उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी में छिड़ा दंगल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. जहां दूसरे राजनीतिक दल आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी रणनीति बना रहे हैं, वहीं ये पार्टी चाचा-भतीजे के बीच चल रही जंग में ही उलझी हुई है. रविवार को सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने पिता और पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से मुलाकात करके 403 उम्मीदवारों की सूची सौंपी. सूत्रों के अनुसार अखिलेश ने मुलायम को बताया है कि प्रत्याशियों की जो सूची वह सौंप रहे हैं, उसका आधार आंतरिक सर्वेक्षण है.

इससे पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव पहले ही 175 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर चुके हैं. अब अखिलेश की सूची में कुछ नाम तो शिवपाल की सूची से मेल खाते हैं लेकिन ज्यादातर नाम उसमें से गायब हैं. सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि अखिलेश की सूची में पूर्वांचल के बाहुबलियों का नाम गायब है. मुख्यमंत्री ने बाहुबली मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का टिकट काट दिया है. ये नाम शिवपाल द्वारा जारी सूची में शामिल थे.

इसके अलावा अखिलेश ने अपनी टीम के युवा सदस्यों अतुल प्रधान जैसे करीबियों को शामिल किया है, जिनका टिकट शिवपाल यादव ने काट दिया था. सूची में मौजूदा 35 से 40 मंत्री-विधायकों के टिकट काट दिए गए हैं.

हालांकि इस लड़ाई की शुरुआत अभी नहीं हुई है. दो महीने पहले चाचा-भतीजे ने एक दूसरे को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की थी लेकिन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के हस्तक्षेप के बाद एक बार लगा कि विवाद थम गया है. लगा कि अब दोनों नेता मिलकर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ाने का काम करेंगे पर अब भी वह पार्टी में अपना कद बढ़ाने में लगे हुए हैं.

समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से आगामी चुनाव अभियान में लगी है, वह कार्यकर्ताओं के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता है. चाचा-भतीजे के अलावा भी सारे बड़े नेता अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं. इन सारे नेताओं में कोई भी समन्वय नहीं दिख रहा है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अभी तक सिर्फ गाजीपुर और बरेली में ही रैली की है. इन दोनों ही रैलियों में शिवपाल तो उपस्थित थे लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नहीं दिखे थे.

दूसरी ओर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रोज नई योजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास में व्यस्त हैं. वह चुनाव आयोग द्वारा आचार संहिता लागू किए जाने से पहले घोषणाओं का अंबार लगा देना चाह रहे हैं. तीसरी ओर कहने के लिए शिवपाल यादव संगठन को मजबूत करने में जुटे हुए हैं लेकिन इस बहाने वह पार्टी से सिर्फ अखिलेश यादव समर्थकों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं. शिवपाल ने अभी करीब एक दर्जन भर जिलाध्यक्ष बदल दिए हैं. साथ ही आधा दर्जन ऐसे प्रत्याशियों के टिकट काट दिए हैं. इन सबको अखिलेश का करीबी माना जाता है.

चौथी ओर यादव परिवार के अन्य सदस्य राम गोपाल यादव हैं. उन्हें अक्टूबर में पार्टी से निकाल दिया गया था लेकिन नवंबर में ही दोबारा पार्टी में शामिल कर लिया गया. दोबारा पार्टी में शामिल होने के बाद वह शांत होकर बैठे हुए हैं. चुनाव सिर पर होने के बावजूद उनकी सक्रियता बहुत सीमित दिखाई दे रही है.

आजम खान, अमर सिंह और समाजवादी पार्टी के दूसरे नेता भी इस दौरान कभी सक्रिय तो कभी निष्क्रिय दिख रहे हैं. इन सबमें भी समन्वय का अभाव साफ दिख रहा है. ऐसा लग रहा है पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि शीर्ष पर चल रही यह लड़ाई शांत हो तब वे लोग सक्रिय हों. हालांकि इसमें लंबा वक्त निकल जा रहा है.

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बुरे हालात सपा से टिकट के लिए लाइन में लगे या हासिल कर चुके उम्मीदवारों का है. उन्हें यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि चुनाव प्रचार में पैसा खर्च करने के बाद अगर उनका टिकट काट दिया जाता है तो वे क्या करेंगे. मजबूत उम्मीदवार टिकट कटने के बाद निर्दलीय या फिर दूसरी पार्टियों से टिकट के लिए दांव लगाएंगे. इसके संकेत भी मिल रहे हैं. यह स्थिति पार्टी के लिए परेशानी वाली है.

सबसे बड़ी बात यह है कि चाचा-भतीजे के वर्चस्व की इस लड़ाई में कोई भी हार मानने के लिए तैयार नहीं है. अखिलेश यादव के मुलायम को सूची देने के बाद शिवपाल ने ट्वीट करके अपनी राय जाहिर कर दी. शिवपाल ने ट्वीट करके कहा कि सीएम का चुनाव विधायक दल ही करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी. यानी अब फैसला मुलायम सिंह यादव को करना है. मुलायम सिंह यादव को ऐसी सियासी ड्रामेबाजी से निपटने का मास्टर माना जाता रहा है पर यह ड्रामेबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.

हालांकि जानकारों का एक धड़ा यह भी मानता है कि इस ड्रामेबाजी से मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी को ही फायदा हो रहा है. पिछले महीने जब चाचा-भतीजे की लड़ाई में अल्पविराम लगा तो सर्वेक्षणों में अखिलेश एक ब्रांड के रूप में उभरकर सामने आए. एक ही झटके में अखिलेश विकास पुरुष बन गए जो कि वह पिछले करीब पांच सालों के कार्यकाल में खुद को साबित नहीं कर पाए थे. वहीं शिवपाल यादव की छवि कुछ हद तक विकास में अड़ंगा लगाने वाले, कार्यकर्ताओं का मान रखने और अपराधियों को संरक्षण देने वाली बन गई.

अगर यूपी की राजनीति को हम समझे तो ये दोनों ही बातें पार्टी के लिए फायदेमंद हैं. यहां की राजनीति में जाति, धर्म, अपराध का ऐसा मकड़जाल बना हुआ है कि आप सिर्फ विकास के नाम पर राजनीति करके सफलता नहीं हासिल कर सकते हैं. वहीं दूसरी ओर जहां तक बात ब्रांड अखिलेश की है तो मुलायम सिंह यादव ने पिता का फर्ज पूरी तरह से निभा दिया. अखिलेश ने जिस तरह से 403 उम्मीदवारों की सूची मुलायम सिंह यादव को सौंपी है उससे लग रहा है कि वह समाजवादी पार्टी की कमान संभालने को बेकरार हैं.

यानी अब फैसला मुलायम सिंह यादव को करना है. मुलायम सिंह यादव को ऐसी सियासी ड्रामेबाजी से निपटने का मास्टर माना जाता रहा है पर यह ड्रामेबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...