लेखक-हरीश जायसवाल

तकरीबन 3 लाख लोगों की आबादी वाले उस शहर में गरीब परिवारों की एक बस्ती है. यहां पर ज्यादातर मिल या कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के घर हैं. शहर में होने के बावजूद यह बस्ती शहर से बहुत दूर है. सुविधा के नाम पर किराने की 4 छोटीछोटी दुकानें हैं, जो घरों से ही चलती हैं और मजदूरों की उधारी पर टिकी हैं. बच्चों के लिए एक सरकारी स्कूल है, जो सुबह प्राइमरी तो दोपहर में मिडिल स्कूल हो जाता है. बस्ती के सभी बच्चे, चाहे वह लड़का हो या लड़की, इसी स्कूल में पढ़ते हैं. राजू भी इसी स्कूल में 5वीं जमात में पढ़ता है. राजू का घर एक कमरे और एक रसोई वाला है. घर में मम्मीपापा के अलावा कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के दादादादी की मौत हो गई थी.

हां, दूसरे शहर में नानानानी जरूर रहते थे. उन की माली हालत भी बदहाल ही थी और शायद इसी बात के चलते उस का मामा बचपन में ही घर छोड़ कर भाग गया था. रोजाना की तरह उस दिन भी राजू स्कूल गया था. पिताजी किसी कारखाने में काम करते थे और आज उन की छुट्टी थी. राजू के स्कूल जाने के बाद उस के मम्मीपापा खरीदारी करने के लिए अपनी मोपेड पर शहर चले गए. राजू बाजार जाने के बाद अकसर कुछकुछ गैरजरूरी सामान खरीदने की जिद किया करता था, इसी के चलते उस के स्कूल जाने के बाद बाजार जाने का प्रोग्राम बनाया गया. वैसे, राजू है भी शरारती लड़का. क्लास के सभी बच्चे खासकर लड़कियां उस से बहुत ज्यादा ही परेशान रहती हैं. कुलमिला कर राजू की इमेज एक बिगड़े बच्चे की ही है. कुछ ही दिनों के बाद त्योहार आने वाले थे. इसी वजह से खरीदे गए सामान कुछ ज्यादा ही हो गए. राजू के मम्मीपापा मोपेड पर ठीक से बैठ भी नहीं पा रहे थे, तभी सामने से तेज रफ्तार से आती हुई कार के सामने राजू के पापा अपनी गाड़ी को कंट्रोल नहीं कर सके और कार से भिड़ गए.

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भयानक हादसा हुआ और राजू के मम्मीपापा दोनों ही इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. रिश्तेदारी में ऐसा कोई था नहीं, जो राजू को ले जाता. उसे सहारा देता. सो, नानानानी ही उसे अपने साथ ले गए. पिछले 10 सालों में यह शहर काफी बदल चुका है. संकरी सी पतली गली में पक्की सड़क बन गई है. गली के दूसरे छोर पर पार्क बन गया है. कुछ बड़ी दुकानें भी खुल गई हैं. राजू भी अब 21 साल का हो चुका है. 4 महीने पहले उस के नाना की भी मौत हो गई है. नानी तो 5 साल पहले ही गुजर गई थीं. राजू ज्यादा पढ़ नहीं पाया था. किसी तरह 10वीं जमात तक तो पहुंचा, मगर पास नहीं हो पाया. नाना के मरने के बाद राजू वापस अपने शहर लौट आया. अपने पास जमा पैसों से घर के अहाते में ही उस ने पान की दुकान खोल ली. बढ़ी हुई दाढ़ी और डीलडौल के चलते राजू पहली नजर में गुंडों सा दिखता था.

