बाबरा भारतीय खाने और व्यंजनों के प्रति आकर्षित रही और उन की रैसिपी के लिए भी बेहद उत्सुक व जिज्ञासु दिखलाई दी. घूमनेफिरने के बाद जितने वक्त भी घर में रहती, मम्मी के साथ किचन में ही खड़ी हो कर उन की पाकविद्या को सीखने का भरसक प्रयत्न करती रहती. हमारे साथ रह कर उस ने नमस्ते, आदाब और शुक्रिया कहना सीख लिया था. उस के जरमन लहजे में बोले गए हिंदी-उर्दू शब्द सुन कर मम्मी खुश होतीं.
3-4 दिनों तक मसूरी, धनौल्टी, ऋषिकेश, हरिद्वार, हरकी पौड़ी घूमते हुए हरिद्वार के मंदिर में रोज होने वाली हजारों दीयों की आरती को देख कर बाबरा बहुत ही अचंभित और खुश हुई.
उस दिन शाम को कौलबैल बजी तो दरवाजे पर खड़े मिस्टर व मिसेज नेगी को देख कर हैरान रह गईं मम्मी. किटी पार्टी या ईदबकरीद में बारबार बुलाने पर भी कभी उन्होंने हमारे घर का पानी तक नहीं छुआ था. स्वयं को वे उच्च कुलीन ब्राह्मण की मानसिकता के कंटीले दायरे से निकाल नहीं पाए थे.
बाबरा ड्राइंगरूम में ही बैठी थी. उन्हें देख कर नमस्ते करने के लिए उस ने दोनों हाथ जोड़ दिए और चांदनी सी मुसकराहट बिखेरती हुई उन के सामने बैठी रही. गरमी से बेहाल बाबरा ने उस वक्त स्लीवलैस, डीप गले का टौप और जांघों तक की पैंट पहन रखी थी. मिस्टर नेगी की नजर बारबार उस के गोरे चेहरे से फिसलते हुए कुछ देर तक उस के उन्नत उरोजों पर ठहर कर, खुले चिकने पेट से हो कर उस की गुलाबी जांघों पर आ कर ठहर जाती.
पूरे 1 घंटे तक मिसेज नेगी पूरी कालोनी की खबरों का चलताफिरता, सब से तेज चैनल बनी रहीं. मम्मी बारबार पहलू बदलने लगी थीं क्योंकि उन्हें रात के खाने की तैयारी करनी थी और बाबरा की डिशेज के लिए सामान लाने के लिए मुझे बाहर जाना था.
मिसेज नेगी अपने मन का अवसाद निकाल कर जब बाबरा की तरफ पलटीं तो सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘कहां से आई हो? क्या करती हो, शादी हुई या नहीं? अनीस के परिवार को कब से जानती हो?’’
जवाब देने के लिए छोटी बहन अर्शी को शिष्टाचारवश मध्यस्थता के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ कर आना पड़ा. यूरोपियन संस्कृति में व्यक्तिगत प्रश्न पूछे जाने को बेहद ही अशिष्ट माना जाता है. कभीकभी तो लोग झुंझला कर पूछने वाले के व्यक्तिगत जीवन पर नाहक दखलंदाजी की तोहमत लगा कर केस भी कर देते हैं. लेकिन सौम्य, सुसंस्कृत बाबरा अंदरअंदर खीझती हुई भी बड़ी ही शालीनता से उन के बेसिरपैर के प्रश्नों का जवाब दे रही थी.
‘‘हमारे देश का खाना कैसा लगता है?’’
‘‘इट्स फाइन, बट आई कुड नौट ईट. इट इज सो मच औयली ऐंड स्पाइसी,’’ बाबरा ने कंधे उचका कर अंगरेजी में जवाब दिया.
‘‘अपने देश में आप क्या खाती हैं?’’
‘‘वैल, वी ईट चीज, बटर, ब्रैड, मीट, एग्स, वेजीटेबल्स, फिश, बट औल थिंग्स आर बौयल्ड.’’
