टीवी से फिल्मों तक शरद केलकर की यात्रा काफी रोचक रही है. लोग उनके अभिनय की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं मगर लोगों को पता नहीं होगा कि उन्हे पहले टीवी सीरियल से शूटिंग के पहले ही दिन हकलाने का आरोप लगाकर निकाल दिया गया था मगर शरद केलकर ने अपने हकलाने की बीमारी से छुटकारा पाया. फिर कई यादगार किरदार निभाए. वक्त वह भी आया जब फिल्म बाहुबली में प्रभास के किरदार को आवाज देने के लिए शरद केलकर को बुलाया गया. 22 अप्रैल को मोरल पुलिसिंग पर आधारित फिल्म ऑपरेशन रोमियो में वह एक बार फिर खलनायक के किरदार में हैं.

प्रस्तुत है शरद केलकर से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश

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आपके सत्रह वर्ष के कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

पहला टर्निंग प्वाइंट्स तो यही था कि मुझे एक सीरियल से महज इसलिए निकाल दिया गया था कि मैं हकलाता था तो इस टर्निंग प्वाइंट्स के चलते मेरी समझ में आया था कि जब मैं हकलाना बंद करुंगा. तभी काम कर पाउंगा. कहीं न कहीं वह रिजेक्शन मेरे लिए बहुत बड़ा टर्निंगं प्वाइंट और सीख थी कि मुझे इस कैरियर को गंभीरता से लेना होगा. यह कोई फन नही है. इसके बाद मैंने एक सीरियल सात फेरे किया था. इस सीरियल के किरदार नाहर सिंह से मुझे काफी शोहरत मिली थी. इसके बाद जब मैंने संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म रामलीला गोलियों की रास लीला में कांजी का किरदार निभाकर बतौर कलाकार एक बहुत बड़ी पहचान मिली. लोगों ने माना कि शरद केलकर बेहतरीन कलाकार हैं. फिर एक टर्निंग प्वाइंट ऐसा आया जब सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष के लोगों ने मेरे काम की तारीफ की. मैं एस. राजामौली निर्देशित फिल्म बाहुबली की बात कर रहा हूं जिसमें मैंने प्रभास के लिए डबिंग की थी. उसके बाद मुझे फिल्म तान्हाजी में छत्रपती शिवाजी महाराज का किरदार निभाने को मिला. मेरे लिए यह गर्व की बात है सिर्फ महाराष्ट्यिन या मराठी ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय के लिए छत्रपती शिवाजी महाराज का किरदार निभाना गर्व की ही बात होगी. ऐसा मौका जिंदगी में बहुत कम लोगो को मिलता है. मुझे यह अवसर मिला जिसके लिए मैं बहुत खुश हूं. इससे भी बड़ी बात यह है कि लोगों ने स्वीकार किया. कैरियर के अलावा कीर्ति गायकवाड़ के साथ मेरी शादी और मेरी बेटी का जन्मण्कीर्ति गायकवाड़ से बेहतर जीवन संगिनी मिल नहीं सकती थी. बेटी ने जन्म लेते ही मुझे बहुत बदला. उसके बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी. यह वह घटनाएं हैं,जिन्होंने एक इंसान व एक कलाकार के तौर पर मुझे काफी बदला.

लोग कहते हैं कि कलाकार जिस किरदार को निभाता है. उसका उसकी जिंदगी पर असर पड़ता है. क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है?

बिलकुल यह बात सही है, हर किरदार से हर इंसान की जिंदगी पर असर पड़ता है. वह कुछ न कुछ उससे सीखता है. अब वह क्या सीखता है अथवा अपने अंदर क्या समेटता है. वह बहुत मायने रखता है. कई बार हम नगेटिव शेड वाले किरदार निभाते हैं पर जरुरी नहीं कि हम नगेटीविटी को अपनाएं. उससे हम यह सीखते हैं कि हमें जीवन में क्या नहीं करना चाहिए. यदि हम नगेटीविटी की बात सोच रहे हैं. तो हमें याद आता है कि फलां फिल्म में हमने फलां किरदार निभाया था. वह किरदार इस तरह से सोचता था, जो कि गलत है तो हम सावधान हो जाते हैं. और हम गलत राह पर जाने से खुद को रोक लेते हैं. देखिए किसी भी सोच या विचार को कितना बढ़ावा देना है. यह आपके हाथ में होता है तो बिलकुल हम हर किरदार से कुछ सीखते हैंण्मुझे लगता है और मेरी पत्नी भी कहती हैं कि मैं अभिनय करते हुए एक इंसान व एक कलाकार के तौर पर ग्रो हुआ हूं तो कहीं न कहीं कलाकार व किरदार एक साथ चलते हैं. जब दोंनो एक साथ यात्रा करते हैं तो एक दूसरे से सीखते रहते हैं. कई बार हम अपने निजी जीवन की कुछ बातें किरदार में पिरोते हैं तो किरदार की कुछ बातें अपनी निजी जिंदगी में डालते हैं विकास के लिए यह एक मिला जुला प्रयास होता है. इन दिनों सभी लोग मुझे शांत देखते हैं पर कभी मैं बहुत ही ज्यादा गुस्सैल हुआ करता था कभी मैं एंग्रीयंग मैन था.

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आपने बताया कि हकलाने के चलते आपको एक सीरियल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था पर इससे छुटकारा पाने के लिए आपने ऐसा क्या किया कि फिर आपको दूसरे कलाकार को अपनी आवाज देने के लिए बुलाया गया.

