योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार मुख्यमंत्री पद शपथ ग्रहण समारोह में एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पहुंचकर  सवाल खड़े कर दिए हैं वहीं जिस तरह योगी के शपथ समारोह का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ है वह अपने आप में कई सवाल खड़े करता है.

सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल सहित न्यायालयों के न्यायाधीश, किसी भी शपथ समारोह का सादगी से आयोजन होता रहा है. यह हमारे देश की परंपरा रही है.

मगर अब  देश में भाजपा के सत्तासीन होने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रथम शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही शपथ समारोह को भी भव्यतम बनाने का काम शुरू हो चुका है. जिसकी परिणति एक बार फिर उत्तर प्रदेश और पंजाब में देश ने देखी है.

उत्तर प्रदेश ने तो मानो सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए. शुक्रवार 25 मार्च को जब दोपहर योगी आदित्यनाथ का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था तो देश के सारे बड़े न्यूज चैनल कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कर रहे थे. मानो यह कोई नई बात हो. शपथ समारोह का सीधा सा अर्थ होता है- मंत्रियों आदि का शपथ लेना ईमानदारी से अपने कर्तव्य वाहन की उद्घोषणा.

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इस कार्यक्रम को जिस तरीके से रबड़ की तरह खींच कर लाखों लोगों के सामने आयोजन हुआ है वह आजादी के अमृत महोत्सव के इस समय पर अनेक प्रश्न खड़े करता है कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है.

निसंदेह हमारा देश गरीब और पिछड़ा हुआ माना जाता है आज भी गांव में लोगों को पीने के लिए पानी  नहीं है, सरकार पानी तो उपलब्ध करवा नहीं पाती, बिजली सड़क कि आज भी कमी है.लोगों को आप महीने का राशन दे रहे हैं. बे रोजगारी है इस सब के बावजूद शपथ समारोह को सादगी, शालीनता से करने के बजाय राजभवन में करने के बजाए सार्वजनिक रूप से आयोजित करना और उसमें करोड़ों रुपए देश का खर्च कर देना फिजूलखर्ची नहीं है तो क्या है. मगर जब से भारतीय जनता पार्टी देश के केंद्र में स्थापित हुई है एक नई परंपरा के साथ शपथ ग्रहण समारोह को भी दिखावे का एक माध्यम बना दिया गया है.

जनता और संविधान का माखौल

2014 में जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी ,तब  पहली दफा किसी शपथ समारोह का आयोजन भव्यतम बनाया गया था. मानो यह देश में पहली बार हो रहा है चूंकि यह सब बातें मर्यादा और आप के स्वविवेक पर छोड़ दी गई हैं और एक दीर्घ परंपरा रही है. इस सब बातों को दरकिनार करके नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप अनेक देश के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया था और आयोजन भव्यतम हो गया. उस समय मोदी लहर में किसी ने सवाल नहीं उठाया कि देश में क्या हो रहा है.

आगे चलकर यह परंपरा बनती चली जा रही है जब राज्य के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्री गण शपथ समारोह में सादगी को दरकिनार कर करोड़ों रुपए फिजूलखर्ची  कर दिखावे का आयोजन कर रहे हैं.

क्योंकि इस संदर्भ में संविधान मौन है. ऐसे में आज चिंतन का विषय यही है कि किसी भी प्रदेश की सरकार के लिए यह कितना जरूरी है और करोड़ों रुपए खर्च करने से आखिर क्या लाभ है.

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इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग पर हम यह भी देश की आवाम से पूछना चाहते हैं ऐसे आयोजनों पर आपकी क्या राय है क्या यह उचित है.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शपथ समारोह के साथ ही पंजाब में मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान ने शपथ ग्रहण समारोह में भव्य प्रदर्शन करके  जता दिया कि वह भी बातें तो बड़ी बड़ी करती है मगर चलती भाजपा और कांग्रेस के पीछे पीछे ही है.

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