभर में कायाकल्प हो गया. यूट्यूब पर उस ने बहुत से टिप्स देखे.
उस ने वजन कम कर के अपनी सेहत और अट्रैक्शन दोनों को बढ़ा लिए. सारा दिन अपने कमरे में बंद न रह कर वह घर के कामों में पूरा हाथ बंटाने लगी.
विवेक से उस के संबंध तनावपूर्ण ही बने रहे क्योंकि उस स्त्री के संगीता को किलसाने व अपमानित करने वाले फोन लगातार लैंडलाइन से आ रहे थे.
विवेक ने एक बार भी मना नहीं कि उस का किसी औरत से गलत चक्कर चल रहा था. इस विषय पर मौनयुद्ध चलने के कारण पतिपत्नी के बीच बोलचाल लगभग बंद चल रही थी.
फोन करने वाली स्त्री की पहचान ढूंढ़ निकालने का उपाय अंजलि को सूझा था. उस ने ट्रू कौलर से कोशिश की. 2 दिनों में ही वह कामयाब हो गई.
अंजलि ने उसे उस रात बताया, ‘‘उस स्त्री का नाम निशा है. अपने मातापिता के साथ रहती है. वह खुद भी अच्छी नौकरी करती है और उस के पिता भी काफी अमीर हैं. उस के आकर्षण से भैया को मुक्त करना आसान नहीं होगा, भाभी.’’
‘‘कैसे नहीं छोड़ेगी वह विवेक को? मैं उस का खून नहीं पी जाऊंगी,” संगीता को जोर से गुस्सा आ गया.
‘‘यह हुआ न बढिय़ा आत्मविश्वास,’’ अंजलि खुश हो गई, ‘‘हम कल ही उस के घर पहुंच कर उस की खबर लेते हैं.’’
‘‘मैं तैयार हूं,’’ संगीता की आंखों में डर, घबराहट, चिंता या असुरक्षा का कोई भाव मौजूद नहीं था.