‘‘मीट किस का खाती हैं? हम ने सुना है, सूअर का मांस…’’ बुरा सा मुंह बना कर बोलीं मिसेज नेगी, जैसे अभी उलटी कर देंगी.
‘‘यस, औब्वियस्ली, इट कंटेन्स मोर प्रोटींस ऐंड विटामिंस,’’ बाबरा ने बड़े ही संयत ढंग से कुबूल किया.
बाबरा का जवाब सुनते ही मिसेज नेगी ने दोनों हाथों से कान पकड़ लिए. ‘‘भाभीजी, आप ऐसे लोगों को कैसे बरदाश्त कर रही हैं जो आप के मजहब में भी एतराज की गई चीजें खाते हैं,’’ कहती हुई मिसेज नेगी मुंह पर हाथ रख कर बाहर निकल गईं. पीछेपीछे मिस्टर नेगी भी कनखियों से बाबरा की सुडौल और खूबसूरत पिंडलियों को देखते हुए बाहर निकल गए.
बाबरा उन के बरताव पर हतप्रभ रह गई और विस्फारित नेत्रों से हम तीनों को बारीबारी से देखने लगी. हम निरुत्तर हो कर एकदूसरे को शर्मिंदगी से देखने लगे.
क्या बताते बाबरा को कि मिसेज नेगी जिन सूअरों का मांस खाने की बात समझ रही थीं, वे भारत में गंदी नालियों में लोटते और मैला खाते हैं. हम मिसेज नेगी को समझाते भी कैसे कि यूरोपियन जिन सूअरों का मांस खाते हैं, वे बहुत ही साफसुथरे ढंग से गेहूं और सोयाबीन खिला कर पाले जाते हैं. यही विदेशियों का सब से पसंदीदा खाना होता है और फिर हमारी दोस्ती तो इंसानी संबंधों के चलते कायम हुई. इस में खानपान की शर्तें कहां.
इसलामी बंदिशों और यूरोपियन संस्कृति की जरूरतें कभी आपस में टकरा नहीं सकतीं क्योंकि हमारा परिवार इस तंग सोच से ऊपर, बहुत ऊपर उठ कर केवल इंसानी जज्बों को सिरआंखों पर बैठाता है.
बाबरा के भारत आने पर सूरज भी शायद खुश हो कर अपनी उष्मा दिनबदिन बढ़ाता ही चला जा रहा था. एसी, कूलर, पंखे, सारी व्यवस्थाओं के बावजूद बाबरा गरमी से बेहाल थी. मम्मी उस के लिए 2 जोड़ी सूती गहरे रंग के सलवारकुरते ले आईं. कालोनी में ही बुटीक चलाती मिसेज सिद्दीकी के पास नाप दिलवाने बाबरा को ले गईं.
जरमन लड़की को इतने करीब से देखने और उस से मुखातिब होने का सुअवसर सिद्दीकी की बेटियों को जब अनजाने ही मिल गया तो वे बौरा सी गईं. खि…खि…खिखियाती हुई वे एकदूसरे को कोहनी मार कर कहने लगीं, ‘‘तू पूछ न…’’
‘‘नहीं, तू पूछ.’’ बस, इसी नोकझोंक में एक ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘इन की शादी हो गई है?’’ मम्मी ने पूछने वाली को आश्चर्य से देखा. मानो हर लड़की की जिंदगी का मकसद सिर्फ शादी करना है. इस से आगे और इस से ज्यादा वे सोच भी नहीं सकतीं क्योंकि सदियों से शायद उन्हें जन्मघुट्टी के साथ यही पिलाया जाता है, ‘तुम्हें दूसरे के घर जाना है. सलीका, तरीका, खाना बनाना, सीनापिरोना, उठनेबैठने का कायदा सीख लो. तुम्हारी जिंदगी का फसाना सिर्फ शादी, बच्चे, शौहर की गालियां, लातघूंसे और घुटघुट के तिलतिल मरने के बाद ही खत्म होगा.’