इसके कई पहलू हैं. सबसे पहले तो मैं हर इंसान से बार बार निवेदन करता हूं कि जो लोग हकलाते हैं या तुतलाते हैं उनका मजाक न बनाएं मेरा बहुत मजाक उड़ा था. मैं नहीं चाहता कि किसी अन्य का मजाक उड़ाया जाए. दूसरी चीज यह भी एक ऐसी बीमारी है. जिसका इलाज संभव है. अगर आप खुद उस पर ध्यान दे. मुझे कई लोगों ने कई तरह के उपाय बताएं. किसी ने कहा कि मुंह में पेंसिल डालकर बोलेए वगैरह वगैरह. मैं यह नहीं कहता कि मैं पूरी तरह से ठीक हो गया हूं. मैं अभी भी 95 प्रतिशत ही ठीक हुआ हूं. अभी भी पांच प्रतिशत हकलाता हूं. लेकिन इतना ठीक होने में समय लगा. बहुत सोचा लोगों को आब्जर्व किया. फिर मेरी समझ में आया कि हकलाहट की वजह मनोवैज्ञानिक नहीं बल्कि शारीरिक है. मेरे हकलाने की वजह सांस लेने का तरीका बहुत गलत था. उदाहरण के लिए आप दो सौ मीटर की दौड़ तेजी से लगाकर आओ. फिर एक वाक्य सही ढंग से बोल कर दिखाएं. आप नही बोल पाएंगे या आपकी सांस नहीं आएगी. यही हकलाहट में होता है. सांस नहीं आती है यीनी कि सांस एक रिदम में नहीं है मैंने फिल्में देखकर ही खुद को ठीक किया. अमिताभ बच्चन से ज्यादा अच्छा सांस लेने का तरीका किसी भी कलाकार का नहीं है. शत्रुघ्न सिंहा जी है तो मैंने ब्रीदिंग तकनीक पर काम किया. योगा किया. प्राणायाम किया. अगर आप यह सब करते है तो सांस लेने के तरीके की वजह से हकलाहट है तो वह दूर हो जाएगी.

जब आपको प्रभास को आपकी आवाज देने के लिए बुलाया गया तो कैसा महसूस हुआ?

बहुत अच्छा लगा. जिस चीज के लिए आपको रिजेक्ट किया गया हो जिस वजह से आपको कई बार अपमानित होना पड़ा हो, ताने पड़े हों फिर वही लोग जब आपको उसी आवाज के लिए बुलाते हैं तो एक अलग तरह की खुशी होती हैं पर मेरी सोच यह है कि मैंने जो सोचा वह मैने किया. मैंने लोगों को साबित किया कि वह गलत थे. पर मैं इसमें उनकी गलती भी नहीं मानता पर मैं यही चाहता हूं कि जो लोग मेरा मजाक उड़ाते थे. वह अब मुझे देखकर दूसरे बच्चों का मजाक उड़ाने की बात सपने में भी न सोचे जब मैंने प्रभास के लिए डबिंग की और उसकी फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की तो मुझे बहुत खुशी मिली. देखिए नब्बे प्रतिशत काम तो उसका है कि उसने उस किरदार को निभाया मगर दस प्रतिशत योगदान मेरा है लोग मुझे जानने लगे दर्शक मेरी प्रशंसा करें. इससे अधिक मुझे कुछ नही चाहिए. दर्शकों के बिना हम कलाकार शून्य हैं.

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आप एक बार फिर फिल्म ऑपरेशन रोमियो में खलनायक की भूमिका में नजर आएंगे?

जी हां! यह है तो खलनायक मगर मेरा दावा है कि मैंने इस तरह का किरदार अब तक नहीं निभाया है मेरे लिए इसका किरदार मंगेष जाधव अब तक के सबसे असहज लेकिन यथार्थवादी किरदारों में से एक रहा. इससे अधिक बताना संभव नहीं.

वैसे आप मुझे पिछले कुछ वर्षों से एकदम अलग तरह के किरदार में देख चुके हैं पर ऑपरेशन रोमियो का किरदार अनूठा है फिल्म में मेरा किरदार मगेश जाधव वास्तविक जीवन में मेरे जैसा नहीं है और मुझमें इस तरह के कोई रंग नहीं हैं. मैं एक बेटी का पिता हूं. मैं एक भावुक इंसान हूं. यह फिल्म एक सत्य घटनाक्रम पर आधारित है. इसकी जानकारी होते हुए भी इसकी शूटिंग के दौरान मेरे मन में बार बार सवाल उठ रहा था कि क्या ऐसा इंसान हो सकता है? फिल्म की कहानी के केंद्र में नैतिक पुलिसिंग है.   इसे देखते हुए लोग अहसास करेंगे कि कभी उनके साथ या उनके किसी जानने वाले के साथ ऐसा हो चुका है.

नैतिक पुलिसिंग की घटनाओं के बढ़ने की वजहें क्या हो सकती है?

मुझे लगता है कि कहीं न कहीं वीडियो रिकॉर्डिंग, अर्धसत्य का प्रक्षेपण और सोशल मीडिया पर सब कुछ डालने से लोगों की छवि खतरे में पड़ जाती है. मसलन, गले लगाना भी अभिवादन का एक तरीका है और यह एक सामाजिक इशारा है लेकिन हमने देखा है कि जब एक लड़का और लड़की एक.दूसरे को सामाजिक रूप से गले लगाते हैं, और उस तस्वीर को संदर्भ से हटकर सोशल मीडिया पर डालते हुए हैं. आसानी से इसकी एक कहानी बनाते हैं. मगर इस तसवीर से यह पता नहीं चलता कि यह शादी के पहले की है या शादी के बाद की.

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