रहीसही कसर उस के बोलने का अक्खड़ अंदाज पूरा कर देता था. उस के कारनामे थे ही ऐसे. अपने साथ प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाली सभी लड़कियों के नाम उसे अभी तक याद थे. उन में से अगर कोई लड़की उसे राह में अकेली मिल जाती, तो वह हाथ जोड़ कर बीच सड़क पर खड़ा हो जाता और पूरे दांत दिखा कर उस को नमस्कार कहता. कई बार लड़कियों ने इस की शिकायत अपने घर वालों से की, लेकिन महल्ले में बैठ कर कौन झगड़ा मोल ले? किसी ने भी कुछ कहने की हिम्मत न दिखाई. महल्ले वालों की सहनशीलता या बुजदिली को देख कर राजू की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ने लगी. अब उस ने अपनी दुकान में एक बड़ा सा म्यूजिक सिस्टम भी लगवा लिया था. म्यूजिक सिस्टम पर लड़कियों को परेशान करने वाले गाने ही बजाए जाते थे. अब पिछले शुक्रवार की ही बात लीजिए, यह शर्माजी की लड़की, जो कभी राजू के ही साथ पढ़ती थी, लाल रंग का सलवारसूट पहन कर जा रही थी.

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तब राजू ने अपने म्यूजिक सिस्टम पर तेज आवाज में गाना लगा दिया, ‘लाल छड़ी मैदान खड़ी…’ ऐसे ही जब गुप्ताजी की लड़की किसी फंक्शन में जाने के लिए चमकदमक वाली ड्रैस पहनी हुई थी, तो साहब उस को देख कर गाना बजा रहे थे, ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए ओ जाने तमन्ना किधर जा रही हो…’ कोई सीधेसादे कपड़ों में लड़की आती हुई दिखाई देती तो गाना बजता, ‘धूप में निकला न करो रूप की रानी…’ या ‘दिल के टुकड़ेटुकड़े कर के मुसकरा कर चल दिए…’ महल्ले की सभी लड़कियां परेशान हो चुकी थीं. कई बार वे आपस में मिल भी चुकी थीं और राजू को चप्पलोंसैंडिलों से सबक सिखाने की भी सोच चुकी थीं. लेकिन वह दिन बातों के अलावा कभी नहीं आया. शर्माजी की लड़की दीप्ति एमएससी कर रही थी. क्लास होने के चलते कालेज से घर आने में लेट हो गई. कालेज घर से 5 किलोमीटर की दूरी पर था और दीप्ति अपनी साइकिल से कालेज रोज आतीजाती थी. दीप्ति अपनी एक और सहेली के साथ साइकिल से बाहर निकली ही थी कि उन दोनों को 2 मोटरसाइकिल पर बैठे 5 लड़कों ने घेर लिया. सभी लड़के दीप्ति और उस की सहेली पर लगातार छींटाकशी करते हुए उन्हें परेशान कर रहे थे.

दीप्ति और उस की सहेली को पसीना आ रहा था. हलका सा अंधेरा और सड़क का सूनापन लड़कों की हिम्मत बढ़ा रहा था. दोनों सहेलियों के तालू जैसे सूख गए थे. चीखनेचिल्लाने की हिम्मत ही नहीं थी उन में. 2 किलोमीटर के बाद वे दोनों मुख्य शहर में प्रवेश कर गईं. अब दोनों की जान में जान आई. दीप्ति की सहेली यहीं रहती थी, सो वह अब अलग रास्ते चली गई. ‘‘तुम्हारी ढिलाई के चलते एक लड़की तो हाथ से निकल गई. अब कम से कम इस लड़की को तो अपने साथ ले चलो,’’ पांचों में से शायद यह लड़का सब का सरदार था, जो गुस्सा होते हुए बोल रहा था. ‘‘अरे छोड़ो बौस, हमारे पास उसे बैठाने की जगह कहां थी. बस, अब इस चिडि़या को ले जा कर फुर्र हो जाते हैं,’’ दूसरा बदमाश बोला. दीप्ति को उन के इरादे अब समझ में आ गए थे. उस की धड़कनें एक बार फिर तेज चलने लगीं. आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. उस ने हिम्मत कर के अपनी साइकिल की रफ्तार बढ़ा दी. किसी तरह दीप्ति अपनी गली के नुक्कड़ तक पहुंच ही गई. तेजी से साइकिल चलाने के कारण वह बुरी तरह से हांफने लगी थी.

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घबराहट के चलते उसे चक्कर आ गया और वह वहीं गिर पड़ी. लड़के शायद इसी के इंतजार में थे. वे गिरी हुई दीप्ति को उठा कर अपनी मोटरसाइकिल से ले जाना चाहते थे. दीप्ति की हालत खिलाफत करने जैसी बिलकुल नहीं थी. राजू अपनी दुकान पर बैठा यह सब नजारा देख रहा था. वह समझ गया था कि दीप्ति मुसीबत में है और लड़कों के इरादे नेक नहीं हैं. बिना एक पल की देरी किए उस ने अपनी दुकान में से मोटा सा लट्ठ निकाला, दौड़ कर दीप्ति के पास पहुंच गया और सरदार जैसे उस लड़के पर हमला कर दिया. उस ने अपने लट्ठ से उस लड़के के पैरों पर इतनी जोर का वार किया कि वह चीखते हुए गिर पड़ा. इस तरह हुए अचानक वार से बाकी लड़के घबरा गए. वे कुछ समझ पाते, इस के पहले ही राजू ने उसी जगह पर पूरी ताकत से दूसरा वार कर दिया. अब वह लड़का खड़ा होने की हालत में नहीं था.

अब राजू बाकी लड़कों को ललकारने लगा. अपने साथी की ऐसी हालत देख कर बचे हुए लड़कों ने वहां से भागने में ही अपनी खैरियत समझी. यह घटना देख कर आसपास कई लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सभी राजू की तारीफ ही कर रहे थे. अब तक वहां पर दीप्ति के साथ रहने वाली पासपड़ोस की लड़कियां भी पहुंच गईं. उन सभी लड़कियों को राजू की इस तरह तारीफ अखर रही थी, क्योंकि वे राजू की असलियत जानती थीं. उन में से एक लड़की हिम्मत दिखाती हुई बोली, ‘‘राजू खुद कौन सा दूध का धुला है. वह खुद भी आतीजाती लड़कियों को देख कर भद्दे गाने लगा कर हमें शर्मसार करता रहता है. कौन जाने आज की घटना इसी गुंडे की चाल हो.’’ इस लड़की की बात सुन कर भीड़ में एकदम सन्नाटा छा गया. सभी राजू की तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगे. राजू शायद इस सवाल के लिए तैयार ही था. वह 2 कदम आगे बढ़ा और उस लड़की के सामने जा कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मुझे यह कहने में जरा भी झिझक नहीं है कि इस महल्ले में रहने वाली हर लड़की मेरी बहन है. हां, मैं अपने म्यूजिक सिस्टम पर उस तरह के गाने जानबूझ कर ही बजाता था. वजह जानना चाहोगे आप लोग? ‘‘मैं चाहता था कि मेरे महल्ले में रहने वाली मेरी हर बहन इतनी हिम्मती बने कि वह हर बुरे हालात का सामना आसानी से कर पाए.

‘‘मैं इस तरह के गाने बजा कर और आप लोगों को सुना कर आप लोगों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान जगाना चाहता था. मैं चाहता था, चाहे एक लड़की ही सही, पर कोई तो आ कर विरोध करे, लेकिन दुख की बात है कि कोई लड़की आगे नहीं आई. ‘‘याद रखिए, किसी भी इनसान का सम्मान उस के अपने घर से ही शुरू होता है. जब आप खुद अपना सम्मान नहीं करेंगी, तो बाहर वाले को क्या पड़ी है कि वह आप का सम्मान करेगा. ‘‘अगर आप लोगों ने मेरे कामों का विरोध पहले ही कर दिया होता, तो शायद आज इस तरह की घटना न घटती. ‘‘और एक बात, अगर आप आज ही विरोध करोगे तो भविष्य में ‘मी टू’ कहने जैसे किसी आंदोलन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. ‘‘मुझे खुशी है, इतनी भीड़ में, एक का ही सही आत्मविश्वास, आत्मसम्मान जागा तो. मुझे यकीन है, धीरेधीरे इस महल्ले की सभी लड़कियों में यह भावना आ जाएगी. आज मेरी गुंडागीरी कामयाब हुई.’’ ‘‘वाह, राजू जैसी सोच वाले गुंडे शहर के हर गलीचौराहे पर हों, तो हमारी औरतें, लड़कियां सुरक्षित कैसे न रहेंगी,’’ दीप्ति के पिता राजू की पीठ थपथपाते हुए कह रहे थे.

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